स्टेविया: मतलब, महत्व और खेती | Read this article in Hindi to learn about:- 1. स्टीविया का अर्थ (Meaning of Stevia) 2. स्टीविया का महत्व (Importance of Stevia) 3. खेती (Cultivation).
स्टीविया का अर्थ (Meaning of Stevia):
स्टीविया रूबिडियाना, पैरागाय और ब्राजील में पाया जाने वाला कम्पोजिटी परिवार का एक झाड़ीनुमा पौधा है । इसका मूल उत्पत्ति स्थल पूर्वी पेरूग्वे है जबकि यह अमेरिका, ब्राजील, जापान, कोरिया, ताईवान तथा दक्षिण पूर्व एशिया में खूब पाया जाता है । इससे चीनी तो नहीं बनाई जा सकती लेकिन उसमें विद्यमान मिठास चीनी से 300 गुणा अधिक मीठी होती है ।
इसकी मिठास इसमें विद्यमान स्टीवासाइड टरपीनाइड के कारण होती है । अतः स्वास्थ्य के प्रति जागरूक व्यक्ति जो चीनी खाना पसंद नहीं करते उनकी चाय की मिठास के लिये स्टीविया को हर्बल मिठास के रूप में प्रयोग किया जा सकता है ।
स्टीविया के बारे में विस्तार से डा.पी.के. गुप्ता ने खाद पत्रिका सितंबर 2005 अंक में लिखा है । उसी आधार पर कहा जा सकता है कि स्टीविया एक मीठी जडी-बूटी वाला औषधीय पौधा हे, जिसे प्राकृतिक मिठास वाले औषधीय पौधों के रूप में चिन्हित किया गया है । इसका प्रमुख उपयोगी भाग पत्ती होता है, जो चीनी की तुलना में कई सौ गुना अधिक मिठास लिए हुए होता है । क्योंकि इसमें स्टीरियोसाइड और रेबाऊडीसाइड-ए नामक यौगिक उपस्थित है ।
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वानस्पतिक विवरण:
स्टीविया का वानस्पतिक नाम क्टीविया रुबिडियाना है, जो कम्पोजिटी कुल का छोटा-झाड़ीनुमा बहुवर्षीय पौधा है । जिसका जीवनकाल 4-5 वर्ष, लंबाई 65-70 सें.मी., पत्तियाँ डंठल रहित भाले के आकार की, एक दूसरे के विपरीत दिशा में एकांतर स्थित, रचना में पत्तियाँ बीच से ऊपर की ओर आरी की तरह दाँतेदार रचना वाली होती है । इसके फूल छोटे, सफेद रंग के अव्यवस्थित रूप में लगे होते हैं । यह लघु दीप्तीकालीता वाला पौधा है, परंतु पूर्ण दीप्तीकालीता वाले दिन में उगाने पर पत्तियों में स्टेवीसाइड की मात्रा बढ जाती है ।
स्टीविया का महत्व (Importance of Stevia):
स्टीविया की पत्ती घरेलू चीनी से 250 गुना तथा सुक्रोज से 300 गुना अधिक प्राकृतिक मिठास लिए हुए होती है । इसकी मिठास कैलोरीयुक्त होती है । सामान्य रूप से घर में प्रयोग होने वाली चीनी के स्थान पर इसका प्रयोग किया जा सकता है ।
इसके विभिन्न प्रयोग निम्नवत हैं:
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i. चाकलेट और टॉफी:
चाकलेट और टॉफी में अगर स्टीविया चूर्ण का प्रयोग किया जाए तो यह दाँतों की हानिकारक सुक्ष्माणुओं से सुरक्षा प्रदान कर सकता है ।
ii. मधुमेह रोगियों हेतु:
मधुमेह रोगियों के खाद्य में रेशेदार पदार्थ व प्रोटीन पर विशेष बल दिया जाता है यदि इससे स्टीविया का चूर्ण मिला लिया जाए तो यह न केवल इनकी प्राकृतिक मिठास बढाएगा बल्कि अग्नाशय ग्रंथि को भी दुरुस्त करने में मदद करेगा । ऐसा इसलिए कि इसमें इंसुलिन को नियंत्रित करने की अद्भुत क्षमता है ।
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iii. भोज्य पदार्थ के परिरक्षण हेतु:
स्टीविया चूर्ण को भोज्य पदार्थ में मिलाने से उसको अधिक दिनों तक सुरक्षित रखा जा सकता है, क्योंकि इनमें किण्वन नहीं हो पाता ।
iv. टॉनिक के रूप में:
स्टीविया से बने पेय पदार्थ, दवा टॉनिक के रूप में कार्य करते हैं क्योंकि शरीर के लिए आवश्यक सभी तत्व जैसे प्रोटीन, कैल्शियम, फास्फोरस आदि इसमें उपलब्ध हैं ।
v. औषधीय रूप में:
अपच की दशा में स्टीविया की कोमल पत्ती को चाय की तरह प्रयोग करने से आराम मिलता है । घाव, घाव का धब्बा, खरोच तथा कटे हुए भाग को शीघ्र भरने के लिए भी उपयोगी है । उच्च रक्त चाप को कम करने के अतिरिक्त शारीरिक तापमान को कम या ज्यादा को भी सामान्य (बफर) बनाये रखता है ।
vi. अन्य उपयोग:
इसे सैक्रिन, एस्परटम, एसलकैप-के, आदि के बेहतर विकल्प के रूप में प्रयोग किया जाने लगा है । इससे प्राप्त स्टीरिओसाइड 100० सें. जैसे अधिक तापमान और 3.9 पी-एच पर भी स्थिर रहता है । इसका प्रयोग जिब्रेलिक एसिड के उत्पादन में भी किया जाता है । यह कैलोरी मुक्त चीनी भी है इसलिए इसे ‘उच्च गुणवत्ता वाले कैलोरी मुक्त जैव-मिठास’ का नाम भी दिया जाता है ।
स्टीविया की खेती (Cultivation of Stevia):
स्टीविया की सफलतापूर्वक खेती के लिए निम्न बातों पर ध्यान देना आवश्यक है:
(i) जलवायु:
यह एक समशीतोष्ण जलवायु का पौधा है जिसके लिए उपयुक्त तापमान 10-24० सेंटीग्रेड तथा रात का 10० सें. के मध्य होना चाहिए । औसतन वार्षिक वर्षा 140 सें.मी. तक होना स्टीविया की वृद्धि व विकास के लिए अच्छा माना गया है । यह पाले के प्रति संवेदनशील है, तेज प्रकाश व गर्म तापमान में स्टीविया की पत्तियों का निर्माण अधिक होता है ।
(ii) मृदा:
जल निकास वाली रेतीली दोमट से लेकर चिकनी मिट्टी में आसानी से उगाया जा सकता है, जहां का पी-एच मान 6.5-7.5 के बीच हो । मृदा में कार्बनिक तत्वों की उपलब्धता को बनाये रखने के लिए विशेष ध्यान देना चाहिए । लवणीय व क्षारीय मृदा तथा जल भराव वाले क्षेत्र स्टीविया के लिए अनुकूल नहीं होते ।
(iii) खेत की तैयारी:
स्टीविया के लिए मृदा में कार्बनिक तत्वों का होना आवश्यक है इसलिए प्रति एकड 8-10 मि. टन गोबर की पूर्ण रूपेण सड़ी हुई खाद (एक वर्ष पुरानी) या 300 कि. ग्रा. मल्टीप्लेक्स अन्नपूर्णा के साथ अजाब (एजोटोबैक्टर), आधार (एजोस्पीरिलम) व 2 कि.ग्रा. दुर्गा (फास्फेट घोलक जीवाणु) स्पर्सा (स्यूडोमोनास), नर्सगा (ट्राइकोडर्मा) व बेवेरिया बेसिसाना (बाबा) प्रत्येक 2 कि.ग्रा. को मिलाकर खेत की अंतिम जुताई के समय मिट्टी में फैलाकर समतलीकरण कर लेना चाहिए । इससे मृदाजन्य रोगों का भी नियंत्रण होता है । पौध लगाते समय 5 सें.मी. चौड़ी, 15 सें.मी. ऊंची तथा 10 मीटर लंबी कतार बल बना लेनी चाहिए ।
(iv) पौधरोपण:
पौध को मुख्य खेत में लगाने के पहले मल्टीप्लेक्स निसर्ग (4 ग्राम/ली. पानी) का घोल बनाकर पौध को उपचारित करके मुख्य खेत में लगाना चाहिए । प्रति एकड हेतु लगभग 40-50 हजार पौधों की आवश्यकता होती है, जिसे 40×50 वर्ग सें.मी. की दूरी पर लगाना चाहिए ।
(v) सिंचाई:
स्टीविया को अधिक पानी की आवश्यकता होती है, इसलिए सिंचाई द्वारा हमेशा नमी बनाए रखे जाने की आवश्यकता होती है । आमतौर पर सर्दियों में सप्ताह के अंतर पर व गर्मियों में एक दो दिनों के अंतर पर सिंचाई आवश्यक होती है ।
(vi) उर्वरक:
औषधीय पौधे को सूक्ष्म पोषक तत्वों की आवश्यकता अधिक होती है, इसलिए मृदा परीक्षण के आधार पर ही उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए । आमतौर पर 100 कि.ग्रा. सिंगल सुपर फास्फेट, 10 कि.ग्रा. मल्टीप्लेक्स धरती/जिंक हाई 50 कि.ग्रा. अमोनियम सल्फेट, 30 कि.ग्रा. म्यूरेट आफ पोटाश का प्रयोग किया जा सकता है । फसलावधि में 30-30 दिनों के अंतर पर 2 कि.ग्रा. क्लोरोकॉल. 5 कि.ग्रा. मल्टीप्लेक्स नवजीवन-जी और 30 कि.ग्रा. डाई अमोनियम फास्फेट मिलाकर एक साथ जडों के आस-पास डालें ।
(vii) पौध रोपण:
पौध को मुख्य खेत में रोपण के पहले 4 ग्राम मल्टीप्लेक्स निसर्ग और 2 मि.ली. मल्टीनीम प्रति लीटर पानी में घोलकर पौध को उपचारित करें । पौध को 40-50 हजार पौधों की आवश्यकता होती हे । स्टीविया में वानस्पतिक प्रसारण, बीज की अपेक्षा काफी सफल है ।
वानस्पतिक प्रसारण के लिए 4 वर्ष पुराने मुख्य तने पर वृद्धि कर रही नई शाखाओं से 15 से.मी. लंबी शाखा को लगाने से बेहतर परिणाम मिले हैं । कर्तन विधि से प्रसारण के लिए 100 पी.पी.एम. पैक्लोब्यूटराजोल घोल में कटे हुए भाग को डुबाने से जडी का विकास शीघ्र व अच्छा होता है ।
(viii) पौध संरक्षण:
इसमें खरपतवार का नियंत्रण करते रहना चाहिए । रोग व्याधि का प्रकोप कम होता है, परंतु मल्टीनीम घोल (2 प्रतिशत) स्प्रे करते रहना चाहिए । पत्तियों की हरियाली एवं अच्छी बढवार के लिए मल्टीप्लेक्स महाफल (2 प्रतिशत) के घोल का छिडकाव 15-20 दिन के अंतर पर करें ।
फफूँदी जनित रोग को रोकने के लिए ट्राइकोडर्मा (निर्सगा) व स्यूडोमोनास (स्पर्सा) की 5-5 ग्राम मात्रा के साथ मल्टीप्लेक्स मैक्सीवेट की 1 मि.ली. मात्रा 1 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए ।
(ix) डिसबडिंग:
स्टीविया की पत्ती से प्राप्त होने वाला प्रमुख पदार्थ ‘स्टीरियो साइडस’ है । जिसमें फूल निकलने से इनकी मात्रा व गुणवता प्रभावित होती है । इसलिए स्टीविया पौधों में फूल निकलते ही तोड देना चाहिए । सामान्य तौर पर पौध लगाने के 35-40 दिन बाद फूल निकलने प्रारंभ हो जाते हैं ।
(x) कटाई:
पौध रोपण के लगभग 3 माह (90 दिन) बाद कटाई के लिए 45-50 सें. मी. तक पौधा तैयार हो जाता है । इसलिए इस समय से 3 माह के अंतराल पर वर्ष में चार कटाई की जा सकती है ।
(xi) आर्थिक उपज:
प्रति एकड लगाये गये स्टीविया पौधे से प्रतिवर्ष लगभग 4-5 टन सूखी पत्तियाँ प्राप्त हो जाती हैं । सूखे हुए कुल पत्तों के वजन का 3-10 प्रतिशत तक स्टीरियो साइड्स प्राप्त होता है । वर्तमान में स्टीविया पत्ती चूर्ण का बाजार मूल्य रुपये 200/- प्रति किग्रा है ।
जबकि लगाते समय प्रति पौध 15 रुपये खर्च करना पडता है अर्थात् अच्छी प्रकार उगाये गये स्टीविया के पौधे के सूखे पत्ते से प्रति एकड लगभग 2 लाख रुपये की आय हो सकती है । स्टीविया सहित सभी ओषाक्ष्यों का बाजार पुरानी दिल्ली स्थित खारी बावली है ।