भारतीय रिजर्व बैंक: उपलब्धियां और विफलताओं | Read this article in Hindi to learn about the achievements and failures of RBI.
रिजर्व बैंक की सफलताएँ (Achievements of Reserve Banks):
भारतीय रिजर्व बैंक ने देश के केन्द्रीय बैंक के रूप में अनेक महत्वपूर्ण कार्य किए हैं और कई क्षेत्रों में महत्वपूर्ण सफलताएं अर्जित की हैं ।
रिजर्व बैंक द्वारा प्राप्त की गई कुछ महत्वपूर्ण सफलताएं निम्न प्रकार हैं:
(1) आर्थिक विकास में सहयोग (Contribution in Economic Development):
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रिजर्व बैंक सरकार के आर्थिक विकास एवं नियोजन कार्यक्रमों में पूरा-पूरा योगदान देता है । रिजर्व बैंक ने नियोजन के लिए घाटे की वित्त व्यवस्था की पूर्ति के साथ ही कृषि उद्योग, व्यापार, विदेशी विनिमय आदि के लिये साख की माँग की पूर्ति है ।
(2) कृषि के विकास में सहयोग (Contribution in Agricultural Development):
रिजर्व बैंक ने कृषि क्षेत्र को सहकारी बैंकों के माध्यम से अल्पकालीन, मध्यकालीन एवं दीर्घकालीन वित्त उपलब्ध कसने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है । रिजर्व बैंक ने केवल कृषि साख की मद में दो हजार करोड़ रु. से अधिक के ऋण उपलब्ध कराए हैं ।
(3) औद्योगिक वित्त (Industrial Finance):
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रिजर्व बैंक ने औद्योगिक वित्त बैंक की स्थापना के साथ-साथ अन्य संस्थाओं जैसे- औद्योगिक वित्त निगम, राज्य वित्त निगम आदि के अंश खरीद कर उद्योगों के लिये पर्याप्त वित्त उपलब्ध कराया है । रिजर्व बैंक द्वारा एक औद्योगिक साख कोष स्थापित किया गया है जिसमें उद्योगों के लिए लगभग 3,300 करोड़ रु. की राशि जमा की जा चुकी है ।
(4) आर्थिक सलाहकार (Economic Advisor):
रिजर्व बैंक ने विगत वर्षों में अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं जैसे अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक आदि में सरकार की आज्ञानुसार अपने विशेषज्ञ भेजे हैं । रिजर्व बैंक के विशेषज्ञ घाना, रुमानिया, युगाण्डा, लीबिया आदि देशों के केन्द्रीय बैंक में आर्थिक सलाहकार के रूप में काम कर रहे हैं । इसके विशेषज्ञ देश के जीवन बीमा निगम, कृषि पुनर्वित्त निगम, यूनिट ट्रस्ट, औद्योगिक विकास बैंक आदि में भी कार्य कर रहे हैं ।
(5) सार्वजनिक ऋणों की व्यवस्था (Organizing Public Debts):
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रिजर्व बैंक सरकार का एजेन्ट है । अतः वह सार्वजनिक ऋण की व्यवस्था भी करता है । रिजर्व बैंक ने इसमें बहुत अधिक सफलता प्राप्त की है । समय-समय पर रिजर्व बैंक ने सरकार को अल्पकालीन ऋण देकर वित्तीय समस्याओं को हल किया है ।
(6) बैंकों के बैंक के कार्य में सफलता (Success as Banker’s Bank):
रिजर्व बैंक ने बैंकों के बैंक के कार्य में भी सफलता प्राप्त की है क्योंकि उसने संकटकाल में अनेक बार अनुसूचित बैंकों को अग्रिम और ऋण प्रदान किये हैं । इसी से अनेक बैंक दिवालिया होने से बच गये ।
(7) सरकार का बैंकर (Banker of the Government):
योजनाकाल में सरकार के आय-व्यय में बहुत अधिक वृद्धि हुई है । रिजर्व बैंक ने सरकार के हिसाब-किताब में सावधानी पूर्वक रखा है । वह सरकारी लेन-देन में उचित ढंग से चला रहा है । रिजर्व बैंक ने सरकार को अनेक बार अल्पकालीन ऋण प्रदान किये हैं ।
(8) समाशोधन गृह का कार्य (Function of Clearing House):
भारत में समाशोधन गृह का काम सुचारु रूप से रिजर्व बैंक कर रहा है । इसके परिणामस्वरूप विभिन्न बैंकों के आपसी लेन-देन सरलता से तुरन्त निपट जाते हैं ।
(9) बैंकिंग व्यवस्था में सुधार (Improvement in Banking System):
