Read this article in Hindi to learn about:- 1. एकीकृत कीट का अर्थ (Meaning of Integrated Pest Management) 2. एकीकृत नाशीजीव प्रबंध के उद्देश्य (Aims of Integrated Pest Management) 3. मुख्य लक्ष्य (Main Goals) 4. पादप रोग प्रबंध के सिद्धान्तों के आधार (Bases of the Principles of Plant Disease) 5. जैव सघन समन्वित पेस्ट प्रबंधन (Biological Integrated Pest Management) 6. रासायनिक नियंत्रण (Chemical Control).
एकीकृत नाशीजीव प्रबंध का अर्थ (Meaning of Integrated Pest Management):
IPM अर्थात् एकीकृत अथवा समेकित एनाग्र रोगजनकों (Pathogens) कीटों (Insects) और खरपतवारों (Weeds) को आर्थिक फसल हानियाँ उत्पन्न करने से अनेक विभिन्न प्रकार की प्रबंध (Management) विधियों के प्रयोग द्वारा रोकने का एक प्रयास है जो कम खर्चीली या मूल्य प्रवाभी होते है और पर्यावरण (Environment) को कम से कम क्षति (Damage) पहुँचाती है ।
वर्तमान समय में वनस्पति संरक्षण अथवा पादप रक्षण में एकीकृत नाशीजीव प्रबंध (Integrated Pest Management) के रूप में एक नवीन अवधारणा का प्रवेश हुआ है । इसमें मौलिक रूप से फसलों के सभी प्रकार के नाशीजीवों का नियंत्रण (Control) करने के लिए की गयी थी ।
पादप रोग विज्ञान (Phytopathology) में इसके समतुल्य एक दूसरे शब्दों में Integrated Disease Management अर्थात् एकीकृत रोग प्रबंध का प्रयोग किया जाता है । एकीकृत नाशीजीव प्रबंध का उद्देश्य नाशीजीव संख्या को प्रबंध की विभिन्न विधियों को सर्वोत्तम एवं संयुक्त रूप में प्रयोग करके आर्थिक क्षति के स्तर से नीचे रखना हैं ।
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FAO के अनुसार- “Integrated Pest Management तथा Environmental Information” के साथ-साथ उपलब्ध नाशीजीव नियंत्रण (Pest Control) की विधि Cultural, Biological, Genetic विधि का समन्वित उपयोग है जिसमें Pest से फसल में होने वाली क्षति या हानि के अस्वीकार्य स्तरों Least Possible Hazard to People, संपत्ति (Property) और पर्यावरण Environment के लिए बिना कोई संभव संकट के सबसे कम खर्चीले साधनों द्वारा रोका जाता है ।
इस पद्धति में फसलों (Crops) की Pest समस्याओं के निदान के लिए केवल एक Control Method को अपनाने के बजाय कई साधनों जैसे नाशीजीवों (Pest) एवं रोगजनकों (Pathogen) के प्राकृतिक शत्रुओं (Natural Enemies) को बढ़ाकर, फसलों की नाशीजीव प्रतिरोधी किस्मों को उगाकर, कर्षण प्रक्रियाओं अथवा कृषि क्रियाओं, तकनीकी एवं जैविक साधनों (जैव मित्र एवं जैव कर्मक) के प्रयोग इत्यादि का समन्वय किया जाता है और नाशकमार रसायनों का सहारा बाद में लिया जाता है ।
एकीकृत नाशीजीव प्रबंध वह पद्धति है जिसमें फसल के एक या एक से अधिक नाशीजीवों (Pests) अथवा नाशक रोगों का प्रबंध दो या दो से अधिक नियंत्रण विधियों (Control Methods) जैसे Cultural, Biological एवं Sesestant Varieties इत्यादि के समन्वित उपयोग किया जाता है । इसमें नाशक भार रसायनों का प्रयोग केवल आवश्यकता पड़ने पर ही किया जाता है ।
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फसलों में पादप रोगों का समन्वित प्रबंध पादप रोग नियंत्रण के पाँच प्रमुख सिद्धान्तों:
(1) रोगजनक का अलगाव (Exclusion of the Pathogen),
(2) रोगजनक का उत्सरण अथवा परिवर्जन (Evasion or Avoidance of the Pathogen),
(3) रोगजनक का उन्मूलन (Eradication of the Pathogen),
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(4) रक्षी उपाय या रक्षण या संरक्षण (Protective Measures or Protection),
(5) परपोषी में रोग प्रतिरोध का विकास (Development of Disease Resistance in the Host) पर आधारित है ।
इस नियंत्रण के अन्य दूसरे उपाय जैसे फसल चक्र या सस्यावर्तन नाशीजीव प्रतिरोधी किस्मों का प्रयोग जैवमित्रों (Bio-friends) एवं Bio-Agents के प्रयोग द्वारा जैविक नियंत्रण (Biological Control) इत्यादि भी नाशीजीव प्रबंध (Pest Management) नियंत्रण कार्यक्रम के मुख्य भाग होते हैं तथा इसमें जो भी रसायन अपनाये जाते हैं व न केवल प्रभावी होते है ।
