कीटों का जैविक नियंत्रण: पांच तरीके | Read this article in Hindi to learn about the five main biological methods used to control pests. The methods are:- 1. परजीवी छोड़ना (Spray of Parasite) 2. सूक्ष्य जीव ऐजेंटों का प्रयोग (Use of Microbial Agents) 3. प्राकृतिक शत्रुओं का संरक्षण (Protection of Natural Enemies) 4. परभक्षियों का प्रयोग (Use of Predators) 5. राष्ट्रमण्डल जैविक संस्थान (National Bio Institute).
Method # 1. परजीवी छोड़ना (Spray of Parasite):
Agriculture में रोगजन्य पीड़कों (Pathogenic Pests) पर नियंत्रण में प्राकृतिक शत्रुओं (Natural Enemies) के प्रयोग से व्यापक स्तर पर सफलता प्राप्त करने हेतु किए जाने वाले पीड़क (Pests) पर एक जाने माने परभक्षी (Predator) या परजीवी (Parasite) द्वारा नियंत्रण करना आवश्यक है ।
अगर प्राकृतिक शत्रु जो पहले से ही प्रजातियों के प्राकृतिक संतुलन का हिस्सा होता है । इससे प्राकृतिक शत्रुओं और पीड़क की सापेक्षित संख्या Control रहती है किन्तु एक स्तर ऐसा होता है जहाँ Pest फसल को व्यापक क्षति पहुँचाते है । अत: इनका नियंत्रण आवश्यक है ।
Method # 2. सूक्ष्य जीव ऐजेंटों का प्रयोग (Use of Microbial Agents):
बैक्टीरिया (Bacteria), कवक (Fungi), वायरस (Virus), रिकेटिसया (Rickettsiae), प्रोटोजोआ (Protozoa) और निमैटोड (Nematodes) आदि ऐसे सूक्ष्मजीव (Microbes) है जिनमें रोगाणुओं तथा पीड़कों (Pests) को प्रभावित करने की क्षमता विद्यमान होती है ।
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जैसे Coccobacillus Acridiorum (Modern Name Claca Cloca AT. Acridiorum) नामक बैक्टीरिया को डिजर्ट टिड्डा (Desert Locust) के नियंत्रण हेतु प्रयोग किया गया । इसके अतिरिक्त Bacillus Thuringiensis को अनेक Lepidopterus Larvae को नष्ट करने में प्रभावी पाया गया है ।
इसकी विषाक्तता (Toxicity) का कारण बीजाणु (Spores) के साथ विकसित हो रहे Crystal में विद्यमान विषैला एजेन्ट होता है जिसके बाद में वृद्धि होती है । यह विषैला एजेंट अधिकतम मात्रा में पैदा होता है । इसे नियंत्रण एजेंट समझा जाता है ।
इसी तरह B. Popilliae जो जापानी Beetle में Milky Disease पैदा करता है । इसे व्यवसायिक उत्पाद के रूप में विकसित किया गया । ऐसे एजेन्ट (Agent) का प्रयोग करने के लिए फसल संबंधी कीट, जीवाणु एजेन्ट, पारिस्थितिकी प्रणाली है ।
Method # 3. प्राकृतिक शत्रुओं का संरक्षण (Protection of Natural Enemies):
संरक्षण का अर्थ है ऐसे तरीकों से बचना जो प्राकृतिक शत्रुओं को नुकसान पहुँचाते हैं और ऐसे उपायों में बढ़ोत्तरी करना जो प्राकृतिक शत्रुओं की आयु बढ़ाने और उसके प्रजनन में सहायक हो या उसके लिए आकर्षक क्षेत्र का निर्माण करते हो ।
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सुप्तावस्था में प्राकृतिक शत्रुओं का संरक्षण उस समय सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है । जब फसल क्षेत्र से बाहर उसका एक छोटा सा दायर या आघान बचा रह गया हो । उदाहरण जिस समय गन्ना खेत से के होते हैं ।
