मिट्टी: परिभाषा और गुण | Read this article in Hindi to learn about:- 1. मृदा की परिभाषा (Definition of Soil) 2. मृदा की उत्पत्ति (Origin of Soil) 3. संगठन (Composition) 4. वर्गीकरण (Classification) 5. निर्माण की विधि (Procedure of Formation) 6. मृदा (Properties) 7. टैक्सचर (Texture) 8. संरचना एवं छिद्रता (Structure Porosity) 9. परिच्छेदिका (Profile).
Contents:
- मृदा की परिभाषा (Definition of Soil)
- मृदा की उत्पत्ति (Origin of Soil)
- मृदा का संगठन (Composition of Soil)
- मृदा का वर्गीकरण (Classification of Soil)
- मृदा निर्माण की विधि (Procedure of Soil Formation)
- मृदा के गुण (Properties of Soil)
- मृदा का टैक्सचर (Soil Texture)
- मृदा संरचना एवं छिद्रता (Soil Structure Porosity)
- मृदा परिच्छेदिका (Soil Profile)
1. मृदा की परिभाषा (Definition of Soil):
पृथ्वी की सबसे ऊपरी सतह की उथली परतों को मृदा (Soil) या मिट्टी कहते हैं, जिसका निर्माण मिट्टी से ठीक नीचे चट्टानों के विघटन (Decomposition) और उन पर कार्बनिक पदार्थों (Organic Matter) के फलस्वरूप होता है । इसमें अधिकांश वनस्पतियाँ और जंतु स्थायी रूप से निवास करते हैं ।
मृदा (Soil) में कार्बनिक (Organic) एवं अकार्बनिक (Inorganic) पदार्थ पाये जाते हैं । अत: मृदा केवल खनिज (Mineral) कणों (Particles) का ही समूह नहीं है । इसका अपना जैवीय वातावरण भी होता है । अत: मृदा की जगह जटिल मृदा (Complex Soil) कहलाती है ।
2. मृदा की उत्पत्ति (Origin of Soil):
ADVERTISEMENTS:
जल, वायु आदि की भाँति मृदा (Soil) या मिट्टी भी जीव धारियों के लिए परम आवश्यक कारक है । अधिकांश वनस्पति और जन्तुओं का मिट्टी में स्थायी निवास है साधारणत: पृथ्वी के ऊपरी सतह को मृदा की संज्ञा से सम्बोधित करते हैं ।
परंतु ऊपरी परत के अतिरिक्त मिट्टी निर्माण में मौसम, कार्बनिक पदार्थों (Organic Matter) और जीवधारियों का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है । भूमि की गहराई में कुछ इंच से लेकर लगभग बीस फुट की गहराई में भिन्न-भिन्न मात्रा में पाया जाता है ।
इसमें विभिन्न प्रकार के सूक्ष्म जीव (Micro-Organism) पाए जाते हैं, जिससे ह्यूमस का निर्माण होता है । इसमें ऑक्सीजन की मात्रा अधिक होती है । मृदा (Soil) का निर्माण चट्टानों के भौतिक, रासायनिक तथा जैविक अपक्षय (Weathering) से होता है ।
जिस चट्टान से मृदा (Soil) का निर्माण होता है, जिसका रासायनिक-संगठन (Chemical Composition) भी वैसा ही होता है । एल्युमीनियम (Aluminium), पोटैशियम (Potassium), सोडियम (Sodium), तथा मैंगनीज (Mangnese) भी खनिज युक्त मृदा में पाये जाते हैं ।
ADVERTISEMENTS:
कैल्शियम (Calcium) तथा मैग्नीशियम (Maganesium) चूना युक्त चट्टानों से निर्मित मृदा (Soil) में पाए जाते हैं । ये सभी पोषक तत्व (Nutritional Element) सूक्ष्म जीवों (Microbes) की वृद्धि तथा उपापचयी (Metabolic) क्रियाओं में सहायक होते हैं ।
