भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) के कार्य | Read this article in Hindi to learn about the two main functions of reserve bank of India. The functions are:- 1. रिजर्व बैंक भारत के नियमन एवं नियंत्रण सम्बन्धी कार्य (Regulatory and Controlling Functions of RBI) 2. आर्थिक विकास सम्बन्धी कार्य (Functions Related to Economic Development by RBI).
रिजर्व बैंक भारत का केन्द्रीय बैंक है और उसके कार्यों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है:
1. रिजर्व बैंक भारत के नियमन एवं नियंत्रण सम्बन्धी कार्य (Regulatory and Controlling Functions of RBI):
(A) साधारण बैंकिंग के कार्य (General Banking Functions):
रिजर्व बैंक के साधारण बैंकिंग के कार्यों को निम्न प्रकार रखा जा सकता है:
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(i) निश्चित दरों पर क्रय-विक्रय करना:
रिजर्व बैंक समय-समय पर निश्चित दरों पर भारत में भुगतान किए जाने वाले 90 दिवस की अवधि के व्यापारिक एवं वाणिज्यिक बिलों का क्रय-विक्रय करता एवं उन्हें भुनाता है । इसी प्रकार इंग्लैण्ड में 90 दिन के भुगतान होने वाले विनिमय बिलों को भुनाता एवं क्रय-विक्रय करता है ।
(ii) ऋण-देना:
रिजर्व बैंक भी केन्द्रीय एवं राज्य सरकारों में 90 दिवस में भुगतान होने वाले ऋण देता है जो कि स्वीकृत प्रतिभूतियों, स्वर्ण, चाँदी या वचन-पत्रों आदि की जमानत पर दिए जाते हैं ।
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(iii) अन्तर्राष्ट्रीय बैंकों में खाता खोलना:
रिजर्व बैंक विदेशों के केन्द्रीय बैंक में अपना खाता खोलता है तथा एजेंसी के रूप में सम्बन्ध स्थापित करता है ।
(iv) ऋण लेना:
रिजर्व बैंक किसी भी बैंक से 1 महीने की अवधि के लिए अपनी हिस्सा पूँजी के बराबर ऋण ले सकता है ।
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(v) कृषि बिलों का क्रय-विक्रय:
रिजर्व बैंक भारत में भुगतान होने वाले 15 माह की अवधि के कृषि सम्बन्धी बिलों का क्रय-विक्रय करता एवं उन्हें भुनाता है ।
(vi) जमा पर रुपया प्राप्त करना:
रिजर्व बैंक बिना ब्याज के सरकार या जनता से जमा पर रुपया प्राप्त कर सकता है ।
(vii) माँग ड्राफ्ट जारी करना:
रिजर्व बैंक अपने ही कार्यालयों पर माँग ड्राफ्ट जारी कर सकता है ।
(viii) विदेशी प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय:
रिजर्व बैंक भारत के बाहर अन्य देशों की उन प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय कर सकता है जिसका भुगतान क्रय करने की तिथि से 10 वर्षों के अन्दर ही हो जाता है ।
(ix) अन्य कार्य:
रिजर्व बैंक अपनी रक्षा में हीरे, जवाहरात एवं प्रतिभूतियों रख सकता है, स्वर्ण एवं चाँदी के सिक्कों का क्रय-विक्रय कर सकता है केन्द्रीय एवं राज्य सरकार की प्रतिभूतियों का क्रय एवं विक्रय कर सकता है तथा 1 लाख रुपए तक की स्टर्लिंग का बैंकों से क्रय-विक्रय कर सकता है ।
(B) केन्द्रीय बैंक के कार्य:
ये कार्य निम्न हैं:
(I) नोटों का निर्गमन करना (Issue of Notes):
इस सम्बन्ध में रिजर्व बैंक निम्न कार्य करता है:
(i) एकाधिकार:
रिजर्व बैंक को नोट निर्गमन करने का एकाधिकार प्राप्त है । इसके लिए रिजर्व बैंक ने पृथक से नोट निर्गमन विभाग की स्थापना की है । इस विभाग का विवरण पृथक से रखा जाता है । रिजर्व बैंक अधिनियम की धारा 24 के अनुसार 2, 5, 10, 20, 50, 100, 1000, 5000 तथा 10,000 रुपए के नोट निर्गमित कर सकता है ।
