ऋण: प्रकार, सुरक्षा और अनुप्रयोग | Read this article in Hindi to learn about:- 1. ऋण का अर्थ (Meaning of Loans) 2. ऋण के प्रकार (Types of Loans) 3. लाभ और कमियाँ (Merits and Demerits) 4. जमानतें (Security) 5. आवेदन पत्रों का परीक्षण (Evaluation of Applications).

ऋण का अर्थ (Meaning of Loans):

बैंक किसी एक निश्चित कार्य या उद्देश्य के लिये एक मुश्त राशि एक पूर्व निर्धारित अवधि के लिए ऋण देते हैं । ये ऋण अल्पकालीन या मध्यकालीन अवधि के लिये दिये जाते है । उदाहरण के लिये एक रिक्शा चालक को स्वचालित रिक्शा क्रय करने हेतु 5,000 रुपये ऋण स्वीकार कर सकता है ।

स्वीकृत ऋण की सम्पूर्ण राशि ग्राहक को एक बार में ही भुगतान कर दी जाती है । ऋण की वसूली प्रायः किश्तों में ब्याज सहित की जाती है । इस प्रकार ऋण का प्रत्येक व्यवहार एक अकेला व्यवहार होता है जो बार-बार दोहराया नहीं जाता (Single Non-Repetitive Transaction) । यदि ग्राहक को भविष्य में और ऋण की आवश्यकता हो तो उसे पुनः नये सिरे से ऋण के लिये आवेदन करके नया ऋण स्वीकार कराना होता है ।

ऋण के प्रकार (Types of Loans):

अब हमारे देश में बैंकर एवं वित्तीय संस्थाएँ ऋण भी देने लगे हैं:

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(a) सावधि ऋण (Term Loans):

सावधि ऋण मध्यम अवधि (5 से 7 वर्ष) या दीर्घ अवधि (10 से 20 वर्ष) के लिये दिये जाते हैं । ये ऋण औद्योगिक उपक्रमों को अपनी इकाई का विस्तार, नवीनीकरण, आधुनिकीकरण आदि के लिये मध्यम या दीर्घकालीन वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु दिये जाते हैं ।

उधारकर्ता के ऋण-प्रस्ताव का परीक्षण किया जाता है तथा बैंक ऋण के उपयोग तथा प्रस्तावित कार्य की प्रगति पर भी निगाह रखता है । बैंकों के इन सावधि ऋणों में अपने कोष लम्बे समय तक नहीं लगाने पड़ते क्योंकि इस प्रकार दिये गये सावधि कणों के आधार पर वे औद्योगिक विकास बैंक (I.D.B.) से पुनर्वित्त (Refinance) की सुविधा प्राप्त कर लेते हैं ।

(b) उपभोक्ता ऋण या वैयक्तिक ऋण (Consumer Loans or Personal Loans):

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ये ऋण प्रायः नियमित तथा निश्चित आय वाले व्यक्तियों को उनके व्यक्तिगत उपयोग की टिकाऊ वस्तुओं (Consumer Durables) जैसे स्कूटर, कार, रेफ्रीजरेटर, टेलीविजन आदि आधुनिक उपकरणों के क्रय हेतु दिये जाते हैं । ये ऋण एकमुश्त दिये जाते हैं तथा किश्तों में देय होते हैं । अब ये ऋण विवाह अन्तिम संस्कार जैसे कार्यों के लिये भी स्वीकृत किये जाने लगे हैं । बैंक के अनेक कार्यों में ग्राहकों के ऋण देना भी एक प्रमुख कार्य है ।

ऋण देते समय बैंक को निम्नलिखित बातों का अवश्य ही ध्यान में रखना चाहिए:

ऋण देते समय सावधानियां:

(1) किसी भी ग्राहक को बहुत लम्बी अवधि के लिए ऋण नहीं देना चाहिये ।

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(2) सट्‌टे के कार्य के लिए तथा उपभोग के लिये कम ऋण देना चाहिये ।

(3) ऋण एक ही स्थान के व्यापारियों को नहीं देना चाहिए । उसी प्रकार एक ही व्यवसाय के लिये भी अनेक ऋण नहीं देने चाहिए, बल्कि थोड़ा-थोड़ा रुपया अनेक व्यक्तियों में, अनेक व्यवसायों में व अनेक स्थानों में विनियोजित करना चाहिए ।

(4) ऋणों को बार-बार व आसानी से नया नहीं करना चाहिए, क्योंकि ऐसे ऋणों की अन्त में वसूली करना कठिन हो जाता है ।