मृदा (Soil) का कार्बनिक (Organic) भाग मुख्य रूप से पादप तथा प्राणी जगत के सदस्यों से मिलकर बनता है, जिससे मृदा (Soil) में निरंतर अपघटन होता है । जिससे ह्यूमस का निर्माण होता है ।
मृदा (Soil) में पाये जाने वाले सूक्ष्म जीव (Microbe) कोशिका (Cells) के अकार्बनिक व कार्बनिक (Inoganic and Organic) रसायनों (Chemicals) का निर्माण करते हैं, उदाहरण बहुशर्करा । यह रसायन (Chemical) मृदा (Soil) के कणों (Particles) को आपस में बांधते हैं ।
कवक (Fungi), एक्टीनोमाइसीटीज (Actinomycetes) आदि सजीव (Livings) इस परिवर्धन (Development) में सहायक होते हैं । सूक्ष्म जीव (Microbes) मृदा कणों (Soil Particles) की सतह पर या अन्तर कणों के खाली स्थान में निवास करते हैं ।
ADVERTISEMENTS:
वाष्पशील रसायन जैसे कि मीथेन (Methane), हाइड्रोजन सल्फाइड H2S, अमोनिया (Ammonia) तथा हाइड्रोजन (Hydrogen) इन कणों (Particles) के मध्य अधिकता से पाये जाते हैं ।
3. मृदा का संगठन (Composition of Soil):
मृदा के विभिन्न घटक निम्न प्रकार के हैं:
(1) खनिज पदार्थ (Mineral Matter)- यह खनिज पदार्थ चट्टानों के टूटने से बनते हैं ।
(2) मृदीय कार्बनिक पदार्थ या ह्यूमस (Soil Organic Matter or Humus)- ये पदार्थ जीवों के मृत हो जाने पर उनके विघटन के परिणामस्वरूप बनते हैं ।
(3) मृदीय जल एवं मृदीय घोल (Soil Water and Soil Solution)- मृदीय जल (Soil Water) एक घोल के रूप में होता है क्योंकि इसमें खनिज (Mineral) एवं गैसें घुली रहती हैं ।
मृदा जल (Soil Water) कैपिलरी (Capillary) के रूप में मिट्टी के कणों (Soil Particles) द्वारा हेल्ड-अप (Held-Up) रहता है । यह जल वास्तव में एक घोल स्वरूप है । अत: यह पादपों (Plants) के लिए खनिजों का स्त्रोत भी होता है ।
(4) जीव तन्त्र (Biological System)- मृदा में विभिन्न प्रकार के लघु एवं गुरू जीव पाये जाते हैं । जैसे जीवाणु, कवक, शैवाल, केंचुआ, निमैटोड्स आदि ।
(5) मृदा-वायुमंडल (Soil Atmosphere)- मृदा के कणों (Particles) के बीच में जो स्थान होता है । उसमें हवा भरी रहती है । इस हवा में CO2, अधिक O2 कम होती है ।
डोकुचायेव (Dokuchayev 1990) के अनुसार Soil को एक सूत्र से भी प्रदर्शित कर सकते हैं ।
S = (g.e.b.) Δt
S = soil (मृदा)
g = geology (भूगर्भ-विज्ञान)
e = environment (वातावरण)
b = biological effect (जैवीय प्रभाव)
t = time (समय)
4. मृदा का वर्गीकरण (Classification of Soil):
मृदा (Soil) का वर्गीकरण निम्न प्रकार से किया जाता है:
वाहित मिट्टी (Transported Soil):
जब बनी हुई मिट्टी किसी दूसरे स्थान पर चली जाती है । तब इसे वाहित मिट्टी (Transported Soil) कहते हैं ।
वाहित मिट्टी (Transported Soil) एजेन्टों के आधार पर निम्न प्रकार की होती है:
(a) जलोद मृदा (Alluvial Soil)- यह मिट्टी (Soil) एक स्थान से दूसरे स्थान पर जल द्वारा जाती है ।
(b) अवशिष्ट मृदा (Residual Soil)- जब मृदा (Soil) बनने की सम्पूर्ण प्रक्रिया (Process) अर्थात् अपक्षीणन (Weathering) मृदा विकास (Pedogenesis) उसी स्थान पर होती है । तब मिट्टी उसी स्थान पर रह जाती है । इस प्रकार की मृदा को अवशिष्ट मिट्टी (Residual Soil) कहते हैं ।
