Read this article in Hindi to learn about:- 1. विनिमय विपत्र का अर्थ (Meaning of Bills of Exchange) 2. विनिमय विपत्र की विशेषताएं (Importance of Bills of Exchange) 3. प्रकार (Types).
विनिमय विपत्र का अर्थ (Meaning of Bills of Exchange):
विनिमय साध्य लेखपत्र अधिनियम की धारा 5 के अनुसार – ”विनिमय पत्र या विपत्र एक ऐसा लेख है, जिसमें लिखने वाले के हस्ताक्षर के अन्तर्गत एक शर्त रहित आदेश होता है, जिसमें एक निश्चित व्यक्ति, एक निश्चित रकम आदेशानुसार या लिखने वाले को देने का वचन देता है ।”
इस प्रकार एक ऋण की स्वीकृति ऋणी द्वार ऋणदाता के आदेशानुसार लिखित रूप में दी जाती है ।
सामान्य रूप से एक विनिमय विपत्र में तीन पक्षकार हो सकते हैं:
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(i) बिल लिखने वाला अर्थात् ऋणदाता ।
(ii) बिल स्वीकृत करने वाला या समय पर भुगतान करने का वचन देने वाला अर्थात् ऋणी ।
(iii) रुपया प्राप्त करने वाला यह अन्य व्यक्ति भी हो सकता है अथवा ऋणदाता स्वयं भी ।
बिल को लिखने वाला प्रपत्र ऋणी के समक्ष स्वीकृति के लिए प्रस्तुत करता है और उचित मुद्रांक पर स्वीकृति के बाद ही यह प्रपत्र विनिमय विपत्र या बिल बनवाता है । देयतिथि पर भी यह बिल ऋणी या भुगतान करने वाले के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए । ऋणी का स्वयं दायित्व नहीं है कि वह बिल का भुगतान करने स्वयं जाये ।
विनिमय विपत्र की विशेषताएं (Importance of Bills of Exchange):
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अधिनियम द्वारा दी गई परिभाषा के विश्लेषण से हमें एक विनिमय विपत्र में निम्न महत्वपूर्ण विशेषताएँ मिल सकती हैं:
1. लिखित:
विनिमय विपत्र स्याही से लिखित या टाइप किया हुआ अथवा छपा हुआ हो सकता है ।
2. धनराशि चुकाने का आदेश:
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विनिमय विपत्र में यदि निवेदन या प्रार्थना की गई है और उसे स्वीकार कर लिया गया है तो इसे वैधानिक रूप नहीं दिया जा सकता है, इसमें आदेश होना चाहिए । उदाहरणार्थ कैलाश ने कमला को कहा कि ”कृपा करके मुझे या मेरे आदेशानुसार 400 रुपये दे दीजिए और इसे मेरे खाते में लिख लें, मैं आपकी इस दया का बहुत आभारी रहूँगा ।”
आपस विनीत सेवक हस्ताक्षर. ‘कैलाश’ इसे विनिमय विपत्र नहीं माना जा सकता है क्योंकि इसमें भुगतान करने का आदेश नहीं है ।
3. शर्तरहित आदेश:
विनिमय विपत्र में भुगतान का आदेश शर्त रहित होना चाहिए, परन्तु निम्न शब्दों के साथ विनिमय विपत्र शर्त रहित ही माना जायेगा:
(i) किसी निश्चित घटना घटित होने के पश्चात् ।
(ii) लिखित या स्वीकृत तिथि के निश्चित दिन पश्चात् ।
(iii) देखते ही या मांगने पर ।
(iv) देखने के या मांगने के निश्चित दिन पश्चात् ।
यदि कुछ ऐसी बात शर्त के रूप में शामिल कर दी जाती है, जिसका पूरा होना या न होना परिस्थतियों पर निर्भर करता है तो इसे शर्त सहित आदेश माना जायेगा और ऐसा बिल व्यर्थ होगा । जैसे जहाज के आने पर, फसल तैयार होने पर, शादी/बच्चे हो जाने पर ।
4. लिखने वाले के हस्ताक्षर:
विनिमय विपत्र के लेखक द्वार हस्ताक्षर अवश्य होने चाहिए । फोस्टर बनाम मैकिनन (Foster Vs. Mackinnon) (1869) के विवाद में यह निर्णय दिया गया था कि विनिमय विपत्र पर हस्ताक्षर के अभाव में विपत्र अधूरा और व्यर्थ माना जायेगा । लेखक यदि पढ़ा लिखा नहीं है तो अँगूठा-निशानी भी लगा सकता है । हस्ताक्षर एजेण्ट के द्वारा भी किये जा सकते हैं ।
5. ऋणी निश्चित हो:
बिल को स्वीकार करने वाला निश्चित व्यक्ति हो, इस प्रकार का सन्दर्भ या विवरण लेखक द्वारा ही दिया जाना चाहिए । स्वीकृति देने वाले एक से अधिक व्यक्ति हो सकते है, परन्तु वे एक-दूसरे का विकल्प (Alternative) नहीं बन सकते हैं, वे संयुक्त रूप से ही उत्तरदायी होते हैं ।
6. धनराशि प्राप्तकर्ता:
विनिमय विपत्र में धनराशि प्राप्त करने वाला ऋणदाता स्वयं या उसका आदेशित व्यक्ति हो सकता है, परन्तु सामान्य रूप से बिल में वाहक में देय नहीं बनाया जा सकता है ।
7. निश्चित रकम:
विनिमय विपत्र में देय तिथि या मांगने पर चुकने वाली रकम निश्चित होनी चाहिए, परन्तु ब्याज की रकम की गणना समय के अनुसार की जा सकती है, ब्याज चुकाये जाने की दशा में ब्याज की दर स्पष्ट रूप से दी जानी चाहिए ।
8. प्रचलित मुद्रा में भुगतान:
विनिमय विपत्र में भुगतान की प्रतिज्ञा देश की चालू मुद्रा में ही की जानी चाहिए । यदि कोई पक्षकार वस्तु की किसी मात्रा देने की प्रतिज्ञा करता है तो इसे विनिमय विपत्र नहीं माना जायेगा ।
9. आवश्यक मुद्रांक:
भारतीय स्टांप्स एक्ट के अनुसार किसी भी विनिमय विपत्र पर प्रचलित दर से आवश्यक मूल्य के रेवेन्यू स्टाम्प अवश्य लगे होने चाहिए । जहां तक सम्भव हो ऋणी के हस्ताक्षर भी इन पर किये जाए अथवा इन्हें चिपका कर रह भी किया जा सकता है ।
10. ऋणी की स्वीकृति:
ऋणदाता या बिल य लेखक विनिमय विपत्र में ऋणी को निश्चित भुगतान करने का आदेश देता है, परन्तु इसे ड्राफ्ट (या पत्र) ही माना जायेगा, इस ड्राफ्ट पर जब ऋणी अपनी स्वीकृति देकर अपने हस्ताक्षर कर देता है या मात्र हस्ताक्षर कर देता है, तब ही इसे विनिमय विपत्र के रूप में वैधानिकता प्राप्त होती है ।
11. व्यावहारिक प्रचलन के अनुसार विनिमय विपत्र पर तिथि और दोनों पक्षकारों के पते भी लिखे जाते हैं । यद्यपि कानूनी रूप से मात्र भुगतान की तिथि (अथवा माँगने पर देय) और भुगतान का स्थान लिखना आवश्यक समझा जाता है ।
12. व्यापारिक प्रचलन के अन्तर्गत ‘मूल्य प्राप्त’ शब्दों को भी लिखा जाना चाहिए, परन्तु कटी रूप से यह आवश्यक नहीं है ।
विनिमय विपत्रों के प्रकार (Types of Bills of Exchange):
वैधानिक रूप से विनिमय विपत्र दो प्रकार के हो सकते हैं- देशी विनिमय विपत्र और विदेशी विनिमय विपत्र । देशी विनिमय विपत्र का अर्थ और महत्वपूर्ण विशेषताएँ ऊपर दी जा चुकी हैं ।
विदेशी विनिमय विपत्र:
वैधानिक रूप से विदेशी विनिमय विपत्रों की कोई अलग परिभाषा नहीं दी गई है, परन्तु इनके लिखने और प्रतियों के आधार पर ही इन्हें अलग रूप से समझा जा सकता है । विदेशी विनिमय विपत्र की साधारणतया तीन प्रतियाँ बनाई जाती हैं इन्हें वैकल्पिक रूप में तैयार किया जाता है अर्थात् तीन में से कोई एक ही प्रति वैध होती है, तीनों को अलग-अलग भेजा जाता है, जिससे कि यदि एक प्रति रास्ते में खो जाती है तो दूसरी या तीसरी प्रति काम में आ सकती है ।
