गन्ना की रोकथाम: कारण और प्रभाव | Read this article in Hindi to learn about the reasons and effects of staling of sugarcane.

खेत से गन्ना काटने के बाद उसे चीनी-मिल तक पहुंचाने में लगभग 3 से 7 दिन लग जाते हैं । इन दिनों में मौसम के तापमान के अनुसार गन्ना सूखने लगता है । इस प्रकार गन्ना सूखने को स्टेलिंग कहा जाता है । स्टेलिंग से न केवल गन्ने का वजन कम हो जाता है अपितु उसमें चीनी का ह्रास भी होने लगता है । यहां पर गन्ने में स्टेलिंग के कुप्रभाव को कम करने की विधियों का वर्णन किया गया है ।

गन्ने पर स्टेलिंग का आर्थिक प्रभाव:

यदि गन्ने को फैक्टरी तक पहुंचाने में 24 घंटे की देरी होती है तो सामान्यतः किसान को प्रति दिन गन्ने पर प्रति दिन लगभग 2,000 रुपयों का नुकसान होता है । यदि यह समय जून में 3 से 4 दिन हो तो यह हानि 12,000 रुपये तक हो जाती है ।

भारत के उपोष्ण क्षेत्रों में हुए अध्ययनों द्वारा ज्ञात हुआ है कि वे मिलें जो प्रतिदिन 2500 टन गन्ना पेरती हैं, अगर उन्हें 72 घंटे पहले कटा हुआ गन्ना मिले तो रिकवरी कम होने के कारण उन्हें 2.5 से 4.0 लाख रुपये का प्रतिदिन नुकसान होता है ।

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यह नुकसान समय और तापमान बढने के साथ और अधिक बढ सकता है । आर्थिक हानि के अलावा चीनी मिलों में इस तरह के गन्ने की पेराई से कुछ अवांछनीय तत्वों के बन जाने से कई अन्य व्यवधानों के उत्पन्न होने का खतरा भी रहता है ।

(1) स्टेलिंग के कारक:

गन्ना किसानों और चीनी मिल स्तर पर समुचित समन्वय न होने से गन्ना कटने के बाद मिल में उसकी पेराई होने तक में देरी हो जाती है, जिससे गन्ना वजन व उसके चीनी परता में कमी हो जाती है ।

मुख्य बिन्दु इस प्रकार हैं:

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(i) गन्ना फसल पकने के समय पर आधारित तथा उचित प्रजाति के अनुसार वैज्ञानिक कटाई के उचित कार्यक्रम का न होना ।

(ii) गर्मी के महीने में जब तापमान 40 से. से भी अधिक होता है, पेराई का समय बढाया जाना ।

(iii) मिल ले जाने से 3 से 8 दिन पूर्व ही फसल की कटाई करना । उत्तर भारत में यह देरी 7 से 10 दिन तक भी हो जाती है ।

(iv) मिलों की पेराई क्षमता सीमित होना जिसकी वजह से गन्ना कई दिनों तक के बाहर रखा रह जाता है ।

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(v) गन्ना एकत्रण केंद्रों और मिल गेट के बीच उचित समन्वय सूत्र का अभाव ।

(vi) गन्ना किसानों को गन्ने की कटाई-छिलाई और बधाई का उचित ज्ञान न होना ।

(vii) सप्ताह के अंत में मिलों का बंद होना तथा अन्य परिस्थितियों जैसे मजदूरों में कमी एवं बिजली न आने से व्यवधान इत्यादि ।

(2) गन्ने की स्टेलिंग के परिणाम:

गन्ने की कटाई के उपरान्त गन्ने के भार व शर्करा मात्रा के क्षय होने की किसानों और चीनी मिलों, दोनों पर ही कुप्रभाव डालती हैं । चूंकि गन्ने के मूल्य भुगतान किसानों को भार के आधार पर मिलता है, गन्ने में नमी कम होने से उसके भार में कमी आ जाती है और चीनी मिलों में इस तरह की गन्ने की पेराई से चीनी परता कम होने के कारण हानि होती है ।

(i) गन्ने के भर में कमी:

गन्ने के भार में कमी गन्ने की कटाई के उपरांत गन्ने के भार में कमी कुछ कारणों का ढंग इत्यादि से घट-बढ सकती है । गन्ने की कटाई के 72 घंटे बाद संपूर्ण गन्ने की अपेक्षा छोटे-छोटे भाग में कटे हुए गन्ने के टुकड़ों के भार में ज्यादा कमी होती है । यह देखा गया है कि उपोष्ण स्थितियों में यह कमी 7.14 से 15 प्रतिशत तक हो जाती है । मई-जून में 120 घंटे के बाद भार में 18-20 प्रतिशत तक कमी देखी गयी है ।

(ii) चीनी में कमी:

चीनी का क्षय देखने के लिए मुख्यतः कमर्शीयल केन शुगर (सी.सी.एस.) को देखते हैं जो कि गन्ने से चीनी उत्पादन की अधिकतम मात्रा है । भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान में हुए एक अध्ययन से यह पता चला है कि इस तरह के गन्ने से चीनी उत्पादन में 10 से 14 प्रतिशत की कमी हो जाती है । पंजाब में इसी तरह के एक अध्ययन में को. जे. 64 प्रजाति में यह कमी 11.3 प्रतिशत पायी गयी ।

भारतीय चीनी मिलों के लिये ध्यान देने योग्य बात है कि गन्ने की कटाई के तुरंत बाद पेराई न होने से उसमें लगातार चीनी परता प्रतिशत घटता रहता है और उसमें प्रहासन शर्करा की मात्रा बढ जाती है । चीनी में कमी के अतिरिक्त जीवाणुओं के प्रभाव से उत्पन्न डेक्सट्रान भी पेराई तथा चीनी की गुणवता पर हानिकारक प्रभाव डालता है । इसी वजह से गन्ने की कटाई के बाद क्षय होने की समस्या उन देशों के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण है जहां की आर्थिक नीति चीनी के निर्यात से जुडी हुई है ।

(iii) गन्ने में डेक्सट्रान की मात्रा बढने के कारक:

a. कटाई और पेराई के बीच का अंतराल:

(अ) खेत में गन्ने की उचित समय पर कटाई न करना तथा कटने के बाद बहुत दिनों तक गन्ने का केंद्रों पर ही पडे रहना ।

(ब) किसी कारणवश मिल के बन्द हो जाने पर गन्ने के रस का टैंक में ही भरा रह जाना ।

b. मिल के अंदर साफ-सफाई में कमी ।

c. गन्ने के बंडल का आकार ।

d. प्रजातियों में भिन्नता ।

e. वातावरणीय ताप और नमी ।

f. वर्षा और कीचड ।

g. जिन देशों में खडी फसल की सूखी पत्तियों को जलाया जाता है वहाँ पर परिपक्व फसल के जलने का स्तर तथा जलाने व कटाई में विलंब

ऐसी स्थिति में निम्न उपाय किये जाते हैं:

(i) गन्ने को समय से चीनी मिलों तक पहुँचा दिया जाये ताकि जल्दी से जल्दी मिल में पेराई हो सके ।

(ii) मिल प्रबंधकों को हमेशा ताजा कटे हुए गन्ने की आपूर्ति सुनिश्चित कर लेनी चाहिए ।

(iii) पेराई के लिए उपलब्ध गन्नों में पत्तियां और जडें न हों ।

(iv) जिस प्रजाति में गन्ने की ऊपरी परत मोटी और रेशे ज्यादा हो उस गन्ने में नमी और चीनी का ह्रास कम होगा ।

(v) जिस गन्ने में अंगोला लगा रहता है उसमें अपेक्षाकृत कम ह्रास होता है ।

(vi) इसलिए जब तक पेराई का समय न आये, कटे हुए गन्ने का अंगोला नहीं काटना चाहिए ।

(vii) गन्ना जब अपनी पूर्णतः पकी अवस्था में होता है तो उसमें चीनी की मात्रा अधिकतम होती है । अतः बिना पके या अत्यधिक पके गन्ने को काटने में सावधानी बरतनी चाहिए ।

(viii) ऐसी प्रजाति का चयन करना चाहिए जिनमें शर्करा की मात्रा अधिक हो या जिनमें शर्करा का विघटन कम से कम हो । मिल प्रबन्धकों को इस तरह की प्रजातियों की जानकारी किसानों को देनी चाहिए ।

(ix) गन्ने का परिवहन और भंडारण भी डेक्सट्रान के बनने पर प्रभाव डालता है । गन्ने के पेराई के समय अत्यधिक महीनी के कारण भी नुकसान हो सकता है ।

(x) यदि पेराई में अवांछनीय देरी हो तो गन्ने को छोटे-छोटे गट्ठरों में रखना चाहिए, जमीन से स्पर्श कम से कम होना चाहिए । समय-समय पर जीवाणुनाशक घोल का छिडकाव करते रहना चाहिए और गन्ने को पत्तियों से ढक देना चाहिए । गन्ने को इस तरह से रखा जाना चाहिए कि हवा का संचरण होता रहे ।

(xi) मिलों में गन्ना रखने का स्थान साफ-सुथरा होना चाहिए । यह बात ध्यान देने योग्य है कि जो गन्ना पहले आये वह पहले पेरा जाये ।

(xii) कटे हुए गन्नों पर पोटेशियम परमैंगनेट (0.1 प्रतिशत) अथवा डाईथायो कार्बामेट (10 पी.पी.एम.) 1 प्रतिशत सोडियम मेटासिलिकेट के साथ मिलाकर छिडकाव करने से चीनी परता में नुकसान कम होता है ।

(xiii) मिल की कार्मिकी के कायदे से रखरखाव और उसकी सफाई से इस नुकसान को और भी कम किया जा सकता है ।

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