(c) गुरुत्वाकर्षणीय मृदा (Gravitational Soil)- यह पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण द्वारा जाती है ।
(d) वातोढ़ मृदा (Eolian Soil)- यह हवा के द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान को जाती है ।
(e) बर्फीली मृदा (Glacial Soil)- यह बर्फीले तूफानों द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान को जाती है ।
5. मृदा निर्माण की विधि (Procedure of Soil Formation):
मिट्टी का निर्माण एक जटिल (Complex) प्राकृतिक प्रक्रिया है जिसमें अनेकों यांत्रिकी (Mechanical) कारकों (Factors) के साथ सूक्ष्म जीवों (Microbes) जैसे बैक्टीरिया (Bacteria) और कवक (Fungi) का महत्वपूर्ण योगदान होता है । पृथ्वी की सबसे ऊपरी चट्टानों के खनिज पदार्थ पृथ्वी पर उपस्थित होते हैं ।
इनका ऑक्सीकरण (Oxidation) अनेक प्रकार के सूक्ष्मजीवियों (Microbes) द्वारा किया जाता है । इन खनिज पदार्थों के ऑक्सीकरण (Oxidation) द्वारा ही मृदा का निर्माण होता है । इसके अतिरिक्त कठोर चट्टानों के अपक्षय (Leaching) के कारण होता है ।
तापमान (Temperature) के घटने-बढ़ने से चट्टानें सिकुड़ती तथा फैलती हैं जिससे वे फट जाती हैं और उनमें दरारें पड़ जाती है । वर्षा (Rain) के दबाव एवं वायु (Wind) के बहुत अधिक तेजी से चलने के कारण इन दरारों से चट्टानें टूटकर नीचे गिर जाती है और छोटे-छोटे टुकड़ों में विभाजित हों जाती है ।
चट्टानों के ऊपर तेज गति से बहता हुआ जल चट्टानों के टुकड़ों को अपने साथ ले जाता है । पानी की गति के साथ चट्टानों के टुकड़े लगातार आपस में रगड़ खाते रहते हैं, जिनसे छोटे-छोटे टुकड़े तथा सूक्ष्म कणों (Particles) का निर्माण होता है ।
6. मृदा के गुण (Properties of Soil):
मृदा (Soil) के गुणों का अध्ययन निम्न प्रकार से किया गया है:
(A) भौतिक गुण (Physical Properties):
मृदा (Soil) के कणों के आकार के अनुसार भौतिक गुणों में मिट्टियाँ निम्न प्रकार की होती हैं:
(1) बलुई मिट्टी (Sandy Soil):
इस मिट्टी में बालू की अधिक मात्रा होती है, जिनके बीच वायु (Air) प्रचुर मात्रा में रहती है । यह मिट्टी जल (Water) बहुत तेजी के साथ सोखती है, किंतु जल तीव्रता के साथ रिस (Percolate) कर नीचे चला जाता है ।
अर्थात् इस मिट्टी के कणों में जल धारण क्षमता (Water Holding Capacity) बहुत कम होती है । बालू (Sand) के कणों में खनिज लवण (Mineral Salt) भी नहीं रुक पाते हैं । अत: यह मिट्टी पौधों के लिए उपयोगी नहीं होती है ।
इस मिट्टी (Soil) में लगभग 70 से 80 प्रतिशत तक रेत और लगभग 10 प्रतिशत प्रत्येक के अनुपात से एल्यूमीनियम सिलीकेट (Aluminium Silicate) के कण होते हैं । इसमें पोषक तत्व भी बहुत कम होते हैं ।
(2) दोमट मिट्टी (Loamy Soil):
इस मिट्टी में बालू (Sand) एवं चिकनी मिट्टी (Clay) के कणों का लगभग बराबर मिश्रण होता है । यह मिट्टी पौधों की वृद्धि के लिए सर्वोत्तम होती है । इस मिट्टी के कणों में बहुत अधिक जल धारण क्षमता होती है ।
