कीटों की सूची जो क्षतिग्रस्त खाद्य पदार्थों को नुकसान पहुंचाती है | Here is a list of pests that damage stored foodgrains in Hindi language.

भण्डारित अनाज को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों में अधिकतर कीट ऐसे हैं जो अनाज को खराब कर उसमें अपना जीवन चक्र पूरा करते है । ये कीट प्रायः अधिक हानिकारक होते हैं ।

कीटों के प्रकोप से जहाँ एक ओर अनाज को सीधा नुकसान पहुँचता है वहीं दूसरी ओर प्रकोपित अनाज में उष्मा एवं नमी की वृद्धि होने से उसमें कवक (फफूंदी) का भी प्रकोप आरम्भ हो जाता है । इनसे अनेक घातक विष यथा एफ्लाटॉक्सीन, एरगट, सिटीनिन एवं सिटीविरीडीन उत्पन्न होते हैं जो स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यन्त घातक होते है ।

भण्डारगृहों में अनाज को प्रकोपित करने वाले प्रमुख कीट, उनके द्वारा पहुँचायी जाने वाली क्षति, पहचान, जीवन-चक्र आदि के बारे में संक्षेप में जानकारी निम्नलिखित है:

1. अनाज की सुरसुरी:

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वैज्ञानिक नाम – साइटोफिलस ओरिइजी (Sitophilus Oryzae) (Coleoptera – Curculionidae)

क्षति का स्वरूप:

इस कीट के वयस्कों व सूँडियों अब द्वारा क्षति पहुँचायी जाती है । अनाज को खोखला कर दिया जाता है । दाने पाउडर में बदल जाते हैं । इस कीट के भारी प्रकोप की दशा में अनाज में ऊष्मा पैदा होती है जो कि शुष्क ऊष्मा के नाम से जानी जाती है ।

पहचान:

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इस कीट का आकार 3 मि.मी. होता है । वयस्क कीट घुन होती है जिसमें विशेष प्रकार की चोंच पायी जाती है । इनके एन्टीनी मुड़े हुए होते हैं एवं मामूली मिला हुआ होता है । इनका रंग लाल भूरे, कत्थई से लेकर लगभग काला होता है ।

पोषक खाद्यान्न – गेहूँ चावल, मक्का, ज्वार एवं कभी-कभी धान ।

जीवन-चक्र:

मादा कीट दाने में सुराख बनाकर पारभासी सफेद अण्डे देती है इसके उपरान्त श्लेष्मी स्राव से इस छिद्र को भर देती है । अण्डे एक-एक करके दिये जाते हैं । एक मादा अपने जीवन काल में 150 से 250 अण्डे देती है । इन अण्डों से 5 से 7 दिनों में ग्रब निकलता है जो कि टांगोंरहीत, माँसल एवं वक्राकार होता है । ग्रब अवस्था 20 दिन तक रहती है । ये अनाज में ही प्यूपा बन जाता है ।

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प्यूपा अवस्था 3 से 6 दिन तक रहती है । जब विकास पूरा हो जाता है । तो वयस्क बाहर निकल आता है तथा ये अनाज में गोलाकार छिद्र छोड़ देता है । वयस्क का जीवन 3 से 5 माह होता है । एक वर्ष में इसकी 5-6 पीढियाँ पायी जाती हैं ।

2. छोटा अनाज छिद्रक:

वैज्ञानिक नाम – राइजोपर्था डोमिनीका (Rhizopertha Dominica) (Coleoptera : Bostrichidae)

क्षति का स्वरूप:

वयस्क व ग्रब दोनों ही दानों को खाकर नुकसान पहुँचाते हैं । प्रकोपित अनाज आटे में तब्दील हो जाता है । इसके प्रकोप से अनाज में नमी व तपन बढ़ जाती है फलस्वरूप कवक का प्रकोप भी शुरू हो जाता है । वयस्क व ग्रब तेजी से अनाज को खाते हैं अतः अनाज के दाने मात्र खोल में बदल जाते हैं । क्षतिग्रस्त दानों पर खराब आटे की पर्त चढ़ जाती है ।

पहचान:

इसकी सबसे बड़ी पहचान यह है कि इसका सिर इतना नीचे झुका रहता है कि यह लगभग छिपा रहता है और दिखाई नहीं देता है । इसके अग्र वक्ष और पक्ष वक्ष के बीच काफी संकुचन रहता है । इन कीटों का रंग भूरा और काले के बीच का होता है । इनके एन्टीनी बड़े, ढीले, तीन तरफ विभक्त क्लब होते हैं । पूर्ण विकसित वयस्क का आकार 3 मि.मी. होता है ।

पोषक खाद्यान्न – धान, चावल, गेहूँ और मक्का ।

जीवन-चक्र:

मादा अनाज की सतह पर अथवा उनकी दरारों में अकेले ही अथवा समूहों में अण्डे देती है । एक मादा अपने जीवन काल में 550 तक अण्डे देती है । ग्रब अनाज को खाते-खाते उसके अंदर पहुँच जाता है या यह अनाज का चूर्ण अथवा मांड खाता है और यह अनाज को बाहर से भी प्रभावित करता है ।

मुक्त रूप से रहा ग्रब सामान्यतया प्यूपा बनने के लिये तीसरे इन्सटार के बाद अनाज में प्रवेश कर जाता है । प्रायः अनुकूलतम परिस्थितियों में सम्पूर्ण जीवन-चक्र 25 दिनों में पूर्ण हो जाता है ।

3. खपरा भृंग:

वैज्ञानिक नाम – ट्रोगोडर्मा ग्रेनेरियम (Trogoderma Granarium)

क्षति का स्वरूप:

यह एक महत्वपूर्ण भण्डारित खाद्यान्न नाशीकीट है । ये प्रायः दाने के अंकुर भाग को खरोंच कर उसे क्षतिग्रस्त करता है । यह अनाज को छिलके में बदल देता है । प्रायः इसके रोओं व निर्मोचित त्वचा से अनाज में गंदगी पैदा हो जाती है । और वह बाजार में बेचने के लिये अनुपयुक्त होता है । ग्रब की अत्यधिक भरमार से भण्डारगृहों में अस्वच्छता की स्थिति उत्पन्न हो जाती है ।

पहचान:

वयस्क कीट आकार में 1.5 से 3 मि.मी., देखने में उत्तल, गोल, सिर, वक्ष और उदर में व्यवहार्य तथा कोई स्पष्ट विभक्ति नहीं होती है । इनके उदर का आकार अपेक्षाकृत बड़ा होता है । लैंगिक द्विरूपता स्पष्ट दिखाई पड़ती है । प्रायः नर, मादाओं से आकार में अपेक्षाकृत छोटा होता है ।

ग्रब प्रायः भूरे रंग के होते है जिनके शरीर पर दोनों ओर काले भूरे रंग के गुच्छेदार रोएँ होते हैं और इनके पिछले भाग में रोओं का एक अजीब तरह का पूंछनुमा गुच्छा होता है । ग्रब का आकार प्रायः 4 से 5 मि.मी. होता है ।

पोषक खाद्यान्न – गेहूं, मक्का, ज्वार, दालें, तिलहन और उनकी खलियाँ ।

जीवन-चक्र:

यह कीट मूलतः पंजाब से फैला है तथा आज सम्पूर्ण भारतवर्ष में पाया जाता है । मादा कीट लगभग 80 से 125 अण्डे देती है । अण्डों से निकले ग्रब काफी सक्रीय होते है तथा मुक्त रूप से चलते-फिरते रहते हैं एवं दानों को खाते हैं । नर-ग्रब 20 से 30 दिन तथा मादा-ग्रब 20 से 40 दिनों में पूर्ण रूप से विकसित होते हैं ।

प्यूपावस्था दानों के मध्य बनती है जो कि 4 से 6 दिनों तक रहती है । वयस्क कीट 14 दिनों तक जीवित रहता है तथा ये हानिकारक नहीं होता है । एक वर्ष में इसकी 4 से 5 पीढ़ियाँ पायी जाती हैं ।

4. अनाज का लाल भृंग:

वैज्ञानिक नाम – ट्राइबोलियम कैस्टेनियम (Tribolium Castaneum) (Coleoptera – Tenebrionidae)