(5) ऋण के लिए उचित व पर्याप्त जमानत प्राप्त करनी चाहिए ।

(6) ऋण लेने वाले क साख की ठीक से जाँच कर लेनी चाहिए ।

(7) किसी एक ग्राहक को बडी रकम उधार नहीं देनी चाहिए ।

ऋण के लाभ और कमियाँ (Merits and Demerits of Loans):

ऋण पद्धति के लाभ:

(1) चूंकि ऋण की अदायगी एक निश्चित अवधि में पूर्व-निर्धारित किश्तों में की जाती है अतः इसमें ऋण लेने वाले व्यक्ति पर अधिक अच्छा अनुशासन रहता है । उसे निश्चित समय पर निश्चित राशि का भुगतान बैंक को करना होता है ।

(2) बैंक समय-समय पर ग्राहक के ऋण खाते का अवलोकन कर यह देखता रहता है कि ऋण की अदायगी समय पर हो रही है अथवा नहीं ।

(3) बैंक ऋण की सम्पूर्ण राशि पर ब्याज लेता है अतः बैंक को नियमित आधार पर ब्याज के रूप में आय होती है ।

कमियाँ:

(1) इसमें प्रत्येक बार जब आवश्यकता हो नया ऋण स्वीकार करना होता है, अतः ग्राहक को लोच का अभाव रहता है ।

(2) ग्राहक इसका उपयोग एक निश्चित कार्य के लिये ही कर सकता है ।

(3) ऋण की सम्पूर्ण राशि एक साथ लेनी होती है तथा उस पूरी राशि पर ब्याज देना पड़ता है ।

(4) ऋण प्राप्त करने हेतु जमानत या सुरक्षा (Security) देनी होती है तथा अनेक दस्तावेजों की पूर्ति करनी होती है ।

ऋण के हेतु दी जाने वाली जमानतें (Security for Loans):

बैंक जब किसी व्यक्ति या व्यापारी या कम्पनी को ऋण देता है तो वह ऋणी से किसी न किसी प्रकार की जमानत अवश्य लेता है ।

ये जमानतें दो प्रकार की होती हैं:

I. व्यक्तिगत जमानत:

जब बैंक किसी ग्राहक को, माल या अन्य सम्पत्ति जमानत के रूप में लिये बिना ही, उसकी ख्याति के आधार पर ऋण दे देता है तो उसे व्यक्तिगत जमानत पर दिया गया ऋण कहते हैं । इन्हें अरक्षित या स्वच्छ ऋण (Uncovered or Clean Loans) भी कहते हैं । ऐसे ऋणों का आधार केवल व्यक्ति पर विश्वास होता है ।

ऐसे ऋण देते समय बैंक ग्राहक की साख, सम्पत्ति व चरित्र के बारे में भली प्रकार जाँच कर लेता है । आवश्यकता समझने पर ऋणी की व्यक्तिगत जमानत के अलावा एक अन्य व्यक्ति की व्यक्तिगत जमानत भी माँगी जाती है । ऐसे ऋणों को दो हस्ताक्षर वाले कागजी ऋण कहते हैं ।

व्यक्तिगत जमानत यदि केवल एक विशिष्ट क्या के सम्बन्ध में है तो उसे विशिष्ट जमानत (Specific Personal Security) कहते हैं किन्तु यदि जमानत भविष्य में लिये जाने वाले समस्त ऋणों के सम्बन्ध में है, तो उसे चालू जमानत कहते हैं ।

II. सहायक जमानत:

ऋण की सुरक्षा के लिए ऋणी द्वारा जो भौतिक सम्पत्ति बैंक के पास जमानत के तौर पर रखी जाती है, उसे सहायक जमानत कहते हैं ।

बैंक के पास यह भौतिक सम्पत्ति तीन प्रकार से रखी जाती है:

(a) रहन (Lien):

इसमें सम्पत्ति बैंक के पास रहती है । ऋण वसूल न होने पर बैंक अदालत से आज्ञा लेकर जमानत के रूप में रखी हुई संपत्ति को बेच सकता है और अपना ऋण वसूल कर सकता है ।

(b) प्रतिज्ञा (Pledge):

इसमें भी सम्पत्ति बैंक के पास रहती है ऋण का भुगतान न होने पर बैंक ऋणी को सूचना देकर जमानत की सम्पत्ति को बेच सकता है ।

(c) बन्धक (Mortgage):

