बैंक खाते: वक्तव्य और नामांकन | Read this article in Hindi to learn about:- 1. बैंक खाता-विवरण (Statement of Bank Account) 2. खाते बन्द करना (Closing of Bank Account) 3. नामांकन (Nomination).
बैंक खाता-विवरण (Statement of Bank Account):
बैंक के साथ ग्राहक के खातों में किये गये व्यवहारों का लेखा बैंक ग्राहक को दी जाने वाली पास-बुक में करता रहता है जिसके लिए ग्राहक को अपनी पास-बुक समय-समय पर बैंक भेजनी पड़ती है । यदि ग्राहक किसी कारण से पास-बुक नहीं भेजता तो उसे अपने खाते की सही स्थिति ज्ञात नहीं होगी तथा अनेक ऐसे व्यवहार जिनका लेखा बैंक के लैजर में ग्राहक के खाते में है उनकी जानकारी ग्राहक को नहीं मिल पाएगी ।
खाते की सही स्थिति ज्ञात न होने पर ग्राहक पर्याप्त कोष न होते हुए भी चैक काट सकते हैं जिसके करण सभी सम्बन्धित पक्षकरों को परेशानी हो सकती है । अतः कुछ बैंक अपने ग्राहक के खाते का विवरण (Statement of Account) बनाकर समय-समय पर (जैसे मासिक या त्रैमासिक) ग्राहक को भेजते रहते है ।
खाते का विवरण बैंकर की खाताबही में ग्राहक के खाते की प्रतिलिपि होती है । बैंकों के चालू खाता नियमों में यह प्रावधान है कि ग्राहकों को इस विवरण की भली-भाँति जाँच कर लेनी चाहिए तथा यदि कोई जुट-भूल चूक हो तो उसकी सूचना 15 दिन के अन्दर-अन्दर दे देनी चाहिए अथवा यह मान लिया जायेगा कि विवरण सही है । इस विवरण का एक महत्वपूर्ण लाभ यह है कि ग्राहक यह नहीं कह सकता कि उसे त्रुटि की जानकारी नहीं थी ।
खाते बन्द करना (Closing of Bank Account):
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ग्राहक एवं बैंकर के मध्य सम्बन्धों का प्रारम्भ ग्राहक द्वारा बैंक में खाता खोलने से होता है । ये सम्बन्ध प्रसंविदात्मक प्रकृति के होते हैं, अर्थात् ग्राहक अथवा बैंकर दोनों में से कोई भी एक पक्षकार खाता बन्द करके इन सम्बन्धों को समाप्त कर सकता है ।
(A) ग्राहक द्वारा खाता बन्द करना (Closing of Account by the Customer):
(1) लिखित निर्देश लेकर:
यदि ग्राहक चाहे तो बैंकर को खाता बन्द करने के निर्देश लिखित में दे सकता है । बैंकर को इन निर्देशों का तत्काल प्रभाव से पालन करना होगा । ग्राहक खाते में जमा राशि की निकासी कर लेगा तथा प्रयोग न लाए गए चैक/पास-बुक बैंक को वापस लौटा देगा ।
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(2) कारण बताने की आवश्यकता नहीं:
ग्राहक को खाता बन्द करने के कारण बताने की आवश्यकता नहीं होती, न ही बैंकर ग्राहक से ऐसा पूछ सकता है ।
(B) बैंकर द्वारा खाता बन्द करना (Closing of Account by the Banker):
बैंकर अपने किसी ग्राहक का खाता निम्नलिखित परिस्थितियों में बन्द कर सकता है:
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(1) निष्क्रिय खाते:
यदि कोई खाता बहुत लम्बे समय तक निष्क्रिय रहता है (अर्थात् ग्राहक रुपया जमा करने या निकासी के कोई व्यवहार नहीं करता) तो इसका आशय यह है कि ग्राहक को उस खाते का कोई उपयोग नहीं है । इस स्थिति में बैंकर ग्राहक से निवेदन कर सकता है कि वह खाते में जमा राशि निकाल ले ताकि खाता बन्द किया जा सके।
(2) ग्राहक का पता न होने पर:
यदि निष्क्रिय खाते के सम्बन्ध में उपर्युक्त प्रकार से व्यवहार करने पर ग्राहक का कोई पता नहीं लगता तो बैंकर प्रायः ऐसे खाते के शेष को (Unclaimed Deposit Account) में डालकर खाता बन्द कर देते हैं तथा इस खाते से उसको देय राशि का भुगतान कर दिया जाता है ।