अपितु कम खर्चीले तथा पर्यावरण (Environment) की भी प्रदूषित (Polluted) करने वाले नहीं होते है । विभिन्न नाशीजीवों के नियंत्रण की कोई भी अकेली विधि सीमा बंधनों से मुक्त नहीं होती है । परन्तु जब दो या दो से अधिक विधियों को परिपूरक ढंग से मिलाकर प्रयोग किया जाता है तो इनको नियंत्रण करने के अधिक अवसर प्राप्त होते है ।
एकीकृत नाशीजीव प्रबंध के उद्देश्य (Aims of Integrated Pest Management):
एकीकृत नाशीजीव प्रबंध के निम्न उद्देश्य होते हैं:
(1) कई संगत नियंत्रण विधियों का संयुक्त रूप में उपयोग करना ।
(2) Pests के लिए प्राकृतिक वातावरणीय परपोषी प्रतिरोध को अधिकतम मात्रा में बढ़ाना, अर्थात आनुवंशिक (Hereditary) नियंत्रण या परपोषी पादप प्रतिरोध ।
(3) विशिष्ट तथा कठोर रासायनिक नियंत्रण (Chemical Control) उपायों को केवल आवश्यकता होने पर ही प्रयोग करना ।
(4) नाशीजीवों का जैवनाशक-मारकों का प्रयोग करके जैव या जैविक नियंत्रण (Biological Control) करना ।
(5) स्थान और साधन विशिष्ट संस्तुतियों से किसी विशेष फसल के उत्पादन के लिए लाभ को अधिकतम बढ़ाना ।
एकीकृत रोग प्रबंध कार्यक्रम के मुख्य लक्ष्य (Main Goals of an Integrated Pest Management Programme):
एकीकृत या समन्वित रोग प्रबंध कार्यक्रम के निम्न मुख्य लक्ष्य होते हैं:
(1) रोग के रोगजनक के प्रारम्भिक संरोप (Initial Inoculum) को कम करना ।
(2) प्रारम्भिक निवेश द्रव्य या Inoculum की Effectiveness को समाप्त करना ।
(3) परपोषी पौधे के रोगजनक (Pathogens) के विरूद्ध प्रतिरोध (Resistance) में वृद्धि करना ।
(4) रोग के आरंभ होने में देर करना ।
(5) रोग के द्वितीयक प्रसार या फैलाव (Spread) एवं Pathogen के द्वितीयक चक्र को धीमा करना ।
पादप रोग प्रबंध के सिद्धान्तों के आधार (Bases of the Principles of Plant Disease):
पादप रोग प्रबंध के लिए परंपरागत रास्ता Immunization Prophylaxis System को संयुक्त करना है । यह इस तथ्य पर आधारित है कि मनुष्यों एवं जन्तुओं की भाँति एक रोगग्रस्त पौधे की रोग मुक्ति (Cure) संभव नहीं है क्योंकि पौधे में रोग केवल उस समय दिखाई पड़ता है ।
जब उससे पौधे की बहुत अधिक क्षति हो जाती है । इसलिए यहाँ पर निरोधक उपाय (Preventive Measures) अधिक महत्वपूर्ण होते है अर्थात् चिकित्सा या रोग मुक्ति की अपेक्षा निवारण अच्छा होता है ।
“Prevention is Better than Cure” इन निरोधक उपायों के अन्तर्गत परपोषी पौधे में प्रतिरोध (Resistance) उत्पन्न करना, अर्थात प्रतिरक्षीकरण (Immunization) तथा रोग बचाव (Prophylactic Measures) द्वारा पौधे का रक्षण करना अर्थात पौधे के संक्रमित होने से पहले बचाव के उपाय आते है ।
यह मार्ग ही नाशक रोग एकीकृत नियंत्रण (Integrated Pest Control, Subsistence) अथवा टिकने योग्य (Sustainable) Method इत्यादि के अन्तर्गत आने वाली समस्त विधियाँ एक Strong Lines है ।
इन विधियों के सभी समूहों को “Manipulation of Disease Triangle” के अन्तर्गत वर्गीकृत किया जा सकता है । एक पादप रोग तीन प्रमुख बलों या घटकों जैसे परपोषी, रोगजनक एवं पर्यावरण के बीच होने वाली परस्पर क्रियाओं का परिणाम होता है ।
इनमें से कोई भी अकेला घटक क्रिया करके रोग उत्पन्न नहीं कर सकता है । यह तीनों ही घटक मिलकर रोग त्रिकोण का निर्माण करते हैं क्योंकि किसी रोग को उत्पन्न करने में यह तीनों Component ही श्रेष्ठता से संबंधित होते है ।
अर्थात् पादप रोगों के नियंत्रण (Control) की दो या दो से अधिक नियंत्रण विधियों का समन्वित (Coordinated) एवं संगत (Compatible) उपयोग ही एकीकृत रोग नियंत्रण होता है ।
एकीकृत रोग प्रबंध के लिए चार मूलभूत आवश्यकताएँ:
(1) स्वच्छ एवं स्वस्थ बीज,
(2) स्वच्छ खेत अथवा रोग जनक मुक्त मृदा (Soil),
(3) खड़ी फसल में एक रोगजनक (Pathogen) के प्रवेश एवं उसके द्वार किये जाने संक्रमण की रोकथाम,
(4) फसल अथवा उत्पाद की कटाई एवं भंडारण (Storage) के समय सावधानियाँ प्रमुख होती है ।
