ईसीजीसी: कार्य, नीतियां और आलोचनाएं | Read this article in Hindi to learn about:- 1. भारतीय निर्यात ऋण गारण्टी निगम का परिचय [Introduction to Export Credit Guarantee Corporation of India (ECGC)] 2. भारतीय निर्यात ऋण गारण्टी निगम के कार्य [Functions of Export Credit Guarantee Corporation of India (ECGC)] and Other Details.

भारतीय निर्यात ऋण गारण्टी निगम का परिचय [Introduction to Export Credit Guarantee Corporation of India (ECGC)]:

निगम भारतीय कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत पंजीकृत स्वतन्त्र कम्पनी है जिसका सम्पूर्ण स्वामित्व भारत सरकार का है । इस निगम का प्रशासनिक नियन्त्रण वाणिज्य मंत्रालय के अन्तर्गत विदेशी व्यापार विभाग का है। निगम की अधिकृत अंश पूँजी प्रारम्भ में 5 करोड़ रुपये तथा निर्गमित पूंजी 25 करोड़ रुपये तथा प्रदत्त अंश-पूँजी एक करोड़ रुपये थी ।

अब इसकी अधिकृत पूंजी 500 करोड़ रुपये तथा चुकता पूँजी 1995-96 में 50 करोड़ 1996-97 में 75 करोड़ तथा 1997-98 में 150 करोड़ रुपये हो गई । यह सम्पूर्ण पूँजी केन्द्र सरकार द्वारा प्रदत्त है ।

निगम का प्रबन्ध एक संचालक मण्डल द्वारा होता है । जिसमें एक अध्यक्ष एवं प्रबन्ध संचालक तथा कम से कम तीन तथा अधिक से अधिक तेरह अन्य संचालक हो सकते हैं । संचालकों की नियुक्ति वाणिज्य मंत्रालय की सलाह से राष्ट्रपति द्वारा की जाती है तथा वे सरकार, उद्योग-धन्धों, व्यापार, बीमा तथा बैंकिंग व्यवसाय के प्रतिनिधि होते हैं ।

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निगम का प्रधान-कार्यालय मुम्बई में है । इस प्रधान कार्यालय के अतिरिक्त मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई तथा नई दिल्ली में क्षेत्रीय कार्यालय तथा 22 शाखा कार्यालय देश के बड़े-बड़े शहरों में स्थापित किये गये हैं ।

भारतीय निर्यात ऋण गारण्टी निगम के कार्य [Functions of Export Credit Guarantee Corporation of India (ECGC)]:

इस निगम द्वारा ऐसी निर्यात साख बीमा प्रदान की जाती है जो वाणिज्यिक बीमा कम्पनियों द्वारा प्रदान नहीं की जाती ।

निगम के कार्यों को अग्रलिखित तीन प्रमुख श्रेणियों में बाँटा जा सकता है:

 

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(i) निर्यात साख बीमा प्रदान करना ताकि निर्यातक निःसंकोच विदेशों का माल निर्यात करके निर्यातों को बढाने में योगदान देते रहे ।

(ii) बैंक गारण्टियाँ प्रदान करना ताकि बैंक निर्यातकों को साख उपलब्ध करा सकें ।

(iii) निर्यात संवर्धन के वे सभी कार्य करना जो समय-समय पर सरकार द्वारा उसे निर्यात वृद्धि की दृष्टि से बताये जाते हैं ।

निगम का संचालन ‘न लाभ न हानि’ के व्यावसायिक सिद्धान्तों के आधार पर किया जाता है । यही कारण है कि निगम अपने बीमें तथा गारण्टियों के लिये न्यूनतम दरों पर प्रीमियम वसूल करता है ।

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निगम के कार्यों तथा उपयोगिता को भली-भाँति समझने के लिये आगे उन सभी जोखिमों का वर्णन किया जा रहा है जो निगम द्वारा बीमा पॉलिसियों के माध्यम से वहन की जाती हैं ।

भारतीय निर्यात ऋण गारण्टी निगम की निर्यात साख बीमा पॉलिसियाँ [Export Credit Guarantee Corporation of India (ECGC) Insurance Policies]:

