बैंकों द्वारा प्रदान किए गए अग्रिम के प्रकार | Read this article in Hindi to learn about the five types of advances offered by banks. The types are:- 1. नकद साख (Cash Credit) 2. अधिविकर्ष (Overdraft) 3. मांग पर देय ऋण अथवा याचना राशि (Call Money) 4. आवर्ती साख (Revolving Credit) 5. आवधिक ऋण (Term Loans).
बैंकों द्वारा दिये जाने वाले अग्रिमों के अनेक प्रकार निम्नलिखित हैं:
Type # 1. नकद साख (Cash Credit):
नकद साख के अन्तर्गत बैंकों द्वारा अपने ग्राहकों को व्यापारिक माल, स्वीकृत प्रतिभूतियों, बांड्स इत्यादि की प्रतिभूति के आधार पर एक निश्चित अवधि के लिए एक निश्चित राशि का ऋण स्वीकृत किया जाता है । इस स्वीकृत ऋण में नकद साख सीमा (Cash Credit Limit) भी कहते है ।
ऋणी अपनी जरूरत के अनुसार समय-समय पर स्वीकृत राशि का आहरण करता रहता है । बैंक, ऋणी द्वारा आहरित राशि पर ही ब्याज वसूल करता है । ब्याज की राशि की गणना ऋण राशि के आहरण की तिथि से की जाती है न कि ऋण की स्वीकृती की तिथि से ।
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ऋण प्रदान करने वाले बैंक को सदैव नकद साख की राशि अपने पास बनाये रखनी होती है चाहे ग्राहक उस राशि का उपयोग करे अथवा न करे । बैंक इस स्वीकृत राशि को किसी अन्य कार्य में प्रयुक्त नहीं कर सकता । इसके अलावा ग्राहक द्वारा अप्रयुक्त राशि (Un-Utilized Amount of Loan) पर बैंक को ब्याज की हानि होती है ।
अतः बैंक इस हानि से बचाव के लिए ऋण स्वीकृत करते समय ग्राहक से यह अनुबंध कर लेते हैं कि उसे कम से कम 25% या 50% राशि पर ब्याज अवश्य ही देना पड़ेगा चाहे वह उस राशि का प्रयोग करे अथवा न करे । इस शर्त के परिणामस्वरूप ग्राहक उतनी राशि का ही ऋण स्वीकृत करवायेगा जितनी कि उसे वस्तुतः आवश्यकता होगी ।
भारत में व्यापारिक बैंक नकद साख के लिए स्वीकृत राशि पर एक न्यूनतम शुल्क वसूल करते हैं तथा नकद साख पर ब्याज की दर अन्य ऋणों की तुलना में ऊंची रखते हैं । तथापि व्यापारियों तथा उद्योगपतियों द्वारा ऋण का यह प्रकार सर्वाधिक पसंद किया जाता है । भारत में बैंक के लगभग तीन-चौथाई ऋण नकद साख के रूप में दिये जाते है ।
नकद साख की अवधि समाप्त होने पर ऋणी को ऋण राशि का ब्याज सहित भुगतान करना पड़ता है । यदि ऋणी समय पर भुगतान नहीं करता है तो बैंक ऋणी के प्रत्याभू (Guarantor) से भुगतान की माँग कर सकता है । यदि प्रत्याभू भी बैंक को भुगतान नहीं करता है तो बैंक ऋणी के विरुद्ध न्यायालय में वाद प्रस्तुत कर सकता है ।
Type # 2. अधिविकर्ष (Overdraft):
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यदि कोई बैंक अपने ग्राहक को उसके खाते में जमा राशि से अधिक राशि निकलने का अधिकर देता है तो उसे अधिविकर्ष कहा जाता है । यह सुविधा प्रायः उन्हीं ग्राहकों को दी जाती है जिनका बैंक में चालू खाता (Current Account) होता है । अधिविकर्ष की सुविधा बैंक तथा ग्राहक के बीच हुए अनुबन्ध के अनुसार दी जाती है जिसमें अधिविकर्ष की अधिकतम सीमा का उल्लेख होता है ।
यह सुविधा अल्पकाल के लिए दी जाती है । बैंक अपने ग्राहकों को यह सुविधा प्रतिभूतियों की जमानत अथवा ग्राहक की व्यक्तिगत साख के आधार पर प्रदान करते हैं । अधिविकर्ष की सुविधा के अन्तर्गत ग्राहक द्वारा आहरित राशि (खाते में जमा राशि से अधिक) पर बैंक निर्धारित दर पर आहरण की तिथि से ब्याज वसूल करता है ।
नकद साख तथा अधिविकर्ष में अन्तर (Distinction between Cash Credit and Overdraft):
व्यावहारिक दृष्टि से नकद साख एवं अधिविकर्ष में कोई अन्तर नहीं है लेकिन सैद्धान्तिक दृष्टि से इन दोनों में काफी अन्तर है ।
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इनमें प्रमुख अन्तर निम्नांकित हैं:
(i) नकद साख की प्रकृति स्थायी होती है जबकि अधिविकर्ष एक अस्थायी व्यवस्था होती है ।
