गन्ना से जाली कैसे निकालें? | Read this article in Hindi to learn about how to extract jaggery from sugarcane.
भारत में उत्पादित गन्ने का 60 प्रतिशत हिस्सा ही चीनी बनाने के काम आता है । लगभग 40 प्रतिशत गन्ने से गुड बनाया जाता है । अतः यहां पर गुड बनाने हेतु गन्ने के प्रसंस्करण पर प्रकाश डाला गया है ।
गन्ने का चयन:
उत्तम प्रजाति के पूर्ण परिपक्य गन्ने का चयन कर उचित समय पर कटाई करके सूखे पत्ते, हरी पत्तियों वाली गेड़ी, जडें एवं मिट्टी इत्यादि को हटाकर साफ कर लेते है । इसके पश्चात बिना विलंब के गन्ने की पेराई कर लेते है अन्यथा इनवर्जन से हानि होने लगती है ।
गन्ने की पेराई:
गन्ने की पेराई करने हेतु अच्छे कोख का चयन अत्यावश्यक है । लगभग 60 से 70 प्रतिशत रस निष्कासन की क्षमता वाला कोख उपयुक्त होता है । खड़े बेलन (वर्टिकल रोलर) वाले कोख की तुलना में पडे बेलन (हारिजंटल रोलर) वाले कोल्हू लगभग 2 से 4 प्रतिशत ज्यादा रस निष्कासित करते हैं । रस निष्कासन से पहले तथा बाद में कोख की गरम पानी से भली भाँति धुलाई कर साफ कर लेनी चाहिए ।
रस छानना:
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निष्कासित रस को तीन परतों वाली पतले छिद्र वाली जाली या मोटे कपड़े से छानकर खरपतवार, खोई की छोटी-छोटी टुकडियां तथा जडें आदि अलग कर देते हैं । फिर रस के भण्डारण टैंक के ऊपर एक या दो सतही मोटे कपडे को बाँधकर रस को छान लेना चाहिये, जिससे छोटे कणों वाली अशुद्धियाँ अलग हो जायें । तत्पश्चात् रस को पम्प की मदद से भट्टी पर रखे विशेष रूप से बने कडाहे में इसकी क्षमतानुसार भर लेना चाहिये ।
उपयुक्त भट्ठी पर रस को उबालना:
भट्ठी ऐसी होनी चाहिये कि कम से कम खोई या ईंधन से पूरे रस को उबाल कर गुड बनाया जा सके तथा ईंधन का नुकसान न हो । भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान द्वारा शोधित दो व तीन कडाहे वाली भट्ठियां अच्छा काम करती हैं ।
इनकी विशेषता यह है कि बेकार जाने वाली ऊष्ण ऊष्मा (गरम हवा) का पूर्ण रूपेण उपयोग दूसरे व तीसरे कडाहे में भरे रस को लगभग 70 व 60० से तक गरम करने में कर लिया जाता है, जिससे ईंधन की भी बचत हो जाती है ।
रस का निर्मलीकरण:
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कडाहे में भरे गये रस की सफाई अति महत्वपूर्ण है क्योंकि भलीभाँति साफ किये गये रस से बनाया गया गुड हल्के स्वर्णिम रग का रवादार, साफ-सुथरा एवं गंदगी रहित उत्तम कोटि का होता है जो भंडारण के लिये भी उपयुक्त होता है । रस में घुली हुई अशुद्धियों एवं गंदगी को साफ करने हेतु वानस्पतिक रस शोधकों का प्रयोग उत्तम होता है । कुछ वानस्पतिक शोधकों के नाम व उनके उपयोग करने की संक्षिप्त विधियाँ सारणी-21.2 में दी गई है ।
उपर्यक्त सभी में देवला तुलनात्मक रूप में सबसे अच्छा पाया गया हुए । कडाहे में स्कम (मैल) को बडे छनने से निकालकर स्कम सेटलिंग टैंक में इकट्ठा करके थोडी देर बाद नीचे बैठे रस को कडाहे में वापस मिला लेते हैं, जिससे लगभग 0.4 प्रतिशत गुड की परता बढ जाती है ।
गुड की सांचे में ढलाई:
जब उबलता हुआ गाढा रस स्ट्राइकिंग तापमान पर पहुँच जाता है तो कडाहे से उतार कर उसे लकडी के कूलिंग पैन में रख कर गुरदम से अच्छी तरह मिला लेते हैं । जब द्रव्य खूब गाढा (स्लरी) हो जाता है तो इसे भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित साँचे में ढाल लेते हैं, जिससे 25 सें.मी. क्यूब (20-22 ग्राम) एवं 2.5 सें.मी. × 2.5 सें.मी. × 1.25 सें.मी. (10-11 ग्राम) के चौकोर आकार का बर्फी जैसा गुड ढाल लेते हैं । लगभग 45 मिनट बाद साँचे से गुड को निकाल कर छाये में सुखा लेते हैं ।
गुड भण्डारण:
इस प्रकार बने आकर्षित एवं मूल्यवर्धित गुड को भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित जी आई शीट से बनी विशेष प्रकार की कोठी (क्षमता लगभग 100 कि.ग्रा. में भंडारित कर लेते हैं । इसमें शुष्क मौसम में गुड को सुखाया जाता है तथा वर्षा में सुरक्षित रखा जा सकता है ।
आकर्षक थैलियों में पैकिंग:
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इन बर्फी जैसे क्यूब तथा चौकोर आकार के गुड को पॉलीथीन की आकर्षक थैलियों में (जिन पर गुड में उपलब्धा पोषक तत्व लिखे होते हैं) भर कर बद (सील) कर लेते है । ऐसा करने से उत्पादित गुड को मक्खियों तथा धूल के कण एवं गंदगी से सुरक्षित रखते हैं । ग्राहकों को उचित मूल्य पर बेचकर उत्पादक मुनाफा कमा सकते हैं ।