मनुष्यों पर कीटनाशकों के उपयोग के प्रभाव | Read this article in Hindi to learn about the effects of pesticide use on humans.
फसलों में कीट नियंत्रण के लिए जो रसायन प्रयोग में लाये जाते हैं वे एक प्रकार के जहर हैं अतः इनका प्रयोग विशेष सावधानी से करना चाहिये । जिस प्रकार यह कीट व अन्य जीवों के लिए घातक है उसी प्रकार मानव शरीर पर भी इनका कुप्रभाव पड़ता है ।
मानव शरीर में इनका प्रवेश निम्नलिखित प्रकार से होता है:
1. नाक द्वारा:
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दूषित वातावरण में सांस लेने से कीटनाशी नाक के द्वारा प्रवेश कर जाते हैं । उदाहरण के तौर पर कीटनाशी गोदाम में अगर दूषित वायु को बाहर निकालने का उचित प्रबन्ध नहीं है तो गोदाम में उसका धूम भर जाता है और ऐसे वातावरण में अगर बिना गैस मास्क बहुत समय तक रहा जाए तो प्रदूषित वायु सांस द्वारा शरीर में प्रवेश कर जाती है जो तरह-तरह के विकार पैदा कर सकती है । इसी प्रकार आबादी के पास वाले क्षेत्र में वायुयान के छिड़काव से दूषित वायु में सांस लेने से यह शरीर में प्रवेश कर जाती है ।
2. मुँह द्वारा:
कीटनाशी द्वारा दूषित भोजन ग्रहण करने से कीटनाशी मुँह द्वारा शरीर में प्रवेश कर जाता है । उदाहरण के तौर पर कीटनाशी के छिड़काव के बाद बिना हाथ-मुँह धोए भोजन करने से कीटनाशी भोजन के साथ पेट में चला जाता है तथा अनेक समस्याएँ पैदा करता है ।
3. त्वचा द्वारा:
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कीटनाशी त्वचा से सीधे भी शरीर में प्रवेश कर जाते हैं । जब कीटनाशी घोल बनाते समय, डिब्बों को खोलते समय एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते समय या छिड़काव के समय शरीर पर पड़ जाते हैं तो त्वचा के रोम-छिद्रों द्वारा शरीर में प्रवेश कर जाते हैं ।
इस प्रकार उक्त तरीकों में से किसी एक या अधिक तरीकों द्वारा कीटनाशी रसायन शरीर में प्रवेश कर सकते हैं एवं शरीर के विभिन्न अवयवों को कीटनाशी रसायनों की विषाक्तता का शिकार होना पड़ता है ।
यह विषाक्तता दो प्रकार की होती है:
(क) तीव्र विषाक्तता;
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(ख) मंद विषाक्तता ।
(क) तीव्र विषाक्तता:
जब कोई कीटनाशी एक ही बार में शरीर के अन्दर इतनी मात्रा में पहुँच जाता है कि वह धातक सिद्ध हो तो उसे तीव्र विषाक्तता कहते हैं । इस तरह की विषाक्तता जान-बूझकर मरने के लिये जहर पीने से कीटनाशी के तुरन्त छिड़काव के बाद उत्पाद को काम में लेने से, या धोखे से कीटनाशी के पीने से हो जाती है ।
इसी प्रकार त्वचा पर अज्ञानता में कीटनाशी की सान्द्र मात्रा गिरने से भी तीव्र विषाक्तता हो जाती है । मुँह तथा त्वचा द्वारा होने वाली तीव्र विषाक्तता को क्रमशः तीव्र मुख विषाक्तता एवं तीव्र त्वचा कहते हैं ।
(ख) मंद विषाक्तता:
जब कीटनाशी के शरीर में धीरे-धीरे बहुत समय तक प्रवेश करने के बाद उसकी विषाक्तता प्रकट होती है तो उसे धीमी या मंद विषाक्तता कहते हैं । इस प्रकार की विषाक्तता दूषित भोजन को बहुत समय तक खाने या कीटनाशी व्यवसाय से सम्बन्धित लोगों के लगातार सम्पर्क में रहने से या जो लोग लगातार छिड़काव करते हैं, उनमें भी धीरे-धीरे विष का संचय होने से होती है ।
शरीर में यह विष पहुँच कर शरीर के विभिन्न अवयवों, विभिन्न शारीरिक कोशिकाओं, जीवद्रव एवं शरीर द्रव में अन्य सूक्ष्म कणों पर क्रिया करके उनकी नियमित कार्यप्रणाली पर कुप्रभाव डालकर क्षति पहुँचाते हैं । इसके फलस्वरूप सम्पूर्ण स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है ।
कीटनाशियों के जहर से बहुत अधिक दिनों ग्रसित होने पर उपभोक्ताओं में हृदय रोग, दमा, सनकीपन, पागलपन, व बांझपन के लक्षण आ जाते हैं । कीटनाशी के अधिक मात्रा में एक साथ शरीर में प्रवेशित होने से जी मिचलाना, उल्टी, पेट व सिर दर्द, घबराहट, शरीर का नीला या पीला पड़ना, बुखार होना, अंधापन, लड़खड़ाना, सांस टूटना, लार टपकना, समूचे शरीर की मांसपेशियों में ऐंठन, पुतलियों का फैल जाना, उत्तेजित होना, मल आना आदि लक्षण प्रकट होते हैं एवं अक्सर 24 घण्टे के अन्दर मृत्यु की संभावना भी रहती है ।
इसी प्रकार कीटनाशी जो कृषि के लिये वरदान सिद्ध हो रहे हैं, असावधानी, और अज्ञानतापूर्वक प्रयोग करने पर प्राणघातक भी सिद्ध हो सकते हैं ।
अतः उनसे बचने के लिये उनके रख-रखाव, घोल बनाते समय, छिड़कते समय तथा छिड़कने के बाद विशेष सावधानियाँ बरतनी चाहिये जो निम्नलिखित हैं:
(क) भण्डारण:
(i) कीटनाशी रसायनों को जहाँ तक हो आवश्यकतानुसार ही खरीदना चाहिए । कभी भी आवश्यकता से अधिक रसायन लेकर नहीं रखना चाहिये ।
(ii) रसायनों को इनके ही डिब्बों में रखना चाहिये । कभी भी दवा आदि की बोतल में नहीं रखना चाहिये क्योंकि भूल से कोई उसे दवा समझ कर पी सकता है ।
(iii) जहाँ तक हो सके, इन्हें बच्चों की पहुँच से दूर ताले में बंद करके ऊँचे स्थान पर रखना चाहिये ।
(iv) रहने वाले मकान में मुख्यतः शयन कक्ष में इन रसायनों को कभी भी नहीं रखना चाहिये क्योंकि इनकी विषैली गन्ध स्वास्थ्य के लिये घातक होती है ।
(ख) घोल बनाते समय:
(i) घोल हमेशा खुली हवा में बनाना चाहिये । बन्द कमरे में बनाने से इसकी विषैली हवा कमरे में भर जाती है जो श्वास द्वारा शरीर में प्रवेश करके घातक सिद्ध होती है ।
(ii) घोल बनाने में जो पात्र प्रयोग किए जायें वे इस प्रकार के हो कि घरेलू उपयोग में न आयें ।
(iii) घोल बनाते समय उचित मात्रा ही आवश्यक पानी की मात्रा में मिलानी चाहिये । कभी भी कीटनाशी की अधिक मात्रा नहीं होनी चाहिये क्योंकि अधिक सान्द्रता से पौधों के जलने की आशंका रहती है ।
(iv) घोल बनाते समय बोतलों व डिब्बों को बहुत ही सावधानी से खोलना चाहिये ।
(v) घोल को मिलाने के लिये कभी भी हाथ का प्रयोग न करें । सदैव लकड़ी के डंडे या लोहे की छड आदि का प्रयोग करना चाहिये ।