क्षति का स्वरूप:

वयस्क व ग्रब दोनों ही पिसे हुए पदार्थों पर पलते हैं । आटे के लाल कीट सभी अनाजों के गौण कीट होते हैं और आटे और अन्य पिसे हुए पदार्थों के लिये ये मुख्य कीट होते हैं । ग्रसित आटे से तीखी दुर्गन्ध आती है ऐसा आटा मानव उपयोग के लिये अनुपयुक्त होता है ।

पहचान:

यह कीट आयताकार, चपटा, 34 मि.मी. आकार का, भूरे रंग का होता है । एटीनी तीन खण्डों में होते हैं ।

पोषक खाधान्न:

टूटे अनाज, मशीनों से क्षतिग्रस्त अनाज, अंकुर भाग और पिसे हुए पदार्थ इसके मुख्य पोषक पदार्थ हैं ।

जीवन-चक्र:

मादा कीट भण्डारित अनाज में बेतरतीब 400 से 500 अण्डे देती है । यह कई महीनों तक प्रतिदिन दस अण्डे देता है जो सफेद, पारभासी, चिपचिपे पतले व बेलनाकार होते हैं । अण्डों से ग्रब 5 से 12 दिनों में निकल आते हैं । ग्रब का रंग क्रीमी होता है । ग्रब काल 3 से 12 सप्ताह का होता है । घूमा प्रायः अनाज में खुला ही बनाया जाता है । प्यूपावस्था 9 दिनों की होती है । अनुकूल वातावरण में इसका जीवन-चक्र 3 से 4 सप्ताह में पूर्ण हो जाता है ।

5. आरी दंत भृंग:

वैज्ञानिक नाम – ओराइजीफिलस सुरिनामेन्सीस् (Oryzaephilus Surinamenis)  (Coleoptera : Silvanidae)

क्षति का स्वरूप:

वयस्क व ग्रब अनाज की सतह को खुरदरा बना देते हैं एवं अनाज में दुर्गन्ध आने लगती है । अनाज में टूटे दाने, धूल व व्यर्थ पदार्थ अधिक मात्रा में होने पर इस कीट का प्रकोप अधिक होता है । इनके प्रकोप से अनाज में तपन पैदा हो जाती है ।

पहचान:

वयस्क कीट बारीक, चपटे, 2.5 से 3.0 मि.मी. लम्बे होते हैं । इनके वक्ष के दोनों ओर छ: दांतनुमा संरचनाएँ होती है । इनके पंख उदर को पूरी तरह ढके रहते हैं ।

पोषक खाद्यान्न – चावल, गेहूँ, मक्का, अनाजों के पदार्थ, तिलहन और सूखे मेवे ।

जीवन-चक्र:

मादा कीट भण्डारण पात्रों अथवा गोदामों की दरारों में मुक्त रूप से 300 सफेद अण्डे देते हैं । अण्डे का ऊष्मायन काल 3 से 17 दिन होता है । अण्डों से निकला ग्रब पतला होता है तथा पीले क्रीम रंग का होता है तथा इसके प्रत्येक खण्ड में दो काले रंग के धब्बे होते हैं । यह अनाज में मुक्त रूप से घूमता रहता है । ग्रब काल 14 से 20 दिनों तक होता है ।

पूर्ण विकसित ग्रब चिपचिपे रिसाब से सुरक्षात्मक कृमिकोष जैसा आवरण बना लेता है प्यूपा काल 7 से 21 दिनों का होता है । मृग बहुत ही सक्रीय होता है तथा इसका जीवन काल 5 से 10 माह होता है मगर कभी-कभी यह 3 वर्ष तक भी जीवित रहता है । ये कीट प्रायः भण्डारगृहों के नमीदार स्थानों पर एकत्रित होते हैं ।

6. दालों का भृंग:

वैज्ञानिक नाम – केलेसोलूकस चाइनेन्सीस (Callosobruchus Chinensis) के. मेकलैटस (C. Maculatus) (Coleoptera – Bruchidae)

क्षति का स्वरूप:

ग्रब दालों के दानों को खा जाते हैं और उसमें छिद्र कर देते हैं । इससे ग्रसित दानें खोखले तथा मानव उपभोग के अयोग्य हो जाते हैं । इस प्रकार के दानों से एक विशेष प्रकार की अवांछित गंध आती है । वयस्क मृग प्रायः हानिरहित होता है ।

पहचान:

यह कीट छोटा गोलाकार और सक्रीय होता है इसमें स्पष्ट एन्टीनी होते है और इनका आकार 3 मि.मी. होता है । वयस्क कीट धूसर रंग का होता है । इसके पृष्ठ भाग के मध्य के निकट विशेष रूप से ऊपर उठे दंत नुमा दाग होते हैं । इसके पंख उदर को पूरी तरह से नहीं ढकते हैं ।

पोषक खाद्यान्न – विभिन्न प्रकार की दालें ।

जीवन चक्र:

यह कीट 80 से 100 अण्डे देता है जो कि फली (खेतों में) की सतह पर या दालों (भण्डारी में) पर चिपके होते है । ताजा अण्डे पारभासी, हल्के नारंगी रंग के होते हैं जो समय के साथ धुंधले हो जाते हैं । अण्डों से 5 दिनों में ग्रब निकल आते हैं अण्डों से निकले ग्रब दानों में प्रवेश कर जाते हैं । ग्रब मोटा, सफेद, क्रीम रंग का होता है इसके मुँह का हिस्सा काला होता है ।

ये चार बार निर्मोचन करता है । ग्रब अवस्था 30 से 50 दिनों की होती है । बीज कवच के नीचे ग्रब, प्यूपावस्था में चला जाता है । प्यूपावस्था ग्रीष्म ऋतु में 4 दिन व शीत ऋतु में दो सप्ताह की होती है । इसका सम्पूर्ण जीवन-चक्र 25-35 दिनों में पूरा हो जाता है । एक वर्ष में इसकी 7 से 8 अतिव्यापन पीढ़ियाँ पूरी होती हैं ।

7. गोदाम का पतंगा:

वैज्ञानिक नाम – एफेस्टिया कॉटेल्ला (Ephestia Cautella) (Lepidopters)

क्षति का स्वरूप:

केवल सूँडियां (लार्वा) ही हानिकारक होती हैं । यह मुख्यतः अंकुर भाग ही खाते हैं और शेष दाने को नुकसान नहीं पहुँचाते है । व्यापक प्रकोप की दशा में, क्षति ऊपरी तहों तक ही सीमित रहती है । इसका जाला बोरियों, फर्श को ढाँक देता है ।

पहचान:

इसका आकार 13 मि.मी. होता है इसके पंखों का फैलाव 2 से 2.5 से.मी. होता है । इसके पंख मैले सफेद से धूसर रंग के होते हैं और सिर पर लगभग 4 मि.मी. के काले रंग की स्पष्ट धारियाँ होती हैं । यह कीट रात्रिचर है अतः यह दिन के समय में अंधेरे स्थानों में खासकर गंदे और अंधेरे गोदामों में रहता है ।

पोषक खाद्यान्न – गेहूँ, चावल, मक्का, ज्वार, मूंगफली, आदि ।

जीवन-चक्र:

अनाज की बोरियों में छिद्रों पर आमतौर पर 3 से 4 दिनों में 200-300 अण्डे दिये जाते है । इनसे 5 से 6 दिनों में शेंडयाँ निकल आती हैं जो काफी सक्रिय होती है एवं अनाज के भ्रूण को बड़ी तीव्रता के साथ खाती है । इनका रंग धुंधला सफेद होता है एवं रोयेंदार होता है एवं इसका सिर काला भूरा होता है ।

लार्वा काल 15 से 16 दिनों का होता है । प्यूपा बनने से पूर्व मुलायम तंतुओं के पीछे भारी संख्या में लार्वा फैले रहते हैं । ऐसे महीन तंतु बोरियों पर सफेद चमकदार गलीचा-सा बना लेते हैं । अपने जीवन काल में एक सूँडी गेहूँ के 64 दानों के भ्रूणों को खा जाता है । पूर्ण विकसित लार्वा रेशमी ककून बनाकर प्यूपावस्था में चला जाता है । प्यूपाकाल 7 दिनों तक होती है । वयस्क कीट 14 दिनों से भी कम अवधि तक जीवित रहता है ।