जब जमानत के रूप में भूमि, भवन, मशीन आदि अचल सम्पत्ति दी जाती है, तो उसे बैंक द्वारा अपने पास नहीं रखा जा सकता है, उस पर बैंक का अधिकार मात्र होता है । यदि रुपया वापिस न किया जाय, तो सम्पत्ति पर बैंक का स्वामित्व हो जाता है ।

सहायक जमानत के रूप:

 

सहायक जमानत के रूप में निम्नलिखित भौतिक सम्पत्तियों को स्वीकार किया जाता है:

(1) प्रतिभूतियां:

बैंक सरकारी, अर्धसरकारी, स्वायत्त संस्थाओं द्वारा जारी की गई अथवा औद्योगिक एवं व्यवसायिक कम्पनियों के शेयर और डिबेन्चरों के आधार पर ऋण प्रदान करते हैं ।

इस प्रकार की जमानत के लाभ ये हैं:

(i) इन्हें आसानी से बेचा जा सकता है ।

(ii) इनके स्वामित्व परिवर्तन में कोई कठिनाई नहीं होती ।

(iii) इनके मूल्यों में बार-बार परिवर्तन नहीं होता ।

(iv) इनकी जमानत पर अन्य बैंकों से ऋण मिल जाता है ।

(v) इनका प्रचलित मूल्य शेयर बाजार से मालूम किया जा सकता है ।

ऐसी प्रतिभूतियों के जमानत के रूप में स्वीकार करते समय यह ध्यान रखना चाहिये कि इनके स्वामित्व में दोष न हो, इनका किसी मान्य शेयर बाजार में सौदा होता हो, इनके मूल्य में विशेष उतार-चढाव न हो तथा ये पूर्णदत्त हों ।

(2) जीवन बीमा पॉलिसी:

बैंक व्यापारी या व्यक्ति की जीवन बीमा पॉलिसी पर भी ऋण देता है परन्तु ऐसी जमानत पा ऋण देते समय बैंकर को इन बातों का ध्यान देना चाहिये- पॉलिसी के समर्पण (Surrender Value) के 90 प्रतिशत से अधिक ऋण नहीं देना चाहिये, पॉलिसी का अभिहस्तांकन बैंक के पक्ष में करा दिया गया हो, पॉलिसी का समर्पण मूल्य तय करा लेना चाहिए, पॉलिसी चालू होनी चाहिए, मियादी बीमा पॉलिसी को प्राथमिकता देनी चाहिए ।

इस प्रकार की जमानत के गुण:

(i) पॉलिसी या मूल्य आसानी से ज्ञात किया जा सकता है ।

(ii) पॉलिसी के स्वामित्व का सही पता बीमा कम्पनी से लग जाता है ।

(iii) पॉलिसी के आधार पर अन्य बैंक से रुपया उधार लिया जा सकता है ।

(iv) ग्राहक के दिवालिया होने पर भी पॉलिसी की रकम पर बैंक का पूर्वाधिकार होता है ।

परन्तु यदि पॉलिसी में किसी भी प्रकार का दोष (उम्र आदि के प्रमाण) निकलेगा तो बीमा कम्पनी बीमे की रकम नहीं देगी ।

(3) माल और माल के अधिकार पत्र:

बैंक माल की जमानत पर या माल के अधिकार-पत्रों (Documents of Title) की जमानत पर भी ऋण देते हैं । गोदाम की रसीद, रेलवे की रसीद, डाक वारन्ट, बिल ऑफ लैडिंग आदि माल के अधिकार पत्र कहलाते हैं ।

इस प्रकार की जमानत में ये लाभ हैं:

(i) माल या माल के अधिकार को आसानी से बेचा जा सकता है ।

(ii) ये ऋण अल्पकालीन होते हैं ।

(iii) बैंक का ऋण डूबने का भय नहीं रहता है, क्योंकि बैंक ऐसे माल को बेच सकता है परन्तु इस जमानत में कई दोष हैं:

(a) माल के बिगड़ने का डर रहता है,

(b) माल के मूल्य में गिरावट आने पर पूरा ऋण वसूल करने में कठिनाई होती है,

(c) माल का सही मूल्य आंकने में कठिनाई होती है,

(d) अधिकार-पक्षों में धोखा होने की सम्भावना रहती है ।

ऐसी जमानत के आधार पर ऋण देते समय बैंक से कई सावधानियां रखनी चाहिए- ऋण की रकम व माल के मूल्य में काफी मार्जिन रखना चाहिये, जल्दी बिकने वाले माल को ही जमानत के रूप में स्वीकार करना चाहिए, माल के मूल्य तथा अधिकार-पत्रों को ठीक प्रकार जान करने के बाद ऋण देना चाहिए ।

