आलू के लिए भंडारण प्रौद्योगिकी | Read this article in Hindi to learn about the advanced storage technology for potatoes.

आलू साल भर लोगों को मिलता रहे इसके लिए आलू को भंडारित करना आवश्यक है । एक अनुमान के अनुसार देश में प्रति वर्ष लगभग 40 लाख टन आलू का भण्डारण किया जाता है । परन्तु उचित भण्डारण नहीं होने के कारण 9-10 लाख टन आलू विभिन्न कारणों से बरबाद हो जाता है ।

भण्डारण में होने वाले इन नुकसानों के अन्तर्गत वजन में कमी, सड़न एवं प्रस्फुटन मुख्य है । आलू के भंडारण में किस्म कर्षण क्रियाओं भण्डारण दशाओं आदि का महत्वपूर्ण योगदान हैं । आलू का भण्डारण सामान्यता वातावरणीय दशाओं में किया जाता है जिससे तापमान तथा नमी पर नियंत्रण नहीं हाने के कारण गर्मी के दिनों में वजन में कमी तथा बरसात के मौसम में सड़ने से अधिक नुकसान होता है । आलू के भण्डारण का उपयुक्त तापमान 20-25° सें०ग्रे० तथा 65-70 प्रतिशत आर्द्रता है ।

अधिक तापमान एवं आर्द्रता आलू के भण्डारण पर बुरा प्रभाव डालते हैं । हमारे देश में आलू का भण्डारण सामान्य वातावरणीय दशाओं में किया जाता है । भण्डारण के लिए बने परम्परागत भण्डारगृहों में हवा का आदान-प्रदान अच्छा नहीं होता है तथा ढेरियों का आकार बड़ा होने के कारण आलू का नुकसान अधिक होता है । इसलिए शीत-भण्डारों (कोल्ड स्टोरेज) का अधिक प्रचार-प्रसार होता जा रहा है । किन्तु हर स्थान पर शीत-गृहों का उपलब्ध होना कठिन है । इसलिए आलू को कच्चे देहाती आलू भण्डार-गहों में रखा जा सकता है ।

(क) उन्नत देहाती आलू भण्डारण:

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आलू अनुसंधान केन्द्र द्वारा एक उन्नत विधि निकाली गई है । भंडार-गृह ईटी का बनाया जाता है । दोहरी दीवालें होती हैं जिनके मध्य लगभग 1.5 मीटर की दूरी रखी जाती है जिसके रिक्त स्थान में हवा भरी रहती है जो कुचालक होने के कारण उत्तम अवरोधक प्रदान करती है ।

भण्डारण-गृह की छत घास-फूस की होती है जिस पर खपरैल बिछा दी जाती है । भंडार-गृह में समुचित वायु संचार के लिए दीवालों में. भूमि के समीप 1.5-1.5 की दूरी पर छोटे-छोटे छिद्र बना दिये जाते हैं । ये छिद्र रात में खोल दिये जाते हैं और दिन में बन्द कर दिये जाते हैं ।

अन्दर की हवा निकालने के लिए दीवालों के उपर छत के समीप दो खिड़कियां बना दी जाती हैं जो रात्रि में खोल दी जाती है । एक दरवाजा और दो खिड़कियां उपरी दीवाल में बनाई जाती हैं । इस प्रकार के भंडार-गृह में बाहरी तापमान की अपेक्षा कम तापमान रहता है ।

यदि गर्मियों में बाहरी तापमान 35° सें०ग्रे है तो अन्दर का तापमान 27-30° सें०ग्रे० तक रहता है । इस भंडार-गृह में रैक्स के उपर आलूओं को 25-30 सेंटीमीटर मोटी तह में फैलाना चाहिए । इसके अतिरिक्त बालू का प्रयोग भी करना चाहिए ।

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बालू के दो तहों के बीच 2.5 सें०मी० मोटी आलू की तह रखनी चाहिए । सभी रोशनदान और खिड़कियां दिन के समय बन्द कर दी जाती हैं और सांय काल या रात्रि में जब कुछ ठंडक बाहर के वातावारण में हो कुछ समय के लिए खोल दी जाती हैं जिससे ठण्डी और स्वस्थ्य वायु का संचार भण्डार-गृह में हो सके और तापमान भी कम हो जाय । समय-समय पर आलूओं का निरीक्षण करते रहना चाहिए । सड़े-गले और रोगग्रस्त आओ को चुन कर फेंक देना चाहिए । यदि आलू में अंकुर निकलने लगे तो उन्हें तोड देना चाहिए ।

(ख) शीत-गृह में आलू का भण्डारण:

शीत-गृह में अमोनिया और बाइन मिश्रण का प्रयोंग किया जाता है । अधिक दबाव पर इन्हें शीतल-कक्ष (कूलिंग चैम्बर) में भेजते हैं । जहाँ पंखों द्वारा हवा का तेज झोंका इन पर बहाया जाता है और इस प्रकार ठंड की हुई हवा शीत-गृह के उपरी हिस्से में भेज दी जाती है ।

पुन: अमोनिया को द्रव रूप में लाने के लिए जल का प्रयोग किया जाता है । तापमान और आर्द्रता नियंत्रण ही शीत-गृह की कार्य-क्षमता का आधार है । साधारणत: 2.2-4.4 सें०ग्रे० तापमान आलू के लिए उपयुक्त है । 4.4° सें०ग्रे० से अधिक तापमान पर आलू के अंकुरण में प्रोत्साहन प्राप्त होता है ।

4.4° सें०ग्रे० से तापमान कम होने पर आलू में मिठास उत्पन्न होने लगती है क्योंकि कम तापमान होने पर श्वसन क्रिया में बाधा उपस्थित होती है और आलू में चीनी की मात्रा एकत्रित होने लगती है । मिठास रोकने के लिए आलू को 4.4 सें०ग्रे० तापमान से अधिक तापमान पर रखना चाहिए और इस तापमान पर अंकुरण रोकने के लिए साइट इनहिविटर जैसे मेथाइल इस्टर या एजरमाइन नामक रसायन का उपयोग करना चाहिए । प्रयोगों द्वारा सिद्ध हो चुका है कि 1.6° सें०ग्रे० तापमान पर आलू को अनिश्चित काल तक रखा जा सकता है ।

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2.2° सें०ग्रे० तापमान पर आलू अनिश्चित काल तक सुसुप्तावस्था में बन रहते हैं । अच्छी प्रकार संग्रह करने के लिए आपेक्षिक आर्द्रता 80-80 प्रतिशत के बीच होनी चाहिए । शीत-गृह अंधेरा और हवादार होना चाहिए । शीत-गृह का वातावरण इतना शुष्क रहना चाहिए कि आलूओं में विद्यमान नमी को शोषित कर सकें ।

(ग) अन्य विधियां:

राज्य के विभिन्न भागों में किसानों ने अपने अनुभवों के आधार पर विभिन्न प्रकार के विधियों का प्रयोग करते है ।

जैसे:

1. कमरे में कच्चे फर्श के ऊपर आलू की एक पतली सतह बिछाकर लगभग 3-4 महीने के लिए भण्डारण करते हैं ।

2. कमरे में मचान बनाकर भी का भण्डारण करते हैं ।

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