खाद और उर्वरक | Manure and Fertilizers in Hindi!

Read this article in Hindi to learn about:- 1. खाद एवं उर्वरक का अर्थ (Meaning of Manure and Fertilizers) 2. मूल ग्रन्थियों का निर्माण (Formation of Root Nodules) 3. राइजोबियम जैव उर्वरक को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Effecting Rhizobium Bio-Fertilizer).

खाद एवं उर्वरक का अर्थ (Meaning of Manure and Fertilizers):

खाद एवं उर्वरक (Manure and Fertilizer) शब्द का प्रयोग जल के अतिरिक्त उन सभी पदार्थों के लिए किया जाता है, जो मिट्टी (Soil) की उर्वरकता (Fertility) में वृद्धि करके पौधों की वृद्धि (Growth) में भी सहायक होते हैं ।

उर्वरक (Fertilizers):

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यह अकार्बनिक (Inorganic) रासायनिक पदार्थ (Chemical Substances) होते हैं, जो कारखानों (Factories) में तैयार किये जाते हैं । उर्वरकों में पौधों में पोषक तत्व की मात्रा बहुत अधिक पाई जाती है ।

कुछ उर्वरक कार्बनिक (Organic) रूप में पाये जाते हैं, जैसे यूरिया (Urea) उर्वरकों में पौधों के एक दो पोषक तत्व उपस्थित रहते हैं तथा सभी उर्वरक पानी में घुलनशील (Soluble) होते हैं और इनका अवशोषण पौधों द्वारा आसानी से कर लिया जाता है ।

जैसे अमोनियम सल्फेट (Ammonium Sulphate), सोडियम नाइट्रेट (Sodium Nitrate), कैल्शियम साइनेमाइड (Calcium Cynamide), पोटेशियम नाइट्रेट (Potassium Nitrate) आदि ।

जैविक खाद (Bio-Fertilizers):

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कृषि में उत्पादन बढ़ाने के लिए आम तौर पर रासायनिक उर्वरकों (Chemical Fertilizers) को प्रयोग में लाया जाता है । सन् 1951 में इन अकार्बनिक उर्वरकों की खपत 0.05 मिलियन टन्स (Tonnes) जो अब बढ़कर 10 मिलियन टन्स (Tonnes) से भी अधिक हो गयी है ।

रासायनिक उर्वरकों का उत्पादन (Manufacture) काफी महँगा होता जा रहा है और इसके कारण ही जीवाश्म ईंधन (Fossil Fuel) में कमी आती जा रही है । उर्वरकों (Fertilizers) द्वारा मृदा प्रदूषण (Land Pollution) में वृद्धि होती है तथा जैविकीय संकट उत्पन्न होने का भय बना रहता है ।

अत: यह आवश्यक हो जाता है कि नई विधियाँ अपनाई जायें जिनके द्वारा अन्य उर्वरकों (Fertilizers) को प्रयोग में लाकर कृषि उत्पादन में वृद्धि हो सके । जैव उर्वरकों (Bio Fertilizers) के अन्तर्गत जीवित पादपों (Living Plants) को उर्वरकों के रूप में प्रयोग में लाया जाता है जो रासायनिक उर्वरकों की कमी को पूरा करते हैं तथा साथ ही साथ मृदा (Soil) को उपयोगी तत्व भी प्राप्त होते हैं ।

नाइट्रोजन (Nitrogen) फसलों की सुचारू एवं स्वस्थ वृद्धि के लिए अत्यन्त आवश्यक महापोषक तत्व (Macro-Element) होता है । हमारे देश की मृदा (Soil) में N2 की सदैव कमी बनी रहती है । नाइट्रोजन उर्वरकों (N2 Fertilizers) का उत्पादन (Production) हमारे देश में खपत (Consumption) से कम है ।

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अत: हमको नाइट्रोजन उर्वरकों की पूर्ति के लिए दूसरे देशों पर आश्रित रहना पड़ता है । बहुत समय से हरी खाद (Green Manure) के लिए लेग्यूमिनस (Leguminous) पौधों की खेती की जा रही है तथा इनकी जड़ें (Roots) मिट्टी में ही छोड़ दी जाती हैं, जो सड़ने गलने के बाद मिट्टी में नाइट्रोजन की प्रचुर मात्रा बनाये रखती हैं, जो फसलों (Crops) के पौधों को प्राप्त होती रहती है ।