एकीकृत कीट प्रबंधन के अन्तर्गत नियंत्रण विधियों की एक एकीकृत या समन्वित योजना (Integrated Plan) का प्रयोग करना होता है । पादप रोगों का प्रबंध या नियंत्रण के कार्यक्रम को उन सभी उपलब्ध उपयुक्त सूचनाओं को ध्यान में रखकर तैयार किया जाता है, जो एक विशेष फसल और इस पर उत्पन्न होने वाले विभिन्न रोगों के रोगजनकों (Pathogens) पिछले वर्षों में रोगों का इतिहास, रोगों के लिए फसल की किस्मों का Resistance, प्रचलित या बनी रहने वाली संभावित पर्यावरणीय अवस्थायें स्थान, रोग नियंत्रण सामग्री एवं श्रम की उपलब्धता तथा उनके मूल्यों इत्यादि से संबंधित होती है । सामान्यतः एक एकीकृत रोग प्रबंध कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य किसी फसल को प्रभावित करने वाले सभी रोगों के विरूद्ध होता है ।
पीड़क नाशकों से हानि:
रासायनिक पीड़क नाशकों (Pesticide) के अधिक मात्रा में प्रयोग करने से फसली पौधों और उपज के अलावा भूमि, हवा तथा सतह व भूमिगत जल में दूषित होता है । इन रसायनों का लापरवाही से उपयोग करने पर गहन विषाक्तता (Toxicity) भी उत्पन्न हो जाती है ।
लम्बी अवधि तक इनका इस्तेमाल पशुओं (Animals) की जीव वैज्ञानिक प्रणाली पर असर डालता है । ये पीड़कनाशक (Pesticide) आमतौर पर कार्सिनोजेनिक (Carcinogenic) अर्थात् Cancer उत्पन्न करने वाला टेट्राजेनिक (Tetragenic) अर्थात् विकृति उत्पन्न करने वाला, ट्यूमरॉजेनिक (Tumorigenic) ट्यूमर तथा सिस्ट उत्पन्न करने वाला प्रभाव के लिए जाने जाते हैं ।
Chemicals का अनियंत्रित एवं अधिक उपयोग Pest के प्राकृतिक शत्रु जीवों (Natural Enemies) की विविधता (Bio-Diversity) में कमी लाती है जिससे द्वितीयक पेस्ट (Secondary Pests) का महामारी फैलने का खतरा बढ़ जाता है तथा इनके प्रति प्रतिरोधकक्षमता भी पीड़कों (Pests) में उत्पन्न हो जाता है ।
जैसे चावल परितंत्र (Rice-Ecosystem) में 3-5 गुणा तथा कपास-पारितंत्र (Cotton-Ecosystem) में 12 गुणा प्राकृतिक शत्रु-जीवों में कमी आयी है । कीटों (Insects) में कीटनाशकों (Pesticides) के सामान्य डोज़ (Dose) पर प्रतिरोधक क्षमता (Resistance Power) उत्पन्न हो गया है ।
सामान्यतः पीड़कनाशी (Pesticides) दो प्रकार के पाये जाते हैं । कुछ Pesticides साइक्लिक हाइड्रोकार्बन (Cyclic Hydrocarbon) जैसे- BHC, DDT, Aldrin आदि होते हैं जिनमें क्लोरीन घटक (Component) होते हैं । ये तत्व ऑक्सीकरण (Oxidation) वलय को अवरूद्ध कर देते हैं ।
जैविक अपघटन के प्रतिरोधी होने के करण इनका अस्तित्व दीर्घकाल तक परिवेश में विद्यमान रहता है । ऐसे पदार्थों का सान्द्रण (Concentration) वर्ष दर वर्ष बढ़ता रहता है । ये Chemicals मिट्टी (Soil) और जल में जमा होते चले जाते है । यहां से इनका प्रवेश आहार-श्रृंखला (Food Chain) में उत्पादकों (Products) के माध्यम से होता है ।
जब शाकाहारी जीव (Herbivorous Animals) इन Products को ग्रहण करते है तो ये हानिकारक पीड़कनाशी (Harmful Pests) इन जीवों के शरीर के Tissues में जमा हो जाते हैं और यहाँ इनका सांद्रण (Concentration) उत्पादकों (Products) की अपेक्षा कुछ अधिक हो जाता है ।
जब इन शाकाहारी जीवों स भक्षण मांसाहारी उपभोक्ता (Carnivorous Consumers) करते हैं तो ये पीड़कनाशी है । इनके शरीर के Tissues में जमा होकर और अधिक सांद्रित (Concentrated) हो जाते है ।
Food Chain के विभिन्न स्तरों से गुजरकर ऐसे हानिकारक रसायनों (Harmful/Chemicals) का Concentration सबसे अधिक मनुष्यों (Human) में होता है, क्योंकि मनुष्य ही ज्यादातर Food-Chain में शीर्ष उपभोक्ता (Top Consumer) है ।
पीड़कनाशियों के इस तरह से सांद्रण (Concentration) बढ़ने की प्रक्रिया (Process) के जैव आवर्धन कहते है । विभिन्न प्रकार के कृषि रसायनों (Agricultural Chemicals) के उपयोग के बाद पौधों में पादप-विषाक्तता (Phyto-Toxicity), पराग-अनुर्वरता (Pollen Sterility), प्रदूषणता और विकास-अवरूद्धता जैसे प्रभाव भी दिखाई देते है ।
इस तरह Pesticide के दुष्प्रभाव के कारण ही वैज्ञानिकों ने अब रासायनिक पीड़क नाशियों के उपयोग के बजाए उनके आवश्यकता आधारित उपयोग तथा जैव संघनित Integrated Pest Management की नीतियों पर बल दे रहे हैं तथा उनके अनुसार रासायनिक पीड़कनाशकों का उपयोग सिफारिशों के अनुसार तभी किया जाय जब पीड़कों (Pest) की संख्या पर नियंत्रण न रखा जा सके ।