भारतीय निर्यात ऋण गारण्टी निगम निर्यातकों को निर्यात व्यापार की विभिन्न प्रकार की जोखिमों से सुरक्षा प्रदान करने के लिये विभिन्न प्रकार की बीमा पॉलिसियों उपलब्ध करवाता है जिन्हें चार वर्गों में बाँटा जा सकता है:

(1) मानक पॉलिसियाँ (Standard Policies)

(2) लघु निर्यातक पॉलिसियां (Small Exporter’s Policies)

(3) विशिष्ट पॉलिसियाँ (Special Policies)

(4) सेवायें तथा निर्माण कार्य पॉलिसियाँ (Service and Construction Policies)

बैंकों को गारण्टियाँ (Guarantees to Banks):

ई. सी. जी. सी. ने निर्यातकों की उधार पात्रता में वृद्धि करने की दृष्टि से बैंकों की गारण्टी प्रदान करने की एक योजना बनाई है ताकि वे अपने बैंकरों से अच्छी व अधिक सुविधायें प्राप्त कर सकें । गतिण्टयों द्वारा बैंकों को यह आश्वासन दिया गया है कि यदि निर्यातक बैंक के प्रति अपनी देयताओं की पूर्ति करने में असमर्थ रहता है तथा जिसके फलस्वरूप बैंक को हानि उठानी पड़ती है तो ई.सी.जी.सी. बैंक को हुई हानि के बड़े अंश की भरपाई करेगा ।

शेष हानि के लिये बैंक को भी सहबीमाकर्ता होना होगा । दावे के भुगतान के पश्चात् यदि कोई राशि वसूल की जाती है तो उसका निगम तथा बैंक के बीच उसी अनुपात में बँटवारा किया जायेगा जिस अनुपात में उसके द्वारा हानि वहन की गई थी । वसूल की गई राशि में से पहले वसूली व्यय चार्ज किया जायेगा ।

निर्यातकों की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये निगम निम्नलिखित प्रकार की गारंटियाँ प्रदान करता है:

(1) पैकिंग ऋण गारण्टी;

(2) निर्यात उत्पादन वित्त गारण्टी;

(3) पोत-लदानोत्तर निर्यात ऋण गारण्टी;

(4) निर्यात वित्त गारण्टी;

(5) निर्यात निष्पादन गारण्टी, तथा

(6) निर्यात वित्त (विदेशों में उधार) गारण्टी ।

विशेष योजनायें (Special Policies):

(1) अन्तरण गारण्टी (Transfer Guarantee):

जब भारत स्थित कोई बैंक विदेशी साख पत्र की पुष्टि करता है, तब वह साख पत्र के हिताधिकारी द्वारा आहरित ड्राफ्टों को उस पर अवलम्बित हुये बिना स्वीकारने के लिये अपने आपको बाध्य कर लेता है, बशर्ते कि ऐसे ड्राफ्ट निश्चित रूप से साख-पत्र की शर्तों के अनुसार आहरित किये गये हों ।

यदि विदेशी बैंक, पुष्टि करने वाले बैंक को, निर्यातक को अदा की गई राशि की प्रतिपूर्ति करने में चूक जाए तो पुष्टि करने वाले बैंक को हानि होगी । यह स्थिति साख पत्र खोलने वाले बैंक के दिवालियेपन या चूक या युद्ध अन्तरण में विलम्ब, अधिस्थगन जैसे कुछ ऐसे राजनीतिक जोखिमों के कारण उत्पन्न हो सकती है जिनसे भारत स्थित बैंक को निधियों का अन्तरण किये जाने में विलम्ब हो सकता है या बाधा पड़ सकती है ।

अन्तरण गारण्टी का उद्देश्य भारत-स्थित बैंकों को ऐसे जोखिमों से उत्पन्न होने वाली हानियों से सुरक्षा प्रदान करना है । अन्तरण गारण्टी द्वारा बैंक को वैकल्पिक तौर पर या तो केवल राजनीतिक जोखिमों से या राजनीतिक व वाणिज्यिक जोखिमों से रक्षा प्रदान करता है ।

राजनीतिक जोखिमों से होने वाली हानि के 90% तक और वाणिज्यिक जोखिमों से होने वाली हानि के 75% तक रक्षा प्रदान की जाती है । इसका प्रीमियम सामान्यता माल के निर्यात को रक्षा प्रदान करने वाली निगम की बीमा पॉलिसी की दर के अनुसार लिया जाता है ।

