कीटनाशक: गुण और उपयोग | Read this article in Hindi to learn about:- 1. कीटनाशक का अर्थ (Meaning of Insecticides) 2. कीटनाशकों के गुण (Properties of Insecticides) 3. कीटनाशक कानून (Insecticide Law) 4. उपयोग (Uses) 5. विषवैज्ञानिक प्रभाव (Toxicological Effects).
Contents:
- कीटनाशक का अर्थ (Meaning of Insecticides)
- कीटनाशकों के गुण (Properties of Insecticides)
- कीटनाशक कानून (Insecticide Law)
- कीटनाशक के उपयोग (Uses of Insecticides)
- कीटनाशकों के विषवैज्ञानिक प्रभाव (Toxicological Effects of Insecticides)
1. कीटनाशक का अर्थ (Meaning of Insecticides):
वे पदार्थ जो अपनी रासायनिक क्रियाओं वाले गुणों के कारण कीटों को मारते हैं कीटनाशक कहलाते हैं । कीटनाशक शब्द उतना पुराना नहीं है जितना कि इनका कीटों को मारने के लिए विष की भाँति किया जाने वाला प्रयोग है ।
लगभग 200 वर्ष ईसा पूर्व बिटूमैन के उबलते हुए मिश्रण मिनरल पिच या एस्फाल्ट (Mineral Pitch or Asphalt) तथा अंगूर की पत्तियों पर धुआँ गुजार कर कीटों को दूर रखा जाता था ।
ADVERTISEMENTS:
क्रमशः 100 वर्ष ईसा पूर्व तथा 40 से 90 वर्ष ईसा के बाद यह ज्ञात था कि सल्फर तथा आर्सोनिक कीटों के लिए विषाक्त है । पर्शिया में कीट नियन्त्रण के लिए पायरेक्षम का उपयोग 1800 से भी पहले से हो रहा है । प्राचीन काल से ही नीम का प्रयोग कीटनाशक के रूप में होता चला आ रहा है ।
आधुनिक कीटनाशकों का इतिहास 1867 से कोलोरेडो भृंग (Colorado Beetle) के नियन्त्रण के लिए पेरिस ग्रीन (Paris Green) के प्रयोग से शुरू होता है । कीटनाशकों की वास्तविक परिकल्पना तथा कीट नियन्त्रण की दिशा में नई क्रांति 1941-42 में आरम्भ हुई जब 1939 में DDT के कीटनाशक विविधताओं, BHC की कीटनाशक प्रवृत्ति तथा फास्फोरस रसायनों के कीटनाशक प्रभावों की खोज हुई ।
इन खोजों के पश्चात् कीटनाशक व्यावहारिक कीट विज्ञान (Applied Entomology) के लिए वरदान बन गये । कीटविज्ञान (Entomology) का सम्पूर्ण उद्देश्य ही कीट नियन्त्रण से पूर्ण रूप से अवगत होना है, ताकि कुशलता, कम व्यय एवं शीघ्रता से फसलों (Crops) एवं अन्न को कीटों एवं पेस्ट से बचाया जा सके ।
कीट नियन्त्रण में कीटों को एक देश से दूसरे देश या स्थान को जाने से रोकना, इनकी संख्या की वृद्धि को रोकना और बढ़ी हुई संख्या को किसी भी प्रकार से मारकर कम करना या समाप्त करना सम्मिलित है ।
ADVERTISEMENTS:
कीट नियन्त्रण कार्यक्रम के विस्तृत ज्ञान के अन्तर्गत वह सब आता है जो कि उनका जीवित रहना कठिन कर दे और साथ ही साथ उनकी वृद्धि या गुणन को नियन्त्रित कर सके ।
कीट नियन्त्रण के प्रभावी कार्यक्रम के अन्तर्गत कीट एवं पेस्ट के वितरण (Distribution) पेस्ट स्थिति/अवस्था (Pest Status), जीवन- चक्र (Life-Cycle), पोषक संकीर्ण (Host Complex), कालक्रम/आवर्धिकता (Periodicity), आहार लेने की विधि/पोषण विधि (Mode of Feeding), जनन (Breeding) एवं रहन-सहन (Living) का पूर्ण ज्ञान होता है ।