आजकल आर्थिक महत्व की फसलों जैसे खाद्यान्नों (Cereals) को भारी मात्रा में उगाया जाता है । अत: इस विधि द्वारा हरी खाद के लिए पर्याप्त मात्रा में पौधों के अवशेष तथा पत्तियाँ (Leaves) प्राप्त नहीं हो पाती हैं । इस प्रकार की समस्याओं को हल करने के लिए हमारे देश में जैव उर्वरक (Bio Fertilizers) का प्रयोग बहुत अधिक महत्वपूर्ण समझा जाता है ।

लेग्युमिनस (Leguminous) पौधों की जड़ों (Roots) का सम्बन्ध सहजीवी (Symbiotic) जीवाणु राइजोबियम (Rhizobium) से होता है, जो मूलग्रन्थियों (Root-Nodules) क निर्माण करता है तथा वायुमण्डलीय N2 का स्थरीकरण करता है ।

उपकुल पेपीलियोनेटी (Sub Family-Papilionatae) के पौधों की जडों में मूल ग्रन्थियाँ (Root Nodules) पायी जाती है । जिनमें सहजीवी जीवाणु (Symbiotic Bacterium), राइजोबियम लैग्युमिनोसेरम (Rhizobium Leguminosarum) होते हैं ।

इन जीवाणुओं को पोषक (Host) से कार्बोहाड्रेट्स प्राप्त होते हैं तथा पोषक को जीवाणुओं से काम आने वाली नाइट्रोजन (N2) प्राप्त होती है और इस प्रकार की दोनों जीवधारियों के बीच का सम्बन्ध सहजीवन (Symbiosis) कहलाता है ।

राइजोबियम (Rhizobium) की अलग-अलग जातियाँ (Species) विभिन्न प्रकार के पौधों की मूल ग्रन्थियों में पाई जाती हैं, जैसे- मटर (Pea) में रा. लेग्युमिनोसेरम, मैलीलोटस (Melilotus) में रा. मैली टोली (R. Melitoli) तथा सोयाबीन (Soyabean) में रा. जपोनिका (R. Japonica) आदि ।

ये जीवाणु बीजाणु (Spores) उत्पन्न नहीं करते हैं, ग्राम नेगेटिव होते हैं तथा श्वसन करते हैं । यह जीवाणु पोषक (Host) की अनुपस्थिति में N2 स्थिरीकरण नहीं करते हैं ।

मूल ग्रन्थियों का निर्माण (Formation of Root Nodules):

नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले जीवाणु इजोबियम (Rhizobium) प्राय: मिट्टी में पाये जाते हैं, जो लेग्यूमिनस (Leguminous) पौधों की जडों को संक्रमित (Infect) करके उनमें रहते हैं ।

संक्रमण (Infection) में पूर्व पोषक की जड़ें मिट्टी में कुछ रासायनिक पदार्थ Polygalacturonase स्त्रावित करती हैं, जो जीवाणुओं को उद्दीपन (Stimulation) प्रदान करते हैं और जीवाणु तेजी के साथ मिट्टी में गुणन (Multiplication) करने लगते हैं ।

थाइमैन के अनुसार जीवाणुओं से बी इण्डोल एसिटिक अम्ल (B-Indole Acetic Acid) निकलता है, जिससे पोषक पौधों के मूल रोग (Root Hairs) में मुड़न (Curling) होने लगता है । इसके बाद श्लेष्मी पदार्थ का धागा (Thread) मूल रोम से कार्टेक्स (Cortex) तक बनता है, जिसमें जीवाणु धँसे रहते हैं ।

राइजोबियम (Rhizobium) इसी संक्रमण धागे (Infection Thread) के द्वारा लम्बाई में जीवाणु जड़ के कार्टेक्स (Cortex) की केशिकाओं (Cell) में प्रवेश कर जाते हैं और प्रजनन करके संख्या में वृद्धि करते रहते हैं इसके अतिरिक्त कार्टेक्स (Cortex) की कोशिकाएँ में लगातार होती रहती है, जिसके फलस्वरूप अनियमित आकार की ग्रन्थियाँ (Nodules) बन जाती है ।

विर्टनेन एवं मीटिनेन के अनुसार लेगहीमोग्लोबिन की सान्द्रण तथा नाइट्रोजन स्थरीकरण दर में घनिष्ठ सम्बन्ध होता है, जिससे स्पष्ट हो जाता है कि लेगहीमोग्लोबिन तथा सह-जीवी नाइट्रोजन स्थरीकरण एक-दूसरे पर आधारित होते हैं ।