स्वीकृति के समय इनमें से किसी एक बिल पर ही टिकिट लगाया जाता है और शेष दोनों भाग व्यर्थ हो जाते हैं ।
अधिनियम की धारा 132 एवं 133 में विदेशी बिलों के नियमन से सम्बन्धित निम्न प्रावधान लागू होते हैं:
(i) विदेशी विनिमय विपत्र भागों में तैयार होता है और इन भागों को ही सामूहिक रूप से बिल माना जाता है । ऋणी को इनमें से किसी एक ही बिल का भुगतान करना पड़ता है और शेष व्यर्थ माने जाते है ।
(ii) लेखक बिल को तीन भागों में तैयार करके भेजता है, परन्तु स्वीकृति एक ही भाग की मानी जाती है, परन्तु यदि स्वीकृति तीनों बिलों पर अलग-अलग व्यक्तियों के पक्ष में दे दी जाती है तो इन्हें तीन अलग बिल माना जायेगा और भुगतानकर्ता इन तीनों बिलों को चुकाने के लिए दायी हो सकता है ।
(iii) बिल के धारक अथवा यथाविधि धारकों के मध्य सम्बन्धों का नियमन धारा 133 में दिया गया है, जिसके अन्तर्गत किसी भाग के प्रथम प्राप्तिकर्ता को ही उचित वैधानिक अधिकार उपलब्ध होते हैं अन्य यथा विधिधारियों को नहीं ।
सामान्य रूप से विदेशी बिलों का नियमन दोनों अलग देशों की सरकारी के कानून के अनुसार अपने-अपने देशों में अलग-अलग होता है ।
विदेशी विनिमय विपत्र का नमूना:
(चूकि यह विदेश के व्यापारी के साथ व्यवहार में लाया जाता है अतः श्रेष्ठ यही समझा जाता है कि इसे अंग्रेजी में ही लिखा जाये)
उपयुक्त के अनुसार ही दूसरा और तीसरा बिल लिखकर अलग भेजा जाता है अन्तर केवल प्रथम, द्वितीय और तृतीय को रह करने में किया जाता है ।
देशी और विदेशी बिलों में अन्तर:
देशी बिल भारत में ही इसी देश के किसी अन्य निवासी पर लिखे जाते है, जिनका भुगतान भारत में किया जाना है परन्तु विदेशी बिलों की स्थिति में इस दृष्टि से कुछ अन्तर पाया जाता है ।
देशी और विदेशी बिलों में अन्तर निम्न आधारों पर किया जा सकता है:
1. प्रतिलिपि:
देशी बिल की केवल एक ही प्रति बनाई जाती है जबकि विदेशी बिलों की तीन प्रतियां बनानी पड़ती है ।
2. मुद्रांक:
विदेशी बिलों में मुद्रांक पहले लेखक द्वारा लगाया जाता है और बाद में स्वीकर्ता द्वारा अपने देश का मुद्रांक लगाया जाता है, अतः विदेशी बिलों में दो बार मुद्रांक लगाने की आवश्यकता रहती है जबकि देशी विनिमय विपत्र में एक बार ही स्वीकृति देने वाले व्यक्ति द्वार स्टाम्प लगाया जाता है ।
विदेशी बिलों की भुगतान अवधि (USANCE):
जब किसी बिल में लिखा एक देश में जाता है और भुगतान अन्य देश में किया जाता है तो व्यापारिक परम्पराओं के अनुसार उसकी कोई निश्चित भुगतान अवधि या तिथि मानी जाती है । विदेशी बिलों के सम्बन्ध में दोनों पक्षकारों को अवधि का निर्धारण करते समय अपने देशों के कानून का अध्ययन अवश्य कर लेना अन्यथा ऋणों के निपटारे की कठिन समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं ।
विनिमय विपत्रों के अन्य स्वरूप:
1. पारस्परिक सहायता या अनुग्रह विपत्र (Accommodation Bills):
