आलू: महत्व और उपयोग | Read this article in Hindi to learn about the importance and uses of potatoes.
आज इक्कीसवीं सदी के विश्व में चावल, गेहूँ एवं मक्का के बाद आलू सर्वाधिक उपयोग किया जाने वाला चौथा प्रमुख खाद्य फसल बनकर उभरा है । वर्तमान परिदृश्य में कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार विश्व की बढ़ती जनसंख्या को कुपोषण एवं भूखमरी से मुक्ति दिलाने में आलू की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका होगी ।
दैनिक आहार में आलू का महत्व:
आलू में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, विटामीन एवं खनिज पदार्थ प्रचुर मात्रा में पाये जातें हैं । इस प्रकार प्रति 100 ग्राम खाने योग्य आलू के भाग में प्रमुख पौष्टिक तत्वों की मात्रा में कार्बोहाइड्रेट 22.9 ग्राम, प्रोटीन 1.6 ग्राम, विटामिन ‘ए’ 24.0 मि॰ग्रा॰, विटामिन ‘बी’ 17.0 मि॰ग्रा॰ विटामिन ‘सी’ 0.11 मि॰ग्रा॰ ऊर्जा 10 कैलोरी एवं खनिज पदार्थ जैसे फास्फोरस 40 मि॰ग्रा॰ लोहा 0.7 मि॰ग्रा॰ तथा पोटैशियम 24.7 मि॰ग्रा॰ मिलता है ।
आलू अब तक मनुष्य द्वारा खोजी गई किसी भी फसल से ज्यादा पौष्टिक है । आलू का सेवन जब दूध के साथ करते है तब यह स्वास्थ्यवर्धक, ऊर्जायुक्त, विटामिन एवं खनिज तत्वों से भरपूर होता है । भोजन शास्त्रियों व वैज्ञानिकों के अनुसार हमें अपने भोजन को पौष्टिक व संतुलित बनाने हेतु लगभग 300 ग्राम सब्जियां प्रतिदिन खानी चाहिए, जिसमें लगभग 100 ग्राम हरी पत्तेदार सब्जियां, 100 ग्राम आलू या अन्य जड़ वाली सब्जियां तथा 100 ग्राम अन्य प्रकार की सब्जियां जैसे टमाटर, बैन्गन, भिंडी इत्यादि का सेवन करना चाहिए ।
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आलू में पोषण तत्वों का पता लगाने के लिए अनेक शोध व अध्ययन का कार्य राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कई वैज्ञानिकों ने किये हैं और अनेक परिणाम भी कई पुस्तकों एवं पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं जिसका सविस्तार परिशिष्ट 1-7 में किया गया है । आलू के विविध गुणों एवं उपयोगिताओं को विस्तृत रूप में परिशिष्ट 8-10 में दिया गया है ।
आलू कार्बोहाइड्रेट का सर्वोत्तम स्त्रोत है जो शरीर को ऊर्जा पहुँचाने का एक सबसे अच्छा माध्यम है । कार्बोहाइड्रेट दो प्रकार का होता है । साधारण कार्बोहाइड्रेट जो त्वरित रूप से ऊर्जा प्रदान करता है तथा दूसरा जटिल कार्बोहाइड्रेट जैसे आलू में पाये जाने वाला कार्बोहाइड्रेट धीरे-धीरे ऊर्जा को छोड़ता है जिसकी वजह से रक्त में पाये जाने वाली शर्करा का स्तर सामान्य बना रहता है ।
आलू में रेशा उच्च मात्रा में पाया जाता है जो पाचन तंत्र के लिए अच्छा होता है तथा संतुष्टि प्रदान करता है एवं भूख भी कम लगती है । आलू में वसा, कोलैस्टेरॉल एवं सोडियम बहुत कम होता है । आलू में विटामिन ‘सी’ विटामिन ‘बी 6’ एवं पोटैशियम अधिक मात्रा में होता है ।
इसलिए आलू खाने से 40 प्रतिशत विटामिन ‘सी’ एवं 20 प्रतिशत पोटैशियम जो प्रतिदिन के लिए आवश्यक है प्राप्त हो जाती है । आलू खाने से 6 प्रतिशत लोहा भी प्राप्त होता है जो रक्त एवं ऑक्सीजन को एक साथ रखने के लिए आवश्यक है । आलू सब्जियों का राजा कहा जाता है । आलू का उपयोग लगभग सभी तरह के परिवार (गरीब व अमीर) में किसी न किसी रूप में किया जाता है । विश्व में आलू से सबसे अधिक व्यंजन बनायें जाते हैं ।
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भारत में लगभग 73 प्रतिशत आलू सब्जी के रूप में उपयोग किया जाता है तथा 10 प्रतिशत रोपण हेतु एवं 1 प्रतिशत से कम परिस्कृत किया जाता है । लगभग 16 प्रतिशत आलू सड़ जाता है तथा 1 प्रतिशत से भी कम आलू का निर्यात किया जाता है । हमारे देश में प्रति व्यक्ति 16 कि॰ग्रा॰/वर्ष उपयोग किया जाता है ।
जबकि इसके विपरित विश्व के अन्य देशों में (136 कि॰ग्रा॰ आलू/वर्ष पौलैंड में एवं 129 कि॰ग्रा॰ वर्ष उक्रेन में) इससे कई गुणा अधिक आलू का उपयोग किया जाता है । भारत में आलू को पशुओं को खिलाने के लिए तथा स्टार्च एवं एल्कोहल बनाने के लिए भी प्रयोग नहीं किया जाता है ।