यह पानी (Water) की पर्याप्त मात्रा को रोके रहती है और इसमें वायु (Air) संचार भी भली-भाँति होता है । इस मिट्टी के कोशिकत्व (Capillary) विधि द्वारा जल (Water) पौधे की जड़ों (Roots) से प्राप्त होता रहता है ।
(3) चिकनी मिट्टी (Clay Soil):
इस मिट्टी (Soil) में कण (Particles) महीन होते हैं और पास-पास स्थित होने के कारण मिट्टी (Soil) कठोर (Hard) हो जाती है । इस मिट्टी में वायु अवकाश (Air Spaces) कम होते हैं, जिसके कारण वायु (Air) का सुचारू रूप से संचय (Store) नहीं होता है तथा ये मिट्टी शीघ्र ही जल संतृप्त (Water Saturated) हो जाती है ।
मिट्टी (Soil) के कणों (Particles) में जल धारण (Water Holding) क्षमता कम होती है और इससे होकर जल आसानी से नीचे की ओर रिसता नहीं है । ये मिट्टी (Soil) पौधों (Plants) के लिए अधिक उपयोगी नही होती है ।
इस मिट्टी (Soil) में एल्यूमीनियम सिलिकेट (Aluminium Silicate) के कण (Particles) पाए जाते हैं । इसमें क्ले या एल्युमीनियम सिलिकेट 30 प्रतिशत से अधिक होता है ।
(B) मृदा के रासायनिक गुण (Chemical Properties of Soil):
मृदा के रासायनिक गुणों को दो प्रकार में बाटा गया है:
(1) खनिज पदार्थ (Mineral Matter in Soil):
मिट्टी (Soil) में अनेक प्रकार के खनिज (Mineral) लवण घुलित अवस्था में पाये जाते हैं । जिनका अवशोषण (Absorption) पौधों की जडों (Roots) द्वारा किया जाता है । विभिन्न प्रकार के खनिज तत्वों (Mineral Elements) की मात्रा भिन्न होती है । मिट्टी (Soil) में घुले हुए कुछ खनिज (Minerals) तत्वों (Elements) में धनावेश (+ve Charge) होता है ।
जैसे कैल्शियम (Ca), पोटैशियम (K), सोडियम (Na), मैग्नीशियम (Mg), आयरन (Fe), मोलीब्डेनम (Mo), जिंक (Zn), कॉपर (Cu), हाइड्रोजन (H) तथा अमोनिया (NH3), कुछ तत्वों (Elements) में ऋण आवेश (-ve Charge) होता है । जैसे नाइट्रेट (NO3), नाइट्राइट (NO2), क्लोराइड (Cl), बाइकार्बानट (HCO3), सल्फेट (SO4) तथा फॉस्फेट (PO4) आदि ।
ये सभी तत्व पौधे की जडों (Roots) द्वारा सान्द्रता (Concentration) के अनुसार अवशोषित (Absorb) किये जाते हैं जो पौधे की वृद्धि के लिए आवश्यक होते हैं । कभी-कभी मिट्टी में लवणों की अधिक सान्द्रता (Concentration) होती है । ऐसी मिट्टी में लवणोद्भिद (Halophytes) पौधे उगते हैं ।
(2) मृदा में कार्बनिक पदार्थ (Organic Matter in Soil):
मृदा (Soil) में 10% तक कार्बनिक पदार्थ (Organic Matter) पाये जाते हैं, जो पौधों के लिए अत्यंत उपयोगी होते हैं । कार्बनिक पदार्थ (Organic Matter) पौधों एवं अन्य जीवधारियों की मृत्यु के पश्चात् जीवाणुओं (Bacteria) एवं कवकों (Fungi) द्वारा अपघटन किये जाने के फलस्वरूप प्राप्त होते हैं, जो मिट्टी में मिले रहते है ।
इस प्रकार के बने हुए कार्बनिक पदार्थ ह्यूमस (Humus) का निर्माण करते हैं । इनके कारण मिट्टी (Soil) का रंग भूरा (Brown) हो जाता है । इसकी मात्रा शीर्ष मृदा (Top Soil) में अधिक होती है, जिसके कारण मिट्टी (Soil) के कणों (Particles) में अधिक जल धारण क्षमता (Water Holding Capacity) पायी जाती है ।