जैव सघन समन्वित पेस्ट प्रबंधन (Biological Integrated Pest Management):
कृषि फसलों में पीड़कों (Pests) को नष्ट करने हेतु अनेक प्रकार के प्रयोग किए जा रहे हैं । किन्तु कोई भी उपाय कारगर सिद्ध नहीं हो पा रहा है । अधिक मात्रा में पीड़कनाशकों (Pesticide) क इस्तेमाल पर्यावरण संबंधी समस्याएँ खड़ी करता है जैसे पीड़कनाशक व्यक्ति के माँस (Muscles) में जमा होते रहते है ।
पीड़कों (Pests) का पुन: सर्जन होता है और जीव समूह में पीड़कनाशकों के प्रति क्षमता विकसित होती है । Mixed Crop और Crop Rotation जैसी परम्परागत खेती प्रक्रियाओं का स्थान गहन खेती ने ले लिया है ।
परिवर्तित कृषि अर्थव्यवस्था, एक फसल पद्धति (Mono Culture) फसल श्रृंखला (Crop Chain) आदि सभी उपायों से पीड़कों को प्रोत्साहन मिला है । पर्यावरण अनुकूलता को दृष्टिगत रखते हुए ऐसे पीड़क प्रबंधक कार्यक्रमों का विकास किया जाए, जिससे कृषि उत्पादों को हानि से बचाया जा सके ।
इसी संदर्भ में एक नए प्रयोग जिसे ”समन्वित पेस्ट नियंत्रण/प्रबंधन” का नाम दिया गया जिसे IPC/IPM का नाम दिया गया । IPM के अन्तर्गत पीड़क नियंत्रण (Pest Control) की विभिन्न नीतियों को समन्वित और Planned रूप में अमल में लाया जाता है ।
इसके अन्तर्गत पारिस्थितिकी प्रणाली को कम से कम प्रभावित करते हुए पीड़कों (Pests) तथा फसली नुकसान को न्यूनतम करना । परन्तु बाद में यह प्रयोग किया गया कि पीड़कों का उन्मूलन (Eradication) न तो संभव है और न ही उपयोगी पीड़कों के प्राकृतिक शत्रुओं का संरक्षण आवश्यक है और इस तरह Integrated Pest Control का नया नाम जैव सघन समन्वित पेस्ट प्रबंधन (BIPM) किया गया ।
इसके अन्तर्गत पीड़कों की संख्या और उसके प्राकृतिक शत्रुओं की संख्या का इस प्रकार समन्वय स्थापित करना है जिससे पीड़कों की संख्या आर्थिक नुकसान न पहुंचा सके इससे कम से कम लागत पर पीड़कों से फसल की अधिकतम रक्षा करना है ।
रोग फैलाने वाले Pests की संख्या पर नियंत्रित कृषि जलवायु स्थितियों, भूमि की स्थिति, किस्मों के चयन, स्थानीय कृषि अर्थ व्यवस्था विषयक पद्धतियों और किसानों की सामाजिक आर्थिक स्थिति पर भी निर्भर करता है ।
रासायनिक नियंत्रण (Chemical Control through Pest Management):
पीड़क प्रबंधन (Pest Management) के उद्देश्य से कुछ रासायनिक विधियों (Chemical Methods) का भी विकास किया गया है जो सर्वाधिक प्रचलित विधि है । समन्वित पेस्ट प्रबंधन (Integrated Pest Management) का उद्देश्य प्रभावी और संतुलित रूप में न्यूनतम मात्रा में पीड़कनाशकों का इस्तेमाल करना है ।
इस संबंध में दो प्रमुख सिद्धांत हैं:
(1) चयनित पीड़कनाशकों का प्रयोग (Use of Selected Pesticide),
(2) पीड़कनाशकों की आवश्यकता के आधार पर प्रयोग (Use on the Bases According to Pesticides) ।
(1) चयनित पीड़कनाशकों का प्रयोग (Use of Selected Pesticide):
पर्यावरण (Environment) के अनुसार भौतिक तथा जैविक रसायनों (Physical तथा Biological Chemicals) का चयन किया जाता है । जैसे Monotoxic Chemical जो केवल एक Insect Species को ही मारता है । परन्तु अन्य Animals or other Insects को कोई नुकसान (हानि) नहीं पहुँचाता है ।
Chemicals का चयन ऐसा होना चाहिए कि वह लाभकारी जीव समूहों और अन्य अलक्षित जीवों को नुकसान पहुंचाने बाला न हो । परन्तु ऐसे पीड़कनाशी का मिलना कम सम्भव है । अत: रसायनों का उपयोग ऐसा हो जो कि उनका प्रतिकूल असर कम हो ।
जैसे:
(i) रसायनों (Chemicals) का चयन स्थायी आधार पर नहीं करना चाहिए तथा कम शक्ति के पीड़कनाशक इस्तेमाल करना चाहिए ।
(ii) वर्णात्मक (Selective) एवं अस्थाई (Non-Persistent) Pesticides का छिड़काव मृदा (Soil) पर किया जाये ताकि प्राकृतिक शत्रुओं को प्रत्यक्ष स्पर्श से बचाया जा सके ।
(iii) पेड़ रोपाई के समय सतह खुरदरी रखी जाये, इससे लाभकारी जीवों को बचने के लिए खाली जगह मिल जाती है ।
(iv) पीड़क नाशियों के उपयोग की कम मात्रा निर्धारित किया जाये ।
(v) केवल Pests की अधिकता वाले क्षेत्र में ही Pesticides को छिड़का (Spray) किया जाए ।
(vi) Chemicals का चयन इस प्रकार से व्यवस्थित किया जाए जिसमें केवल नुकसान दायक पीड़कों (Pest) को ही क्षति पहुँचे और दूसरों को कोई हानि ना हो ।