(2) विदेशी निवेश बीमा (Overseas Investment Insurance):

निगम ने विदेशों में भारतीय निवेशों को सुरक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से एक योजना बनायी है । विदेशों में परियोजनायें स्थापित करने या उनका विस्तार करने के लिये इक्विटी शेयर पूँजी या शर्तरहित ऋण के रूप में किये जाने वाले निवेशों के लिये निवेश बीमा अवस्था के अन्तर्गत रक्षा उपलब्ध होगी ।

निवेश नकद रूप में या भारतीय पूँजीगत वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात के रूप में हो सकता है । मूल निवेश और उस पर देय वार्षिक लाभांशों तथा ब्याज के लिये रक्षा उपलब्ध होगी ।

इस योजना के अन्तर्गत युद्ध, सम्पत्तिहरण और रकम से प्रेषण पर प्रतिबन्ध की जोखिमों से रक्षा मिलती है । चूँकि संयुक्त उद्यम के प्रबन्ध में निवेशकर्ता का भी हाथ रहेगा, अतः इस योजना के अन्तर्गत वाणिज्यिक जोखिमों के लिये रक्षा प्रदान नहीं की जायेगी ।

किसी देश में किये जाने वाले निवेश के लिये निवेश बीमा सुविधा तभी मिल सकती है जब एक देश से निवेश में दूसरे देश में सुरक्षा प्रदान करने वाला द्विपक्षीय करार हो । किसी ऐसे करार या संविदा के न होने पर निगम रक्षा प्रदान करने पर विचार कर सका है बशर्ते कि वह इस बात से सन्तुष्ट हो कि सम्बन्धित देश के सामान्य कल भारतीय निवेश को पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करते हैं ।

बीमा रक्षा की अवधि आम तौर पर 15 वर्ष से अधिक नहीं होगी । जिन परियोजनाओं की निर्माण अवधि काफी लम्बी रहती है उनके मामले में परियोजना की समाप्ति की तारीख से 15 वर्ष तक रक्षा प्रदान की जा सकती है, किन्तु अधिकतम अवधि निवेश के प्रारम्भ की तारीख से 20 वर्ष ही होगी । बीमाकृत रकम को बीमा अवधि के अन्तिम पाँच वर्षों में क्रमशः कम कर दिया जायेगा ।

(3) विदेशी मुद्रा विनिमय दर में घट-बढ़ के जोखिम से रक्षा योजनायें (Exchange Fluctuation Risk Cover):

विदेशी मुद्रा विनिमय दर में घट-बढ की जोखिम से रक्षा की योजनाओं का उद्देश्य पूँजीगत वस्तुओं के निर्यातकों, सिविल इंजीनियरी के संविदाकरों और परामर्शदाताओं को कुछ हद तक सुरक्षा प्रदान करना है, क्योंकि उन्हें अपने निर्यातों, निर्माण कार्यों अथवा सेवाओं के लिये भुगतान अक्सर कई वर्षों की अवधि में प्राप्त होता है ।

इस भुगतान में विदेशी मुद्रा में प्राप्त होने वाली घट-बढ़ की जोखिम बनी रहती है और वायदा विदेशी मुद्रा बाजार ऐसे आस्थिगत भुगतानों के लिये रक्षा प्रदान नहीं करता ।

विदेशी मुद्रा विनिमय दर में घट-बढ़ के जोखिम से रक्षा 12 महीने या उससे अधिक अवधि वाले और अधिकतम 15 वर्ष की अवधि तक वाले भुगतान कार्यक्रमों के लिये उपलब्ध है । यह रक्षा बोली की तारीख से लेकर अन्तिम किस्त तक प्राप्त की जा सकती है ।

