धान प्रबंधन और गन्ना का संरक्षण | Read this article in Hindi to learn about paddy management and preservation of sugarcane.
गन्ने की नौलख (बावक) फसल काटने के बाद खेत में बचे ठूंठों के भूमिगत भाग पर बनी आंखे उपयुक्त नमी व तापमान पर अंकुरित होने लगती हैं । इस प्रकार इन आंखों से जो पौधे निकलते हैं, उनसे तैयार फसल को पेडी फसल कहा जाता है ।
गन्ने की खेती में पेडी फसल अहम् भूमिका रखती है, क्योंकि पेडी फसल लेने के लिए बीज व खेत की तैयारी में होने वाला खर्च बच जाता है तथा पेराई के आरंभ में चीनी, मिलो को पेड़ी के रूप में अपेक्षाकृत अधिक शर्करा देने वाली फसल मिल जाती है ।
परंतु दुर्भाग्यवश हमारे देश में पेडी फसल पर अधिक ध्यान न देकर इसे भगवान के भरोसे छोड देते हैं । इससे पेडी फसल की उपज नौलख गन्ने से काफी कम हो जाती है । पेडी उपज में कमी लाने वाले कारणों एवं निवारण हेतु संस्तुत वैज्ञानिक विधियों को अपनाकर उपज में वृद्धि प्राप्त की जा सकती है ।
संस्तुत प्रजातियों का चयन:
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बावक फसल में अच्छी उपज देने वाली प्रजाति में भी सदैव निश्चित नहीं रहता कि इनकी पेडी से संतोषजनक उपज प्राप्त हो सकेगी । इसलिए ऐसी प्रजातियों का चुनाव करना चाहिए जिनकी बावक फसल एवं पेडी दोनों से अच्छी उपज प्राप्त हो इसके अतिरिक्त एक ही प्रजाति सभी प्रकार की परिस्थितियों में समान उपज नहीं देती है ।
आमतौर पर किसानों को राज्य सरकारों के विभाग द्वारा गन्ने की उन्हीं प्रजातियों की स्वीकृति दी जाती है, जिनकी पेडी क्षमता अच्छी होती है । उत्तर भारत में मुख्य रूप से जल्द पकने वाली प्रजातियों में कोशा. 92254, कोशा. 95255, कोशा. 87263, कोशा. 8436, कोशा. 96268, कोशा. 96268 तथा मध्य एवं देर से पकने वाली प्रजातियों में कोलक 8102, कोशा. 91269, कोशा. 767, कोशा. 8432, कोशा. 97264, कोसे. 92423 तथा कोशा. 7918 प्रमुख हैं, जो पेडी के लिए उत्तम है ।
स्वस्थ बावक फसल एवं फसल सुरक्षा:
अच्छी पेडी के बावक फसल का स्वस्थ होना नितांत आवश्यक है । बावक फसल में खाली स्थान कम से कम हों, रोग एवं कीटों का आपतन कम रहा तथा खाद एवं पानी की समुचित मात्रा सही समय पर दी गई हो ।
बावक फसल की कटाई का उपयुक्त समय एवं विधि:
नवंबर से जनवरी के मध्य काटे गए बावक गन्ने में तापमान कम होने के कारण फुटाव कम होता है, परिणामतः इसकी पेडी अच्छी नहीं होती है । यदि फसल की कटाई विलंब (अप्रैल-मई) से प्रारंभ की गई है तो भी पेडी की पैदावार पर कुप्रभाव पड़ता है जिसका मुख्य कारण पौधों की बढवार के लिए कम समय का मिलना है ।
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परंतु बसंतकालीन (फरवरी-मार्च) में प्रारंभ की गई बावक फसल की कटाई से जो पेडी फसल प्राप्त होती है उसकी पैदावार सबसे अधिक पाई गई है । बसंतकालीन में प्रारंभ की जाने वाली पेडी के पौधों को अपनी वृद्धि के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है और तापमान की अनुकूल दशा के कारण किल्लों की संख्या में बढोत्तरी होती है साथ ही मिल योग्य गन्नों की संख्या भी बढ जाती है ।