इन कीट, पेस्ट के परजीवी एवं परभक्षी (Predators) भी उपलब्ध होते हैं । कीटनाशक एवं नाशिकीटमार या पेस्टीसाइड (Pesticides) के प्रस्तुतीकरण/प्रारम्भ से रक्षा तकनीकी में एक क्रान्ति आ गई है । कीटनाशक (Insecticides) एवं पेस्टीसाइड्स की सहायता से बहुत कम अवधि में अधिकांश पेस्ट संख्या को प्रभावी रूप से नियन्त्रित किया जा सकता है ।
भण्डारित अनाज पेस्ट (Stored Grain Pests) को धूम्रण (Fumigation) एवं अन्य विधियों के द्वार सफलतापूर्वक नियन्त्रित किया जा सका है, लेकिन यह कीटनाशक फल मक्खियों (Fruit Flies), बेधकों (Borers), विविधहारी कीटों (Polyphagous Insects) एवं पेस्ट के सम्बन्ध में सफल नहीं है ।
ADVERTISEMENTS:
इनके अतिरिक्त एण्टीफीडेण्ट/प्रतिपोषक (Antifeedent) हार्मोन्स एव फेरोमोन्स (Pheromones) का उपयोग कीट पेस्ट्स के नियन्त्रण में बहुत उपयोगी रहा है ।
कीट एवं पेस्ट नियन्त्रण प्रबन्धन या कार्यक्रम के अन्तर्गत, यान्त्रिक (Mechanical), भौतिक (Physical), जैविक (Biological), न्यायिक (Legal) एवं रासायनिक अभिकरण/एजेन्सी (Agencies) के साथ हॉर्मोन्स (Hormones), फेरोमोन्स (Pheromones), एण्टीफीडेण्टस (Antifeedents) एवं रासायनिक निष्प्राण/अनुर्वरक (Chemosterilants) विधियों का उपयोग आता है ।
विस्तृत रूप में कीट एवं पेस्ट नियन्त्रण के अनेक एवं विविध कारक आते हैं जो कि कीट एवं पेस्ट को किसी भी रूप में मारते, प्रतिशेध करते (Repel) एवं आहार, प्रसारण (Propagation) एवं वितरण में हस्तक्षेप करते हैं ।
कीट नियन्त्रण:
कीट नियन्त्रण को दो भागों में विभाजित करते हैं:
(1) प्राकृतिक नियन्त्रण (Natural Control) एवं
(2) व्यावहारिक नियन्त्रण विधि (Applied Control Method) ।
प्राकृतिक नियन्त्रण (Natural Control) में मनुष्य का कोई हाथ नहीं होता है और यह मनुष्य के द्वार प्रभावित भी नहीं होता है । प्रकृति में यह स्वयं होता रहता है । व्यावहारिक नियन्त्रण विधि (Applied Control Method) की सफलता पूर्णतया मनुष्य पर आधारित रहती है और उनके द्वारा संचालित होती है ।
(1) प्राकृतिक नियन्त्रण (Natural Control) विधि:
(i) इसके अन्तर्गत जलवायु सम्बन्धी कारक आते हैं, जैसे कि वर्षा (Rainfall), सर्दी (Cold), ताप (Heat), सूर्य की धूप, वायु आदि ।
(ii) भौतिक कारक (Physical Factors) के अन्तर्गत पानी, जलाशय, पहाड़, झरने एवं मिट्टी (Soil) आते हैं ।
(iii) प्राकृतिक शत्रु (Natural Enemies) के अन्तर्गत परजीवी एवं परभक्षी कीट, मछलियाँ, पक्षी एवं स्तनी प्राणी आते हैं ।
(iv) प्राकृतिक रोग (Natural Disease) के अन्तर्गत जीवाणु (Bacteria), फफूँद (Fungi), विषाणु (Virus) एवं प्रोटोजोआ (Protozoa) जनित रोग आते हैं ।
(2) व्यावहारिक नियन्त्रण विधि (Applied Control Method):
यदि कीट, कीट पेस्ट एवं अन्य पेस्ट (Pests) का नियंत्रण प्राकृतिक विधि से नहीं हो पाता है, तब मनुष्य अपनी इच्छानुसार विधियों को व्यवहार में लाकर पेस्ट एवं कीट की संख्या वृद्धि को रोकता है । इसके लिए मनुष्य अनेक साधनों प्रयोग करता है । इन्हीं साधनों के अनुसार कीट एवं पेस्ट नियन्त्रण का नामकरण हुआ है ।