बोली के समय निर्यातक/संविदाकार विदेशी मुद्रा विनिमय दर में घट-बढ़ के जोखिम (बोली) से रक्षा प्राप्त कर सकती है । रक्षा का आधार तय की गई ‘हवाला दर’ (रेफरेंस रेट) होगी । ‘हवाला दर’ बोली की तारीख को प्रचलित दर या उसके निकट की कोई दर हो सकती है । रक्षा शुरू में 12 महीने की अवधि के लिये प्रदान की जाती है और यदि आवश्यक हो तो उसे बढ़ाया जा सकता है । यदि बोली मंजूर हो जाती है तो निर्यातक-संविदाकार को संविदा के अन्तर्गत देय सभी अदायगियों के लिये विदेशी मुद्रा विनिमय दर में घट-बढ़ (संविदा) रक्षा प्राप्त करनी होती है ।

संविदा की रक्षा के लिये हवाला दर निर्यातक सविदाकार के विकल्प पर बोली की रक्षा के लिये प्रयुक्त हवाला दर या संविदा तारीख को प्रचलित दर होगी । यदि बोली मंजूर नहीं होती तो निर्यातक/संविदाकार द्वारा अदा किये गये प्रीमियम में से 75% राशि उसे वापस कर दी जाती है ।

विदेशी मुद्रा विनिमय दर में घट-बढ जोखिम (संविदा) रक्षा केवल तब जारी की जा सकती है जब संविदा के अन्तर्गत अदायगियों संविदा की तारीख से 12 महीने से अधिक अवधि में प्राप्त होती हों, परन्तु ऐसे मामलों में 12 महीनों के अन्दर-अदा की जानेवाली किस्तों के लिये भी रक्षा प्राप्त होगी ।

संविदा के अन्तर्गत प्राप्त होने वाली सभी राशियों के लिये रक्षा उपलब्ध होगी, चाहे वह वस्तुओं या सेवाओं या ब्याज की अदायगी हो या कोई अन्य अदायगी । खरीददार ऋण और ऋण व्यवस्था के अन्तर्गत आने वाली संविदायें भी इन योजनाओं के अन्तर्गत रक्षा प्राप्त करने के लिये पात्र है । निर्यातक को यह विकल्प भी प्राप्त है कि वह तीन महीने की अग्रिम सूचना देकर तीसरा वर्ष समाप्त होने पर संविदा को समाप्त कर दे ।

इन योजनाओं के अधीन अमरीकी डॉलर, पाउंड स्टर्लिंग, ड्‌यूश मार्क, जापानी येन, फ्रेंच फ्रैंक, स्विस फ्रैंक, संयुक्त अरब अमीरात दिरहाम और आस्ट्रेलियन डॉलर में विनिर्दिष्ट अदायगियों के लिये भी रक्षा उपलब्ध है । परन्तु निगम अपने विवेक से अन्य परिवर्तनीय मुद्राओं में विनिर्दिष्ट अदायगियों के लिये भी रक्षा उपलब्ध करा सकता है ।

भारतीय निर्यात ऋण गारण्टी निगम की प्रगति एवं उपलब्धियां [Progress and Achievements of Export Credit Guarantee Corporation of India (ECGC)]:

(1) निर्यात साख बीमा की प्रगति (Progress of Export Credit Corporation):

निगम भारतीय निर्यातकों को मानक पॉलिसियों, सेवा व निर्माण पॉलिसियों तथा विशिष्ट पॉलिसियों द्वारा निर्यात साख बीमा की सुविधा प्रदान करता रहा है ।

(2) निर्यात साख की बैंकों को दी जाने वाली गारण्टियों में वृद्धि (Increase in Guarantees Given to Banks for Exports Credit):

बैंक निर्यातकर्ताओं को सस्ती और सुगमतापूर्वक साख प्रदान कर सके, इसलिये निगम बैंकों को उनके द्वारा निर्यातकों को प्रदत्त साख के लिये विभिन्न प्रकार की गारण्टियाँ देता है । निगम द्वारा बैंकों को दी जाने वाली गारण्टियों में विगत कुछ वर्षों में भारी वृद्धि हुई है ।

(3) निगम की प्रीमियम आय में वृद्धि (Increase in Premium Income):

निगम बीमा पॉलिसियों तथा गारण्टियों के लिये निर्यातकों से निःशुल्क अथवा प्रीमियम प्राप्त करता है । निगम के बीमा तथा गारण्टी व्यवसाय की प्रगति के साथ इसकी प्रीमियम आय में भी निरन्तर वृद्धि हुई है ।

(4) जोखिम के अनुसार दावों की प्रकृति (Nature of Capital Paid According to Risks):

