कीट हमलों से फसलों को कैसे सुरक्षित रखें? | Read this article in Hindi to learn about how to protect crops from pest attacks.

विश्व के अनेकों देशों में उगाए जाने वाली विभिन्न फसलों को कीट नुकसान से बचाने के लिए किए जाने वाले उपचार को विश्लेषित कर उन्हें पाँच भागों में बाँटा जा सकता है:

1. जीवन उपाय अवस्था,

2. स्वार्थ पूरक अवस्था,

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3. संदेह अवस्था,

4. विपत्ति अवस्था, तथा

5. समन्वित नियंत्रण अवस्था ।

1. जीवन उपाय अवस्था:

इस अवस्था में वो किसान शामिल होते हैं जो अपनी फसलों में कीट नियंत्रण के लिए सस्य क्रियाओं, प्राकृतिक शत्रुओं, फसल प्रतिरोध क्षमता एवं यांत्रिक विधि या भाग्य पर निर्भर रहते हैं । कीटनाशी उपचार कभी-कभी ही होता है ।

2. स्वार्थपूरक अवस्था:

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नयी-नयी किस्मों के विकास, नए क्षेत्र व बाजार व्यवस्था के विकास के साथ ही कीट नुकसान भी बढ़ जाता है । जिससे बचने के लिए फसल सुरक्षा पद्धति भी विकसित हो जाती है । ऐसी व्यवस्था में कीटनाशकों का अविवेकपूर्ण प्रयोग होता है और कीट नियंत्रण पूर्णतया रसायनों पर निर्भर रहता है । इसका प्रयोग अक्सर या निश्चित कार्यक्रम के तहत या बचाव के रूप में होता है ।

कीट संख्या उपस्थित होने या न होने से फसल सुरक्षा पद्धति यही रहती है । आरंभिक तौर पर ये कार्यक्रम सफल होते हैं व इससे उत्पादन में भी वृद्धि होती है मगर साथ ही साथ कीटनाशी रसायनों के प्रयोग में भी अविवेकपूर्ण वृद्धि होती है ।

3. सन्देह अवस्था:

कीटनाशियों के अन्धाधुंध व अविवेकपूर्ण प्रयोग से अनेक समस्याएँ पैदा होती है कीट नियंत्रण के लिए जल्दी-जल्दी व अधिक मात्रा में कीटनाशकों का प्रयोग करने से उत्पादन लागत बढ़ जाती है, साथ ही कीटों में इसके प्रति प्रतिरोध क्षमता भी विकसित हो जाती है जिससे इन कीटों के नियंत्रण में परेशानी होती है व नयी-नयी कीट जातियाँ आर्थिक नुकसान स्तर के पास पहुँचने लगती हैं ।

4. विपत्ति की अवस्था:

इस अवस्था में रसायनों के प्रयोग इस हद तक बढ़ जाता है कि खेती करना लाभप्रद नहीं रहता है या फिर ऐसी जगह फसल पैदा करना संभव नहीं रहता क्योंकि रसायनों के हानिकारक अवशेष मृदा में विद्यमान रहते हैं जिससे फसलें सफलतापूर्वक नहीं उगायी जा सकती है । ऐसी जगहों में उगी हुई फसलों एवं फसलोत्पादों को उपभोक्ता उपयोग में लेने से हिचकने लगता है और वहाँ पर प्राकृतिक कीट नियंत्रण पद्धति पूर्णतया नष्ट हो जाती है ।

5. समन्वित नियंत्रण अवस्था:

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उपरोक्त सभी अवस्थाओं से बचने का एक ही तरीका है समान्वित नाशीजीव प्रबंध । इस सुरक्षा पद्धति में पाए जाने वाले मित्र कीटों को पहचान कर कीट नियंत्रण की अन्य विधियों के साथ मिलाकर प्रयोग किया जाए साथ ही कीटनाशकों के उचित उपयोग पर ही बल दिया जाए ।

इन सबका परिणाम यह होगा कि कीटनाशकों पर निर्भरता कम होगी, वातावरण प्रदूषण से मुक्त रहेगा, हानिकर अवशेषों से होने वाले दुष्प्रभावों से बचने में मदद मिलेगी, उत्पादन स्तर बना रहेगा व प्रभावी कीट प्रबंध व्यवस्था का विकास हो सकेगा ।

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