(ii) सुरक्षित कोष व्यवस्था:
नोटों का निर्गमन एक सुरक्षित कोष के आधार पर किया जाता है जिसमें स्वर्ण, प्रतिभूतियाँ तथा स्वीकृत विनिमय बिलों को सम्मिलित किया जाता है ।
(iii) आनुपातिक कोष प्रणाली:
1956 तक चलन के पीछे 40 प्रतिशत भाग स्वर्ण में तथा 60 प्रतिशत प्रतिभूतियों के रूप में रखा जाता था ।
(iv) न्यूनतम कोष प्रणाली:
1956 में अधिनियम में संशोधन किया गया और आनुपातिक कोष प्रणाली के स्थान पर न्यूनतम कोष प्रणाली पद्धति को अपनाया गया । इस नवीन व्यवस्था के अन्तर्गत कम से कम 400 करोड़ रुपए की विदेशी प्रतिभूतियाँ तथा 115 करोड़ रुपए का स्वर्ण रखने की व्यवस्था की गई । स्वर्ण का मूल्य 62.50 रु. प्रति तोला के हिसाब से मूल्यांकित किया गया था ।
(v) नवीन संशोधित व्यवस्था:
31 अक्टूबर, 1957 में अधिनियम में नवीन संशोधन किया गया, जिसके अनुसार नोट निर्गमन विभाग द्वारा रखने वाले कोष की मात्रा 200 करोड़ रुपये कर दी गई, जिसमें से कम से कम 115 करोड़ रुपये का स्वर्ण होना आवश्यक था । इस प्रकार विदेशी प्रतिभूतियों की मात्रा घटाकर 85 करोड़ रुपये कर दी गई । इससे चलन व्यवस्था अधिक लोचदार हो गई है ।
(vi) चलन तिजोरियां:
मुद्रा की समुचित मात्रा चलन में लाने के लिए रिजर्व बैंक के निर्गमन विभाग के 10 कार्यालय (बंगलौर, मुंबई, बाइकुल (मुंबई), कलकत्ता, कानपुर, हैदरबाद, मद्रास, नागपुर, पटना तथा नयी-दिल्ली) तथा 1 उप-कार्यालय गोहाटी में है । इनके अतिरिक्त देश-भर में लगभग 2000 स्थानों पर रिजर्व बैंक की तिजोरियाँ रखी रहती है जिनमें नोट रहते है । ये तिजोरियाँ स्टेट बैंक तथा अन्य सहायक बैंकों की प्रमुख शाखाओं में रखी रहती हैं । व्यापारिक बैंकों की साख की आवश्यकता रिजर्व बैंक की तिजोरी से पूरा हो जाती है ।
(II) बैंकों का बैंक (Banker’s Bank):
रिजर्व बैंक सकट के समय आर्थिक सहायता प्रदान करता है तथा बैंकों का नियमन करता है ।
इस सम्बन्ध में रिजर्व बैंक निम्न कार्य करता है:
(i) साख नीति का नियमन:
रिजर्व बैंक बैंक-दर या खुले बाजार की क्रियाओं द्वारा बैंकों की साख नीति का नियमन एवं नियंत्रण करता है ।
(ii) बैंकों का पथ-प्रदर्शक:
बैंकिंग कम्पनी अधिनियम ने रिजर्व बैंक को नियंत्रण सम्बन्धी व्यापक अधिकार दे दिए है जिससे यह बैंकों के पथ-प्रदर्शक का कार्य करता है ।
(iii) अंतिम ऋणदाता:
प्रत्येक अनुसूचित बैंक को अपनी मांग दायित्व का 5% व काल दायित्व का 2% भाग नकद कोष में रिजर्व बैंक के पास जमा करना पड़ता था । 1949 में अधिनियम में संशोधन करके ये व्यवस्था की गई कि बैंकों की रिजर्व बैंक के पास चालू खाते खोलकर नकद कोष रखने होंगे ।
तत्पश्चात 1956 में संशोधन करके यह व्यवस्था की गई कि बैंकों द्वारा मांग दायित्व का 20% तथा स्थल दायित्व का 80% भाग तक नकद कोष में जमा किया जा सकता है । सितम्बर, 1962 में संशोधन के आधार पर यह निश्चित किया गया कि बैंकों को कुल माँग दायित्व व काल दायित्व का केवल 3% भाग ही जमा करना होगा जिसे रिजर्व बैंक द्वारा 15% तक बढाया जा सकता है । रिजर्व बैंक बैंकों को आर्थिक संकट के समय आर्थिक सहायता प्रदान कर सकता है ।
(III) सरकारी बैंकर (Banker to the Governments):
रिजर्व बैंक केन्द्रीय व राज्य सरकारों के समस्त बैंक सम्बन्धी कार्यों को सम्पन्न करता है जो कि निम्नलिखित हैं:
(i) सरकारी ऋणों का प्रबन्ध करना:
रिजर्व बैंक सरकारी ऋणों का प्रबन्ध करके उनका हिसाब-किताब रखता है । बैंक सरकर को 90 दिवस का अल्पकालीन ऋण प्रदान करता है ।