रिजर्व बैंक के सफल नियमन एवं नियंत्रण से बैंकिंग व्यवस्था का सुदृढ़ विकास हुआ है । रिजर्व बैंक अन्य बैंकों के लिये मित्र, दार्शनिक एवं मार्गदर्शक का काम सुचारु रूप से कर रहा है ।
(10) साख का नियमन एवं नियंत्रण (Regulation and Control of Credit):
यद्यपि रिजर्व बैंक को साख नियंत्रण में पर्याप्त सहायता नहीं मिली फिर भी उसके साख नियंत्रण के प्रयास सराहनीय हैं । उसने परिमाणात्मक, गुणात्मक एवं चयनात्मक साख नियंत्रण रीतियों का समुचित उपयोग किया है । यदि रिजर्व बैंक यह उपाय नहीं अपनाता तो देश में मुद्रा स्फीति का ताण्डव और भी भयावह होता ।
(11) बिल बाजार का विकास (Development of Bill Market):
रिजर्व बैंक ने देश में संगठित बिल बाजार की स्थापना के लिये 1952 से ”बिल बाजार योजना” प्रारंभ की है । यद्यपि रिजर्व बैंक को इसमें आंशिक सफलता मिली है, फिर भी उसके प्रयास सराहनीय हैं ।
(12) धन का हस्तांतरण (Transfer of Money):
रिजर्व बैंक ने सरकर, व्यापारिक बैंकों एवं सहकारी संस्थाओं के धन के स्थानांतरण के लिये सस्ती व तीव्रगामी सेवायें उपलब्ध कराई हैं । रिजर्व बैंक के माध्यम से व्यापारिक बैंक बहुत कम व्यय से अपने धन का हस्तांतरण करते हैं ।
(13) नोट निर्गमन में सफलता (Success in Note Issue):
रिजर्व बैंक ने 1956 तक आनुपातिक कोष प्रणाली द्वारा एवं 1956 के बाद न्यूनतम कोष प्रणाली द्वारा नोटों का निर्गमन किया है । सामान्यतः लोगों का विश्वास था कि रिजर्व बैंक न्यूनतम कोष प्रणाली अपनाकर तीव्र मुद्रा स्फीति को बढ़ायेगा किन्तु उसकी तत्परता एवं कठोर मौद्रिक नियंत्रण के कारण मुद्रा स्फीति अधिक नहीं बढी ।
(14) आंकड़ों का संकलन एवं प्रकाशन (Collection and Publication of Statistics):
रिजर्व बैंक, मुद्रा, राष्ट्रीय आय, मूल्य स्तर, वित्त आदि से सम्बन्धित अनेक प्रकार के कड़े एकत्रित करके अपनी विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित करता है । ”रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया बुलेटिन” इसकी सबसे अधिक लोकप्रिय मासिक पत्रिका है ।
रिजर्व बैंक की असफलताएं (Failures of Reserve Bank):
यह कहना अतिशयोक्ति होगी कि रिजर्व बैंक को सभी क्षेत्रों में सफलता मिली है । वर्ष 1992 के प्रतिभूति घोटाले (हर्षद मेहता काण्ड) के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि रिजर्व बैंक देश की व्यापारिक बैंकों की कार्यप्रणाली पर नियंत्रण रखने में असफल रहा है ।
रिजर्व बैंक की प्रमुख असफलताएँ निम्न प्रकार हैं:
(1) बैंकिंग व्यवस्था का नियमन एवं नियंत्रण (Regulation and Control of Banking System):
रिजर्व बैंक व्यापारिक बैंकों एवं अन्य वित्तीय संस्थाओं के नियमन एवं नियंत्रण में असफल रहा है । बैंकिंग कानून का पालन कराने, बैंकों को आडिट रिपोर्ट का अध्ययन करने एवं ऋण राशि के लेन-देन को नियंत्रित करने में रिजर्व बैंक असफल रहा है । यही कारण है कि हर्षद मेहता एवं अन्य दलाल बैंकों की साठगांठ से 4500 करोड़ रुपये का घोटाला करने में सफल हुए हैं । संसदीय जाँच समिति ने भी इस तथ्य को उजागर किया है ।
(2) आन्तरिक कीमत स्तर में वृद्धि (Increase in Internal Price Level):
रिजर्व बैंक द्वारा मुद्रा एवं साख में सतत् वृद्धि करते रहने से कीमत स्तर तेजी से बढा है जिसका सामान्य लोगों पर और आर्थिक विकास पर बुरा प्रभाव पड़ा है । देश में मुद्रा की पूर्ति सतत् बढ़ती गई है । रिजर्व बैंक ने कीमतों में होने वाली वृद्धि को ठीक ढंग से रोकने के प्रयास नहीं किये हैं ।
