Read this article in Hindi to learn about the profitability of banks in India.

स्टेट बैंक समूह के लाभों में निरन्तर वृद्धि हुई है और यह 1981 के 16 करोड़ से बढ्‌कर 2005-06 में 5371 करोड़ और 2012-13 में 17 हजार करोड़ रुपये से भी अधिक हो गया है । राष्ट्रीयकृत बैंकों की लाभदायकता इस अवधि में बहुत कम रही है जबकि इन बैंकों की संख्या स्टेट बैंक समूह से अधिक है । 1993-94 में राष्ट्रीयकृत बैंकों को बहुत भारी हानि सहन करना पड़ी ।

यह हानि 4780 करोड़ रुपये थी, जिसका मुख्य कारण इन बैंकों द्वारा प्रतिभूति घोटाले में भाग लेना था । 2002-03 में भारतीय राष्ट्रीयकृत बैंकों ने अपनी लाभदायकता को बढ़ाने में काफी सफलता प्राप्त कर ली और इनका लाभ बढ्‌कर 7780 करोड़ रुपये हो गया ।

इसका मुख्य कारण वित्तीय क्षेत्रों में सुधारों को लागू करना था । भारतीय निजी बैंकों का लाभ 1981 में केवल 3 करोड़ रुपये था जो दस वर्षों में 1991-92 में लगभग 25 गुना बढ़कर 77 करोड़ रुपये हो गया । इसके पश्चात् भी निजी बैंकों ने लगातार प्रगति की है । 2005-06 में निजी बैंकों का लाभ 3480 करोड़ था जो 2012-13 में बढ़कर लगभग 29 हजार करोड़ रुपये हो गया ।

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विदेशी बैंकों की लाभदायकता हमेशा बहुत ही अच्छी रही है । 1992-93 में वे प्रतिभूति घोटाले में फंस गए थे और इस कारण उन्हें 842 करोड़ रुपये का घाटा हुआ परन्तु इन बैंकों ने जल्दी ही अपनी स्थिति सुधार ली और वे 1993-94 से 2002-03 के सात वर्षों में प्रभावशाली लाभ प्राप्त कर सके । 2012-13 में इनकी लाभदायकता 115 बिलियन है जो उनकी श्रेष्ठ प्रगति का सूचक है ।

विभिन्न प्रकार के बैंकों की लाभदायकता की तुलना से स्पष्ट है कि भारत में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की लाभदायकता बहुत कम है । यह बात भी सर्वविदित है कि कुछ बैंक तो घाटे में चल रहे हैं । सरकारी बैंकों की कम लाभदायकता की व्याख्या इनके सामाजिक दायित्वों (Social Obligation) के रूप में की जा सकती है अर्थात् ग्राम क्षेत्रों में शाखाएँ खोलना, समुचित ग्राम विकास कार्यक्रम के लिए वित्त जुटाना और अन्य गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों के लिए रियायती दर पर ऋण देना, कुल उधार के 40 प्रतिशत तक प्राथमिकता क्षेत्र के लिए उधार देना आदि ।

ये कारण, गैर-सरकारी बैंकों के विरुद्ध, बहुत हद तक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की नीची लाभदायकता की व्याख्या करते है । विदेशी बैंकों के दफ्तर तो महानगरों और चुने हुए शहरों तक सीमित हैं, उन पर कोई सामाजिक दायित्व भी नहीं है परन्तु उन पर भी ऊँचे कानूनी तरलता अनुपात और रोक-आरक्षण अनुपात के सीमा बन्धन लागू हैं । फिर भी वे काफी मुनाफा क्या लेते हैं ।

लाभदायकता उन्नत करने के लिए सुझाव:

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नरसिम्हम् समिति ने बैकों की वित्तीय शक्ति और लाभदायकता को उन्नत करने के निम्नलिखित सुझाव दिए हैं:

(i) सभी संदिग्ध ऋणों की देखभाल के लिए परिसम्पत्ति पुनर्निर्माण निधि (Assets Reconstruction Fund) कायम करना चाहिए ।

(ii) समय के उपरान्त कानूनी तरलता अनुपात (Statutory Liquidity Ratio) घटाकर 25 प्रतिशत कर देना चाहिए और इसी प्रकार रोक आरक्षण अनुपात (Cash Reserve Ratio) कम करके कुल जमा के उसे 5 प्रतिशत तक लाना चाहिए । इस प्रकार बैंकों में लाभदायक प्रयोगों के लिए अधिक राशियाँ उपलब्ध हो सकेंगी ।

(iii) कानूनी तरलता अनुपात के अधीन जो सरकारी और अहं-सरकारी प्रतिभूतियां सरकार द्वारा बैंकों को प्रस्तुत की जाती है, उन पर ऊँची ब्याज दर देनी चाहिए ।

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(iv) बैंकों को उधार की न्यूनतम ब्याज दर निश्चित करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए ।

(v) प्राथमिकता क्षेत्र के लिए उधार की मात्रा कुल उधार के वर्तमान 40 प्रतिशत से कम करके 10 प्रतिशत कर देनी चाहिए ।

(vi) सभी रियायती ब्याज दरें समाप्त कर देनी चाहिए ।

(vii) बैंकों को रशियां प्राप्त करने के नए स्रोत ढूंढने चाहिए । उदाहरणार्थ, जमा-प्रमाणपत्रों (Certificate of Deposits) द्वारा बैंक को काफी जमा-राशि प्राप्त हो सकती है जिसे बाद में निगम क्षेत्र को अधिक लाभदायक ब्याज-दर पर उधार दिया जा सकता है ।

(viii) बैंक 365 दिन के राजकोषीय बिल (Treasury Bills) जारी कर सकते हैं जिन पर अधिक व्याज दर प्राप्त हो सकती है ।

(ix) शाखा विस्तार को कड़े रूप में वाणिज्यिक आधार पर ही बढ़ावा देना चाहिए ।

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