कीटनाशकों का उपयोग कैसे करें | How to Use Insecticides in Hindi!
किसी भी कीटनाशी के प्रयोग करने से पूर्व उसके प्रयोग के लिए जो निर्देश दिये हों, उनको अच्छी तरह पढ़कर समझ लेना चाहिये । आजकल प्रत्येक कीटनाशी के साथ ”प्रयोगकर्ता के लिए निर्देश” साथ में आते हैं । इसके अलावा उनके प्रयोग करने की मात्रा सान्द्रता एवं विधि के बारे में किसी फसल सुरक्षा अधिकारी या प्रसार कार्यकर्ता या विशेषज्ञ से पूर्ण जानकारी प्राप्त कर लें । इसके उपरान्त ही इसका प्रयोग करें ।
साधारणतः धूल (डस्ट) व रवेदार चूर्ण जिस अवस्था में बाजार में मिलते हैं वैसे ही प्रयोग किये जाते हैं । घुलनशील घोल एवं घुलनशील धूल पानी में मिलाकर निम्न सान्द्रता (0.025 से 1.0%) के घोल के रूप में तैयार करके प्रयोग करते हैं ।
धूल का प्रयोग सामान्य तौर पर 0-25 किग्रा/हे. की दर से एवं दानेदार का 15 से 25 किग्रा/हे. की दर से करते हैं । घुलनशील घोल फसल की अवस्था के अनुसार 1 से 2 लीटर की दर से 500 से 1000 लीटर पानी में मिलाकर प्रयोग करते हैं । इसी प्रकार घुलनशील धूल भी आमतौर पर 1 से 3 किग्रा/हे की दर से 500 से 1000 लीटर पानी में मिलाकर प्रयोग करते हैं ।
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घोल बनाते समय निम्नलिखित सूत्र काम में लाते हैं:
उदाहरण 2:
सेविन की 50 प्रतिशत घुलनशील धूल (डब्लू.पी.) उपलब्ध है । आधा हेक्टेयर खेत में सेविन का छिड़काव 0.1 प्रतिशत की सान्द्रता में करना है । एक हेक्टेयर में 1000 लीटर पानी लगता है तो 1/2 हेक्टेयर खेत में 50 प्रतिशत की कितनी घुलनशील धूल की आवश्यकता होगी?
इसी तरह से घुलनशील घोल (ई.सी.) एवं धूल (डब्लू.पी.) का घोल बनाकर छिड़काव यंत्रों द्वारा इनका प्रयोग किया जाता है । धूल (डस्ट) का भुरकाव डस्टर के द्वारा किया जाता है । जमीन में रहने वाले कीटो के लिए प्रायः बोआई के समय ही इसे मृदा में मिला देते हैं ।
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दानेदार चूर्ण प्रायः जिस डिब्बे में आते हैं उसी के विशेष छिद्र द्वारा प्रयोग किया जाता है या कुछ विशेष मशीनों के द्वारा (जिन्हें ग्रेन्यूल एप्लीकेटर) कहते हैं; प्रयोग करते हैं । सर्वांगी विष के दानेदार चूर्ण को बुवाई से पूर्व या पौधों के जमीन में मिलाते हैं ।
कीटनाशकों के प्रयोग से उत्पन्न समस्याएँ:
कीटनाशकों के अत्यधिक व अविवेकपूर्वक दोहन के फलस्वरूप आज इससे अनेक प्रकार के नुकसान होने लगे हैं इनमें से कुछ प्रमुख कीटनाशी अन्य समस्याएं एवं विषमताएँ निम्नलिखित हैं:
1. कीटों के अतिरिक्त अन्य अलक्षित प्राणियों पर विषाक्त प्रभाव ।
2. पेड़ पौधों पर विषाक्तता एवं दुष्प्रभाव ।
3. उपयोगी व लाभादायक कीटों का नष्ट होना ।
4. सूक्ष्म जीवियों पर कुप्रभाव ।
5. भूमि, जल व खाद्य का संदूषण एवं उनमें रासायनिक अवशेष ।
6. कीटों में प्रतिरोध क्षमता का विकसित होना ।
1. अलक्षित प्राणियों पर विषाक्त प्रभाव (Effect on Non-Target Animals):
कीटनाशी रसायन स्वयं विषाक्त होते हैं और इसी गुण के कारण वे कीटों को नष्ट करने में सक्षम होते है । अतः ऐसी ही विषाक्तता अन्य प्राणियों पर भी दिखाई देती है । कीटों के लिए ऐसे विषों की घातक मात्रा अन्य अलक्षित प्राणियों की अपेक्षा कम होती है परन्तु इन दोनों में अन्तर अधिक भी नहीं होता है । ऐसे रसायनों का प्रयोग अनुमोदित सान्द्रता से अधिक करने पर पालतू जानवरों, वन्य जीवों, पक्षियों व जलीय प्राणियों पर विषैला प्रभाव पड़े बिना नहीं रहता है ।
इसी के साथ वर्षा के जल के प्रभाव के साथ भूमि से ऐसे रसायन जल स्रोतों में पहुँच कर, एकत्रित हो जाते हैं एवं वहाँ के आसपास के क्षेत्र में रहने वाले प्राणिया व पेड़ पौधों में प्रविष्ट होकर जीवों के मध्य उपस्थित प्राकृतिक संतुलन को खत्म कर देते हैं फलस्वरूप प्राकृति संतुलन बिगड़ जाता है ।