लेगहीमोग्लोबिन (Leghaemoglobin), ऑक्सीजन (O2) वाहक (Carrier) होता है तथा O2 राइजोबियम वेक्टीरॉयड के इलेक्ट्रॉन ट्रान्सपोर्ट चैन के लिए आवश्यक होती है । गुडविन एवं मरकर के अनुसार लेगहीमोग्लोबिन तथा O2 बन्धुता (Affinity) होती है । अत: बहुत कम O2 की सान्द्रता होने पर भी मूल ग्रन्थि के जीवाणुओं को O2 प्राप्त होती रहती है ।

इसी आधार पर वैज्ञानिकों ने सूक्ष्म जैवीय संरोप्य (Microbial Inoculants) का विकास किया, जिसमें जीवन क्षम (Viable) लाभदायक सूक्ष्मजीवों (Beneficial Micro Organisms) का बीजों (Seeds) अथवा मृदा (Soil) में आसानी से अनुप्रयोग (Application) किया जा सकता है ।

उन्होंने भूमि की उर्वरता (Fertility) में वृद्धि एवं पादप वृद्धि (Plant Growth) को सहायता के लिए एच्छित सूक्ष्म जीवियों (Desired Micro Organisms) की विभिन्न प्रकार की जैवीय क्रियाएँ (Biological Activities) मूल पर्यावरण (Root Environment) उत्पन्न की है ।

राइजोबियम (Rhizobium), एजोटोवेक्टर (Azotobacter), संरोप्य (Inoculants), राइजोस्पाइरिलम (Rhizospirillum), संरोप्य (Inoculants) तथा नील हरित शैवाल (Blue Green Algae), संरोप्य (Inoculants) को तैयार किया । टोरीडोफाइटा के सदस्य एजोला (Azolia) को कार्बनिक खाद (Organic Manure) के स्थान पर प्रयोग किया ।

फास्फेट्स (Phosphates) को घुलनशील बनाने वाले सूक्ष्मजीवों (Micro-Organisms) तथा माइकोराइजल कवकों (Mycorrhizal Fungi) को भी जैव उर्वरक तकनीकी (Bio-Fertilizer Technology) में महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है ।

स्वतंत्र अवस्था में पाये जाने वाले नील हरित शैवाल जैसे नॉस्टाक (Nostoc), एनावीना (Anabaena) तथा ओलोसिरा (Aulosira) को उनके जैव मास (Biomass) उत्पादन में वृद्धि के लिए खुले जलजलाशय (Water Reservoirs) में उगाया जाता है ।

इसके बाद इन्हें सूर्य (Sun) की धूप में सुखाकर शैवाल फ्लास्क (Algal Flasks) में एकत्रित कर लिये जाता हैं और धान (Rice) की एक-एक सप्ताह में स्थानान्तरित नवोद्भिदों (Seedlings) के खेतों में इसे फैला दिया जाता है । राइजोबियल संरोप्य (Rhizobial Inoculants) को मूल ग्रन्थियाँ (Root Nodules) के राइजोबिया (Rhizobia) से प्राप्त किया जाता है ।

इस विधि में राइजोविया (Rhizobia) का विलगन (Isolation), संवर्धन (Culture) भार उत्पादन (Mass Production) किया जाता है और फिर इसे पीट के चूर्ण (Peat Power) में संरोपण (Inoculate) करते हैं, जो वाहक (Carrier) का कार्य करता है तथा इसे मिट्टी (Soil) में मिला दिया जाता है ।

मृदा (Soil) से एजोटोबेक्टर (Azotobacter) के वियुक्त (Isolates) तैयार किये जाते हैं, जिनका संवर्धन (Culture), भार उत्पादन (Mass Production) करके पीट पाऊडर (Peat Powder) अथवा अगर (Agar) में संरोपण (Inoculate) करके एजोटोबेक्टर (Azotobacter) संरोप्य (Inoculants), तैयार किये जाते हैं, जो वाहक (Carries) का कार्य करते हैं और फिर इन्हें मिट्टी (Soil) में मिला दिया जाता है ।

ऐजोस्पाइरिलम (Azospirillum) संरोप्य (Inoculants) को तैयार करने के लिए मृदा (Soil) तथा जडों से एजोस्पाइरिलम (Azospirillum) को विलगित (Isolate) करके संवर्धन (Culture) तथा भार उत्पादन (Mass Production) को प्राप्त करते हैं ।