(4) सम्पत्ति:

बैंक सम्पत्ति की आड़ पर भी ऋण देते हैं । यह सम्पत्ति दो प्रकार की होती है- चल और अचल । सोना, चाँदी, जेवरात, अनाज बना हुआ माल, कच्चा माल आदि चल सम्पत्ति हैं तथा भूमि, जमीन, मशीन आदि अचल सम्पत्ति हैं ।

अचल सम्पत्ति की जमानत पर ऋण देने से पूर्व उस सम्पत्ति के स्वामित्व के बारे में सही-सही जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए । उचित तो यही होगा कि इस सम्बन्ध में वकील से परामर्श ले लिया जावे । दूसरे, ऋण देते समय सम्पत्ति के मूल्य और ऋण की मात्रा में पर्याप्त अन्तर रखना चाहिये, ताकि मूल्य घटने पर ऋण की वसूली में कठिनाई न हो ।

सम्पत्ति पर ऋण देने में कई दोष हैं:

(i) सम्पत्ति के स्वामित्व को तय करना कठिन होता है । कई बार ऋणी उसी सम्पत्ति पर अनेक व्यक्तियों से ऋण ले लेता है ।

(ii) सम्पत्ति को आसानी से उचित मूल्य पर नहीं बेचा जा सकता है ।

(iii) सम्पत्ति का मूल्य विशेषज्ञों द्वारा तय करना पड़ता है ।

(iv) सम्पत्ति के मूल्य में ह्रास आदि के कारण कमी आ जाती है ।

(5) विनिमय बिल:

बैंक विनिमय बिल व हुण्डियों की आड़ पर भी ऋण देते हैं । इन्हें एक अच्छी जमानत माना जाता है, क्योंकि इनके मूल्य में कमी नहीं आती है, इनका रुपया कभी भी प्राप्त किया जा सकता है, अतएव इनमें तरलता है व इन्हें गिरवी रखकर बैंक ऋण ले सकता है ।

ऋण आवेदन पत्रों का परीक्षण (Evaluation of Loan Applications):

बैंक अपने ग्राहकों को अनेक प्रकार से ऋण देता है । किसी एक निश्चित उद्देश्य की पूर्ति हेतु एक मुश्त राशि निश्चित अवधि के लिये प्रदान की जाती है । बैंक से ऋण प्राप्ति के लिये ग्राहक के बैंक द्वारा निर्धारित प्रारूप में ऋण आवेदन पत्र भरकर प्रस्तुत करना पड़ता है ।

बैंकर ऋण आवेदन पत्र का निम्न प्रकार से परीक्षण करता है:

(1) ऋण आवेदक के नाम की पुष्टि करना ।

(2) ऋण आवेदक का पता एवं व्यक्तिगत जानकारी का सत्यापन करना ।

(3) परीक्षण के दौरान यह देखा जाता है कि आवेदक ने जिस कार्य से ऋण आवेदन दिया है क्या वह जानकारी सही है अथवा नहीं ।

(4) ऋण आवेदक की स्थिति कैसी? क्या बाजार में उसकी प्रतिष्ठा या साख है?

(5) आवेदक की आर्थिक स्थिति के अन्तर्गत उसकी आय के स्रोत क्या हैं? आदि जानकारी प्राप्त करना ।

(6) ऋण आवेदक यदि उद्योग स्थापित करने के उद्देश्य से ऋण प्राप्त करना चाहता है तो जमानत के आधार पर अंशों एवं प्रतिभूतियों को गिरवी रखना पड़ता है ।

(7) उद्योग अथवा कारखाने में कच्चे माल की आवक हेतु परिवहन के साधनों की जानकारी प्राप्त करना तथा कच्चे माल की उपलब्धता कहा से किस प्रकार होगी आदि तथ्यों का परीक्षण करना ।

(8) निर्मित माल के लिये बाजार की क्या स्थिति है उत्पादित माल की माँग अधिक है या कम ।

(9) अनुमानित वार्षिक लाभ क्या होगा? क्या वह एक निश्चित समय में किस्त वापसी की अदायगी कर सकेगा?

(10) परीक्षण के दौरान, सम्पूर्ण आवेदन पत्र में भरी हुई प्रविष्टियों का निरीक्षण करना ।

उपरोक्त सभी तथ्यों से सन्तुष्ट होकर बैंकर अपने ग्राहकों को ऋण प्रदान करता है ।

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