(C) जटिल मृदा एवं इसके घटक (Complex Soil and its Components):
जटिल मृदा के विभिन्न घटक व गुण निम्नलिखित हैं:
(1) खनिज पदार्थ (Mineral Matter),
(2) जीवाणु पदार्थ (Organic Matter),
(3) मृदा जल (Soil Water),
(4) मृदा वायु (Soil Air),
(5) मृदा घोल (Soil Solution),
(6) मृदा नमी (Soil Moisture),
(7) मृदा स्पर्धा (Soil Reactions),
(8) मृदीय खाद्य पदार्थ (Soil Nutrients),
(9) मृदीय ताप (Soil Temperature) ।
(1) खनिज पदार्थ (Mineral Matter):
मृदा विज्ञान की अन्तराष्ट्रिय संस्था (International Society of Soil Science) के कणों (Particles) के परिमाप के आधार पर मृदा (Soil) को निम्न भागों में बाँटा गया है:
1. चिकनी मृदा (Clay Soil)- 0.002 मि. मी. से कम
2. गाद (Silt)- 0.02 मि. मी. से 0.002 मि. मी. से कम
3. बारीक बालू (Fine Sand)- 0.20 मि. मी. से 0.020 मि. मी. से कम
4. मोटी बालू (Coarse Sand)- 2.0 मि. मी. से 0.20 मि. मी. से कम
5. बारीक बजरी (Finel Gravel)- 5.0 मि. मी. से 2.00 मि. मी. से कम
6. बजरी (Gravel)- 5.0 मि. मी से अधिक
(2) जीवाणु पदार्थ (Organic Matter):
जन्तुओं और पौधों की मृत्यु के बाद उनके कार्बनिक (Organic) पदार्थों का निम्नानुसार अपघटन होता है । जिससे करकट (Litter) बनता है । इसमें ताजे मृतक कार्बनिक पदार्थ (Fresh Dead Organic Matters) होते हैं । इस करकट (Litter) के नीचे पिछली ऋतु के आंशिक रूप से अपघटित कार्बनिक पदार्थ पाये जाते हैं ।
इसे आलेषन (Duff) कहते हैं । इसके अतिरिक्त सूक्ष्मजीवियों (Microbes) की विभिन्न क्रियाओं द्वारा करकट (Litter) एवं आलेपन (Dull) अन्त में गहरे रंग के बारीक एवं रवाहीन (Amorphous) कार्बनिक पदार्थ (Organic Matter) में परिवर्तित हो जाते हैं, जिसे ह्यूमस (Humus) कहते हैं ।
(3) मृदा जल (Soil Water):
यह स्वतंत्र जल होता है । जो धीरे बूंद-बूंद करके मृदा (Soil) में छनता रहता है और नीचे तल में जाकर एकत्रित हो जाता है । कोशिका जल मृदा (Soil) में पायी जाने वाली कैपिलरीज (Capillaries) में पाया जाता है । यह जल पादपों को प्राप्त होता है ।
आर्द्रता जल मृदा कणों पर अधिशोषित (Absorbed) हो जाता है । इस जल को पादप नहीं कर सकते हैं । जल-वाष्प मृदीय अन्तर स्थानों में होता है । जल किसी भी जगह के पादप समूह (Plant-Group) के विकास में सहायक होता है । यह एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा मृदीय खनिज पदार्थ के रूप में आ जाते हैं और पादपों के प्राप्त होते हैं ।
(4) मृदा वायु (Soil Air):
मृदा (Soil) के कणों (Particles) के बीच वायु अवकाश (Air Spaces) पाये जाते हैं, जिनमें वायु (Air) उपस्थित रहती है । जडें (Roots) श्वसन क्रिया में इसी वायु (Air) को ग्रहण करती है । अर्थात् मिट्टी में वायु का उपस्थित होना बहुत महत्वपूर्ण होता है ।