(3) ग्राहक का अवांछनीय व्यक्ति होना:
यदि ग्राहक अपना खाता ठीक प्रकार से नहीं चला रहा हो, चैक या बिलों में जालसाजी करता हो अथवा खाते में पर्याप्त कोष न होते हुए चैक निर्गमित करता हो, तो बैंकर ऐसे अवांछनीय व्यक्ति के खाते को बन्द करके उससे सम्बन्ध विच्छेद कर सकता है ।
ऐसा करने से पूर्व बैंकर को निम्नानुसार कार्यवाही करनी चाहिए:
(i) ग्राहक को उचित नोटिस देकर खाता बन्द करने के अभिप्राय से सूचित कर तथा उससे निवेदन करना चाहिए कि वह खाते में जमा राशि निकाल ले । ग्राहक को इतनी अवधि अवश्य दी जानी चाहिए जिसमें वह वैकल्पिक व्यवस्था कर सके ।
(ii) यदि ग्राहक नोटिस में उल्लिखित अवधि में खाता बन्द नहीं करता तो बैंकर को अन्तिम नोटिस और देना चाहिए जिसमें एक दिनांक निर्दिष्ट करते हुए ग्राहक को सूचित कर देना चाहिए कि यदि उक्त दिनांक तक ग्राहक ने खाता बन्द नहीं किया तो बैंकर स्वयं खाता बन्द कर देगा ।
(iii) नोटिस की अवधि समाप्त होने पर बैंकर ग्राहक के खाते में नई राशियाँ जमा करने तथा नई चैक बुक देने से इन्कार कर सकता है ।
(iv) नोटिस की अवधि समाप्त होने पर बैंकर ग्राहक का खाता बन्द करके उसमें जमा राशि ग्राहक को शाप द्वारा भेज सकता है ।
(4) विशिष्ट परिस्थितियों में:
बैंकर ग्राहक की मृत्यु, पागलपन, दिवालियापन (या कम्पनी की दशा में समापन) की सूचना प्राप्त ही, अथवा खाते पर कुर्की आदेश (Garnishee Order) या अभिहस्तांकन का नोटिस मिलने पर खाते का परिचालन स्थगित कर सकता है ।
बैंक खाता का नामांकन (Nomination of Bank Accounts):
बैंकिंग संदर्भ में नामांकन से आशय एक ऐसी व्यवस्था से है जिसके अन्तर्गत बैंक द्वारा अपने ग्राहक की ओर से धारित जमा राशि प्रतिभूति का भुगतान ग्राहक की मृत्यु की दशा में उसके द्वार नामांकित किसी अन्य व्यक्ति को भुगतान की या सुपुर्द की जा सकती है । 1985 से पूर्व नामांकन की सुविधा बैंकों में उपलब्ध नहीं थी, केवल पोस्ट-ऑक्सि तथा जीवन-बीमा निगम आदि ही यह सुविधा प्रदान करते थे ।
ग्राहक-सेवा (Customer Service) के रूप में 29 मार्च, 1985 से नामांकन सुविधा बैंकों में जमा-खातों, निरापद-सुरक्षा वस्तुओं (Safe Custody Articles) तथा सुरक्षित जमा लॉर्क्स (Safe Deposit Lockers) में भी उपलब्ध करा दी गई है ।
इस सुविधा के अन्तर्गत:
(1) बैंकर मृत खातेदार के खाते में जमा राशि का भुगतान उसके नामांकिती (Nominee) को कर सकता है ।
(2) बैंकर मृत खातादार द्वारा बैंक की सुरक्षा में रखी गई वस्तुओं को निर्दिष्ट रीति में वस्तुओं की सूची बनाकर नामांकिती को सौंप सकता है ।
(3) बैंकर, बैंक लॉकर किराए पर लेने वाले (Hirer) की मृत्यु पर उसके लॉकर में छोडी गई वस्तुओं को उनकी सूची बनाकर नामांकिती को सौंप सकता है ।
नामांकन की सुविधा का सबसे महत्वपूर्ण लाभ यह है कि खातेदार कि मृत्यु हो जाने पर मृतक खातेदार के खाते की जमा-राशि आदि का भुगतान नामांकिती को आसानी से हो जाता है तथा स्वयं बैंक के मृत खातेदार के वैध उत्तराधिकारियों के दावों का निबटारा करने की असुविधा का सामना नहीं करना पड़ता ।
जमा-खातों में नामांकन (Nomination in Deposit Accounts):
बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 4524 के अनुसार एक व्यक्ति जिसका खाता हो, अथवा संयुक्त खाता की दशा में सभी जमाकर्ता संयुक्त रूप से निर्दिष्ट प्रारूप भरकर, अपने हस्ताक्षरों से एक व्यक्ति को नामांकित कर सकते है जिसे उस एकल जमाकर्ता (Sole Depositor) की मृत्यु हो जाने पर अथवा संयुक्त खाते की दशा में सभी जमाकर्ताओं की मृत्यु हो जाने पर, जमा खाते के क्रेडिट शेष का भुगतान बैंक द्वारा किया जा सकता है ।
विशेषताएं (Characteristics):
उपर्युक्त प्रावधान के महत्वपूर्ण बिन्दु निम्नलिखित हैं:
(1) केवल वह जमाकर्ता ही नामांकन कर सकता है जिसके स्वयं के नाम में जमा खाता हो । प्रतिनिधि के रूप में नामांकन नहीं किया जा सकता । इसी प्रकार प्रन्यास, साझेदारी, कम्पनी के खातों के सम्बन्ध में प्रन्यासी, साझेदार या कम्पनी के निदेशक भी नामांकन नहीं कर सकते ।
(2) जमा-खाता में केवल एक व्यक्ति ही अपनी व्यक्तिगत स्थिति में (Only One Nominee in his Personal Capacity) नामांकिती हो सकता है । प्रन्यास, फर्म या अन्य कोई निर्गमित संस्था के पक्ष में नामांकन नहीं किया जा सकता है ।
(3) एक अवयस्क को नामांकित किया जा सकता है । अवयस्क नामांकिती की दशा में, जमाकर्ता या समस्त जमाकर्ता संयुक्त रूप से किसी एक अल्पवयस्क व्यक्ति को जमाकर्ता की मृत्यु की दशा में उसके खाते की जमा राशि अवयस्क नामांकिती की ओर से प्राप्त करने हेतु नियुक्त कर सकते हैं । ऐसा व्यक्ति केवल नामांकिती की अवयस्कता की अवधि तक ही कार्य करेगा ।
(4) एक अवयस्क के खाते में नामांकिती की नियुक्ति अवयस्क की ओर से कार्य करने का विधिसम्मत् अधिकार रखने वाले व्यक्ति द्वारा की जा सकती है । उदाहरण के लिए अवयस्क का पिता (या पिता के जीवित न होने पर माता) नामांकिती नियुक्त कर सकती है ।
(5) जमाकर्ता या संयुक्त खाते के सम्बन्ध में समस्त जमाकर्ता कभी भी नामांकन रह कर सकते हैं या उसमें परिवर्तन (Variation) कर सकते हैं ।
जमाकर्ता की मृत्यु होने पर नामांकिती को भुगतान (Payment to Nominee in the Event of Death of the Depositor):
जमाकर्ता की मृत्यु हो जाने पर नामांकिती को उस खाते के सम्बन्ध में जमाकर्ता के समस्त अधिकार प्राप्त हो जाते हैं तथा किसी अन्य व्यक्ति को जमा राशि पर कोई अधिकार प्राप्त नहीं होता । बैंक द्वारा नामांकिती को किया गया भुगतान बैंक को पूर्ण दायित्व मुक्ति (Full Discharge) प्रदान करता है ।
यदि कभी किसी जमाकर्ता की मृत्यु हो जाने पर उसके खाते का नामांकिती तथा मृतक के वैध उत्तराधिकारी (Legal Heir) बैंक में जमा राशि के सम्बन्ध में एक साथ दावा प्रस्तुत करे तो बैंक को उत्तराधिकार प्रमाण-पत्र (Succession Certificate) धारी वैध उत्तराधिकारी पर ध्यान देते हुए उसे यह सलाह देनी चाहिए कि वह बैंक को नामांकिती को भुगतान करने से रोकने की निषेधाज्ञा (Injection) न्यायालय से प्राप्त करे ।
यदि नामांकिती को भुगतान करने की निषेधाज्ञा उचित समयावधि में वैध उत्तराधिकारी प्रस्तुत नहीं करता तो बैंक नामांकिती को भुगतान कर अपने दायित्व से मुक्त हो जायेगा ।
नामांकित व्यक्ति की वैधानिक स्थिति (Legal Status of the Nominee):
नामांकित व्यक्ति की वैधानिक स्थिति क्या है? अर्थात् क्या वह जमाकर्ता की मृत्यु के पश्चात् बैंक से जमा राशि प्राप्त कर लेने पर उस धन का पूर्ण रूपेण स्वामी बन जाता है अथवा मृत व्यक्ति के वैधानिक उत्तराधिकारियों के अधिकार यथावत् बने, रहते हैं तथा वे नामांकित व्यक्ति द्वार प्राप्त उस जमा राशि में अपने हिस्से का दावा कर सकते हैं ।
