राष्ट्रीयकरण के बाद वाणिज्यिक बैंकिंग की प्रगति | Read this article in Hindi to learn about the progress of commercial banking after nationalization.

सन् 1969 के राष्ट्रीयकरण के बाद व्यापारिक बैंक, की संरचना एवं व्यवस्था में एक विशेष बल और सामंजस्य स्थापित हुआ है । राष्ट्रीयकृत बैंकों की नीतियों और कार्य विधि का स्टेट बैंक और इसके अनुषांगियों (Subsidiaries) के साथ घनिष्ठ ताल-मेल स्थापित हुआ है, जबकि 1969 के राष्ट्रीयकरण से पूर्व ये भिन्न दशाओं में भी कार्य करते थे ।

फलतः राष्ट्रीयकरण के बाद मौद्रिक एवं बैंक-नीतियों के निर्माण और कार्यान्वयन के लिए अब अपेक्षाकृत अच्छा वातावरण उपलब्ध हुआ है । राष्ट्रीयकरण के बाद की प्रमुख उपलब्धियों में ग्राम क्षेत्रों में शाखा विस्तार, कृषि एवं सम्बन्धित क्षेत्र में साख सुविधाओं का विस्तार, छोटे उद्योगों को ऋण सुविधाएँ जुटाना और कुछ अन्य उपेक्षित क्षेत्रों की सहायता करना आदि है ।

इनका विस्तृत विवरण निम्न प्रकार है:

1. शाखा विस्तार (Branch Expansion):

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राष्ट्रीयकरण के बाद सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि शाखाओं के विस्तार में हुई । अग्रणी बैंक योजना (Lead Bank Scheme) एवं क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (Regional Rural Banks) स्थापना से ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग सुविधाओं का विस्तार हुआ |

राष्ट्रीयकरण के बाद 45 वर्षों में बैंक शाखाओं की संख्या में लगभग 35 गुना वृद्धि हुई है । ग्रामीण क्षेत्रों की शाखाएँ इस अवधि में 1860 से बढकर 39439 हो गई है । सन् 1969 में 63800 जनसंख्या के लिये एक बैंक शाखा थी जो वर्ष 2013 में 12000 जनसंख्या के लिए एक बैंक शाखा में परिवर्तित हो गई है ।

वर्तमान में एक बैंक शाखा 16 किलोमीटर के घेरे के अंदर के ग्रामों में सेवाएँ उपलब्ध कराती हैं । कुछ बैंकों ने चलती-फिरती शाखाएँ (Mobile Branch) भी स्थापित की हैं । इस प्रकार स्पष्ट है कि राष्ट्रीयकरण के बाद ग्रामीण क्षेत्रों में बैंक सुविधाओं का तेजी से विस्तार हुआ है और इससे ग्रामीण एवं कुटीर उद्योगों के साथ ही कृषि क्षेत्र को संस्थागत साख प्राप्त होने लगी है ।

2. प्राथमिकता क्षेत्र को ऋण सुविधाएँ (Credit Facilities to Priority Sectors):

राष्ट्रीयकरण से पूर्व तक व्यापारिक बैंकों ने कृषकों, छोटे उद्योगपतियों, कारीगरों एवं निर्यात में की उपेक्षा की थी । राष्ट्रीयकरण के बाद बैंकों ने प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को ऋण उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की । सन् 1969 में प्राथमिकता वाले क्षेत्र को कुल ऋणों का केवल 15 प्रतिशत भाग प्राप्त हुआ था जो बढकर सन् 2007 में लगभग 54 प्रतिशत हो गया ।

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उधार दी गई राशि का विश्लेषण करने से यह तथ्य सामने आता है कि प्राथमिकता वाले क्षेत्र को सन् 1969 में 440 करोड़ रुपये के ऋण दिये थे जो बढकर सन् 2007 में 1,46,550 करोड़ रुपये हो गये । इस प्रकार स्पष्ट है कि राष्ट्रीयकरण के बाद प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को ऋण उपलब्ध कराने में उल्लेखनीय प्रगति हुई है ।

3. जमाओं को गतिशील करना (Deposit Mobilization):

राष्ट्रीयकरण के बाद यद्यपि बैंक जमाओं में वृद्धि हुई है, तथापि वृद्धि की दर धीमी रही है । जमाओं में वृद्धि की दर इस अवधि में लगभग 17 प्रतिशत रही । जमा राशि में वृद्धि का श्रेय मुख्यतः शाखाओं में विस्तार को है । यहाँ यह उल्लेखनीय है कि विदेशी बैंकों में गैर-सरकारी क्षेत्र के बैंकों की जमा राशि में कहीं अधिक वृद्धि हुई है ।

4. साख में विस्तार (Credit Expansion):

राष्ट्रीयकरण के बाद बैंकों ने साख का विस्तार बहुत तेजी से किया । सामान्यतः बैंक साख का विस्तार बैंक जमा के विस्तार के साथ-साथ होता है, किन्तु राष्ट्रीयकरण के बाद बैंक साख का विस्तार लगभग 24 प्रतिशत की दर से हुआ जबकि बैंक जमा में केवल 17 प्रतिशत की वृद्धि हुई ।

5. विकास वित्त का विस्तार (Expansion of Development Finance):

राष्ट्रीयकरण के बाद बैंकों ने अपने पारम्परिक उद्देश्य (अर्थात् हिस्सेदारों को लाभ पहुँचाना) के कार्य का परित्याग कर दिया है और अब वे विकास वित्त में महत्वपूर्ण योगदान देने लगे है । अल्पकालीन ऋणों की अपेक्षा अब व्यापारिक बैंक विकास-और विस्तार की आवश्यकताओं को दृष्टि में रखते हुए मध्यम और दीर्घकालीन ऋणों की अपनी क्रियाओं को बढा रहे हैं । अग्रणी बैंक योजना (Lead Bank Scheme) भी इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है ।

6. समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम (Integrated Rural Development Programme):

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यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था में असन्तुलन को दूर करने एवं ग्रामीण जनता के सर्वागीण विकास का महत्वपूर्ण कार्यक्रम है । वर्ष 1999-2000 में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने 19,240 करोड़ रुपये के ऋण समाज के कमजोर वर्गों को दिए । यह राशि कुल दिए गए ऋणों का 7.2 प्रतिशत थी ।

7. सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश वृद्धि (Increase in Investment in Government Securities):

राष्ट्रीयकरण से पूर्व व्यापारिक बैंकों द्वारा अपने कूल निक्षेपों का 20 से 25 प्रतिशत भाग सरकारी प्रतिभूतियों में लगाया जाता था । अब यह प्रतिशत 40 से 45 प्रतिशत हो गया है । इससे सरकार को अल्पकालीन वित्तीय सुविधाएँ सरलता से प्राप्त होने लगी हैं ।

उपर्युक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि राष्ट्रीयकरण के बाद व्यापारिक बैंकों की शाखाओं की संख्या में हुई तीव्र वृद्धि से देश के कोने-कोने में बैंकिंग सुविधाओं का विस्तार हुआ है । इस विधि में बैंकों द्वारा प्रदान की जाने वाली साख की दिशा में भी परिवर्तन हुआ है ।

राष्ट्रीयकरण के बाद कृषि, छोटे उद्योग, ग्रामीण दस्तकार, फुटकर व्यवसायी आदि को भी प्राथमिकता के आधार पर ऋण प्राप्त होने लगे है । गरीबी उन्मूलन के विभिन्न कार्यक्रमों में भी व्यापारिक बैंकों की महत्वपूर्ण भूमिका हो गई है ।

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