बैंकों की वित्तीय स्थिति | Read this article in Hindi to learn about the knowledge gained from financial position of banks.
(1) बैंक की प्रगति का ज्ञान:
बैंक के विगत् वर्षों के स्थिति विवरण का अध्ययन का कोई भी व्यक्ति इस बात का सहज अनुमान लगा सकता है कि बैंक ने अब तक कितनी प्रगति की है । उसकी स्थिति बिगडी है या सुधरी है । यदि बैंक का सुरक्षित कोष बढ़ता है, तो यह शांत होता है कि बैंक ने प्रगति की है । इस प्रकार यदि बैंक का लाभांश बढ़ता हुआ दिखाई देता है तो यह ज्ञात होता है कि बैंक प्रगति कर रहा है । इन तथ्यों के ऋणात्मक होने पर बैंक घाटे में चलता है और वह दीवालियेपन की ओर बढ़ रहा होता है ।
(2) बैंक की वर्तमान-स्थिति का ज्ञान:
किसी भी बैंक की वर्तमान स्थिति कैसी है? इनका समुचित शान प्राप्त करने के लिए उसके स्थिति विवरण का अध्ययन लाभदायक होता है । चूंकि स्थिति विवरण में बैंक की समस्त देनदारियों और लेनदारियों को किसी एक निश्चित तिथि पर दर्शाया जाता है । अतः हमें यह सहज ज्ञात हो जाता है कि बैंक के पूजी के साधन कौन-कौन से हैं एवं वह उनका प्रयोग किस प्रकार कर रहा है तथा बैंक के पास नगद कोष कितना है ।
(3) बैंकों की वित्तीय दशा की तुलना:
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दो या दो से अधिक बैंकों के स्थिति-विवरण की तुलना करने पर ग्राहक इस बात का पता लगा सकता है कि बैंक की माली स्थिति अच्छी है । वह उनकी वित्तीय स्थिति की तुलना भी कर सकता है । इस तुलनात्मक अध्ययन में विभिन्न बैंकों की जमाओं, नगद कोषों सुरक्षित नीतियों, निधियों तथा निक्षेपों की वास्तविक स्थिति का पता चल जाता है ।
(4) जनता का विश्वास:
किसी भी बैंक के स्थिति-विवरण के अध्ययन से पता लगाया जा सकता है कि उस बैंक में लोगों का विश्वास कितना है ? यदि बैंक की देनदारियों की तुलना में लेनदारियों की राशि बढ़ती जा रही है तो यह कहा जा सकता है कि उस बैंक में जनता का विश्वास बढ़ रहा है और वह अधिक लाभदायक सेवा प्रदान कर रहा है । इसके विपरीत किसी बैंक की देनदारियां अधिक हो तो उस बैंक पर जनता का विश्वास कम हो जाता है ।
(5) बैंकों की सुरक्षा व तरलता का ज्ञान:
बैंक के स्थिति विवरण से यह पता लगाया जा सकता है कि उसकी देनदारियां किस प्रकार की है तथा उसने अपनी कार्यशील पूंजी का किस प्रकार विनियोग कर रखा है । इससे यह भी पता लगाया जा सकता है कि बैंक ने सुरक्षा व तरलता के सिद्धान्तों का कितना पालन किया है ।
उदाहरण के लिए- यदि बैंक ने कार्यशील पूंजी का अधिकांश भाग प्रथम श्रेणियों की प्रतिभूतियों, ट्रेजरी बिलों आदि पर लगा रखा है तो यह कहा जा सकता है कि बैंक की वित्तीय स्थिति सुदृढ़ है क्योंकि आवश्यकतानुसार बैंक इन प्रतिभूतियों को नकद मुद्रा में बदल सकता है ।