इस सम्बन्ध में उच्चतम न्यायालय द्वारा सरस्वती देवी बनाम उषा देवी (AIR 1954 SC 346) के मामले में दिये गये निर्णय के अनुसार नामांकित व्यक्ति को ऐसी रकम में कोई लाभकारी हित (Beneficial Interest) प्राप्त नहीं होता । नामांकित व्यक्ति को तो केवल खाते की राशि प्राप्त करने का अधिकर प्राप्त होता है, वह उसका पूर्ण स्वामी नहीं बन जाता, मृतक खातेदार के वैधानिक उत्तराधिकारी इस धन से उत्तराधिकार कानून के अनुसार माँग सकते है ।
बैंक जमाओं का बीमा (Insurance of Bank Deposit):
जनता द्वारा बैंकों में जो धन-राशि जमा कराई जाती है वह सुरक्षित रहे तथा किसी बैंक के असफल हो जाने या उसका किसी अन्य बैंक में विलयन (Merger) हो जाने से उस बैंक के खातेदारों को हानि न उठानी पड़े, इस उद्देश्य से जमा बीमा तथा साख गारण्टी निगम (Deposit Insurance and Credit Guarantee Corporation) की स्थापना की गई है जो बैंकों में जमा की गई राशियों का बीमा करती है ।
जमा राशि बीमा योजना की प्रमुख विशेषताएँ (Salient Features of Deposit Insurance Scheme):
(1) यह योजना समस्त भारतीय अनुसूचित तथा गैर-अनुसूचित व्यापारिक बैंकों अनेक राज्यों के सहकारी बैंकों समस्त क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों पर लागू है ।
(2) इस योजना में बैंकों के पास जनता द्वारा रखी गई समस्त प्रकार की जमाराशियां शामिल होती है किन्तु केन्द्रीय तथा राज्य सरकारों विदेशी सरकारी तथा व्यापारिक बैंकों द्वार जमा की गई जमा रशिया इस बीमा के अन्तर्गत नहीं आतीं ।
(3) प्रत्येक जमाकर्ता का प्रत्येक बीमाकृत बैंक में रखा गया प्रत्येक खाता केवल 3000 रुपये तक सीमित होता है ।
(4) यदि कोई बीमाकृत बैंक अपना व्यवसाय चलाने में असमर्थ हो जाए या किसी अन्य बैंक में उसका सम्मिश्रण या एकीकरण (Amalgamation) हो जाये और वह अपने जमाकर्ताओं को उनकी जमा के लिये देय राशि का पूर्ण भुगतान नकद न कर सके अथवा भुगतान के लिये पूर्ण राशि अन्तरिती बैंक (Transferee Bank) की पुस्तकों में जमा न कर सके तो यह निगम उन जमाकर्ताओं को उनकी उक्त राशि प्रतिपूरित (Re-Inburse) कर देगा । ऐसे बैंक द्वारा इस प्रकार नकद भुगतान की गई या अन्तरित की गई राशि तथा बीमे के अन्तर्गत आने वाली राशि के बीच जो अन्तर आता है उस अन्तर की राशि का भुगतान निगम द्वारा किया जाएगा ।
(5) बीमाकृत बैंकों को अपनी निर्धारण योग्य कुल जमारशियों (Total Assessable Deposits) (अर्थात् बैंक के पास रखी गई समस्त जमा राशियों) पर प्रति 100 रुपये पर 4 पैसे की वार्षिक दर से प्रीमियम का भुगतान निगम को करना पड़ता है ।
(6) निधियाँ:
यह निगम दो अलग-अलग निधियाँ या कोष रखता है:
(i) जमा-राशि बीमा कोष (Deposit Insurance Fund):
जिसमें समस्त प्रीमियम आय जमा की जाती है तथा जिसे केन्द्रीय सरकार की प्रतिभूतियों में विनियोजित किया जाता है । ऐसे विनियोगों से प्राप्त होने वाली आय इस कोष के राजस्व खाते में क्रेडिट की जाती है तथा बीमे के अन्तर्गत प्रतिपूरित की जाने वाली हानियाँ इस राजस्व खाते को चार्ज की जाती हैं ।
(ii) साधारण कोष (General Fund):
निगम के अन्य समस्त व्यय इस कोष से चार्ज किये जाते हैं ।