आलू में खरबूजे कैसे नियंत्रित करें? | Read this article in Hindi to learn about how to control weeds in potato.

देश की बढ़ती हुई जनसंख्या से उत्पन्न खाद्‌य संकट को हल करने में आलू का विशिष्ट योगदान है । आलू का उपयोग केवल सब्जी के रूप में ही नहीं, बल्कि आलू चिप्स, पापड़, बड़ियाँ, स्टार्च, आलू का आटा आदि अनेक उत्पादों के रूप में वर्ष भर किया जाता है ।

हमारे दश में आलू के कुल क्षेत्रफल का 82 प्रतिशत मैदानी तथा 18 प्रतिशत पहाड़ी क्षेत्रों में खेती की जाती है । आलू की उन्नत किस्मों से अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए अच्छे बीज उचित खाद एवं पानी का प्रबंधन तथा फसल सुरक्षा की व्यवस्था होना अतिआवश्यक है ।

आलू की बुआई कतार में 60-75 सें॰मी॰ की दूरी पर की जाती है । साथ ही खाद एवं पानी को भी इसे ज्यादा जरूरत होती है । अत: आवश्यक है कि आलू की अच्छी पैदावार के लिये इन खरपतवारों का समय पर नियंत्रण किया जाय ।

प्रमुख खरपतवार:

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आलू की फसल में मुख्य रूप से एक वर्षीय चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार अधिक पाये जाते हैं । लेकिन कहीं-कहीं कुछ सकरी पत्ती वाले तथा मोथा कुल के खरपतवार भी मिलते हैं । चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों में बथुआ, हिरणखुरी, सेंजी, मकोय, बनप्याजी, कृष्णनील, पत्थरचट्‌टा, अंकरी, वनसोया, कासनी, जंगली, चौलाई एवं जंगली लूसर्न है, जबकि सकरी पत्ती वाले खरपतवारों में जंगली जई, दूब घास, बनगेहूँ तथा घास कुल में मोथा आमतौर से पाये जाते हैं ।

खरपतवार नियंत्रण:

आलू में खरपतवार मुख्य फसल से आवश्यक पोषक तत्व एवं नमी के लिए प्रतिस्पर्धा करके इनका एक बड़ा हिस्सा जमीन से शोषित कर लेते हैं । साथ ही फसल को आवश्यक प्रकाश तथा स्थान से भी वंचित रखते हैं । इससे मुख्य फसल की बढ़वार कम हो जाती है तथा पैदावार में काफी कमी आ जाती है ।

इसके अतिरिक्त खरपतवार आलू में मिट्‌टी चढ़ाते तथा खुदाई करते समय भी बाधा पैदा करते हैं तथा समय एवं खर्च को बढ़ाते हैं । आलू की फसल से खरपतवार लगभग 20-40 कि०ग्रा० नेत्रजन, 7-8 कि०ग्रा० फॉस्फोरस तथा 15-50 कि०ग्रा० पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से शोषित करते हैं ।

इसके अतिरिक्त कुछ खरपतवार जैसे धतुरा जंगली चौलाई आलू में लगने वाले रोगों एवं कीड़ों के जीवाणुओं को भी आश्रय देते हैं । इन खरपतवारों के कारण आलू की उपज में 20-40 प्रतिशत तक की कमी आ जाती है ।

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आलू पर किये गये अनुसंधानों के आंकड़ों के अनुसार यदि खरपतवारों से कम से कम नुकसान 10 प्रतिशत ही माने तो प्रति वर्ष हमारे देश में लगभग 1.5 मिलियन टन आलू का नुकसान होता है । आलू का जमाव देर से होता है यह उगने में लगभग 10-15 दिन ले लेती है । साथ ही कतारों के बीच खाली स्थान, खाद एवं पानी की अधिक आवश्यकता खरपतवारों के बढ़ने में सहायक होती है ।

आलू की फसल से अच्छी पेदावार के लिए आवश्यक हे कि खेते को शुरू से ही खरपतवार मुक्त रखा जाय । अधिक पैदावार के लिए बुआई के बाद 20-40 दिन तक फसल की खरपतवार मुक्त रखना चाहिए । आलू के कतारों के बीच जहाँ खरपतवार अधिक उगते हैं, वहाँ 5 – 10 सें॰ मी॰ सूख पुआल, सूखी घास, गन्ने की पत्तियाँ बिछा देने से खरपतवारों को प्रकाश नहीं मिल पाता है तथा खरपतवार के पौधों पीले पड़ कर सूख जाते हैं ।

आलू फसल में खरपतवारों के प्रभावी नियंत्रण के लिये ‘खुरपी’ एवं ‘कुदाली’ को भी उपयोग में लाया जाता हैं । बुआई के 15-20 दिन बाद ‘खुरपी’ से खरपतवारों को निकाल कर खेत से बाहर कर देनी चाहिए । पुन: दुबारा बुआई के 30-35 दिन बाद जब फसल के पौधे 10-15 सें॰मी॰ के हो जायं तो निकाई के पश्चात् नत्रजनीय उर्वरकों का प्रयोग कर पेड़ों पर मिट्‌टी चढ़ा देनी चाहिए ।

इसके बाद भी अगर खरपतवार निकलते हैं तो वे फसल के पौधों द्वारा ढक लिये जाते हैं तथा समुचित मात्रा में प्रकाश नहीं मिलने के कारण उनका बढ़वार नहीं ही पाता है, जिससे फसल को काई विशेष नुकसान नहीं होता है ।

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खरपतवारों पर काबू पाने की यह सरल एवं प्रभावी विधि है, परन्तु इस विधि में समय अधिक लगता है तथा प्रति इकाई क्षेत्र में खर्च भी अधिक लगता है । खरपतवारनाशी रसायनों का प्रयोग करके कम लागत में समय से खरपतवारों को प्रारंभिक अवस्था में ही प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है ।

आलू में प्रयोग होने वाले खरपतवारनाशी रसायनों का विस्तृत विवरण सारणी-1 में दिया गया है:

 

 

इन रसायनों की आवश्यकता मात्रा का 600-700 लीटर पाना म घाल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए । रसायनों का छिड़काव करते समय ध्यान रखें कि खत में नमी का अभाव नहीं हो अन्यथा खरपतवारों का प्रभावी नियंत्रण नहीं हो पायेगा । रसायनों के छिड़काव के 40 दिन बाद फसल पर मिट्टी चढा दें ।

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