इसके अन्तर्गत:
(i) यान्त्रिक (Mechanical),
(ii) भौतिक नियन्त्रण (Physical Control),
(iii) जैविक नियन्त्रण (Biological Control),
(iv) रासायनिक नियंत्रण (Chemical Control) ।
2. कीटनाशकों के गुण (Properties of Insecticides):
(1) कम मात्रा होने पर भी ये रसायन नाशक कीटों को मारने में प्रभावी होने चाहिए ।
(2) मनुष्य के स्वास्थ्य, पालतू पशुओं तथा पौधों के लिए हानिकारक नहीं होने चाहिए ।
(3) प्रयोग के कुछ समय पश्चात् इन्हें हानिरहित पदार्थों में विघटित हो जाना चाहिए ।
(4) जहाँ इनका प्रयोग हो वहाँ आपत्तिजनक अवशेष नहीं बचने चाहिए ।
(5) एकसार छिड़के जाने योग्य हो जिसके लिए अच्छी प्रकार चिपकने का गुण भी होना चाहिए ।
(6) प्रयोग में आसान होने चाहिए ।
(7) उत्पादन सस्ता होना चाहिए ।
(8) बाजार में आसानी से उपलब्ध होने चाहिए ।
(9) दूसरे पदार्थों के साथ अच्छी संगत (Compatibility) वाला होना चाहिए ।
3. कीटनाशक कानून (Insecticide Law):
कीटनाशकों की बिक्री व उनके प्रयोग के लिए राज्य संघीय सरकार (Federal Government) तथा दूसरे देशों ने अनेक नियम बनाये हैं जिनके अनुसार कीटनाशक, फफूँद नाशक, रोडेन्टनाशी तथा खरपतवार नाशी आदि ।
सभी आर्थिक महत्व के विषों के लेबल पर निम्न सूचनाएँ होना आवश्यक हैं:
(1) उत्पादक का नाम व पूरा पता ।
(2) ट्रेडमार्क ।
(3) भीतर रखी वस्तु का शुद्ध भार ।
(4) उपस्थित सक्रिय तथा निष्क्रिय अवयवों का प्रतिशत तथा उनके सामान्य व रासायनिक नाम ।
(5) प्रयोग के निर्देश, मात्रा तथा सावधानियाँ ।
अधिनियम में यह उल्लेख किया गया है कि आर्थिक महत्व के विष जो मनुष्य के लिए भी हानिकारक हैं उनके लेबल पर खोपड़ी का निशान व हड्डियाँ, एक चेतावनी तथा प्रतिविष (Antidote) के विषय में जानकारी होनी चाहिए ।
यदि लेबल पर उत्पाद के विषय में गलत या भ्रामक सूचना हो (इसके निर्माण की मात्रा, अवयवों का प्रकार, आर्थिक विष के अतिरिक्त अन्य उपयोग, जन्तुओं तथा पौधों की सुरक्षा) तो यह आर्थिक विष मिथ्या छाप (Misbranded) वाला कहा जायेगा । उक्त अधिनियम के अतिक्रमण की अवस्था में उत्पादक, वितरक या निर्यातक पर जुर्माना या उसे जेल भी हो सकती है ।
भारत सरकार अधिनियम 1914 (Government of India Act 1914) में हुए अनेक संशोधनों के अनुसार स्थानीय तथा विदेशी नाशक कीटों के नियन्त्रण के लिए राज्य तथा केन्द्र शासित प्रदेशों में राज्यपाल या भारत के राष्ट्रपति की आज्ञा लेकर नियन्त्रण के उपाय प्रयोग में लाये जाते हैं ।
उपरोक्त एक्ट के क्रियान्वयन से पहले निम्न बिन्दुओं को ध्यान में रखना चाहिए:
(1) जीव को हानिकारक घोषित होना चाहिए ।
(2) संक्रमित भाग को संगरोध के अधीन घोषित करना चाहिए ।
(3) यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि नियन्त्रण व रोकथाम के उचित उपाय उपलब्ध हों ।