अतः जितना सम्भव हो बावक फसल की कटाई फरवरी से अप्रैल के मध्य तक कर लेना चाहिए । बसंतकाल में प्रारंभ की गई पेडी में रिक्त स्थान भी कम होते हैं । यदि बावक गन्ने पर मिट्टी चढाई गई हो तो मिट्टी गिराकर फसल काटनी चाहिए, जिससे गन्ने का ढका हुआ भाग जो कि कुल गन्ना उपज का 6-8 प्रतिशत होता है, से भरपूर उपज मिल जाती है और गन्ने में फुटाव भी अधिक होता है ।
प्रायः यह देखा गया है कि गन्ने के 10-15 सें.मी. लंबे ठूंठ खेत में रह जाते उत्तम फसल लेने में बाधक साबित होते हैं । काटे गए ठूंठों में ऊपर की कलिकाओं का स्फुटन पहले हो जाता है तथा भूमि से ऊपर होने के कारण जड़ें अपना भोजन भूमि से सुचारुपूर्वक नहीं ग्रहण कर पाती ।
फलतः पौधा सुख जाता है, इसके अतिरिक्त गन्ने की कटाई में समरूपता न होने के कारण जो कलिकाएँ भूमि की सतह से ऊपर होती है उनका अंकुरण पहले तथा भूमि की सतह से कटे हुए ठूँठों की कलिकाओं का अंकुरण बाद में होता है ।
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इस दशा में विभिन्न ठूँठों की ऊपर एवं नीचे की अंकुरित कलिकाओं में बढवार हेतु नमी एवं पोषक तत्वों के लिए प्रतिस्पर्धा से उपज में प्रतिकूल प्रभाव पडता है । अतः बावक गन्ने की भूमि की सतह से कटाई नितांत आवश्यक है । इस प्रकार बावक फसल की पैदावार बढने के साथ-साथ शर्करा उत्पादन में लगभग 8 प्रतिशत प्रति हैक्टर की वृद्धि हो जाती है ओर पेडी की अच्छी फसल प्राप्त होती है ।
कर्षण क्रियाएँ:
बावक फसल की कटाई के उपरांत कीटों एवं रोगों के प्रकोप से बचाव के लिए खेत में बची हुई सूखी पत्तियों एवं डंठलों को पूरे खेत में बिखेर कर जला देना चाहिए । तत्पश्चात सिंचाई करके ओट आने पर मेडें गिरा देना चाहिए ।
फुटाव में एकरूपता के लिए पर्याप्त नमी स्तर पर किसी तेज धार वाले औजार या स्तबल शेवर से छँटाई कर देना चाहिए । स्टबल शेवर से दलों की कटाई, जडों की छटाई, खाद डालना एवं दवा डालना आदि कर्षण क्रियाएँ एक साथ सम्पादित हो सकती हैं । यह मशीन ट्रैक्टर द्वारा चालित है ।
रिक्त स्थानों की पूर्ति:
आमतौर पर अच्छी पेडी फसल के लिए 1 हैक्टर खेत में 27,000 से 33,000 गन्ने के थानों की संख्या होनी चाहिए । अनुसंधान परीक्षणों से ज्ञात हुआ है कि यदि पेडी ही रिक्त स्थानों को अंकुरित गन्ने के टुकडों से भर दिया जाए तो पेड़ी पैदावार में कमी नहीं आने पाती । इसके अतिरिक्त बावक फसल में बीज गन्ना की मात्रा 20 प्रतिशत अतिरिक्त बढा देने पर उससे प्राप्त होने वाली पेडी में रिक्त
स्थानों की संख्या न्यूनतम पाई गई है ।
उर्वरकों की मात्रा एवं प्रयोग:
अच्छी पेड़ी फसल के लिए प्रारंभिक अवस्था में नाइट्रोजन की अधिक मात्रा अति आवश्यक है क्योंकि पेड़ी फसल इस तत्व का उपयोग करने में कम सक्षम पाई गई है । इसलिए बावक फसल की अपेक्षा पेडी में लगभग 20-30 प्रतिशत अधिक नाइट्रोजन देनी चाहिए ।
मेड़ें गिराते समय 90 कि.ग्रा. नाइट्रोजन/हैक्टर एवं फास्फोरस तथा पोटाश की संपूर्ण मात्रा (परीक्षण की संस्तुतियों के आधार पर) मेडों की दोनों ओर नालियों में तथा शेष 90 कि.ग्रा. नाइट्रोजन मई में वर्षा पूर्व उचित नमी में दो बार टाप ड्रेसिंग से देनी चाहिए । नाइट्रोजन की मात्रा कम होने की अवस्था में यूरिया का 7-8 प्रतिशत पर्णीय छिडकाव 10-15 दिन के अंतराल पर 2 या 3 बार जून-जुलाई में लाभप्रद पाया गया है ।