(vi) घोल बनाते समय या छिड़काव के समय अगर कीटनाशी शरीर पर गिर जाए तो उसे तुरन्त साबुन से साफ कर देना चाहिए ।
(vii) कीटनाशकों की बोतलों या डिब्बों को जो खाली हो गये हो तोड़कर जमीन में गाड देना चाहिए । उसे किसी अन्य घरेलू उपयोग में नहीं लाना चाहिये ।
(ग) छिड़काव के समय:
(i) छिडकाव के समय पूरे कपड़े, कोट, रबर के दस्ताने गमबूट और गैस मास्क अवश्य पहनने चाहिये ।
(ii) शरीर पर खुले घाव नहीं होने चाहिए । यदि घाव हो तो इन पर छिड़काव के समय मोटी पट्टी बांध लेनी चाहिये ।
(iii) कभी भी हवा के विपरीत दिशा में छिडकाव नहीं करना चाहिये ।
(iv) छिड़काव शाम व भुरकाव सुबह के समय करना चाहिये । छिड़काव के समय पत्तियों पर ओस या पानी की बूँद नहीं होनी चाहिये । जबकि भुरकाव के लिये यदि पत्तियों पर ओस पड़ी रहे तो अच्छा रहता है ।
(v) कीटनाशी छिड़कते समय बड़ी, सिगरेट, तम्बाकू पान आदि का सेवन कदापि नहीं करना चाहिये ।
(घ) छिड़काव के बाद:
(i) छिड़काव के बाद जिस स्थान पर छिडकाव किया है, उस में बोर्ड लगा देना चाहिये कि ”कीटनाशी का प्रयोग हुआ है ।”
(ii) जो घोल छिड़काव के बाद बचा है उसे अन्य किसान जिसे छिड़काव करना है, दे देना चाहिये । यदि उस का कोई उपयोग न हो तो बेकार स्थान पर गड्ढा खोदकर दबा देना चाहिये ।
(iii) छिड़काव के तुरन्त बाद साबुन से स्नान करना चाहिये । कपड़ों को साफ करके धूप में सुखाना चाहिये ।
(ड.) अन्य सावधानियाँ:
(i) कीटनाशी का छिड़काव कभी भी बीमार, कमजोर आदमी, बच्चे, दूध पिलाती हुई अथवा गर्भवती स्त्री से नहीं करवाना चाहिये ।
(ii) छिड़काव करने वाले व्यक्ति को एक दिन में 5 घंटे से अधिक काम नहीं करना चाहिये एवं एक सप्ताह में 15 घण्टे से अधिक छिड़काव नहीं करना चाहिये ।
(iii) छिड़काव करने वाले व्यक्ति की समय-समय पर डाक्टरी जांच करवाते रहना चाहिये ।
(iv) कभी भी अनाज में इन दवाओं को नहीं मिलाना चाहिये ।
कीटनाशी रसायनों से प्रभावित व्यक्ति की प्राथमिक चिकित्सा:
कीटनाशी रसायन से प्रभावित व्यक्ति को चिकित्सक के पास ले जाने से पूर्व घर में भी कुछ उपचार कर लेना चाहिये, जो निम्नलिखित हैं:
(i) प्रभावित व्यक्ति को खुले व हवादार स्थान में प्रभावित स्थान से दूर ले जाना चाहिए ।
(ii) प्रभावित व्यक्ति को साबुत पानी व पानी से खूब भली-भाँति धोना चाहिए ।
(iii) यदि सांस आने में कठिनाई हो रही हो तो कृत्रिम विधि से श्वास देने का प्रयास करना चाहिये ।
(iv) यदि प्रभावित व्यक्ति बेहोश हो गया हो तब व्यक्ति को सीधा लिटा देना चाहिये ।
(v) प्रभावित व्यक्ति के कपड़े आदि ढीले कर देने चाहिये ।
(vi) प्रभावित व्यक्ति द्वारा लिये गये विष के पैकेट को सम्भाल कर रख लेना चाहिये । जिससे चिकित्सक को दवा देने में आसानी हो ।
(vii) चिकित्सक के पास तुरन्त मरीज को ले जाने की व्यवस्था करनी चाहिये ।
मुख से जहर जाने पर:
इस प्रकार प्रभावित व्यक्ति को उल्टी करवानी चाहिये इसके लिये एक गिलास हल्के गुनगुने पानी में एक चम्मच नमक व पिसी हुई सरसों मिला कर पिलाना चाहिये या फिर गले में उंगली डालकर उल्टी करवानी चाहिए ।
यदि व्यक्ति सान्द्र कीटनाशी से प्रभावित हुआ है तो व्यक्ति को उल्टी करवाने के बाद उचित शामक (शान्ति देने वाली दवा) जैसे फेटे हुए अण्डे, मिल्क ऑफ मैग्नीशिया अथवा स्टार्च का घोल पिलाना चाहिये ।
त्वचा से प्रभावित होने पर:
प्रभावित व्यक्ति के प्रभावित स्थान को साबुन व बहते हुए पानी से धोना चाहिए । यदि सम्भव हो तो गर्म पानी सर्वोत्तम रहता है । आँखों के प्रभावित होने पर आँखों को कम से कम 10 मिनट तक साफ पानी से धोना चाहिये ।
श्वास से जहर जाने पर:
इस तरह की दुर्घटना मुख्यतः बन्द स्थानों में कीटनाशी के प्रयोग करने से होता है ।
ऐसे प्रभावित व्यक्तियों को निम्नलिखित प्राथमिक उपचार देना चाहिये:
(i) प्रभावित व्यक्ति को स्वच्छ वायु में ले जाना चाहिए ।
(ii) प्रभावित व्यक्ति के सिर, सीना, व गले के कपड़ों को ढीला कर देना चाहिए ।
(iii) प्रभावित व्यक्ति के हथेली एवं तलवे ठंडे होने पर उन्हें मलना चाहिए ताकि गर्म हो सकें ।
(iv) श्वास लेने में कठिनाई होने पर प्रभावित व्यक्ति को कृत्रिम श्वास देना चाहिए ।
(v) ऐसे व्यक्ति को एल्कोहाल किसी रूप में नहीं देना चाहिये ।
प्रतिकारक पदार्थ (Antidote):
वह समस्त पदार्थ जो विषाक्त को प्रभावहीन कर देते हैं, प्रतिकारक पदार्थ (एन्टीडाट) कहलाते हैं । ऐसे पदार्थ घर में एवं चिकित्सकों द्वारा दिये जाते हैं ।
1. बिना चिकित्सक दिये जाने वाले प्रतिकारक पदार्थ:
(i) पानी – पानी विष की सान्द्रता को कम करने के काम आता है । शरीर को धोने या आँखों के धोने से जहर का प्रभाव कम हो जाता है ।
(ii) साबुन – साबुन के द्वारा जहर से प्रभावित स्थानों को धोना चाहिये ।
(iii) इपीकी सिरीप – उल्टी करवाने के काम आता है ।
(iv) नमक – पानी में नमक धोल कर पिलाने पर उल्टीयां होती है जिससे जहर का प्रभाव कम होता है ।
(v) मैग्नीशिया दूध – यह अम्लीय जहर के प्रभाव को कम करने में काम आता है । इसमें एक चम्मच मैग्नीशियम दूध को एक गिलास पानी में घोल कर पिलाते हैं ।
(vi) सक्रिय चारकोल – यह बहुत से जहर को सोख लेता है । प्रभावित व्यक्ति को इसका गाढ़ा घोल पिलाना चाहिये ।
2. सर्वभौमिक प्रतिकारक पदार्थ या यूनिवर्सल एन्टीडोद (Universal Antidote):
इसको निम्नलिखित प्रकार से बनाते हैं:
दो भाग सक्रिय चारकोल
एक भाग मैग्नीशियम आक्साइड
एक भाग टैनिक अम्ल
इसकी 15 ग्राम मात्रा को आधे गिलास गुनगुने पानी में मिलाने व पिलाने से जहर का प्रभाव कम हो जाता है ।
3. घर में बनने वाले प्रतिकारक पदार्थ:
इसे निम्नलिखित प्रकार से बनाते है:
एक चम्मच जली हुई टोस्ट का चर्ण
दो चम्मच मैग्नीशियम दूध
दो चम्मच चाय
इसको एक गिलास गुनगुने पानी में मिलाकर पिलाने से जहर का प्रभाव कम हो जाता है ।
4. चिकित्सक द्वारा दिये जाने वाले प्रतिकारक पदार्थ