8. अनाज का पतंगा:

वैज्ञानिक नाम – साइटोट्रोगा सिरियलेला (Sitotroga Cerealella)  (Lepidoptera : Gelechiidae)

क्षति का स्वरूप:

यह भण्डारित अनाज का महत्वपूर्ण नाशीकीट है । इसके लार्वा ही खाद्यान्नों को क्षति पहुँचाती है, वयस्क हानिकारक नहीं होते हैं । खाद्यान्नों के दानों में लार्वी सुराख कर देती है । ये खेतों तथा भण्डारगृहों दोनों ही स्थानों पर आक्रमण करती हैं । इस कीट की उपस्थिति केवल ऊपर की 30 से.मी. की गहराई तक ही सीमित रहती है । लारवी, दाने में ढक्कन के साथ गोलाकार छिद्र या ‘ट्रेप-डोर’ बनाते है ।

पहचान:

इसका आकार 8 से 10 मि.मी. होता है । पतंगा गंदला पीले भूरे रंग का होता है यह अपनी पीठ को पंखों से तिरछे ढंग से पूर्णतया ढाँक लेता है । पंखों का विस्तार 10-14 मि.मी. होता है । इसके पिछले भाग के पंख अगले सिरे से तीखे नुकीले होते हैं । और उन पर भारी संख्या में खड़े बाल होते हैं यह कीट खिड़कियों व दीवारों पर प्रायः छोटे-छोटे गंदे धब्बे छोड़ देता है ।

पोषी खाद्यान्न – धान, मक्का, ज्वार, जौ ।

जीवन-चक्र:

मादा कीट भण्डारगृहों या खेतों में नमीयुक्त स्थान पर अनाज की सतह पर लगभग 100 सफेद अण्डे देती है जो कि शीघ्र ही लाल हो जाते हैं । मौसम के अनुसार इनसे 4-30 दिन में निकल आती है । अण्डे से निकली सूँडी दाने की दरार अथवा दानों को खरोंच कर अन्दर प्रवेश कर जाता है एवं दाने के अन्दर ही पलती है एवं केवल एक ही दाने में रहता है ।

इसका रंग सफेद होता है एवं सिर पीला होता है । सूँडी में 3 जोड़ी वास्तविक टाँगें ओर 4 जोड़ी अग्र टाँगें होती हैं । इसकी लम्बाई 5 मि.मी. होती हैं । सूँडियाँ 6 दिनों में चार बार निर्मोचन कर पूर्ण विकसित हो जाती है । पूर्ण विकसित सूँडी दाने के अन्दर ही प्यूपा में बदल जाती है । प्यूपावस्था 7 दिनों की होती है । इसके उपरान्त वयस्क कीट दानें में से छिद्र बना कर बाहर निकल आता है । वयस्क कीट अल्पायु होता है । एक वर्ष में 3-4 पीढियाँ पायी जाती हैं ।

9. मक्का का पतंगा:

वैज्ञानिक नाम – प्लोडिया इंटरपंक्टेला (Plodia Interpunctella) (Lepidoptera – Pyralidae)

क्षति का स्वरूप:

मक्का भण्डारण के दौरान यह एक अत्यन्त विनाशकारी कीट है यह मक्का के भुट्टों और दानों को गंभीर क्षति पहुँचाता है । यह दाने को मल, त्यागी गयी त्वचा, प्यूपा खोल आदि से दूषित कर देता है । ये प्रायः भ्रूण भाग को खाता है फलस्वरूप दाने की जैव क्षमता समाप्त हो जाती है ।

पहचान:

पंख के अग्र भाग के नीचले आधे भाग का रंग रजत सफेद अथवा धुंधला होता है, बाहर का 2/3 भाग लाल, ताबे-कास्य की चमकयुक्त तथा टेढ़ी-मेढ़ी धारियों वाला होता है । पिछले पंख लम्बे रजत धुंधले रंग के तथा रेशमी रोये युक्त होते हैं । इनके वक्ष मामूली गहरे रंग के होते हैं जिन पर लाल चकत्ते होते है । जब यह कीट विश्राम की अवस्था में होता है तो उस दशा में उसके शरीर के 2/3 आकार का एन्टेनी तिरछी होकर पंखों पर होती है ।