सिंचाई एवं पताई बिछाना:
पेड़ी गन्ने की जड़ें तथा कम गहराई पर होने के कारण भूमि से अधिक गहराई पर संचित नमी एवं पोषक तत्वों को नहीं ग्रहण कर पाती हैं इसलिए पेड़ी फसल में 10-15 दिन के अंतराल पर हल्की सिंचाई करते रहना चाहिए ।
गन्ना पेडी की दो पक्तियों के मध्य 5-7 सें.मी. मोटी पत्तियों की तह बिछाने से नमी संचित रहने साथ-साथ मृदा का कार्बनिक स्तर बढ जाता है । सूखी पत्तियाँ बिछाने की स्थिति में फेनवलरेट कीटनाशक दवा 5 प्रतिशत धूल की 25 कि.ग्रा./हैक्टर की दर से भुरकाव अवश्य करना चाहिए ।
मिट्टी चढाना एवं बंधाई:
पेडी गन्ने में अवांछित कल्लों का प्रस्फुटन रोकने के लिए वर्षा से पूर्व मिट्टी चढाना अति आवश्यक है । मिट्टी चढाने से खरपतवार भी नष्ट हो जाते हैं तथा पौधे को भूमि से पर्याप्त मजबूती के साथ सहारा मिलता रहता है । अधिक बढवार होने पर वर्षा में गन्ने की बंधाई कर देना चाहिए अन्यथा गन्ना गिर जाने पर शर्करा का प्रतिशत भी घट जाता है । पहली बधाई जुलाई तथा दूसरी अगस्त या सितंबर में करनी चाहिए ।
फसल सुरक्षा:
वर्षा से पूर्व पेडी फसल में काला चिक्टा कीट का प्रकोप होता है जिससे पौधे पीले पड जाते हैं । इसके लिए 1 कि.ग्रा. इंडोसल्फान की मात्रा तथा 10 कि.ग्रा. यूरिया को 1000-1200 ली. पानी में घोलकर पत्तियों के बीच गोफ में डाल देना चाहिए ।
कम तापमान की दशाओं में पेडी रखना:
बावक फसल को 10० से. से कम तापमान में काटने पर किल्लों का कम प्रस्फुटन होता है । ऐसा स्थिति में ठूंठों पर 20 सें.मी. मोटी पताई बिछा देनी चाहिए ताकि वे जलवायु गर्म होने (फरवरी) तक प्रस्फुटित न हों इसके पश्चात तापमान अनुकूल होने पर पताई की परत हटा कर पक्तियों के बीच रिक्त स्थान में बिछा देना चाहिए । शीतकाल की पेडी के साथ बरसीम की अन्तःफसली खेती करने से कलिया प्रचंड शीत से बच जाती हैं और प्रस्फुटन भी अच्छा होता है ।
बावक फसल की विभिन्न चरणों में कटाई की अवस्था में पेडी रखना:
उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा और पंजाब जहां पर गन्ना आपूर्तिकर्ताओं की संख्या अधिक है और प्रति कटाई आपूर्ति किए गन्ने की मात्रा काफी कम होती है, ऐसी स्थिति में पूरे खेत को एक ही बार में नहीं काटा जा सकता है । ऐसी दशाओं में ठूंठ हटाने का कार्य अंतिम कटाई तक स्थगित कर देना चाहिए । ऐसा करने से खेत में फसल एक समान दिखाई देती है । इसे अप्रैल के बाद और नहीं स्थगित करना चाहिए ।
गन्ना पेडी से लाभ:
(अ) गन्ने की पेड़ी में खेत की तैयारी, बीज की बचत तथा फसल सुरक्षा व्यय में आदि की वजह से बावर फसल की अपेक्षा लगभग 30-40 प्रतिशत उत्पादन व्यय कम आता है ।
(ब) गन्ने की पेड़ी लगभग 4-5 सप्ताह पूर्व पककर तैयार हो जाती है जिससे चीनी मिलें जल्दी शुरू की जा सकती हैं तथा गुड बनाने के लिए यह पहले ही उपलब्ध हो जाता है जिससे किसान को बाजार में उचित मूल्य भी मिल जाता है ।
(स) पेडी जल्द कटने से खेत अन्य फसलों के लिए उपलब्ध हो जाता है ।
(द) पेडी फसल का अच्छा प्रबन्धन बावक फसल से अधिक शुद्ध लाभ दिला सकता है ।
(य) पेडी गन्ने से प्रति इकाई भूमि एवं समय के आधार पर अधिक उत्पादन मिलता है ।