Read this article in Hindi to learn about the forms and particulars of advances offered by banks.

ऋण व अग्रिम के प्रारूप (Forms of Advances):

(1) ऋण (Loans):

बैंक किसी एक निश्चित कार्य या उद्देश्य के लिए एक मुश्त राशि एक पूर्व निर्धारित अवधि के लिए ऋण देते हैं । उदाहरण के लिए बैंक एक रिक्शा चालक को स्वचालित रिक्शा क्रय करने हेतु 5 रुपये ऋण स्वीकार कर सकता है । स्वीकृत ऋण की सम्पूर्ण राशि ग्राहक को एक बार में ही भुगतान कर दी जाती है ।

ऋण की वसूली प्रायः किश्तों में ब्याज सहित की जाती है । इस प्रकार ऋण का प्रत्येक व्यवहार एक अकेला व्यवहार होता है जो बार-बार दोहराया नहीं जाता (Single Non-Repetitive Transaction) । यदि ग्राहक को भविष्य में और ऋण की आवश्यकता हो तो उसे पुन नये सिरे से ऋण के लिए आवेदन करके नया ऋण स्वीकार कराना होता है ।

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(2) नकद साख (Cash Credit):

बैंकों द्वारा उपलब्ध कराए जाने वाले ऋणों का लगभग 70 प्रतिशत भाग नकद साख के रूप में रहता है । कार्यशील पूजी की व्यवस्था करने का यह महत्वपूर्ण साधन है । ग्राहक अपनी साख-सम्बन्धी आवश्यकताओं का अनुमान लगाकर बैंक से एक निश्चित नकद-साख सीमा (Cash-Credit Limit) अपनी मूर्त-सम्पत्तियों या गारण्टियों की सुरक्षा पर स्वीकृत कस लेते हैं ।

इस ऋण का भुगतान ग्राहक के नकद साख (Cash Credit A/c) में क्रेडिट कर दिया जाता है । ग्राहक स्वीकृत सीमा के अन्दर आवश्यकतानुसार खाते से धन निकालते एवं जमा करते है । एक सामान्य खाते की भाँति इस खाते का संचालन ग्राहक द्वारा किया जाता रहता है ।

इस पद्धति की प्रमुख विशेषताएँ निम्नानुसार हैं:

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(i) बैंक नकद साख सीमा का निर्धारण ग्राहक के व्यापार की स्थिति का विश्लेषण करके करते हैं तथा यह सीमा ग्राहक द्वारा उपलब्ध कराई जा सकने वाली जमानत पर निर्भर करती है ।

(ii) इस पद्धति के अन्तर्गत स्वीकृत अग्रिम माँग पर देय होता है तथा उसकी अदायगी की कोई निश्चित तिथि नहीं होती किन्तु व्यवहार में अग्रिम फिरते (Roll-Over) रहते हैं ।

(iii) इस पद्धति में ग्राहक अपनी आवश्यकतानुसार धन निकाल सकता है । अतः बैंकर को इतने पर्याप्त नकद कोष रखने पड़ते है, ताकि ग्राहक की माँग कभी भी पूरी की जा सके ।

(iv) ग्राहक के ऋण की सम्पूर्ण सीमा पर ब्याज नहीं देना होता । बैंक ग्राहक द्वारा वास्तव में प्रयुक्त राशि पर ही ब्याज लगाता है ।

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(v) ग्राहक खाते की जिस राशि का प्रयोग नहीं करता (Unutilized or Idle Funds) उन पर बैंक ब्याज नहीं लगाता । नकद-साख के पूर्ण उपयोग होने के कारण होने वाली हानि की आंशिक पूर्ति बैंक अनुपयुक्त राशि पर मामूली अतिरिक्त अधिभार (Commitment Charge) लगाकर करते थे किन्तु 1 नवम्बर, 1975 से नकद साख पर वह अधिभार समाप्त कर दिया गया है ।

(3) बिलों का क्रय और कटौती (Purchase and Discounting of Bills):

ऋणों एवं अग्रिमों के अतिरिक्त बैंक अपने कोषों का प्रयोग अपने ग्राहकों के विनिमय विपत्रों (Bills) को क्रय करके तथा उनकी कटौती करके (वट्टे पर भुनाकर) भी करते है । बिलों का क्रय एवं कटौती वर्तमान ऋण-व्यवस्था की महत्वपूर्ण पद्धति है तथा व्यापारिक साख का एक महत्वपूर्ण अंश इसके माध्यम से जुटाया जाता है ।

विनिमय-विपत्रों का प्रयोग बहुधा देशी व्यापार में माल के क्रय-विक्रय के सम्बन्ध में किया जाता है उधार माल बेचने पर विक्रेता माल के अधिकार-पत्रों (जैसे- रेलवे रसीद या ट्रक की बिल्टी आदि) के साथ क्रेता पर लिखा बिल भी भेज देता है जिसकी स्वीकृति ग्राहक द्वारा (अथवा कभी-कभी ग्राहक की ओर से उसके बैंकर द्वारा) करके बिल विक्रेता को लौटा दिया जाता है ।