1957-99 तक निगम को राजनीतिक जोखिमों के कारण सर्वाधिक मात्रा में दावों का भुगतान करना पड़ता है । दूसरा स्थान भुगतान प्राप्त होने वाली जोखिमों का रहा है ।

(5) चालू विशेष योजनायें (Special Schemes in Force):

निगम द्वारा संचालित विशेष योजनाओं के अन्तर्गत विदेंशी विनियोग बीमा पालिसियां, हस्तान्तरण गारण्टियाँ, क्रेता साख एवं लाइन ऑफ क्रेडिट की जोखिम से सुरक्षा प्रदान की जाती है ।

 

(6) विदेशी विनिमय दर में होने वाले उच्चावचन की जोखिम से सुरक्षा (Safety from the Risk of Fluctuations in Exchange Rate):

विनिमय दरों में होने वाले उतार-चढावों से सुरक्षा प्रदान करने के लिये निगम ने यह योजना 1982 में प्रारम्भ की । 2005 के अन्त तक ऐसी 27 पॉलिसियां चालू थीं जिनका जोखिम सुरक्षा मूल्य 25 करोड़ रुपये का था ।

(7) पॉलिसियों एवं गारण्टियों का क्षेत्रीय वितरण (Regional Distribution of Policies and Guarantees):

निगम की पॉलिसियों एवं गारण्टियों के क्षेत्रवार वितरण में यूरोप का सर्वाधिक हिस्सा 36% था । एशिया 23% हिस्से के साथ दूसरे स्थान पर और उत्तरी अमेरिका 21% हिस्से के साथ तृतीय स्थान पर था । अफ्रीका 15% भाग के साथ अन्तिम स्थान पर था ।

भारतीय निर्यात ऋण गारण्टी निगम के कार्यों की आलोचनायें [Criticism of Export Credit Guarantee Corporation of India (ECGC)]:

निगम द्वारा प्रदत्त बीमा पॉलिसियों एवं गारण्टियों के प्रकार तथा मात्रा में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, परन्तु फिर भी निगम के कार्यों में अनेक कमियाँ हैं जिनके लिये निगम के कार्यों की आलोचना की जाती है ।

प्रमुख आलोचनायें निम्नांकित हैं:

(1) बहुत सीमित निर्यात व्यापार की बीमा सुविधा (Risk Cover to a Limited Export Trade):

भारत के कुल निर्यात व्यापार का 20 प्रतिशत से भी कम भाग निगम की साख बीमा योजनाओं का लाभ प्राप्त करता है जबकि इंग्लैंड के निर्यात व्यापार का 35 प्रतिशत भाग ये सुविधायें प्राप्त करता है ।

(2) शुल्क की ऊँची दरें (High Premium Rates):

अन्य विकसित देशों की तुलना में बीमा पॉलिसियों एवं गारण्टियों पर शुल्क की दरें ऊंची है जिससे निर्यातों की लागत बढ़ जाती है, अतः बहुत कम निर्यातक इन सेवाओं की तरफ आकर्षित होते हैं ।

(3) जोखिम दायित्वों के वहन की नीची सीमा (Low Limit of Risk Cover):

इंग्लैंड में ECGC निर्यात साख बीमा पॉलिसियों में 95 प्रतिशत जोखिम की हानि वहन का दायित्व लेता है जबकि भारत का ECGC केवल 90 प्रतिशत हानि ही वहन करता है । निर्यातकों को प्रदान हो जाने वाली अधिकांश बैंक गारण्टियों में बैंकों को होने वाली हानि का 66.67 प्रतिशत ही निगम वहन करता है ।

(4) दावों के निपटारे में अनावश्यक-विलम्ब (Delay in Settlement of Claims):

निगम निर्यातकों अथवा बैंकों के विभिन्न दावों के निपटारे एवं भुगतान में अनावश्यक विलम्ब कर देता है जिससे निर्यातकों एवं बैंकों का निर्यात प्रोत्साहन का उत्साह ठंडा पड़ जाता है ।

(5) विदेशी खताओं की साख सीमा निर्धारण में अत्यधिक विलम्ब (Delay in Fixing Credit Limit of Foreign Buyers):