इस अधिनियम में राज्य सरकारों को नियन्त्रण के उपायों के क्रियान्वयन के लिए अपने नियम तथा कानून बनाने का अधिकार है । ‘विनाशकारी कीट और नाशिजीव अधिनियम 1914 (Destructive Insect and Pest Act 1914) के प्रावधानों के अन्तर्गत अमेरिका तथा वेस्ट इंडीज से कपास के आयात पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था ।
कपास के आयात के लिए बन्दरगाह पर ही उचित धूमन तथा रोगाणुओं को नष्ट करने के पश्चात अनुमति दी गयी । अफगानिस्तान से फल व सब्जियों के आयात की अनुमति भी सक्षम अधिकारी द्वारा प्रमाण पत्र देने के पश्चात ही मिल सकती है । 1952 तक मुम्बई बन्दरगाह पर आयातित कपास के धूमन की जिम्मेवारी भारतीय कपास समिति (Indian Cotton Committee) पर थी ।
मुम्बई, मद्रास तथा कोचीन बन्दरगाहों पर अब धूमन की यह जिम्मेवारी पौध रक्षण, संगरोध एवं संग्रह निदेशालय, खाद्य एवं कृषि मन्त्रालय, भारत सरकार (Directorate of Plant Protection, Quarantine and Storage of the Ministry of Food and Agriculture, Government of India) की है ।
भारतीय संसद ने सितम्बर 1968 में कीटनाशक विधेयक (Insecticide Bill) पास किया जिसके अनुसार कीटनाशकों की फैक्टरी तथा प्रयोगशाला स्थापित करने से पहले इनका पंजीकरण करवाना आवश्यक है जिससे उनके क्रियाकलाप नियम के अनुरूप हों ।
4. कीटनाशक के उपयोग (Uses of Insecticides):
कीटनाशक बाजार में पावडर (Powder), घोल (Solutions), पायस/इमल्शन (Emulsion) आदि के रूप में मिलते हैं ।
(1) पावडर (Dust):
यह दो प्रकार के होते हैं:
(i) विषघूलि:
यह बाजार में तैयार मिलते हैं । 1, 2, 3, 5, 7, 10% धूलि (Dust) के रूप में मिलते हैं । जिस रूप में यह मिलते हैं उसी रूप में कुछ मिलाने के पश्चात् 8-10kg प्रति एकड़ आवश्यकतानुसार उपयोग करते हैं ।
(ii) जल-व्यासारित पावडर (W.P.):
सभी प्रकार के कार्बनिक कीटनाशक पानी में अघुलनशील (Insoluble) होते हैं, जब यह पावडर पानी में घोले जाते हैं तब शीघ्र ही सतह पर बैठने लगते हैं, इसलिए इनमें एक आर्द्रक (Watering Agent) साथ में मिलाते हैं जो कि इन पावडरों के कणों को पानी में लटकाए रखता है ।
इस प्रकार इन पावडरों का अपारदर्शक, निलम्बित (Suspended) घोल बनता है । इसके घोल को बार-बार चलाने की आवश्यकता रहती है । इन पावडरों को जल व्यासारित (Wettable Power – W.P.) कहते हैं । यह 20% से 90% तक के घोल में होते हैं और इनको भुरकने के लिए उपयोग नहीं करते हैं ।
(2) रवेदार/कणिकामय/ग्रेन्यूल्स (Granules):
दानेदार संयोजन, पावडर के कणों का समूहन (Aggregation) होता है जो धीरे-धीरे फैलते हैं । यह अधिक समय तक रहते हैं और जब यह अनुकूल स्थानों तक जड़ों के क्षेत्रों के पास मिट्टी में या मक्का में पत्तियों के चक्कर में प्रयोग किए जाते हैं तब यह अधिक समय तक अधिक प्रभावी होते हैं ।
दानों (Granules) का आकार 0.25-2.38 व्यास का होता है । दाने कभी भी पौधों की सतह पर चिपकते नहीं हैं और अवशिष्ट निक्षेप को कम कर देते हैं । दानेदार सूत्रीकरण को कुशलतापूर्वक मिट्टी में उपयोग किया जा सकता है जिसकी मात्रा मिट्टी के प्रकार, नमी, विषाक्त पदार्थों के स्वतंत्र/निकलने की दर, फसल के प्रकार पर श्वसन की दर तथा पौधों की दर की वृद्धि पर निर्भर करती है ।