रासायनिक (Chemical) पेस्टीसाइड (Pesticides) के निर्दिष्ट (Recommended) सांद्रता के वर्णात्मक (Selective) सुरक्षा संबंधी अध्ययन से पता चलता है कि जैसे Chlorinated Hydrocarbon वर्ग के अंतर्गत Endosulfan-22 प्राकृतिक शत्रुओं के लिए सुरक्षित है ।
Organophosphate वर्ग के अंतर्गत Phosalone-29, Monotocrotophos-12, Oxydemeton Methyl-11, Dischlorror-10, Natural Enemies के लिए तथा Carbonmate वर्ग के Carbanyl-8 प्राकृतिक शत्रुओं के लिए सुरक्षित होते है ।
मोटे तौर पर वनस्पतिक/जैव पेस्टीसाइड (Plant/Animal Origin) कवकनाशी (Fungicides), एकेरीसाइड (Acaricides) तथा खरपतवार नाशी (Herbicides) प्रायः सभी प्राकृतिक शत्रुओं (Natural Enemies) के लिए सुरक्षित होते है ।
Plants में 1005 Species ऐसी है जो स्वयं कीटाणुओं को नष्ट करने में सक्षम है । 384 Species में Antifeedant Properties, 297 Species में Repellent गुण, 277 में Attractants गुण तथा 31 Species में Growth Inhibiting गुण (Properties) पायी जाती है । नीम (Asadirachta Indica), पोंगमिया (Pongamia Globra) तथा महुआ (Madhuca Indica) प्रचलित वनस्पतिक Pesticides है ।
नीम के बीच (Seeds) से प्राप्त निचोड़ (Extract from Neem Seed Kernel) 2-5% अनेक पीड़कों तथा Rice cut Worm, Diamond Blackmoth Rice Brown Plant Hopper, Rice Green Leaf Hoppers, Tobaccocater Pillar तथा Aphids के अनेक Species पर प्रभावी रूप से कारगर है । Mahua Seed Kernal Extract (5%) Sawfly एवं अन्य Pathogens के प्रति प्रभावी होता है ।
(2) कीटनाशकों का आवश्यकता के आधार पर प्रयोग (Use of Pesticides According to the Requirement):
पीड़कनाशकों का उपयोग आवश्यकता के आधार पर एकीकृत कीट प्रबंधन का अत्यन्त उपयोगी हिस्सा है । इसमें आर्थिक मानदंडों में मूल्य घटक Variety से सम्बंधित व्यवहार, फसल की आयु तथा अन्य Pests का प्रभाव ये चार तत्व मुख्य है ।
पीड़कनाशी उत्पादों (Products) के मूल्यों में वृद्धि की वजह से इनके प्रयोग की आर्थिक सीमा में ह्रास होता है । यदि यह सीमा बढ़ती है तो Pesticides की लागत में वृद्धि होती है । वैसे वर्ष में उत्पाद और पीड़कनाशी के मूल्य घटते-बढ़ते रहते हैं व आर्थिक सीमा का निर्धारण भी मूल्य में उतार चढ़ाव पर निर्भर करता है ।
किसी पीड़क की एक समान संख्या द्वार हानि और क्षति की सीमा फसल की संवेदनशीलता और उसकी प्रतिरोधी क्षमता के अनुसार अलग-अलग होती है । अर्थात् उपयोग की जाने वाली सभी महत्वपूर्ण किस्मों (Variety) के लिए आर्थिक मानदंड निर्धारित करने पड़ते है ।
किसी पेस्ट द्वार फसल को जो नुकसान पहुँचाया जाता है । उसकी मात्रा पेस्ट की समान गहनता के बावजूद फसल के विभिन्न चरणों में अलग-अलग होती है । उदाहरण जैस्सिड्स कपास के बड़े पौधों के बजाय छोटे पौधों को अधिक नुकसान पहुँचाते है ।
अत: पीड़कनाशकों के उपयोग की आर्थिक सीमा फसल की आयु के अनुरूप भी बदलती है तथा कभी-कभी ऐसी स्थिति होती है कि खेत में एक ही समय में एक से अधिक Pest सक्रिय हो जाते हैं जिससे फसलों के क्षति पहुँचती है ।
एकीकृत कीट के रासायनिक नियंत्रण से संबंधित महत्वपूर्ण घटक निम्न प्रकार से हैं:
(i) पीड़कनाशी का न्यूनतम उपयोग,
(ii) Pests पर समुचित निगरानी द्वार समय रहते आवश्यकता पर आधारित पीड़कनाशकों का प्रयोग ।
(iii) नर्सरी में पौध संरक्षण के लिए अनिवार्य उपचार की व्यवस्था ताकि नर्सरी में पैदा हुए पीड़कों की संख्या को बढ़ने से रोका जा सके ।
(iv) कुछ विशिष्ट (Special) स्थानों को छोड़कर पीड़कनाशकों का समयबद्ध उपयोग न करना ।
(v) उचित समय पर उचित पीड़कनाशी की समुचित मात्रा काम में लेना ।
रंगरोधन दारा नियमित नियंत्रण (Regular Control by Quarantive):
इस विधि में Pest को किसी नये क्षेत्र में प्रवेश करने से रोका जाता है । कृषि उत्पाद तथा बीज एवं बीज वाले पदार्थों के आयात होने से देश में विदेशी पेस्ट का आगमन संभव हो जाता है ।
उदाहरण स्वरूप मैक्सिको से भारत में गेहूँ के आयात होने से ही Parthenium Weeds का आगमन यहाँ हुआ विश्व स्तर पर रंगरोधन (Quarantive) नहीं रहने के फलस्वरूप ही विभिन्न प्रकार के पीड़कों का एक देश से दूसरे देश में फैलाव हो सका ।