इसे किसी वाहक (Carrier) जैसे- गोबर की खाद (Farm Yard Manure) या गोबर की खाद + मिट्टी अथवा गोबर की खाद + चारकोल में संरोपण (Inoculate) करके मिट्टी (Soil) में मिलाते हैं ।

लेग्यूम दालों (Pulses) तथा तेलों (Oils) को राइजोबियम (Rhizobium), संरोप्य (Inoculants) द्वारा अतिरिक्त 6.0kg.N प्रति हेक्टर प्राप्त होती है । नील हरित शैवालों (Blue Green Algae) द्वारा चावल (Rice) के खेतों की नम (Wet) मिट्टी को अतिरिक्त 25kg.N. प्रति हेक्टर प्राप्त होती है ।

राइजोबियम (Rhizobium) संरोप्य (Inoculants) के 500 किग्रा॰ तथा नील हरित शैवालों (Blue Green Algae) के 10 किग्रा॰ प्रति हेक्टर, निरूपण (Application) के लिए लगभग 15,000 टन्स राइजोबियम (Rhizobium) कल्चर (Culture) तथा 0.17 मिलियन टन्स (Tonnes) नील हरित शैवाल की आवश्यकता होती है । चावल के खेतों (Rice Fields) में एजोला (Azolla) फर्न को कार्बनिक निवेश (Organic Input) की भांति प्रयोग में लाया जाता है ।

चावल (Rice) की अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए एजोला (Azolla) का उपयोग दो विधियों द्वारा किया जाता है:

(i) चावलों की पौध लगाने से पूर्व एजोला (Azolla) का खाद (Manure) के रूप में प्रयोग,

(ii) मुख्य फसल के साथ एजोला (Azolla) को कुछ समय के लिए खेतों में उगाना ।

एजोला (Azolla) को यातायात द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान पर नहीं भेज सकते हैं । अत: यह कार्य हाथों से ही किया जा सकता है । ग्रन्थिमय (Nodulating) लेग्यूम्स को हरी खाद (Green Manure) की भाँति प्रयोग किया जाता है ।

फास्फेट्‌स (Phosphates) को घुलनशील करने वाले सूक्ष्मजीवों (Micro Organisms) को मृदा (Soil) अथवा राइजोस्फियर्स (Rhizospheres) से विलगित (Isolate) करके संवर्धन एवं भार उत्पादन वृद्धि कराते हैं और फिर पीट पाउडर (Peat Powder) में संरोपण (Inoculation) कराकर इसे वाहक (Carrier) के रूप में मिट्टी में मिलाते हैं ।

माइकोराइजल कवक (Mycorrhizal Fungi) ग्लोमस (Glomus), गिगास्पोरा (Gigaspora), एकोलोस्पोरा (Acaulospora), स्क्लेरोसिस्टिस (Sclerocystis) तथा एण्डोगोन (Endogone) वंश होते हैं ।

एक्टोमा इकोराइजा वाले कवकों (Ectomycorrhizal Fungi) का संरोपण (Isolation) जड़ (Root), बीजाणु (Spores), राइजोमॉफ्स (Rhizomorphs) अथवा स्क्लेरोशिया (Sclerotia) से किया जाता है । इन कवकों का संवर्धन (Culture) तैयार करके संरोपण (Inoculation) किया जाता है ।

कवकों के शुद्ध संवर्धन (Pure Cultures) को संरोप (Inoculum) की भाँति प्रयोग करने से बहुत अधिक समय लगता है । प्राय: मृदा (Soil), जड (Root), माइकोराइजल नवोद्भिदों (Seedlings) बीजाणु (Spores) तथा स्पोरोकार्प्स (Sporocarps) को संरोप्य (Inoculants) की भाँति कम में लाया जाता है ।

राइजोबियम जैव उर्वरक को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting Rhizobium Bio-Fertilizer):

(1) तापमान (Temperature):

भंडारण के समय तापक्रम 35°C से अधिक होने पर इसकी क्रियाशीलता बुरी तरह प्रभावित होती है । अतिरिक्त मृदा (Soil) का तापक्रम, ग्रंथी निर्माण की प्रक्रिया बाधित करता है ।

(2) मृदा pH (Soil pH):

Rhizobium की प्रजातियों का मृदा (Soil) pH सहनशीलता के प्रति बहुत अंतर होता है । सामान्य 6.0 से 8.0 के मध्य pH मान पर Rhizobium की क्रियाशीलता सुचारू रूप से प्रगतिशील रहती है ।