आलू प्रति इकाई क्षेत्रफल एवं समय में अन्य सभी फसलों की तुलना में अधिक खाद्य पैदा करने की क्षमता रखता है । कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार आलू 47-60 कि॰ग्रा॰/दिन/हे॰ शुष्क पदार्थ पैदा करता है वहीं गेहूँ 18 कि॰ग्रा॰ एवं चावल 12.40 कि॰ग्रा॰/दिन/हे॰ शुष्क पदार्थ पैदा करता है ।
आलू 3 कि॰ग्रा॰/दिन/हे॰ भोज्य प्रोटीन पैदा करता है जबकि गेहूँ 2.5 कि॰ग्रा॰ एवं चावल 1.0 कि॰ग्रा॰/दिन/हे॰ भोज्य प्रोटीन पैदा करता है । आलू, गेहूँ से 3-7 गुणा और धान से चार गुणा अधिक खनिज लवण पैदा करता है । इसके अतिरिक्त आलू कार्बोहाइड्रेट, रेशा, विटामिन आदि प्रति इकाई क्षेत्रफल एवं समय में मुख्य खाद्य फसलों की तुलना में अधिक पैदा करता है ।
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खाद्यान्न फसलों की अपेक्षा आलू में पोटैशियम, फॉस्फोरस, लोहा और कैल्शियम आदि तत्व भी अधिक मात्रा में पाये जाते है । जन्तु प्रोटीन (मीट, चिकेन, बीफ, एवं दूध) की तुलना में आलू सर्वोतम वानस्पतिक प्रोटीन का स्रोत है । यदि कोई व्यक्ति 3 कि॰ग्रा॰ प्रति दिन आलू का सेवन करता है तो उसकी प्रतिदिन की ऊर्जा की पूर्ति हो जाती है ।
आलू से सम्बन्धित भ्रांतियां:
आलू को आम जन का मुख्य खाद्य बनाने के लिए आवश्यक है कि आलू से जुड़ी कुछ भ्रांतियां को पहले किया जाय ।
लोगों के मन में के सेवन को लेकर निम्नलिखित भ्रांतियां फैली हुई है:
(i) लोगों को भ्रम है कि आलू के सेवन से शरीर का मोटापा बढ़ता है जो कि बिल्कुल असत्य है । आलू में मात्र 0.1 प्रतिशत वसा पायी जाती है । आलू के सेवन से शरीर में जो वसा बढ़ती है वह आलू की न होकर आलू को पकाने व तलने में प्रयोग की गई वसा की मात्रा पर निर्भर करती है ।
(ii) लोगों का दूसरा बड़ा भ्रम है कि आलू के सेवन से लोग डायबीटीज के मरीज हो जाते है परन्तु पश्चिमी देशों में डायबीटीज के रोगियों को वहाँ के चिकित्सक कम कैलोरी वाले खाद्य पदार्थ के रूप में आलू के सेवन की सलाह देता है ।
(iii) लोगों का मानना है कि आलू में एल्कोलायड जैसे सोलेनीन एवं चैकोनीन नामक तत्व पाये जाते हैं जो शरीर के लिए हानिकारक एवं नुकसानदेह होता है । लेकिन इसके साथ यह भी जानना जरूरी है कि यह हानिकारक तत्व सिर्फ आलू के हरे कंदों में ही पाया जाता है, जिनका सेवन नहीं करना चाहिए।
(iv) लोगों का भ्रम है कि खाद्यान्न, मीट और दूध की तुलना में आलू में बहुत कम मात्रा में पोषक तत्व पाये जाते है, जो कि सत्य से बिल्कुल परे है । प्रयोगों से सिद्ध हो चुका है कि आलू अन्य उपभोग में किये जाने वाले खाद्य पदार्थ से किसी मायने में कमतर नहीं है ।
आलू के प्रसंस्कृत उत्पाद:
आज विकसित देशों के साथ-साथ विकासशील देशों में भी आलू के प्रसंस्कृत उत्पादों के सेवन का चलन जोरों से बढ़ रहा है । भारत में पिछले एक दशक से आलू के प्रसंस्कृत उत्पादों का सेवन में बढ़ोतरी हुई है । आलू से महंगी चिप्स, भुजिया, बेबी, फुड, सूप, सोंस, आलू आटा, ग्रेनूलस आदि प्रमुख प्रसंस्कृत उत्पाद तैयार किये जाते है । आलू के आटे का उपयोग बड़ी मात्रा में बिस्कुट बनाने के प्रयोग में लाया जाता है ।
इसके अतिरिक्त आलू का बड़ी मात्रा में प्रयोग समोसा, पेटीज और डोसा आदि फास्ट फूड बनाने में उपयोग किया जाता है । भारत में कुल फल एवं सब्जी उत्पादन का मात्र 5-6 प्रतिशत प्रसंस्करण किया जाता है तथा उनमें से आलू का प्रसंस्करण मात्र 1.0 प्रतिशत है, जबकि विकसित देशों में 40-80 प्रतिशत तक आलू का उपयोग प्रसंस्कृत रूप में किया जाता है ।
उदाहरणस्वरूप अमेरिका में कुल आलू उत्पादन का 60 प्रतिशत नीदरलैण्ड में 47 प्रतिशत, चीन में 22 प्रतिशत तथा भारत में 1 प्रतिशत से भी कम आलू प्रसंस्कृत किया जाता है । हाल के वर्षों में तेजी से बढ़ रहे शहरीकरण प्रति व्यक्ति आय बढ़ने, पर्यटन, कामकाजी महिलाओं की संख्या में वृद्धि इत्यादि कारणों से आलू प्रसंस्करण में भारी वृद्धि हो रही है । आलू का कन्द देखने में तो छोटा लगता है, परन्तु पोषक तत्वों का कोषागार होने के कारण यह देश की बढती आबादी को कुपोषण से बचाने एवं खाद्य सुरक्षा का बहुत बड़ा साधन बन सकता है ।