ये बिल प्रायः 1 माह से 3 माह तक की अवधि के होते है तथा इनका भुगतान आहार्यी (Drawee) द्वारा बिल की अवधि के पश्चात्‌ किया जाना होता है । आहर्ता को धन की आवश्यकता होने पर वह उस बिल को या तो बैंकर को बेच सकता है या बैंक से कटौती कर सकता है । दातव्य तिथि पर बैंक बिल के आहार्यी से भुगतान प्राप्त कर लेता है तथा इस प्रकार बैंक द्वारा ग्राहक को स्वीकृत अग्रिम उसको वापस मिल जाता है ।

(4) अन्य सम्पत्तियां (Other Assets):

इस शीर्षक के अन्तर्गत बैंक की उन सम्पत्तियों को दिखलाया जाता है जिनके लिए कोई अलग शीर्षक नहीं है । ऐसी मदों के कुछ उदाहरण हैं- आरम्भिक व्यय Preliminary Expenses), स्थापना या संगठनात्मक व्यय (Formation or Organizational Expenses), विकास-व्यय (Development Expenses), विनियोगों पर उपार्जित ब्याज (Interest Accrued on Investments), सहायक कम्पनियों मे विनियोग (Investment in Subsidiary Companies) शाखा समायोजना खाता (डे.) [Branch Adjustment A/c (Dr.)] आदि ।

ऋण व अग्रिम के विवरण (Particulars of Advances):

बैंक ने जो कुल ऋण व अग्रिम दिये हैं, वे किस प्रकार दिये हैं उनके पूर्ण विवरण या तो चिट्‌ठे में अग्रिम के नीचे देने चाहिये या चिट्‌ठे के बाद अलग से संलग्न करने चाहिए (Particulars of Advances attached to Forming Part of Balance Sheet) । इस विवरण में 9 बातें होती हैं ।

प्रथम चार सूचनायें इस सम्बन्ध में होती हैं कि बैंक ने ऋण किस प्रकार दिये हैं:

(i) ऋण अच्छे समझे जाते हैं और पूर्ण रूप से सुरक्षित (Fully Secured) है ।

(ii) ऋण अच्छे समझे जाते हैं जिनके लिये बैंक के पास देनदारों की व्यक्तिगत् प्रतिभूति (Debtors’ Personal Security) के अतिरिक्त कोई प्रतिभूति नहीं है ।

(iii) ऋण अच्छे समझे जाते हैं जिनके सम्बन्ध में देनदारों की व्यक्तिगत् प्रतिभूति के अतिरिक्त एक या अधिक व्यक्तियों की प्रतिभूतियां प्राप्त है (Secured by the personal securities of one or more parties in addition to the personal securities of the debtors)

(iv) संदिग्ध व डूबत ऋण जिनकी व्यवस्था नहीं की गई है ।

उपरोक्त चारों मदों का योग बैंक द्वारा दिये गये कुल ऋणों के बराबर होना चाहिये । यदि प्रश्न में उपरोक्त में से तीन मदों के विवरण दिये हों, तो कुल ऋणों में से तीनों का योग कम करने पर चौथी मद की राशि ज्ञात हो जायेगी ।

यदि प्रश्न में ऋण व अग्रिम के विवरण नहीं दिये गये हों तो काल्पनिक राशियाँ स्वयं भर लेनी चाहिए- प्रथम में अधिकतम् राशि, दूसरे में उससे कम तथा तीसरे में उससे कम और चौथे में कोई राशि न भरकर तीनों मदों (Items) का योग कुल ऋण व अग्रिम के बराबर कर देना चाहिये ।

ऋणों के शेष विवरण निम्न बातों से सम्बन्धित होते हैं, यदि प्रश्न में इनकी राशि दी हो तो भर देनी चाहिये अन्यथा विवरण लिखकर राशि नहीं लिखनी चाहिये:

(v) बैंक के संचालकों या अधिकारियों या उनमें से किसी के भी द्वार अकेले या किसी अन्य के साथ संयुक्त रूप से देय ऋण ।

(vi) ऐसी कम्पनियों या फर्मों को दिये गये ऋण जिनमें बैंक के संचालकों का अन्य अधिकरियों का संचालकों, साझेदारों या प्रबन्ध अभिकर्ताओं के रूप में हित हो या निजी कम्पनियों में सदस्यों की तरह हित हो ।

(vii) ऋणों की अधिकतम् कुल राशि, अस्थायी ऋणों की राशि सहित जो संचालकों या कम्पनी के प्रबन्धकों या अफसरों को वर्ष में किसी भी समय दी गई थी ।

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