निर्यात साख एवं गारण्टी निगम विदेशी क्रेताओं की साख सीमा-निर्धारण में विलम्ब करता है जिससे निर्यातक अधिक निर्यात नहीं कर सकते ।

(6) अनेक जोखिमों का बीमा न करना (A Number of Risks Not Covered):

निगम अनेक प्रकार की जोखिमों जैसे विनिमय दरी में परिवर्तन, माल की किस्म सम्बन्धी विवाद आदि से उत्पन्न जोखिमों का बीमा नहीं करता है ।

(7) प्रचार का अभाव (Lack of Publicity):

निगम अपने कार्यों का अधिक प्रचार व प्रसार करने में असफल रहा है । अधिकांश छोटे निर्यातकों को इस बात का ज्ञान नहीं है कि निगम किन जोखिमों का बीमा करता है तथा क्या सुविधायें प्रदान करता है?

(8) उच्च पदों का रिक्त रहना (Vacant Higher Post):

निगम में अध्यक्ष एवं प्रबन्ध संचालक जैसे महत्वपूर्ण पद भी समय-समय पर रिक्त रहते हैं जिससे निगम के कार्यों में रुकावटे आती हैं ।

भारतीय निर्यात ऋण गारण्टी निगम को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिये सुझाव [Suggestions for Making Export Credit Guarantee Corporation of India (ECGC) More Effective]:

निर्यात ऋण गारण्टी निगम के कार्यों को अधिक प्रभावशाली बनाने तथा इसके द्वारा निर्यात व्यापार को अधिक सहायता पहुँचाने के लिये निम्न सुझाव सहायक हो सकते हैं:

(1) प्रत्येक निर्यातक को निर्यात साख बीमा का संदेश (Message to Every Exporter):

निगम को चाहिये कि वह अपने कार्यों का संदेश सभी निर्यातकों तक पहुँचाये । विभिन्न विज्ञापन के साधनों द्वारा निगम द्वारा प्रदान की जाने वाली सभी सेवाओं व सुविधाओं की जानकारी सभी निर्यातकों को दी जाये ।

(2) अधिक शाखा कार्यालयों की स्थापना (Opening of More Branches):

निगम के प्रधान कार्यालय के अतिरिक्त निगम के शाखा कार्यालयों की संख्या और अधिक बढाई जानी चाहिये जिससे निर्यात को निगम की सेवायें अधिक नजदीक ही प्राप्त हो सकें ।

(3) अधिक जोखिम का बीमा (Insurance of More Risks):

निगम द्वारा अभी तक जिन जोखिमों का बीमा नहीं किया जाता है उनके बीमा की व्यवस्था प्रारम्भ की जानी चाहिये ।

(4) उच्च पदों पर शीघ्र नियुक्ति (Early Appointment on Top Posts):

निगम में अध्यक्ष तथा प्रबन्ध संचालक के पद समय-समय पर रिक्त रहते हैं, अतः सरकार को चाहिये कि इन पदों पर स्थायी नियुक्तियां करे जिससे निगम के कार्यों का ठीक संचालन हो सके ।

निगम का निर्यात संवर्द्धन में योगदान (Contribution in Export Promotion):

निर्यात ऋण गारण्टी निगम अपने कार्यकलापों के माध्यम से भारतीय निर्यातों के सम्बर्द्धन में अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है ।

निगम ने भारतीय निर्यात व्यापार की वृद्धि में निम्न प्रकार योगदान दिया है:

(1) निर्यातकों को वाणिज्यिक एवं राजनीतिक जोखिमों से सुरक्षा के लिये बीमा सुविधा (Protection from Commercial and Political Risks):

निगम भारतीय निर्यातकों को निर्यात साख की विभिन्न जोखिमों से बचाने के लिए विभिन्न प्रकार की बीमा पॉलिसियों प्रदान करता है । सन् 1964 में निगम द्वारा 864 बीमा पॉलिसियाँ प्रदान की गई जिनके अन्तर्गत 1382 करोड़ रुपये की सुरक्षा प्रदान की गई ।

सन् 1982 में निगम द्वारा 4,745 पॉलिसियाँ निर्गमित की गईं जिनके अन्तर्गत 1,921 करोड़ रुपये की जोखिम का बीमा किया गया । 1996-97 में 7,590 पॉलिसियाँ निर्गमित की गई जिनमें अधिकतम दायित्व 7,000 करोड़ रुपये का था ।