पोषक खाद्यान्न – मक्का, गेहूँ, जौ, सूखे मेवे, मूंगफली और आटे के बने पदार्थ ।

जीवन-चक्र:

अण्डे धुंधले सफेद रंग के होते हैं और उनकी सतह दानेदार होती है । अण्डे रात्रि के समय इधर-उधर दिये जाते हैं । मादा कीट अपने जीवन-काल में 29 से 275 अण्डे देती है । इन अण्डो से 2 से 17 दिनों में सूँडी निकल जाती है । नयी सूँडी पारदर्शी होती है ।

पूर्ण विकसीत सूँडी 15 मि. मी. लम्बी होती है । इसका रंग गन्दा सफेद होता है और त्वचा खुरदरी होती है एवं शरीर पर बाल होते है । सूँडी 30 से 35 दिनों में पूर्ण विकसीत हो जाती है । प्यूपा का रंग भूसे के समान होता हैं । प्यूपाकाल औसतन 10 दिनों का होता है ।

10. चावल का पतंगा:

वैज्ञानिक नाम – कोरसायरा सिफेलोनिका (Corcyra Cephelonica) (Lepidoptera : Pyralidae)

क्षति का स्वरूप:

इस कीट की सूँडियाँ क्षति पहुँचाती है । यह खाद्यानों को मल, रोओं और जालों से दूषित कर देता है । साबुत दानों में ये 2 किलोग्राम तक के ढेले बना देते हैं ।

पहचान:

इसका रंग सामान्यतः पीला या भूरा पीला होता है । पंखों का फैलाव 25 मि.मी. तक होता है । अग्र पंखों पर काले रंग की धारियाँ होती हैं ।

पोषक खाद्यान्न:

चावल, ज्वार, मिलेट्‌स, साबुत अनाज, दाले, अनाज से बने पदार्थ, तिलहन, सूखे मेवे एवं कुटे हुए मसाले आदि ।

जीवन चक्र:

इसके अण्डे छोटे, वृत्ताकार होते हैं । यह अपने अण्डे दीवारों, बोरियों या अनाज के दानों पर देता है । अण्डों से 3 से 5 दिनों में सूँडियाँ निकल आती हैं ये शेडयौं सफेद रंग की क्रीम होती है पूर्ण विकसीत सूडियाँ 12 मि.मी. आकार की होती है ।

सूँडी का पूरा विकास 21 से 42 दिनों में पूर्ण हो जाता है । प्यूपा, सूँडी द्वारा बनाये गये कृमिकोष के अन्दर बनता है । प्यूपाकाल 7 से 10 दिनों का होता है । वयस्क कीट 7 से 15 दिनों तक जीवित रहता है । एक वर्ष में इस कीट की 6 पीढ़ियाँ पायी जाती है ।

11. अनाज की जूँ (सोसिड़):

वैज्ञानिक नाम – लिपोस्सेलिस स्पी. (Liposcelis Sp.) (Order – Psocoptera)

क्षति का स्वरूप:

जहां-जहाँ भण्डारगह अस्वच्छ, नमीयुक्त होते हैं एवं जहां वातन की तरफ सही ध्यान नहीं दिया जाता है । वहां पर इस कीट का भारी प्रकोप होता है । एवं ऐसे स्थानों पर भारी मात्रा में फफूंदी विकसित हो जाती है । इस कीट की उपस्थिति प्रधूमन के उपरान्त भी बनी रहती है । ये भारी प्रकोप की स्थिति में पौधे के अंकुर भाग को नष्ट कर देता है । सामान्यतः यह कीटों के अंश व टूटे अनाज पर ही पलता है ।

पहचान:

ये छोटे, सक्रिय, पिन की मुंडी के आकार के कीट होते हैं प्रायः इनका रंग पीला धुंधला अथवा पीला सफेद होता है । इसमें सूत्राकार एंटोनी पायी जाती है एवं कीट आयताकर होता है । पोषक खाद्यान्न – स्टार्च युक्त सभी वस्तुएँ, अधिक नमी वाला अनाज आदि ।