(3) घोल (Solution):
अनेक प्रकार के कीटनाशक घोल के रूप में उपयोग किये जाते हैं । इनका घोल पानी में या कार्बनिक विलायक (Solvent) में तैयार किया जाता है । अनेक कार्बनिक यौगिक कीटनाशक विलायक के रूप में उपयोग किये जाते हैं, जैसे कि- कार्बन ट्रेट्राक्लोराइड (Carbon Tetrachloride), एमाइल ऐसीटेट (Amyl Acetate), सायक्लोहैक्सेन (Cyclohexane), कैरोसीन (Kerosene), इथीलीन डाइक्लोराइड (Ethylene Dichloride), जाइलीन (Xylene), मोनोक्लोरो-बैंजीन (Monochlorobenzene) आदि ।
कीटनाशक को बनाने के लिए विलायक (Solvent) का चयन करते समय विलायक की पौधों एवं प्राणियों के प्रति प्रतिक्रिया, अनुकूलता (Compatibility), गन्ध (Odour), विषाक्तता (Toxicity) एवं विलायक के मूल्य के प्रति जागरुक रहना चाहिए ।
(4) पायसेय सान्द्र (Emulsifiable Concentrate, E.C.):
अनेक कार्बनिक कीटनाशक ईथर (Ether), जाइलीन (Xylane), पैट्रोल (Petrol), कैरोसीन (Kerosene) या तारपीन के तेल (Turpentine Oil) में घुलनशील होते हैं तथा यह पानी में घुलनशील नहीं होते हैं ।
जब इसके तेल में घुले सान्द्र विलयन (Concentrated Solution) में पायसक (Emulsifier) को मिला दिया जाये तब ये पानी के साथ पायस (Emulsion) बनाते हैं ।
जब पायस को फसल पर फैलाया जाता है तब विलायक (Solvent) उड़ जाता है और विषाक्त पदार्थों के छोड़ दिया जाता है जिसमें से पानी भी उड़ जाता है । बिन्दुक (Droplets) का आकार पायस की मात्रा एवं प्रकार पर आधारित होता है ।
छोटे आकर के बिन्दुक अधिक स्थिर होते हैं और निलम्बन (Suspension) के रूप में हौज में रहते हैं, लेकिन इसके स्प्रे करने के पश्चात् यह तेल बिन्दुक (Oil Droplets) के रूप में पौधों की सतह पर चिपक जाते हैं या कीट, पेस्ट के शरीर से चिपक जाते हैं । पायस का प्रमुख गुण अपने संगठकों या घटकों में विघटन का होता है जो कि पायस पर प्रक्षोभ (Agitation) का उपयोग कर रोका जा सकता है ।
(5) सांद्रित कीटनाशक द्रव (Concentrated Insecticide Liquid):
यह एक विशेष प्रकार की द्रव रचना (Liquid Formation) है जो कि सान्द्र रूप में उपयोग होता है । यह आजकल अधिक प्रयोग किया जा रहा है । इस प्रकार के संयोजन में अधिक सान्द्र तकनीकी श्रेणी के विषाक्त पदार्थ अनुवाष्पीकृत विलायक (Non-Volatile Solvent) में घोले जाते हैं ।
अधिक वाष्पीकृत विलायक (Volatile Solvent) को भी मिलाया जाता है जो कि घोल एवं धातु मल बनाने में सहायता करता है । यदि आवश्यक हुआ तो एक उपयुक्त अनुवाष्पीकृत तेल भी तनुकरण (Dilution) के लिए मिलाया जाता है ।
कुछ प्रमुख सान्द्र द्रव संयोजन (Formulations) हैं, जैसे- मैलाथियोन (Malathion) 95%, डाइमेक्रान (Dimecron) 100Sc., टोक्साफेन (Toxaphene)- डी.डी.टी. (D.D.T.) क्रमशः 600 ग्राम + 300 ग्राम प्रति लीटर आदि ।
