जलवायु लचीला कृषि पर राष्ट्रीय पहल | National Initiatives on Climate Resilient Agriculture | Hindi | India.
जलवायु परिवर्तन भारत में कृषि क्षेत्र की संवृद्धि एवं सतत्ता के लिए अनिष्टकारी संभावनाएँ दिखा रहा है ।
कृषि क्षेत्र के स्थायित्व को प्रभावित करने में मौसम चक्र की अहम भूमिका है तथा अधिकांश जलवायु परिवर्तन सम्बंधी मॉडलों में यह पूर्वानुमान व्यक्त किया गया है, कि निरंतर तापमान में हो रही वृद्धि तथा चरम मौसम घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति, खाद्यान्नों के उत्पादन को गंभीर रूप से प्रभावित करेगी ।
इससे देश की खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ लाखों छोटे एवं सीमांत किसानों की आजीविका पर घातक प्रभाव पड़ेगा ।
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इसे देखते हुए कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रो पर जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव के आकलन एवं इसके निराकरण रणनीतियों के विकास के लिए एक नई राष्ट्रीय योजना ‘जलवायु समुत्थानशील कृषि पर राष्ट्रीय पहल’ (National Initiative on Climate Resilent Agriculture) के क्रियान्वयन को हाल ही में स्वीकृति प्रदान की गई है ।
1. किरन-पूर्वोत्तर भारत में एक सार्थक पहल (Kiran- A Worthwhile Initiative in Northeast India):
मई 2011 में क्षेत्रीय समिति की 20वीं बैठक के दौरान मेघालय स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के पूर्वोत्तर पर्वतीय क्षेत्र अनुसंधान परिषद में ‘किरन’ नामक सार्थक पहल का आगाज हुआ । जानकारों का मानना है कि इस नई पहल से उपेक्षा के शिकार पूर्वोत्तर भू-भाग में आवश्यक तकनीक एवं संसाधनों की उपलब्धता बढ़ेगी, जिससे खाद्यान्न का उत्पादन बढ़ेगा ।
इस पहल के माध्यम से ‘पूरब की तरफ देखो’ नीति को भी सार्थकता प्रदान की जा सकेगी । कृषि मामले में अब तक उपेक्षित पूर्वोत्तर के लिए ‘किरन’ के माध्यम से सार्थक टेक्नोलॉजी और जरूरी संसाधन सुलभ करवाने की उम्मीद की जा सकती है ।
खाद्य सुरक्षा संबंधी चुनौतियों के संदर्भ में हरित क्रांति से वंचित इलाकों की उत्पादन क्षमता का दोहन अनिवार्य माना जाने लगा है, परंतु देश के अन्य पूर्वी क्षेत्रों की तुलना में विशिष्ट भौगोलिक व जलवायु परिस्थितियों वाले पूर्वोत्तर के लिए वह पैकेज लागू करना संभव नहीं है, जो बिहार, बंगाल, ओडिशा या उत्तर प्रदेश के पूर्वी हिस्सों में लागू किया जा सकता है ।
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प्रायः मांसाहार और झूम खेती के लिए चर्चित पूर्वोत्तर में खाद्यान्न क्षेत्र में आत्मनिर्भरता नहीं है । ऐसे में समूचे पूर्वोत्तर के लिए अलग से कृषि संबंधी ज्ञान जानकारी और क्षेत्र विशेष के लिए सार्थक व सुसंगत टेक्नोलॉजी तैयार करना आवश्यक हो गया है ।
2. आइसोपॉम योजना (Isopom Scheme):
कृषि मंत्रालय ने तिलहन, दलहन, ऑयल पाम और मक्के की एकीकृत योजना (आइसोपॉम) पर बल दिया है । यह केन्द्र प्रायोजित योजना है । तिलहन और दलहन के लिए 14 प्रमुख राज्यों, मक्के के लिए 15 राज्यों व ऑयल पाम के लिए 10 राज्यों में योजना का कार्यान्वयन हो रहा है ।
ऑयल पाम विकास कार्यक्रम आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, गुजरात, गोआ, ओडिशा, केरल, त्रिपुरा, असोम और मिजोरम राज्यों में किया जा रहा है ।
3. किसान कॉल केन्द्र (केसीसी) (Kissan Call Centre):
केसीसी कृषक समुदाय के लिए शुल्क रहित दूरभाष सेवा के माध्यम से कृषि सम्बंधी जानकारी देने के लिए 21 जनवरी, 2004 को आरंभ किया गया था । यह एक देशव्यापी 11 अंको का दूरभाष नम्बर ‘1800-800-1551’ है ।
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इस नम्बर पर सप्ताह में सभी सात दिन सुबह 6.00 बजे से रात 10.00 बजे तक कॉल अटेंड किये जाते हैं । कृपकों के प्रश्नों के उत्तर 22 स्थानीय भाषाओं में दिये जा रहे हैं ।
4. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM) (National Food Security Mission):
केन्द्र सरकार द्वारा 16 अगस्त 2007 को इस मिशन की घोषणा की गयी । इसका शुभारम्भ वर्ष 2007-08 के रबी मौसम से 17 राज्यों के 312 जिलों में लागू किया । यह योजना कृषि एवं सहकारिता विभाग कृषि मंत्रालय द्वारा संचालित होती है । इस मिशन का उद्देश्य चावल, गेहूँ और दलहन का क्रमशः 108 और 2 मिलियन टन आतिरिक्त उत्पादन करना है ।
ताकि वर्ष 2011-12 (11वीं पंचवर्षीय योजना के अंत तक) 20 मिलियन टन खाद्यान्न का अतिरिक्त उत्पादन किया जा सके । यह मिशन लगभग 13 मिलियन हेक्टयर गेहूँ क्षेत्र, 20 मिलियन हेक्टेयर चावल क्षेत्र और 98 प्रतिशत दलहन क्षेत्र कवर करता है ।
11वीं पंचवर्षीय के दौरान यह योजना 19 राज्यों के 482 जिलों में क्रियान्वित की गयी । वास्तव में मिशन का लक्ष्य मृदा उर्वरता की पुनर्स्थापना, रोजगार अवसरों का सृजन और फार्म स्तरीय अर्थव्यवस्था में वृद्धि करना भी है, ताकि लक्षित जिलों के किसानों के विश्वास को बहाल किया जा सके ।
वर्ष 2012-13 से पूर्वोतर राज्यों (अरूणाचल प्रदेश, माणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैण्ड और सिक्किम) दो पहाड़ी राज्यों (हिमाचल प्रदेश एवं उत्तराखण्ड) तथा जम्मु-कश्मीर के जिलों में इसका विस्तार किया गया है ।
अब एनएफएसएम योजना में चावल 24 राज्यों के 210 जिलों में गेहूँ 12 राज्यों के 165 जिलों में और दलहन 16 राज्यों के 468 जिलों में क्रियान्वित किया जा रहा है । अतः यह योजना अब देश के 27 राज्यों के 561 जिलों में लागू है ।