(3) कीटनाशक एवं कृषि रसायन (Pesticides and Agrochemicals):

अत्याधिक प्रतिजैविकी दवाओं एवं रासायनों के छिड़काव से ग्रंथी निर्माण प्रक्रिया पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है । थीरम, केप्टान आदि दवाओं का सावधानीपूर्वक प्रयोग करना चाहिए ।

(4) मृदा नाइट्रोजन एवं फॉस्फोरस (Soil Nitrogen and Phosphorus):

Soil में अधिक मात्रा में नाइट्रोजन की उपस्थिति से जैविक नाइट्रोजन यौगिकरण की क्रियाविधि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है । स्फुट की अल्पता से ग्रंथी निर्माण (Nodulation) की प्रक्रिया बाधित होती है ।

रासायनिक उर्वरकों (Chemical Fertilizers) तथा कार्बनिक खादों के अनुपूरक (Supplement) जैव उर्वरकों (Bio-Fertilizers) के महत्व को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार (Govt. of India) ने जैव उर्वरकों (Bio Fertilizers) के विकास एवं प्रयोग के लिए नेशनल केमीकल प्रोजेक्ट (National Chemical Project) की स्थापना की है, जिसके अन्तर्गत 1 राष्ट्रीय (National), 6 क्षेत्रीय (Regional) तथा 40 उपकेन्द्र (Sub Centres) सम्मिलित किये है ।

इन उपकेन्द्रों द्वारा राइजोबियम (Rhizobium) के 375 टन्स (Tonnes) के अतिरिक्त 600 टन्स BGA का उत्पादन किया जाता है । इस कार्यक्रम में एजोला (Azolla) को सम्मिलित नहीं किया गया है ।

चीन (China) तथा वियतनाम (Vietnam) में एजोला (Azolla) की इकईयाँ (Units), प्रान्त (State), जिला (District), खण्ड (Block) स्तर पर बनाई जा सकती है, जिनके द्वारा किसानों को ताजा (Fresh) एवं स्वस्थ मटेरियल समय पर दिया जा सकता है, ताकि वे अपने चावल (Rice) के खेतों में इसका संरोपण (Inoculation) करके गुणन (Multiplication) कर सकें ।

शैवालों (Algae) के उन्नतिकरण के लिए जेनेटिक इंजीनियरिंग (Genetic Engineering) के क्षेत्र में अधिक कार्य नहीं हुआ है । आधुनिक वैज्ञानिकों ने स्वयंपोषी (Autotrophic) तथा विषमपोषी (Heterotrophic) शैवालों में कोशिका संयुजन (Cell Fusion) तकनीकी द्वारा सफलता प्राप्त कर ली है ।

य॰ एस॰ ए॰ में जैव तकनीकी संसाधनों (Bio Technological Resources) के माध्यम से उत्परिवर्तित (Mutated) शैवाल स्ट्रेन्स (Strains) का प्रयोग कम समय में दुगना किया जा चुका है, जो विभिन्न प्रकार के कार्बोहाइड्रेट्स जैसे, ग्लुकोज (Glucose) का इस्तेमाल कर सकते हैं ।

जेनिटिक इन्जीनियर तकनीकी की सहायता से जीन ट्रान्सफर तन्त्र (Gene Transfer System) द्वारा बाहरी (Foreign) DNA को साइनोबेक्टीरिया (Cyanobacteria) प्रविष्ट कराया जा सकता है, जिसका उपयोग जैव उर्वरकों के लिए अत्यन्त लाभकारी सिद्ध होगा ।

भारतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान दिल्ली (I. A. R. I. New Delhi) के प्रसिद्ध वैज्ञानिकों वेंकट रमन तथा सुब्बाराव न राइजोवियम (Rhizobium), ऐजोटोवेक्टर (Azotobacter), एजोस्पाइरिलम (Azospirillum) फास्फेट (Phosphate) घोलने वाले जीवाणुओं (Bacteria) तथा सायनोबेक्टीरिया (Cyanobacteria) पर अनेक महत्वपूर्ण कार्य किए हैं ।

प्रयोगों के आधार पर उन्होंने बताया कि एनाविना एजोली (Anabaena Azollae) शैवाल को व्यापारिक मात्रा में उत्पादित किया जा सकता है । विभिन्न जैव उर्वरकों (Bio Fertilizers) का वर्णन निम्न प्रकार हैं ।

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