जीवन-चक्र:

मादा कीट लगभग 7 से 60 अण्डे देती है इन अण्डो से निम्फ निकलते हैं जो वयस्कों से काफी मिलते-जुलते हैं मगर आकार में छोटे होते हैं ।

अनाज भण्डारण विधियाँ:

 

अनाज के भण्डारण की दो प्रमुख विधियाँ हैं:

i. बोरी में भरकर

ii. देर के रूप में

i. बोरी में भरकर:

यह अनाज भण्डारण की बहुत पुरानी प्रणाली है । घरों में अपने स्वयं के उपयोग के लिए प्रायः बोरीयों में भरकर अनाज संचित किया जाता है ।

बोरी में अनाज भण्डारण करने के निम्नलिखित लाभ व हानियाँ हैं:

 

लाभ:

(1) बोरी में भरकर अनाज संग्रहित करने में अनाज के रखने तथा निकालने में सुविधा रहती है ।

(2) अनाज का निरीक्षण करने में आसानी रहती है ।

(3) कीट ग्रसन का पता आसानी से लग जाता है ।

(4) अलग-अलग प्रकार के अनाज का प्रघूमन सावधानीपूर्वक किया जा सकता है ।

(5) प्रारम्भिक लागत व्यय कम आता है ।

हानियाँ:

(1) भण्डारण के लिये अधिक स्थान की आवश्यकता होती है तथा गोदाम की भण्डारण क्षमता का 50-60 प्रतिशत ही उपयोग हो पाता है ।

(2) कीट ग्रसन की संभावना अधिक रहती है तथा कीट-ग्रसन शीघ्रता से होता है ।

(3) लम्बी अवधि तक भण्डारण सम्भव नहीं है ।

ii. ढेर के रूप में (Bulk Storage):

इस प्रकार का भण्डारण भी भारतवर्ष में काफी अधिक प्रचलित है । प्रायः अधिक समय तक संग्रहित किये जाने वाले अनाज को ढेर में एवं कम समय तक संग्रहित किये जाने वाले अनाज को बोरी में संग्रहित किया जाता है ।

लाभ:

(1) अन्य साधनों से कीट ग्रसन की संभावना कम रहती है ।

(2) कीट ग्रसन होने पर प्रघूमन आसानी से और कम खर्च में किया जा सकता है ।

(3) वर्षा ऋतु में बाह्य पर्यावरण की नमी का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है ।

(4) चूहों के आक्रमण की संभावना कम रहती है ।

(5) संग्रहण के लिये सपेक्षाकृत कम स्थान की आवश्यकता पड़ती है ।

(6) बोरियों पर होने वाले खर्च में कमी हो जाती है ।

(7) लम्बी अवधि तक सुरक्षित भण्डारण सम्भव है ।

हानियाँ:

1. एक बार कीट ग्रसन होने पर पूरे अनाज में फैल जाता है तथा क्षति अधिक होती है ।

2. अनाज में नमी अधिक होने पर पूरे अनाज में अधिक हानि होने का भय रहता है ।

अच्छे गोदाम/भण्डारगृह के गुण:

1. इसमें संचित वस्तु नमी, वर्षा, खराब गन्ध, कीट हवा, आग तथा चोरी से सुरक्षित रहनी चाहिए ।

2. वस्तु रखने, निकालने, ग्रसन मुक्त रखने निरीक्षण व सफाई करने की पूरी सुविधा होनी चाहिये ।

3. गोदाम/भण्डारगृह अनाज मण्डी के नजदीक व यातायात साधनों से जुड़ा होना चाहिये ।

4. यह आवासीय क्षेत्र से दूर होना चाहिये ।

5. इसमें वायु के संचार की पूर्ण सुविधा होनी चाहिये ।

6. भण्डारगृह ऊँची जगह पर होना चाहिये एवं जल निकास की सुविधा होनी चाहिए ।

7. गोदाम के विस्तार के लिए पास में आवश्यक जमीन खाली रहनी चाहिए ।

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