(ii) आर्थिक सलाहकार:
रिजर्व बैंक सरकार को साख, मुद्रा एवं अन्य समस्याओं के सम्बन्ध में समय-समय पर आर्थिक सलाह देता है । आर्थिक नीति के निर्माण में भी सरकार में सहायता प्रदान करता है ।
(iii) सरकारी धन प्राप्त करना:
रिजर्व बैंक सरकार की ओर से धन प्राप्त करता है तथा उसे भुगतान आदि में प्रयोग करता है । सरकार का वार्षिक लेन-देन 140 अरब रुपये का होता है । इतनी राशि का लेन-देन करने तथा समय-समय पर उसका हिसाब सरकार को भेजने में भारी श्रम एवं कुशलता की आवश्यकता होती है ।
इस कार्य के लिए बंगलुरू, मुम्बई, कोलकता, चेन्नई, कानपुर, नागपुर, नई दिल्ली एवं पटना में बैंक के सार्वजनिक लेखा विभाग है तथा शेष स्थानों पर स्टेट बैंक ही रिजर्व बैंक के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करता है । समस्त लेन-देन कोषागार नियमों के आधार पर किए जाते हैं ।
(iv) विदेशी विनिमय की व्यवस्था:
रिजर्व बैंक विदेशी विनिमय की व्यवस्था करता है तथा धन के हस्तांतरण में सहायता देता है । सरकारी साधारण कार्यों के बदले उसे प्रतिफल प्राप्त नहीं होता है ।
(v) प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय:
रिजर्व बैंक सरकारी प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय करता एवं धन का हस्तांतरण करता है ।
(vi) ऋण देना:
आवश्यकता पड़ने पर रिजर्व बैंक सरकार को समय-समय पर ऋण देने का प्रबन्ध करता है ।
(vii) विदेशी सरकार की ओर से कार्य:
रिजर्व बैंक विदेशी सरकार की ओर से भी कार्य करता है ।
(IV) विनिमय दर का स्थायीकरण (Stability or Exchange Rate):
रिजर्व बैंक द्वारा विनिमय दर को स्थायी रखने के प्रयास किए जाते हैं । उसके लिए समय-समय पर निश्चित दरों पर विदेशी विनिमय का क्रय-विक्रय किया जाता है । इसके लिए 1939 में विनिमय नियंत्रण विभाग एवं 1947 में विदेशी विनिमय नियमन अधिनियम पारित किए गए ।
अप्रैल, 1947 में भारत के अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का सदस्य बनने से उसने स्टर्लिंग से अपना वैधानिक सम्बन्ध तोड़ा तथा रुपये का मूल्य स्वर्ण में घोषित किया गया जो 1 रुपया = 0.268 ग्राम स्वर्ण था । 1949 में अवमूल्यन करने पर यह मूल्य 0.186 ग्राम हो गया और 1966 के अवमूल्यन के पश्चात् यह घटकर 0.118 ग्राम स्वर्ण हो गया । रिजर्व बैंक विदेशी मुद्राओं का क्रय-विक्रय निश्चित दरों पर करता है ।
(V) साख नियमन (Control of Credit):
साख देश की अर्थव्यवस्था का प्रमुख साधन होने से उस पर समुचित नियंत्रण रखना आवश्यक होगा ।
रिजर्व बैंक को साख के नियमन सम्बन्धी निम्नलिखित प्रमुख अधिकार प्राप्त हैं:
(i) बैंक दर में परिवर्तन करना,
(ii) नकद कोष अनुपात में परिवर्तन करना,
(iii) खुले बाजार की क्रियाएँ करना,
(iv) मुद्रा व साख सम्बन्धी कड़े एकत्रित करना,
(v) जनता से प्रत्यक्ष व्यवहार करना,
(vi) बैंकों के विरुद्ध प्रत्यक्ष कार्यवाही करना एवं
(vii) समझाने, बुझाने की रीति अपनाना ।
(VI) अन्य कार्य:
रिजर्व बैंक के अन्य कार्यों में निम्न को सम्मिलित किया जा सकता है:
(i) समंक एकत्रित व प्रकाशित करना:
रिजर्व बैंक, साख, बैंकिंग, मुद्रा व वित्त सम्बन्धी समंक एकत्रित करके वार्षिक रिपोर्ट के रूप में उन्हें प्रकाशित भी करता है तथा आवश्यक अनुसंधान कार्यों को करता है ।
(ii) साख नियंत्रण:
रिजर्व बैंक साख नियमन विधियों द्वारा साख नियंत्रण का कार्य करता है तथा आवश्यकतानुसार साख प्रसार या संकुचन करता है ।