जडों (Roots) में श्वसन (Respiration) के साथ-साथ जल अवशोषण (Water Absorption) एवं खनिज तत्वों (Mineral Elements) का अवशोषण भी तेजी के साथ होता है । किन्तु जिन मुदाओं (Soils) में ऑक्सीजन (O2) की कमी होती है ।
उनमें ये क्रियाएं बहुत धीमी होती हैं । मृदा (Soil) में कार्बनडाईऑक्साइड (CO2), का एकत्रित होना हानिकारक होता है । इन गैसों का उपस्थित होना मृदा (Soil) के गठन (Texture) पर निर्भर करता है ।
जब मिट्टी में वायु की मात्रा कम होती है । तो वह मिट्टी जल संतृप्त (Saturated) हो जाती है । जिससे पौधों की जडों (Roots) पर बुरा प्रभाव पड़ता है और अंत में पौधे मर जाते हैं ।
(5) मृदा घोल (Soil Solution):
मृदा घोल में मृदा (Soil) पानी में घुलकर धीरे-धीरे जडों द्वारा शोषित (Absorb) हो जाती है तथा जडों (Roots) को मिट्टी से जमा देती है ।
(6) मृदा नमी (Soil Moisture):
पादप वर्षा मिट्टी (Plants Rain) का जल एवं ओस की बूँदें बहुत कम अवशोषित कर पाते हैं । पादप मुख्य रूप से जल अवशोषण मृदा से करते हैं ।
मृदीय जल 6 प्रकार का होता है:
(i) गुरूत्वाकर्षणीय जल (Gravitational Water),
(ii) कोशिका जल (Capillary Water),
(iii) आर्द्रत जल (Hygroscopic Water),
(iv) रासायनिक या क्रिस्टलीय जल (Chemical or Combined Water),
(v) जलवाष्प (Water Vapours),
(vi) रन-ऑफ जल (Run-Off Water) ।
(7) मृदा-स्पर्धा (Soil Reactions):
मृदा (Soil) अम्लीय (Acidic) क्षारीय या न्यूट्रल (Alka-Line or Neutral) हो सकती है । पादपों की वृद्धि एवं उत्पादकता मुख्य रूप से मृदा (Soil) की अम्लीयता (Acidity) पर आधारित होती है ।
मृदा स्पर्धा (Soil Reactions) पानी के अवशोषण (Absorption) तथा खनिजों (Minerals) की प्राप्तता को प्रभावित करती है क्योंकि यह जड़ों की झिल्ली (Membrane) की पारगम्यता (Permeability) को प्रभावित करती है ।
(8) मृदीय खाद्य पदार्थ (Soil Nutrients):
पादपों के अकार्बनिक (Inorganic) भोजन का मुख्य स्रोत (Soil Nutrients) है । विभिन्न पादपों (Plants) की वृद्धि के लिए विभिन्न प्रकार के आयनों (Ions) की आवश्यकता होती है ।
ह्यूमस जो कि जीवांशों के आंशिक विघटन (Partial Decomposition) से बनता है । मृदा (Soil) के कार्बनिक (Organic) एवं अकार्बनिक (Inorganic) पदार्थ दोनों का मुख्य स्त्रोत है । मृदा (Soil) का उपजाऊपन सीधा ह्यूमस की मात्रा पर आधारित होता है ।
(9) मृदीय-ताप (Soil-Temperature):
मृदीय ताप (Soil Temperature) के अन्य कारकों के साथ-साथ मृदा (Soil) के गुणों को प्रभावित करता है । कम तापक्रम पर जड़ों द्वारा पानी एवं खनिजों के अवशोषण की दर कम हो जाती है । मूलक्षति जाड़े के दिनों में कम ताप होने के कारण ही होती है ।
अत: ठंडी मिट्टी (Cold Soil) कार्षिकी हो जाती है । मृदीय ताप सूर्य-रोशनी की तीव्रता (Intensity) एवं वायु-ताप के ताप से प्रभावित होता । इस के साथ ही साथ प्रकाश का समय (Duration) भी मृदीय ताप को प्रभावित करता है ।
7. मृदा का टैक्सचर (Soil Texture):
विभिन्न परिमाप वाले कण (Particles) आपस में मिलकर विभिन्न प्रकार की मृदा (Soil) बनाते हैं ।