(6) कीटनाशक ऐरोसोल (Insecticide Aerosole):
ऐरोसोल में कीटनाशक के सूक्ष्म कण वायु के धुएँ (Smoke) घुन्ध/कोहरा (Fog) या भूमिका (Mist) के रूप में निलम्बित रहते हैं । ऐरोसोल बम (अविस्फोटक, Non-Explosive) घरों या स्टोर में उड़ने वाले कीटों को मारने के लिए उपयोग किया जाता है ।
ऐरोसोल कणों का आकार 0.1 से 50 माइक्रोन्स होता है । कीटनाशक या विकिरण जलाने, आटोमाइजिंग (Automizing), यान्त्रिक वाष्पीकरण या कीटनाशकों को द्रवीय गैस में छोटे छिद्र के द्वारा घोलकर प्राप्त किया जा सकता है । निकली हुई गैस जल्दी से वाष्पीकृत हो जाती है और विषाक्त पदार्थों के छोटे कणों को वायु में तैरने के लिए छोड़ देती है ।
यदि ऐरोसोल को 30 घन मीटर कमरे में 6 सेकण्ड के लिए छोड़ दिया जाये तो घरेलु मक्खी, मच्छर, मॉथ, सैण्डफ्लाइज आदि मर जाते हैं तथा 15 सेकण्ड तक छोड़ने पर हार्नेट्स (Hornets), फली (Fleas) वाष्प/बर्र (Vasps) आदि मर जाते हैं ।
(7) धूम्रक (Fumigants):
विषाक्त पदार्थ (Toxicants) गैस के रूप में उपयोग होते हैं जो कि मकानों, भण्डारगृहों, अन्नागारों और कभी-कभी मिट्टी में कीट संख्या को नियन्त्रण में रख सकें । धूम्रक दो या तीन गैसों का मिश्रण होते हैं, जिनका संयोजन द्रव रूप में दाब पर तैयार किया जाता है ।
फॉस्कीन (Phosphene) या हाइड्रोजन फॉस्फाइड (Hydrogen Phosphide) गैस गोलियों (जिनमें एल्युमीनियम फॉस्फाइड (Aluminum Phosphide) एवं अमोनियम कार्बानट नमी के साथ रहती है) से निकलती है । यह बहुत लाभदायक होते हैं, क्योंकि ये ऐसे हर स्थान में प्रवेश कर लेते हैं जहाँ विषाक्त पदार्थों का उपयोग सफलतापूर्वक नहीं हो सकता है ।
(8) मिश्रित संयोजन (Mixed Formulations):
जब दो या अधिक प्रकार के सक्रिय विषाक्त पदार्थों के अंश (Ingradients) प्रयोग के पूर्व मिलाये जाते हैं तो उनकी अनुक्रियाओं को संयुक्त क्रिया कहा जाता है ।
चार प्रकार की संयुक्त क्रियाएं होती हैं:
(i) स्वतंत्र संयुक्त क्रिया (Independent Joint Action),
(ii) समान संयुक्त क्रिया (Similar Joint Action),
(iii) उत्प्रेरक क्रिया (Synergistic Action),
(iv) प्रतिरोधी क्रिया (Antagonistic Action) ।
संयुक्त क्रिया के द्वारा अनेक प्रकार के कीटों व पेस्ट को मारा जाता है ।
5. कीटनाशकों के विषवैज्ञानिक प्रभाव (Toxicological Effects of Insecticides):
वायु, जल तथा मृदा तीनों प्रकार के वातावरण पीड़कनाशकों द्वारा प्रदूषित होते हैं । इन तीनों प्रकार के वातावरण से ये मानव के शरीर में प्रवेश करते हैं । मानव के शरीर में कीटनाशकों का प्रवेश अनेक प्रकार से होता है ।
खेतों में प्रयोग करते समय नाक, मुख, श्वास या त्वचा द्वारा, प्रदूषित अनाज, फल या सब्जियों द्वारा कीटनाशक प्रयुक्त चारा खाने वाले मवेशी के दूध या माँस द्वारा, जल द्वारा ये मानव के शरीर में प्रवेश करते हैं । जन्तुओं में ये भोजन या जल के माध्यम से प्रवेश करते हैं ।
अकार्बनिक पीड़कनाशी (Inorganic Pesticides):