प्रायः व्यापारियों को आपस में अति अल्प काल की वित्तीय आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के लिए अन्य व्यापारियों से या बैंकों से रुपया उधार माँगना पड़ता है । इसके लिए बैंक में कोई प्रतिभूति जमा करने के स्थान पर व्यापारी एक दूसरे पर विनिमय विपत्र लिखकर स्वीकार कर लेते है और इन विपत्रों को बैंक से भुना लेते हैं, बैंक से प्राप्त राशि को दो-तीन महीने प्रयोग कर लिया जाता है और देय तिथि में बैंक को बिल की राशि का भुगतान कर दिया जाता है ।
इन विनिमय विपत्रों में भुनाने या बट्टे की राशि धन के अनुपात में बांटी जाती है । व्यावहारिक रूप में कोई प्रतिफल नहीं दिया जाता है परन्तु विपत्र में ‘मूल्य प्राप्त है’ शब्दों को अवश्य लिखा जाता है ।
2. अपूर्ण या कोरा विपत्र (Inchoate Bills):
जब ऋणी बिल के लेखक को बिल पर मुद्रांक लगा कर और स्वीकार करके दे दें या कुछ आवश्यक बातों को बिना लिखे हस्ताक्षर करके दे देता है जिससे कि बिल का धारक उन बातों को बाद में भर ले तो इसे अपूर्ण बिल कहते हैं । यद्यपि यह अपूर्ण या कोरा विनिमय विपत्र कहलाता है फिर भी इसे स्वीकार करने वाला व्यक्ति इस विपत्र के भुगतान के लिए दायी होता है । इस प्रकार के विपत्र का हस्तान्तरण यह प्रमाण होता है कि ऋणी ने बिल के धारक को सम्पूर्ण अधिकार दे दिये है |
3. तिथि रहित विपत्र (Undated Bill):
अधिनियम की धारा 18 में यह व्यवस्था की गई है कि यदि किसी बिल में लिखने की तिथि गलत हो जाये या लिखने से रह जाये तो इस प्रकार के तिथि रहित बिल को वैध माना जायेगा ।
4. संदिग्ध या अस्पष्ट बिल (Ambiguous Bill):
धारा 17 के अनुसार, यदि कोई बिल इस प्रकार गलत ढंग से लिखा गया है कि उसे प्रतिज्ञा पत्र या विनिमय पत्र कुछ भी समझा जा सकता है, तो इस प्रकार के विनिमय विपत्र को अस्पष्ट या संदिग्ध विनिमय विपत्र कहा जाता है ।
इसके अतिरिक्त लेखक और ऋणी एक ही व्यक्ति हो या ऋणी कोई ऐसा व्यक्ति हो जिसमें अनुबन्ध करने की योग्यता नहीं है अथवा कोई काल्पनिक व्यक्ति हो तो बिल का लेखक ही भुगतान के लिए दायी हो सकता है एवं बिल का धारक ऐसे पत्र को विनिमय विपत्र या प्रतिज्ञा पत्र मान सकता है ।
5. कल्पित या झूठा विपत्र (Fictitious Bill):
जब किसी बिल के लिखने वाला या उसे स्वीकार करने वाला व्यक्ति कल्पित है तो अंग्रेजी नियम के अनुसार ऐसे विपत्र वाहक को देय विपत्र माना जाता है, बिल के दोनों पक्षकारों में से किसी भी एक को भुगतान के लिए दायी समझा जा सकता है ।
6. प्रलेखीय या सशर्त विपत्र (Documentary Bill):
जिन विनिमय विपत्रों को स्वीकार करने के लिए जहाजी (बिल ऑफ लोडिंग) बिल्टी, बीमा पॉलिसी एवं बीजक आदि की प्राप्ति पर स्वीकार किया जाता है तो इन्हें प्रलेखीय विनिमय विपत्र माना जाता है । इनकी स्वीकृति या भुगतान प्रायः बैंक के माध्यम से ही किये जाते हैं ।
7. बैंक विपत्र:
जब बैंक की एक शाखा किसी दूसरी शाखा पर किसी निश्चित भुगतान करने का आदेश देती है तो इसे बैंक विपत्र (Bank Draft) कहा जाता है । उपर्युक्त विभिन्न प्रारूपों के अतिरिक्त समय पर देय या माँगने पर देय विनिमय विपत्र हो सकते है ।