(iii) समाशोधन गृह:
रिजर्व बैंक समाशोधन गृह की सुविधाएँ प्रदान करता है जिससे रुपये का हस्तांतरण काफी सुविधाजनक बन गया है । रिजर्व बैंक की स्थापना के पश्चात् समाशोधन गृहों की संख्या 4 से बढ़कर 160 हो गयी है, इनमें से बंगलौर, मुंबई, कलकत्ता, कानपुर, मद्रास, नागपुर एवं दिल्ली के समाशोधन गृहों की व्यवस्था रिजर्व बैंक करता है । शेष की व्यवस्था स्टेट बैंक व उसके सहायक बैंक करते हैं ।
(iv) औद्योगिक वित्त:
रिजर्व बैंक उद्योगों के विकास एवं समस्याओं का अध्ययन करके औद्योगिक वित्त प्रदान करता है ।
(v) बैंकिंग शिक्षा:
रिजर्व बैंक देश में बैंकिंग शिक्षा की समुचित व्यवस्था करता है ।
(vi) मुद्रा परिवर्तन:
रिजर्व बैंक बड़े नोटों के बदले छोटी-छोटी इकाई की मुद्रा को परिवर्तित करने के कार्य भी करता है ।
2. आर्थिक विकास सम्बन्धी कार्य (Functions Related to Economic Development by RBI):
(I) आर्थिक विकास करना:
रिजर्व बैंक ने देश के आर्थिक विकास के लिए निम्न कार्य किया है:
(i) बैंकिंग सुविधाओं का विस्तार:
साधनों के अभाव एवं ब्याज की ऊँची दर के कारण रिजर्व बैंक आवश्यक बैंकिंग सुविधाओं का विस्तार करने में प्रयत्नशील रहता है । इसके लिए एक पृथक् बैंकिंग विकास विभाग खोला गया है ।
(ii) रिजर्व बैंक एवं कृषि साख:
रिजर्व बैंक ने सहकारी बैंकों एवं समितियों द्वारा कृषि कार्यों के लिए दीर्घ, मध्य एवं अल्पकालीन वित्त उपलब्ध कराने में सहायता की है । इसके लिए देश में राष्ट्रीय कृषि साख (दीर्घकालीन) कोष तथा राष्ट्रीय कृषि साख (स्थायित्व) कोष की स्थापना की गयी है ।
इन कोषों की स्थापना फरवरी, 1956 में की गयी । 15 वर्षों में रिजर्व बैंक द्वारा दी जाने वाली कृषि-साख की वार्षिक राशि 45 गुनी बढ़ गयी है । रिजर्व बैंक भूमि-बंधक बैंकों के द्वारा ऋण-पत्र खरीदता है और उनकी धरोहर पर ऋण भी देता है । सन् 1982 में कृषि वित्त के लिए नाबार्ड (NABARD) नामक संस्था का गठन किया गया । अब कृषि एवं ग्रामीण विकास से सम्बन्धित ऋण उपलब्ध कराने का कार्य यह संस्था ही देख रही है ।
(II) आर्थिक स्थिरता का प्रवर्तन करना:
पंचवर्षीय योजनाओं के संदर्भ में रिजर्व बैंक दो उद्देश्यों की पूर्ति करता है:
(i) आर्थिक विकस हेतु आवश्यक वित्त प्रदान करना ।
(ii) मुद्रा-स्फीति सम्बन्धी दबावों को कम करके उन पर नियंत्रण रखना ।
(III) रिजर्व बैंक के वर्जित कार्य (Prohibited Functions of Reserve Bank):
रिजर्व बैंक के कुछ कार्यों पर प्रतिबन्ध लगाया गया है जिससे वह अन्य बैंकों से प्रतियोगिता न कर सके ।
रिजर्व बैंक के प्रमुख वर्जित कार्य निम्नलिखित हैं:
(i) अंश खरीदना:
रिजर्व बैंक न तो अपने अंश खरीद सकता है और न ही किसी अन्य बैंक के अंश खरीद सकता है तथा उन पर ऋण भी नहीं दे सकता ।
(ii) ब्याज पर प्रतिबन्ध:
रिजर्व बैंक के पास किसी भी बैंक की जमा राशि पर ब्याज देने पर प्रतिबन्ध लगाया गया है ।
(iii) बिलों को लिखना:
माँग पर शोधनीय न होने वाले बिलों को रिजर्व बैंक न तो लिख सकता है और न ही उन्हें भुना सकता है ।
(iv) प्रतिभूतिरहित ऋण:
रिजर्व बैंक किसी भी बैंक या संस्था से प्रतिभूतिरहित ऋण प्रदान नहीं कर सकता ।
(v) अचल सम्पत्ति:
रिजर्व बैंक अचल सम्पत्ति के न तो खरीद सकता है और न ही उसकी जमानत पर ऋण दे सकता है ।
(vi) व्यापार पर प्रतिबन्ध:
रिजर्व बैंक व्यापार एवं वाणिज्य में न तो प्रत्यक्ष रूप में भाग ले सकता है और न ही आर्थिक सहायता प्रदान कर सकता है ।