पेस्ट संबंधी समस्याएँ उत्पन्न करने वाले कारकों (Factors) में कृषि उत्पाद का एक स्थान से दूसरे स्थानों को आदान-प्रदान भी एक है क्योंकि देश में एक भाग से दूसरे भाग में आदान-प्रदान की प्रक्रिया दोहराई जाती और पेस्ट संबंधी समस्याएं भी एक जगह से दूसरी जगह पहुँच जाती है ।
पेस्ट प्रभावित क्षेत्र से पेस्टमुक्त क्षेत्र में Pest के समावेश को रोकने के लिए घरेलु रंगरोधन (Domestic Quarantine) की आवश्यकता होती है । उदाहरण जम्मू कश्मीर के लद्दाख एवं कारगिल क्षेत्रों में उपजे सेबों को बाहर नहीं भेजा जाता है क्योंकि इस क्षेत्र में Coddingmoth Cydia Pomonella का निवास होता है ।
पेस्ट निगरानी पद्धति (Pest Observation System):
इस अवधारणा (Concept) का विकास कृषि से संबंधित रोग विज्ञान रोगों की उत्पत्ति तथा निवारण पर आधारित है । इस System को सफलतापूर्वक संचालित किया गया है ।
जिस स्थान पर इस कार्यक्रम को लागू किया गया वही गैर जरूरी पीड़कनाशी का प्रयोग कम मात्रा में किया गया विभिन्न फसलों के प्रमुख पेस्टों पर नियंत्रण में आर्थिक मानदंड अपनाना एक बहुत महत्वपूर्ण होता है ।
किसी पेस्ट की गहनता व उसकी संचरण शक्ति, पौधे की संवेदनशीलता और पेस्टों की संख्या में बढ़ोतरी अनुकूल स्थितियों पर निर्भर करती है । पौधों के संरक्षण उपायों पर लागत में कमी करना चाहिए ।
Pest Management द्वार निगरानी कार्यक्रम का उपयोग करके पीड़कों के जीवन और पारिस्थितिकी को समझने के साधन के रूप में किया जाता है । तथा यह पता लगाया जा सकता है कि Pests पर पर्यावरण के कौन से प्रभाव पड़ते है ।
नये किटाणु (Germs) और रोगाणुओं (Pathogens) के पैदा-होने की जानकारी, Pest के शैशव से Adult होने तक की अवस्थाओं पर निगरानी तथा उनके प्राकृतिक शत्रुओं की भूमिका तथा बदलती प्रजातियों (Species) और फसल पद्धतियों के प्रति किटाणुओं (Germs) और रोगाणुओं (Pathogens) का व्यवहार तथा उनमें Pesticides की प्रतिरोधी क्षमता पैदा होने की संभावनाओं को समाप्त करने के उपाय, बीमारी की आशंका वाले स्थानों की पहचान और कीटों (Insects) तथा बीमारियों का कैलैंडर तैयार करना तथा समय पर अभियान शुरू करना जिसके अन्तर्गत पौधों का संरक्षण, कीटों (Insects) तथा रोगों से बचाव आदि कार्यक्रमों को सम्मिलित किया गया है ।
प्रतिजीविता (Antibiotic):
इसके अन्तर्गत पौधों द्वारा किटाणुओं की वृद्धि एवं प्रजनन (Growth and Reproduction) पर दुष्प्रभाव उत्पन्न कर उनके सामान्य जीवन-चक्र (Life Cycle) में अवरोध उत्पन्न करना है अर्थात कीट (Insects) की जैविकता पर पौधे के घातक प्रभाव Antibiosis कहते है ।
ऐसे Plants की मुख्य विशेषता यह होती है कि उनकी अपनी त्वचा (Epidermis) मोटी होती है । तना (Stem) और पत्तियाँ (Leaf) रोयेंदार होते हैं तथा Plants जहरीले होते है । प्रतिजीवाणुओं के जैव-भौतिक और जैव रासायनिक दोनों ही पक्ष होते हैं ।
अन्य अभिरूचि (Other Preference):
अन्य अभिरूचि वर्ग के Plant भोजन तथा अंड निक्षेपन के वजह से कीटाणुओं को कम आकर्षित करते है क्योंकि उन पौधों की संरचना, रंग, गंध अथवा स्वाद कीटाणुओं को रास नहीं आता ।
अन्य अभिरूचि (Non Preference) का पता आमतौर पर इस तथ्य से चलता है कि Female Insect सम्बद्ध पौधे पर अंडे देने से परहेज करती है । Chewing Caterpillar अथवा Sap Sucking Bugs में यह देखा गया है कि जब वे पौधे पर होते हैं तो भोजन नहीं करते है ।
कीट-व्याधि के प्रतिरोध करने की क्षमता की अभिव्यक्ति को तीन प्रकार में बाँटा गया है:
(1) प्रतिरोधिता (Resistance):
यह अवरोध करने की क्षमता होती है जो बहुत से आंतरिक एवं बाह्य कारकों (Internal and External Factors) द्वारा संक्रमण (Infection) के अवसर तथा कोटि को कम करता है । प्रतिरोधी किस्मों में रोग के लक्षण उत्पन्न होते है तथा परजीवी (Pathogen) का प्रजनन (Reproduction) Rate कभी भी शून्य नहीं होता है । इसे इकाई से व्यक्त किया जाता है ।
(2) झूठी प्रतिरोधता (False Resistance or Pseudo Resistance):