अधिकांश अकार्बनिक पीड़कनाशी या तो भौतिक विष का या फिर जीवद्रव्य विष का कार्य करते हैं । एल्युमिनियम ऑक्साइड, चारकोल, टार तेल (Tar Oil), भारी तेल (Heavy Oils) श्वासावरोध (Asphyxiation) उत्पन्न करते हैं । पार, ताँबे एवं आर्सेनिक के यौगिक जीवद्रव्य की प्रोटीन का अवक्षेपण (Precipitation) करते हैं ।
इनकी विषाक्तता के सामान्य लक्षण हैं- लार आना, मसूडों में शोथ (Inflammation), गले तथा मुख में जख्म (Sore), पेट की गड़बड़ी, कम्पन (Tremors), रक्त अल्पता, भूख समाप्त होना (Anorexia), वृक्क शोथ आदि ।
ऑर्गेनोक्लोरीन पीड़कनाशी (Organochlorine Pesticides):
इसके अन्तर्गत डी.डी.टी. (D.D.T.) बी.एच.सी. (BHC) क्लोरडेन (Chlordane), डाइएल्ड्रिन (Dieldrin), एन्ड्रीन (Endrin), हैप्टाक्लोर (Heptachlor), टॉक्साफिन (Toxaphene) आदि पीड़कनाशी आते हैं ।
अधिकतर ऑर्गेनोक्लोरीन पीड़कनाशी ऐसे हैं, जिनका जीवों द्वारा बहुत कम विघटन होता है अर्थात् ये अनिम्नीकरणीय (Nondegradable) होते हैं, अत: ये लम्बे समय तक वातावरण में बने रहते हैं ।
अवशेषी विषाक्तता (Residual Toxicity) के परिणामस्वरूप लगातार प्रयोग करने से मृदा तथा जल में इनकी अवशेषी सान्द्रता लगातार बढ़ती जाती है । यही कारण है कि बहुत से कीटनाशकों के प्रयोग को प्रतिबन्धित करने के बावजूद आज भी ये वातावरण में पाये जा रहे हैं ।
ऐसे कीटनाशक खाद्य श्रृंखला (Food Chain) के द्वारा पौधों एवं जन्तुओं के शरीर में पहुँच जाते हैं और संचित होते रहते हैं । इनकी सान्द्रता प्रत्येक पोषी स्तर (Trophic Level) पर बढ़ती जाती है और उच्च उपभोक्ता में अधिकतम हो जाती है ।
इस क्रिया को जैविक आवर्धन (Biological Magnification) कहते हैं । डी.डी.टी. (DDT) तथा बी.एच.सी. (BHC) जैसे कीटनाशी वसा में घुलनशील होते हैं, अत: ये मनुष्यों एवं जन्तुओं के वसीय ऊतकों (Adipose Tissues) में संचित हो जाते हैं । श्वसन क्रिया में वसा के ऑक्सीकरण के समय ये पदार्थ रूधिर वाहिनियों में प्रवेश करके शरीर के विभिन्न अंगों में पहुँचकर विषाक्त प्रभाव उत्पन्न करते हैं ।
इससे कैंसर तक हो जाता है । इन कीटनाशकों के प्रभाव से पेशियों में कम्पन (Tremors), ऐंठन (Convulsions) तथा असमन्वयन (Incoordination) जैसे लक्षण उत्पन्न होते हैं । इसके अतिरिक्त यकृत में अर्बुद (Tumours) तथा अन्य ऊतकीय विकृति उत्पन्न करते हैं ।
पक्षियों में डी.डी.टी. (DDT) के एकत्रित होने के परिणामस्वरूप प्रजनन क्षमता में कमी तथा अण्डे के कवच के पतला होने जैसे लक्षण देखे गये हैं । अण्डे के कवच के पतला रह जाने से अण्डे से अपरिपक्व भ्रूण निकल आता है । इस प्रकार इस कीटनाशक के प्रभाव से पक्षियों की संख्या पर भी असर पड़ा है ।
इसी प्रकार बहुत से खरपतवारनाशी (Weedicides) रसायन जैसे 2, 4-D (2, 4-Dichlorophenoxy Acetic Acid) तथा 2, 4, 5-T (2, 4, 5-Thichlorophenoxy Acetic Acid) भी खेतों में छिड़के जाते हैं जो मृदा में मिलकर मृदा को प्रदूषित करते हैं जिससे मृदा कई उत्पादकता कम हो जाती है ।