वर्ष 1998-99 के अन्त में निगम की चालू पॉलिसियों की संख्या । 14,258 थीं जिन पर 19,746.9 करोड़ रुपये की जोखिम सुरक्षा प्रदान कर रखी थी । इस तरह निगम अधिक से अधिक निर्यातों का बीमा करके निर्यात व्यापार को बढाने में सहायक हो रहा है ।

(2) निर्यातकों को बैंक गारण्टियाँ (Bank Guarantees to Exporters):

निर्यातकों के वित्तीय साधन कम होने से वे विदेशी क्रेताओं को अधिक साख-सुविधायें नहीं दे सकते । निर्यात व्यापार की अधिक जोखिमों के कारण बैंक भी निर्यातकर्ताओं को ऋण देने में हिचकिचाते हैं । अतः निर्यातकों को दिये जाने वाले बैंक ऋणों एवं अग्रिमों के लिये निगम बैंकों को वित्तीय गारण्टी प्रदान करता है जिससे बैंक निर्यातकों को सुगमता से सस्ती ब्याज दरों पर वित्त उपलब्ध करवाते है ।

निगम द्वारा 1964 में 243 गारण्टियाँ प्रदान की गई थीं जिनका जोखिम मूल्य 17.8 करोड़ रुपये था तथा जिनके अन्तर्गत निगम का अधिकतम दायित्व 6 करोड़ रुपये था । निगम द्वारा 1982 में 7,395 बैंक गारण्टियाँ प्रदान की गई जिनमें निगम का अधिकतम दायित्व 7,582.2 करोड़ रुपये था ।

सन् 1996-97 में 2,987 गारण्टियाँ निर्गमित की गई जिनमें निगम का अधिकतम दायित्व 3,443.7 करोड़ रुपये था । वर्ष 1998-99 के अन्त में निगम की चालू गारण्टियों की संख्या 4807 थी और उन पर प्रदत्त जोखिम सुरक्षा मूल्य 13,771.20 करोड़ रुपये था ।

इस तरह स्पष्ट है कि आज अधिकांश निर्यातक निगम द्वारा प्रदान की जाने वाली बैंक गारण्टियों के माध्यम से अपने वित्तीय साधन बढाने में सफल हो रहे हैं तथा निर्यात व्यापार अधिक उत्साह के साथ कर रहे हैं ।

(3) अदृश्य निर्यातक व्यापार को प्रोत्साहन (Promotion of Invisible Exports):

निगम पिछले वर्षों में ऐसे निर्यातकों को भी, जो विदेशों को सेवाओं का निर्यात करते हैं अथवा विदेशों में सिविल इंजीनियरिंग का निर्माण कर रहे है, साख बीमा सुविधा प्रदान कर रहा है । इससे भारत के अदृश्य निर्यात व्यापार का भी विस्तार हुआ है । 1970 में प्रारम्भ की गयी सेवा पॉलिसी इस दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है ।

(4) विदेशी आयातकों के सम्बन्ध में साख सूचना (Information about Foreign Importers):

निगम विदेशी आयतकों की साख क्षमता की सूचना एकत्र कर निर्यातकों को समय-समय पर जानकारी देता रहता है । इससे निर्यातक अधिक सुरक्षा के साथ व्यापार कर सकते हैं एवं उनके विदेशी भुगतानों के डूबने की सम्भावनायें बहुत कम रह जाती है ।

(5) निर्यात संवर्द्धन के अन्य कार्य (Other Measures of Export Promotion):

निगम समय-समय पर सरकार के कहने पर निर्यात संवर्द्धन के लिये अन्य आवश्यक कार्य भी करता है सन् 1964 से उसने एक आवृत्ति साख योजना चालू कर रखी है । इस योजना के अन्तर्गत निर्यात बाजार के लिये निर्दिष्ट माल का उत्पादन करने के लिये आवश्यक कच्चा माल, फालतू पुर्जे आदि आयात करने के लिये निर्माता-निर्यातकों को आवर्ती आधार पर विदेशी मुद्रा के ऋण उपलब्ध करवाये जाते हैं ।

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