इसके परिणामस्वरूप आन्तरिक बाजारों में रुपये की कीमत 1960-61 के मूल्यों पर 1986-87 में घटकर 15 पैसे और 1999-2000 में यह 7 पैसे रह गई । किन्तु देश में मुद्रा प्रसार के लिए अकेले रिजर्व बैंक को दोषी ठहराना ठीक नहीं है, क्योंकि इसके लिए सरकार द्वारा घाटे की वित्त व्यवस्था को अपनाना भी प्रमुख कारण है ।
(3) विनिमय दर में अस्थिरता (Un-Stability in Exchange Rate):
रिजर्व बैंक भारतीय रुपये की विदेशी विनिमय दर को स्थिर रखने में भी असफल रहा है । इसी से भारत ने अपनी मुद्रा का 1949 में 333 प्रतिशत, 1966 में 365 प्रतिशत और 1991 में 21 प्रतिशत अवमूल्यन किया । सन् 1980 में एक अमरीकन डॉलर 7.9 रु. के बराबर था जो जनवरी, 2001 में 46.71 रु. के बराबर हो गया ।
अतः स्पष्ट है कि रिजर्व बैंक रुपये के विनिमय मूल्य को स्थिर रखने में असफल रहा है । सन् 1993 में रुपये को पूर्ण परिवर्तनीय बना दिया गया है । समीक्षकों का मानना है कि इससे रुपये के विनिमय मूल्य में ओर अधिक गिरावट आएगी ।
(4) बैंकिंग व्यवस्था में सुधार करने में असफल (Failure in Improving Banking System):
रिजर्व बैंक 60 वर्षों से भी अधिक लम्बे जीवनकाल में देश की बैंकिंग व्यवस्था को सुदृढ़ करने में असफल रहा है । 1949 से 1959 के बीच 388 बैंक बन्द हो गये । वर्तमान समय में भी अनेक बैंक संकटग्रस्त है । 1960 में लक्ष्मी बैंक और पलाई सेन्ट्रल बैंक बन्द हुए । विभिन्न बैंकों को अभी भी पर्याप्त सहायता इस बैंक से नहीं मिल रही है ।
(5) आंकड़ों का अभाव (Lack of Statistics):
यद्यपि रिजर्व बैंक के पास देश की विभिन्न आर्थिक मदों के आंकड़े एकत्रित करने के लिए अनेक साधन और एजेन्सियां हैं । फिर भी यह एक ऐसी प्रणाली विकसित नहीं कर पाया है जिसके प्रकाशनों ये विश्वसनीय ”आँकड़ों की बैंक” के रूप में प्रयुक्त किया जा सके ।
(6) देशी बैंकरों पर नियंत्रण नहीं (No Control on Indigenous Bankers):
रिजर्व बैंक अभी तक देशी बैंकर, साहूकार, महाजन आदि पर समुचित नियंत्रण नहीं लगा हुआ है । यही करण है कि संगठित एवं असंगठित बाजारों की ब्याज दरों में बहुत अधिक अन्तर है । बैंक दर का प्रभाव भी विद्यमान ब्याज दरों पर अधिक नहीं पड़ता ।
(7) बिल बाजार के विकास में असफल (Failure in Developing Bill Market):
यद्यपि रिजर्व बैंक ने बिल बाजार के विकस के लिये 1952 से एक योजना प्रारंभ की है फिर भी उसे इस दिशा में समुचित सफलता नहीं मिली है । यही कारण है कि देश में आज भी अच्छे बिल बाजार का अभाव है ।
(8) अपर्याप्त बैंकिंग सुविधायें (In-Sufficient Banking Facilities):
देश में समय-समय पर किये गये राष्ट्रीयकरण से बैंकिंग शाखाओं की संख्या तो बढी है । लेकिन अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग सुविधाओं का अभाव है ।
(9) ब्याज की ऊँची दरें (High Rates of Interest):
रिजर्व बैंक देश के विभिन्न मुद्रा बाजारों में समन्वय स्थापित करने में असफल रहा है । यही करण है कि यहाँ अनेक प्रकार की ब्याज दरें पाई जाती है । ग्रामीण क्षेत्रों में विद्यमान असंगठित क्षेत्र अभी भी बहुत ऊँची दरों पर ऋण उपलब्ध कराता है ।
(10) ग्रामीण साख का अपर्याप्त विकास (In-Sufficient Development of Rural Credit):
यद्यपि रिजर्व बैंक ने ग्रामीण साख के विकास हेतु अनेक प्रयास किये हैं किन्तु ये प्रयास ग्रामीण क्षेत्र की समग्र आवश्यकताओं को देखते हुए अपर्याप्त हैं । यही कारण है कि आज भी अधिकांश ग्रामीण जन ऋण के लिये साहूकारों पर निर्भर हैं ।
निष्कर्ष के रूप में यह कहा जा सकता है कि यद्यपि केन्द्रीय बैंक के रूप में रिजर्व बैंक ने अनेक महत्वपूर्ण कार्य किए हैं, तथापि यह बैंक देश की बैंकिंग एवं साख सम्बन्धी समस्याओं को हल करने में असफल रहा है । संक्षेप में, रिजर्व बैंक को देश में सफल बैंकिंग विकास के लिये अभी बहुत कुछ करना है ।