परपोषी (Host) में विकास की Critical Stage का Coincidence तथा परजीवी अकसर कीट व्याधि की समस्या के परिणाम को Control करते है । पौधों की कुछ किस्में (Variety) जिनका विकास तथा Maturity शीघ्रता से होता है और वे अपना जीवन-चक्र (Life-Cycle) अधिकतम संक्रमण (Infection) होने से पहले पूरा कर लेती है । इस प्रकार की किस्में (Variety) कीट व्याधि को दुर्बल करने वाले (Lebilitating) आक्रमण के विकास से पलायन कर जाती है । इसलिए इसे झूठी प्रतिरोधिता (Pseudo-Resistance) कहते है ।
रोग से पलायन करने को Disease Escape कहते हैं । उदाहरण सरसों की अगेती बुवाई Aphids के आक्रमण से बच जाता है । पौधे अपने विकास की प्रारंभिक अवस्था (Young or Seedling Stage) में अधिक संवेदनशील (Susceptible) होता है जबकि वही पूर्ण विकसित एवं परिपक्व (Mature Plant) अप्रभावित रहता है जिसे Mature Plant Resistance कहते है ।
(3) असंक्राम्यता (Immunity):
अच्छी परिस्थितियों में भी Parasite की परपोषी पर संक्रमण (Infection) करने की अयोग्यता को Immunity के नाम से जाना जाता है । Immunity की अवस्था निरपेक्ष (Absolute) होती है जिससे परपोषी (Host) संक्रमण (Infection) से पूर्ण प्रतिरक्षित रहता है ।
अर्थात ऐसे किस्मों में रोग के लक्षण एक दम नहीं विकसित होते है और न ही दिखते है इसमें परजीवी का प्रजनन दर (Absolute Resistance) होता है । इसे निरपेक्ष प्रतिरोधिता (Absolute Resistance) भी कहते है ।
ये प्रतिरोधिता Physiological Strains के आधार पर दो प्रकार की होती है:
(a) उर्ध्वाधर प्रतिरोधिता (Vertical Resistance),
(b) क्षैतिज प्रतिरोधिता (Horizontal Resistance) ।
(a) उर्ध्वाधर प्रतिरोधिता (Vertical Resistance):
उर्ध्वाधर प्रतिरोधिता का अर्थ किसी भी किस्म की रोग प्रतिरोधक क्षमता के Specific Strains से है । यह साधारणतः मुख्यजीन Oligogenes/Major Genes के द्वारा निर्धारित होता है । यह Pathotype Specificity के लिए जाना जाता है ।
मुख्य जीन (Oligogens or Major Genes) के कारण प्रतिरोधिता सिर्फ Avirulent Pathotypes के लिए होता है । उर्ध्वाधर प्रतिरोधिता को Race-Specific, Pathotype Specific या Species Resistance कहते है ।
(b) क्षैतिज प्रतिरोधिता (Horizontal Resistance):
जब प्रतिरोधिता रोगजनक जाति के सभी Strains के प्रति होती है । अर्थात् Resistance to all the Pathotypes को Horizontal Resistance कहते हैं । यह साधारणत: Polygenes के द्वारा नियंत्रित होता है । कई Genes अपने छोटे-छोटे प्रभाव उत्पन्न करते है ।
किस्म विषयक नियंत्रण (Subjected Variety Control):
कृषि उत्पादन में अलग-अलग प्रतिरोधी किस्मों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है । IPM एक ऐसी बचाव विधि तथा महत्वपूर्ण कारक है जिसके अन्तर्गत कृषि हेतु प्रतिरोधी किस्मों का चुनाव (Selection) किया जाता है । रोग मूलक पीड़कों पर रासायनिक नियंत्रण (Chemical Control) से छोटे किसानों की पैदावार में बहुत कम बढ़ोतरी होती है ।
अत: Pest Control का सबसे सस्ता और कारगर तरीका यह सुनिश्चित करना ही है कि स्वयं बीज में Pest Control की क्षमता विद्यमान हो । अत्यंत जटिल समस्याएँ जैसे Gall Midge and Brown Plant Hopper of Rice, Wheat Rust, Pulse Virus आदि का समाधान इनकी प्रतिरोध करने वाली किस्मों के उपयोग से किया गया । अधिक पैदावार देने वाली और अनेक पेस्टों का प्रतिरोध रखने वाली किस्मों के विकास पर बल दिया जा रहा है ।
पीड़कों के हमलों का पूर्वानुमान (Forecast of Pest Attacking):
Pests के Control उपायों की योजना बनाने के लिए यह आवश्यक है कि Pest के हमले के बारे में सही-सही भविष्यवाणी की जाए पूर्वानुमान लगाने की पद्धति संबंधित Pest के जीव विज्ञान और पारिस्थितिकी के व्यापक ज्ञान पर आधारित होनी चाहिए और उचित भविष्यवाणी की सूचनाएं के लिए आवश्यक बिन्दु-
(a) मौसमानुसार मात्रात्मक अध्ययन,
(b) जीवन वृतान्त का अध्ययन,
(c) पीड़कों पर मौसम का असर ।
