स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है । Speech of Bal Gangadhar Tilak on “ Swarajya is My Birthright” in Hindi Language!

यद्यपि मैं शरीर से वृद्ध, किन्तु उत्साह से भरा हुआ हूँ । मैं युवावस्था के इस विशेष अधिकार को छोड़ना नहीं चाहता । अपनी विचार शक्ति को मजबूत बनाने से मना करना यह स्वीकार करने की भांति होगा कि मुझे इस प्रस्ताव पर बोलने का कोई अधिकार नहीं है ।

अब मैं जो कुछ कहने जा रहा हूं वह चिर युवा है । शरीर वृद्ध हो सकता है और उसका नाश भी हो सकता है, परन्तु आत्मा अजर-अमर है । उसी प्रकार हमारी होमरूल गतिविधियों में भले ही तेजी दिखायी न दे उसके पीछे छिपी भावना अमर  एवं अविनाशी है और वही हमें आजादी दिलायेगी ।

आत्मा ही परमात्मा है और मन को तब तक शान्ति नहीं मिलेगी जब तक वह भगवान् से एकाकार न हो जाये । यदि एक शरीर नष्ट हो जाता है, तो आत्मा दूसरा शरीर धारण कर लेगी ‘गीता’ विश्वास दिलाती  है । यह दर्शन बहुत प्राचीन है । स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है । जब तक वह मेरे अन्दर विद्यमान् है, मैं वृद्ध नहीं हूं ।

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कोई शस्त्र इस भावना को काट नहीं सकता कोई अग्नि इसे जला नहीं सकती कोई पानी इसे भिगो नहीं सकता कोई हवा इसे सुखा नहीं सकती ।  मैं उससे भी आगे बढ्‌कर कहूंगा कि कोई सी॰आई॰डी॰ इसे पकड़ नहीं सकती । मैं इसी सिद्धान्त की घोषणा पुलिस अधीक्षक-जो मेरे सामने बैठे हैं के सामने भी करता हूं कलक्टर के सामने भी जिन्हें इस सभा में बुलाया गया था और आशुलिपि लेखक जो हमारे भाषणों के नोट्‌स लेने में व्यस्त हैं के सामने भी ।

मरा हुआ दिखायी देने पर भी यह सिद्धान्त अदृश्य नहीं होगा । हम स्वशासन चाहते हैं और हमें उसे हासिल करना ही चाहिए । जिस विज्ञान की परिणति स्वशासन में होती है, वही राजनीति विज्ञान है, न कि वह, जिसकी परिणति गुलामी में हो । राजनीति का विज्ञान इस देश के ‘वेद’ हैं । आपके पास एक आत्मा है और मैं केवल उसे जगाना चाहता है ।

मैं उस आवरण को हटाना चाहता हूं जिसे बुद्धिहीन कुचक्री और स्वार्थी लोगों ने आपकी आखों पर डाल दिया है । राजनीति के विज्ञान के दो भाग हैं, पहला दैवी और दूसरा राक्षसी । एक राष्ट्र की दासता दूसरे भाग में आती है । राजनीति विज्ञान के राक्षसी हिस्से का कोई नैतिक औचित्य नहीं हो सकता ।

एक राष्ट्र जो उसे उचित ठहराता है, परमात्मा की नजर में पाप का भागी है । कुछ लोगों में उस बात को बताने की हिम्मत होती है, जो उनके लिए हानिकारक है और कुछ लोगों में यह हिम्मत नहीं होती । लोगों को इस सिद्धान्त के बारे में बताना चाहता हूं कि राजनीतिक और धार्मिक शिक्षा का एक अंग है । धार्मिक और राजनीतिक शिक्षाएं अलग-अलग नहीं हैं, यद्यपि विदेशी शासन के कारण वे ऐसे मालूम होते हैं ।

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राजनीति के विज्ञान में सभी दर्शन समाये हैं । स्वशासन का मतलब कौन नहीं जानता ? कौन उसे नहीं चाहता ? क्या आप यह पसन्द करेंगे कि मैं आपके घर में घुसकर आपकी रसोई अपने अधिकार में ले लूं ? मुझे अपने घर के मामले निपटाने का अधिकार होना चाहिए । केवल पागल व्यक्ति और बच्चे अपने मामले खुद नहीं निपटा सकते ।