इस आधार पर मृदा के अग्रलिखित समूह बनाए गये हैं:
(1) बलुई मिट्टी (Sandy Soil)- 85% मृदा बाल्टर + 15% चिकनी मिट्टी या गाद
(2) बलुई दोमट (Loamy Soil)- 70% बालू + 30% चिकनी मिट्टी या गोद
(3) गाद (Silt)- 90% गाद + 10% बालू
मृदा टैक्सचर (Soil Texture) सीधे ही मृदा जल (Soil Water) के संगठन थे प्रभावित करता है । साथ ही साथ यह मूल वृद्धि एवं मृदा वायु को भी प्रभावित करते हैं । यह मृदा (Soil) के खाद्य-स्तर (Nutritional-State) को भी प्रभावित करता है ।
8. मृदा संरचना एवं छिद्रता (Soil Structure Porosity):
प्रकृति (Nature) में मृदा संग्रहित (Aggregates) रूप में होती है । अत: इस प्रकार के मृदीय कणों (Soil Particle) का परिणाम (Size) बढ़ जाता है ।
इनके आधार पर मृदा संरचना निम्न प्रकार की होती है:
(i) प्लेट-नुमा (Plate-Like),
(ii) ब्लॉक-नुमा (Block-Like),
(iii) प्रिज्य-नुमा (Prism-Like),
(iv) गोलाकार (Spheroidal) ।
9. मृदा परिच्छेदिका (Soil Profile):
मृदा परिच्छेदिका का अध्ययन भूमि की गहराई की खड़ी काट (V.S.) द्वारा किया जाता है । इसे भूमि के विभिन्न होरीजॉन्स (Different Horizons) दिखाई देते हैं ।
मृदा परिच्छेदिका (Soil Profile) में पाये जाने वाले विभिन्न होरीजॉन्स (Horizons) निम्न प्रकार के होते हैं:
(A) होरीजॉन ए (Horizon A):
यह भूमि का सबसे ऊपरी स्तर (Upper Layer) होता है, जिसे ऊपरी मृदा (Top Soil) कहते हैं । इस स्तर (Layer) की मोटाई अधिक होती है । इस होरीजॉन (Horizon) में जन्तुओं (Animals) एवं पौधों (Plants) के मृत आंगों, इनके मलमूत्र, सड़ी गली पत्तियों तथा अन्य कर्बनिक पदार्थों (Organic Matter) के कवकों (Fungi) तथा जीवाणुओं (Bacteria) द्वारा अपघटित (Decompose) पदार्थ पाये जाते हैं, जो ह्यूमस (Humus) का निर्माण करते हैं ।
ह्यूमस के मिल जाने से मिट्टी (Soil) अधिक उपजाऊ हो जाती है । मिट्टी प्राय: बलुई (Sand) होती है । इसमें वायु (Air) प्रचुर मात्रा में उपस्थित होती है, जिससे पौधों की जड़े (Roots) आसानी से उगती हैं ।
(B) होरीजॉन बी (Horizon B):
होरीजॉन ए’ (Horizon A) के नीचे हल्के रंग का अधो भूमि स्तर पाया जाता है । इस स्तर में वर्षा का जल धीरे-धीरे रिसता हुआ एकत्रित होता रहता है । यह चिकनी मिट्टी (Clay Soil) का बना होता है जिसमें पौधों की जड़ें (Roots) आसानी से वृद्धि नहीं कर पाती हैं ।
इस भाग में मिट्टी के सूक्ष्म कण (Micro Particles) खनिज लवण (Mineral Salts) पाये जाते हैं, किंतु ह्यूमस (Humus) तथा वायु (Air) की मात्रा कम होती है जिसमें केवल बड़े-बड़े वृक्षों (Trees) की गहराई में जाने वाली जडें (Roots) पहुंच पाती हैं ।
(C) होरीजॉन सी (Horizon C):
यह मृदा परिच्छेदिका (Soil Profile) का सबसे नीचे का स्तर होता है । इस स्तर की मिट्टी सख्त चट्टान की भाँति होती है जिसमें ह्यूमस (Humus) सूक्ष्म जीवों (Micro Organisms) तथा मिट्टी के कणों का अभाव होता है । जिससे पौधों की जूड़े (Roots) इस भाग में उगती नहीं हैं ।