अगर इन पंक्तियों को जलाया न जाये और खेत के आसपास ही पड़े रहने दिया जाये, तो एपइपाइरोप्स Pupae विकसित होंगे जिससे मानसून पूर्व मौसम में गन्ने की छोटी फसल को Pvrilla Purpusilla से बचने के लिए प्राकृतिक शत्रुओं की आपूर्ति हो सकती है ।
प्राकृतिक शत्रुओं के संरक्षण और उन्हें बढ़ावा देने में यह अवधारणा उचित ही है कि- ”जितनी विविधता होगी उतनी ही स्थिरता होगी” साथ ही प्रबंधन की विभिन्न पद्धतियों के अनुसार शिकारी और परभक्षी जीवों की संख्या में बढ़ोत्तरी की जाये जिसके तहत् बर्रे (ततैया) (Wasp) एवं अन्य शिकारी पक्षियों (Predators Birds) हेतु Artificial Nets बनाकर तथा जैव एजेंटो हेतु मेड़ (Bunds) पर पराग व अमृत (Pollen and Nector) पुष्प (Flower) एवं आश्रयी (Home) पौधे जैसे यूफार्बिया (Euphorbia), जंगली तिपतिया घांस (Wild clover) आदि को लगाया जाये ।
Method # 4. परभक्षियों का प्रयोग (Use of Predators):
Pest को Control करने में Predators का प्रयोग भी लाभकारी होता है । Predators में एक वर्ग है । कीक्सिनलिड परभक्षी, जिनमें चिलोकोनस फारोस्किम्नुस, क्राइप्टोलामस, स्किाम्नुस और मेनोचिलस शामिल है जो नींबू (Lemon) जाति के फलों और अमरूद (Gava) में लगने वाले कीटों मिलीबग्स, कोक्सिड्ल स्केल्स और माइट्स को खा जाते है ।
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मिरिड परभक्षी क्राइटोरिनस धान के हरे पत्तों को नुकसान पहुँचाने वाले हरे रंग के कीट, हॉपर और पौधे को क्षति पहुँचाने वाले भूरे रंग के हापर पर Attack करता है । Green और फीते के आकार का क्राइसोपा एक अन्य प्रभावशाली कीट पर भक्षी है जो Ahids, मिली बग्स और छोटे झांसा (Cater Pillar) जैसे कीटों को खा जाता है ।
धान के पारिस्थितिकी प्रणाली के लिए लाइकोसा या वुल्फ स्पाइडर इसमें अत्यंत महत्वपूर्ण है । बहुत से Insects और रोगाणु खरपतवारों पर हमला करते हैं और उनमें से कुछ को जैव नियंत्रक एजेंटो के रूप में विकसित करना सम्भव है ।
Method # 5. राष्ट्रमण्डल जैविक संस्थान (National Bio Institute):
इस संस्थान की स्थापना 1957 में बैंगलौर में हुई था । इस संस्थान का उद्देश्य कीटपेस्ट के प्राकृतिक शत्रुओं का पता लगाना है और आवश्यकतानुसार आपूर्ति करना है । इससे भारत में जैविक नियंत्रण अनुसंधान के क्षेत्र में काफी प्रगति हुई है ।
संस्थान ने अन्य स्थानिक प्राकृतिक शत्रु विकसित किए है तथा केन्द्र के पादप संरक्षण सिंगरोधन और भंडारण निदेशालय द्वारा स्थापित केन्द्रीय जैव नियंत्रण केन्द्र ICAR ने क्षेत्रीय (Area) और राष्ट्रीय स्तर पर जैविक नियंत्रण के बारे में शोध Research को बढ़ावा दिया है और साथ ही अनेक फसलों और खरपतवारों को इसमें शामिल किया है ।
भारत में निजी क्षेत्रों में स्थापित जैव नियंत्रण अनुसंधान लैब देश में काम आने वाले Parasites और Leaves को पालती है और लागत मूल्य पर किसानों को उपलब्ध करती है जिनमें अंगूर के मिली बग्स, नारियल मई पत्तियों को खाने वाले Caterpiller तथा गन्ने की फसल को हानि पहुँचाने वाले कीड़ों तथा दूसरे प्रकार के कीटाणुओं पर नियंत्रण स्थापित करने में सहायक होती है ।