सम्मेलनों का मुख्य सिद्धान्त यह है कि एक सदस्य 21 साल की उम्र से ज्यादा होना चाहिए इसलिए क्या आप नहीं समझते कि आपको अपना अधिकार मिलना चाहिए ? पागल या बच्चे न होकर आप अपने मामले अपने अधिकार समझते हैं और इसीलिए आप जानते हैं कि स्वशासन क्या है ।

हमें कहा गया है कि हम स्वशासन के योग्य नहीं हैं । एक शताब्दी बीत गयी है और ब्रिटिश शासन हमें स्वशासन के योग्य नहीं बना पाया । अब हम अपनी कोशिश करेंगे और खुद को उस योग्य बना लेंगे । असंगत बहाने बनाना लालच देना और वैकल्पिक प्रस्ताव करना ब्रिटिश नीतियों पर एक धब्बा है ।

इंग्लैण्ड भारत की मदद से बेरियम जैसे छोटे-से देश को संरक्षण देने का प्रयास कर रहा है, फिर वह कैसे कह सकता है कि हमें स्वशासन नहीं मिलना चाहिए । जो हममें दोष देखते हैं, वे लालची प्रकृति के लोग हैं, परन्तु ऐसे भी लोग हैं, जो परम कृपालु भगवान् में भी दोष देखते हैं ।

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हमें किसी बात की परवाह किये बिना अपने राष्ट्र की आत्मा की रक्षा करने के लिए पूरी कोशिश करनी चाहिए । अपने उस जन्मसिद्ध अधिकार की रक्षा में ही हमारे देश का कल्याण निहित है । कांग्रेस ने स्वशासन का यह प्रस्ताव पास कर दिया है ।  प्रान्तीय सम्मेलन कांग्रेस की ही देन है, जो उसके आदेशों का पालन करता है ।

हम अपने पिता कांग्रेस के आदेशों का पालन श्रीरामचन्द्रजी की भांति ही करेंगे । हम इस प्रस्ताव को कार्यान्वित कराने के लिए कृतसंकल्प हैं, चाहे ऐसी कोशिश हमें मरुभूमि में ही ले जाये चाहे हमें अज्ञातवास में रहना पड़े चाहे हमें कितनी ही मुश्किलें उठानी पड़े या आखिर में चाहे मृत्यु का ग्रास बनना पड़े । श्रीरामचन्द्रजी ने ऐसा किया था ।

उस प्रस्ताव को केवल तालियां बजाकर पास न करायें अपितु इस प्रतिज्ञा के साथ करायें कि आप उसके लिए कार्य करेंगे । हम सभी सम्भव संवैधानिक और विधिसम्मत तरीकों से स्वशासन प्राप्त करने के लिए कार्य करेंगे ।  भगवान् की कृपा से इंग्लैण्ड ने हमारे विषय में अपना दृष्टिकोण बदल लिया है । हम अनुभव करते हैं कि हमारी कोशिश नाकामयाब नहीं होगी ।

इंग्लैण्ड ने घमण्डवश समझा था कि इतने बड़े साम्राज्य को वह छोटा-सा राष्ट्र केवल अपनी ताकत पर बनाये रख पायेगा । अब वह घमण्ड कम हो गया है ।  इंग्लैण्ड को अब अनुभव होने लगा है कि उसे साम्राज्य के संविधान में फेर-बदल करना होगा । लॉयड जॉर्ज ने खुलकर स्वीकार किया है कि भारत के सहयोग के बिना इंग्लैण्ड अब नहीं चल सकता है ।

एक हजार वर्ष पुराने एक राष्ट्र के विषय में सारी धारणाएं बदलनी होंगी । इंग्लैण्ड के लोगों को पता चल गया है कि उनके सभी दलों की अक्लमन्दी पर्याप्त नहीं है । फ्रांसीसी युद्ध भूमि में भारतीय सैनिकों ने ब्रिटिश सैनिकों की जान बचाकर अपनी बहादुरी का परिचय दिया है ।  जो लोग कभी हमें गुलाम समझते थे अब हमें भाई कहने लगे हैं ।

ये सब परिवर्तन भगवान् की कृपा से हुए हैं । अभी जब अंग्रेजों के मन में भाईचारे की भावना विद्यमान् है, हमें अपनी मांगों को लेकर दबाव बनाना चाहिए ।  हमें उन्हें बता देना चाहिए कि हम तीस करोड़ भारतीय साम्राज्य के लिए अपनी जान भी देने के लिए तैयार हैं और यह कि जब तक हम उनके साथ हैं, साम्राज्य की तरफ कोई आंख उठाकर भी नहीं देख पायेगा ।