2. पेड़ पौधों पर विषाक्तता एवं दुष्टभाव (Effect on Plants):
पेड़ पौधे भी जीवित प्राणियों के समान कीटनाशी विष के प्रभाव से अछूते नहीं रहते । बीजो का अंकुरण, अंकुरित बढ़ते हुए पौधे एवं बड़े पेड़ भी कीटनाशी रसायनों से प्रभावित होते हैं । नवीद्भिद व कोमल पत्तियां इनसे झुलस जाती हैं उन पर जलने के धब्बे बन जाते है और अधिक विषाक्तता से संपूर्ण पौधा या पेड़ ही नष्ट हो जाता है ।
3. उपयोगी व लाभदायक कीटों का नष्ट होना (Destruction of Useful Insect):
बहुत से कीट क्षतिकारक नहीं होकर अपनी गतिविधियों से मानव के लिये लाभप्रद होते हैं । परभक्षी कीट जैसे कोक्सीनेल, सिरफीड फ्लाई आदि अन्य हानिकारक कीटों का भक्षण कर प्राकृतिक तौर पर उनकी जनसंख्या को सीमित रखने में सक्षम होते हैं ।
इसी प्रकार परजीव्याम कीट जैसे ट्राइकोग्रामा, ब्रेकोन आदि भी हानिकारक कीटों से आहार व आश्रय प्राप्त कर उन्हें कमजोर, शिथिल व रोगी बना कर मार देते हैं । इसके अतिरिक्त अनेक लाभकारी कीट जैसे मधुमक्खी, लाख, रेशम कीट जो प्रकृति में पाये जाते हैं, कीटनाशी रसायनों से अत्यधिक संवेदनशील होते हैं एवं उनके अंशमात्र प्रभाव से भी मुक्त नहीं रह पाते हैं । ऐसे कीटों में इन कीटनाशी रसायनों की विषाक्तता सहज ही दृष्टिगोचर होती है ।
4. सूक्ष्म जीवियों पर कुप्रभाव (Harmful Effect on Micro-Organisms):
भूमि में उपस्थित विभिन्न प्रकार के सूक्ष्म जीव पेड़ पौधों की वृद्धि में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं साथ ही ये भूमि के गठन में सुधार तथा उर्वरकता में वृद्धि, बीजों के अंकुरण व पौधों की बढ़वार के लिये अनुकूल वातावरण तैयार करते हैं ।
जब कभी भूमिगत कीटों के नियंत्रण हेतु कीटनाशी रसायनों से भूमि को उपचारित किया जाता है या पौधों पर भुरकाव या छिड़काव के फलस्वरूप रसायन भूमि पर गिरते है तो ये भूमि में रह रहे सूक्ष्म जीवों को प्रभावित करते है । फलस्वरूप सूक्ष्मजीवों की लाभप्रद क्रियाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है तथा भूमि की उर्वरता पर कुप्रभाव पड़ता है व पेड़ पौधों की वृद्धि प्रभावित होती है ।
5. भूमि, जल एवं खाद्य का संदूषण एवं उनमें रासायनिक अवशेष (Contamination and Residues of Poisonous Chemicals):
कीटों के नियंत्रण हेतु प्रयुक्त कीटनाशी रसायनों से भूमि, जल, वायु एवं खाद्य का संदूषण एवं उनमें इनके अवशेष बने रहना एक अत्यन्त चिन्ता का विषय है । ये जन-स्वास्थ्य के लिये काफी खतरनाक बात है । खाद्य पदार्थों व पशु उत्पादों में इन कीटनाशी रसायनों की मात्रा का पाया जाना स्वास्थ्य के लिये हानिकारक होता है इससे कैंसर जैसे रोगों की संभावनाएं काफी बढ़ जाती हैं ।
6. कीटों में प्रतिरोध क्षमता का विकसित होना (Development of Resistance in Insects):
कीटनाशी रसायनों के अत्यधिक एवं लगातार उपयोग से एक ओर अनेकों समस्याओं का सामना करना पड़ता है वहीं दूसरी ओर कीटों में प्रतिरोधिता का विकसित होना एक अत्यन्त गंभीर समस्या बन गयी है । जब कीट विशेष प्रयुक्त की जा रही कीटनाशी दवा की अनुमोदित मात्रा (सान्द्रता) से नष्ट नहीं होता तो निश्चित ही इसकी मात्रा को बढ़ाया जाता है जो कि इनमें इन रसायनों के प्रति प्रतिरोधकता का सूचक होती है ।
यही नहीं, ऐसी प्रतिरोधिता एक विशेष कीटनाशक तक ही सीमित न होकर अन्य कीटनाशी रसायनों के विरुद्ध भी विकसित हो जाती है । फलस्वरूप कीट बहुत ही विकराल समस्या के रूप में प्रकट होते हैं । विश्व में लगभग 300 कीटों व माइट (बरुथी) में कीटनाशी रसायनों के प्रति प्रतिरोधिता पायी गयी है ।