(ii) नकद साख के लिए बैंक में अलग से खाता खोला जाता है जबकि अधिविकर्ष की सुविधा चालू खाता होने पर प्रदान की जाती है ।
(iii) नकद साख की सुविधा के लिए बैंक द्वार ऋणी से जमानत ली जाती है जबकि अधिविकर्ष ग्राहक की व्यक्तिगत् साख पर भी स्वीकृत की जा सकती है ।
(iv) प्रायः नकद साख की तुलना में अधिविकर्ष की ब्याज दर कम होती है ।
Type # 3. मांग पर देय ऋण अथवा याचना राशि (Call Money):
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है बैंकों द्वारा दिये गये ये ऋण माँग पर देय (Payable on Demand) होते हैं । बैंक इनके भुगतान हेतु ग्राहक को कोई पूर्व-सूचना नहीं देता । प्रायः ये ऋण अति-अल्प समय (24 से 72 घण्टे) के लिए स्वीकृत किये जाते हैं । सामान्यतः इन ऋणों पर ब्याज की दर बैंक दर से भी नीची होती है लेकिन कई बार व्यस्त काल (Busy Season) में याचना राशि के ऋणों की ब्याज दर अत्यधिक ऊंची भी हो सकती है ।
इन ऋणों की गणना नकद कोषों (Cash Reserves) के तुल्य की जाती है क्योंकि आवश्यकता पड़ने पर ऋणदाता बैंक इन ऋणों का तुरन्त शोधन कर लेता है । इन ऋणों की इस विशेषता के कारण इन्हें ‘सुरक्षा की दूसरी पंक्ति’ की संज्ञा दी जाती है ।
भारत में याचना राशि के ऋणों का लेन-देन प्रायः बैंकों के मध्य ही होता है जबकि विदेशों में यह ऋण प्रतिष्ठित व्यक्तियों, संस्थाओं व बैंकों को दिये जाते हैं । इन कणों के द्वारा बैंक अपने अतिरिक्त कोषों का अल्पकालीन विनियोग करके एक तरफ जहां आय अर्जित करते है वही दूसरी ओर वे अपने कोषों की तरलता बनाये रखने में भी समर्थ होते है ।
Type # 4. आवर्ती साख (Revolving Credit):
आवर्ती साख की सुविधा एक निश्चित अवधि के लिए प्रदान की जाती है । निर्धारित अवधि में ऋणी द्वारा आवश्यकतानुसार पूर्व स्वीकृत साख में से आहरण किया जा सकता है । यदि ऋणी के पास नकद शेष हो तो वह सुविधानुसार उसी अवधि में ऋण का भुगतान भी कर सकता है । ऋणों का पूर्ण शोधन होने पर स्वीकृत साख पुनः अपने मूल बिन्दु पर आ जाती है ।
इस विशेषता के कारण ही इसे आवर्ती साख की संज्ञा दी जाती है । इसे एक उदाहरण से आसानी से समझा जा सकता है । मान लें, भारतीय स्टेट बैंक श्रीमती रमा को 6 माह के लिए 25 लाख रुपये की आवर्ती साख स्वीकृत करता है । श्रीमती रमा 1 माह बाद इस सुविधा के अन्तर्गत 5 लाख रुपये का आहरण करती हैं ।
इस आहरण के बाद आवर्ती साख 20 लाख रुपये रह गई । लेकिन श्रीमती रमा 15 दिन बाद ही 5 लाख रुपये अपने ऋण खाते में जमा करवा देती हैं । यह राशि जमा होने के पश्चात् श्रीमती रमा पुन 25 लाख रुपये के आहरण की सुविधा प्राप्त कर सकती है ।
आवर्ती साख सुविधा के अन्तर्गत आहरण तथा जमा का क्रम निरन्तर चलता रहता है । ग्राहक को प्रत्येक आहरण के लिए अलग से कोई अनुबंध करने की आवश्यकता नहीं होती तथा न ही पूर्ववर्ती अनुबंध का नवीनीकरण करवाना होता है ।
इस सुविधा के लिए बैंक आवर्ती साख की सम्पूर्ण राशि को ग्राहक के लिए सदैव सुरक्षित रखता है जबकि बैंक द्वारा ब्याज केवल आहरित राशि पर आहरण की तिथि से वसूल किया जाता है । चूकि बैंक को इससे ब्याज की हानि होती है अतः वह इसकी भरपाई करने के लिए इस सुविधा पर ब्याज की दर ऊंची रखता है ।
Type # 5. आवधिक ऋण (Term Loans):
आवधिक ऋणों बे तीन भागों में बाटा जा सकता है- अल्पकालीन, मध्यकालीन एवं दीर्घकालीन ऋण । भारत में कुछ वर्षों पूर्व तक व्यापारिक बैंक सामान्यतः अल्पकालीन तथा मध्यकालीन ऋण ही स्वीकृत करते थे । लेकिन उदारीकरण के फलस्वरूप बीसवीं सदी के अखिरी दशक में ये बैंक निर्माताओं, उद्योगपतियों तथा अन्य ले पर्याप्त मात्रा में दीर्घकालीन ऋण प्रदान करने लगे है । दीर्घकालीन ऋण प्रायः बडी राशि के होते हैं तथा इनमें तरलता का अभाव होता है अतः बैंक इन ऋणों पर ऊंची दर से ब्याज वसूल करते है ।