मौसम के पेस्ट के मात्रात्मक अध्ययन से किसी एक मौसम में होने वाले परिवर्तनों दशाओं तथा भौगोलिक तथ्यों को ज्ञात किया जा सकता है । Pests की Life Cycle के अध्ययन में उनके बारे में महत्वपूर्ण अवस्थाओं का ज्ञान होना आवश्यक है जैसे अंडों की संख्या, विकास की प्रत्येक अवस्था में लगने वाला समय, भोजन की मात्रा, मादा कीट पेस्ट की परिपक्वन की अवधि आदि ।
पीड़कों पर मौसम का असर प्रत्यक्ष अथवा उनकी संख्या में नियंत्रण रखता है क्योंकि यह फसल, पीड़कों और उनके Predators व Parasities को भी प्रभावित करती है ।
सहनशीलता (Patience):
इस परिस्थिति में कीटाणुओं की संख्या में वृद्धि होने के बाद भी पौधों को अधिक हानि नहीं पहुंचती है । यह विशेषता उन पौधों में होती है, जो तेजी से वृद्धि करने वाले होते है और शीघ्र स्वस्थ हो जाते है जिनमें क्षतिपूर्ति तत्काल हो जाती है ।
यह सहनशीलता किसी पौधों की वृद्धि क्षमता पर निर्भर करता है और वृद्धिक्षमता पर आधारित होता है । कीट प्रबन्ध की दृष्टि से एक सहनशील किस्म भी कभी-कभी अलाभकारी भी हो सकती है क्योंकि इससे अधिक संख्या में कीटाणुओं को आश्रय मिलता है और उनकी संख्या बढ़ जाती है ।
उदाहरण विभिन्न प्रकार की अनाज की खेती में अकसर ऐसा होता है कि अंकुरण में Shootfly Stem Borer अथवा Cutworm के हमले के बाद भी इनका विकास होता है ।
नर अनुर्वरता तकनीक (Male Insitive Technique):
इस तकनीक को Genetically Control Technique कहा जाता है । कीट पेस्ट (Insect Pest) के Genetic Control की अवधारणा नर-कीटों (Male Insects) को बंध्य (Sterile) बनाने के लिए Cobalt-60 से प्राप्त गामा विकिरण (γ-Rays) तथा शक्तिशाली Chemo-Sterilants को उपयोग किया जाता है ।
Chemo-Sterilants प्रमुख रूप से शक्तिशाली Alkylating Agent Aziridine के Derivative होते है । उदाहरण जैसे TEPA (Tris A-Aziridinyl) Phoshine Oxide, Apholate (2, 2, 4, 4, 6, 6, Hexahydro- 2, 2, 4, 4, 6, 6-Hexakis- 1, 3, 5, 2, 4, 6 Triazatriphosphophorine) प्रयुक्त होने बाले सामान्य Alkylating Agents है ।
Radiation से Treated Insect, Reproduction की क्रिया का अभाव हो जाता है । Radiation का प्रयोग द्वारा Sterile Male Technique का उपयोग Fruits Flies, Onion Fly, Gypsy Moth, Codling Moth नामक Insects को Sterile बनाने में किया गया है ।
इसके अतिरिक्त Pheromones आकर्षकों तथा अप्रिय पदार्थों Jurenile Harmone तथा Chitin Inhibitors Insect वृद्धि नियंत्रक के उदाहरण है जो केवल Insect पर अपना प्रभाव डालते है ।
कुछ रासायनिक पदार्थों DTA 4’ Dimethyl Triazeno Acetlanilide, Fentinacetate (Fungicide) का प्रयोग Antifeedants के रूप में होता है । प्राकृतिक पाइरेथ्रिन में Antifeedant का गुण पाया जाता है ।
यह एक ऐसा रासायनिक पदार्थ है जो पेस्ट को बिना नष्ट किए अथवा बिना किसी प्रकार का विकर्षण उत्पन्न किए Pests के आक्रमण के होने वाली हानि से बचाता है ऐसे रासायनिक पदार्थों से उपचारित पदार्थ कीट पीड़कों के लिए अखाद्य (Non-Etable) हो जाते हैं ।
जैविक नियंत्रण कार्यक्रम (Biological Control Programme):
वैज्ञानिक विभिन्न विधियों को अपनाकर जैविक नियंत्रण (Biological Control) के द्वारा Pest Control रहे है । इसके अन्तर्गत साइट्रस (Citrus) के एक महत्वपूर्ण Insects Cottony Cushion Scale (Icerya Purchasi) के Control हेतु एक Insect Vadalia Beetle (Rodolia Cardinalis) का प्रयोग किया गया ।
इसी प्रकार भारत में चंद्रशेखर लोहमी ने 1975 में एक Bug की खोज की जो नैनीताल में पाया जाने वाला फूलदार (Flowering) खरपतवार Lantana Camara को समाप्त करने में सफल हुआ और इस Bug को Lantana Bug कहा जाता है ।
जैविक नियंत्रण हेतु उत्तरदायी है । प्राकृतिक शत्रुओं (Natural Enemies) का संरक्षण, परजीवी (Parasite) का छोड़ना बैक्टीरिया (Bacteria), विषाणु (Virus), कवक (Fungi) आदि ।
जीवाणुओं का इस्तेमाल, परभक्षियों (Predators) का प्रयोग आदि इसे निम्न भागो में बाँटा गया है:
(1) परजीवी छोड़ना (Spray of Parasite),
(2) सूक्ष्मजीव एजेंटों क प्रयोग (Use of Micro-Organism Agents),
(3) प्राकृतिक शत्रुओं का संरक्षण (Protection of Natural Enemies),
(4) परभक्षियों का प्रयोग (Used Predators),
(5) राष्ट्रमंडल जैविक संस्थान (National Bio-Institute) ।