बैंकों में कर्मचारियों का प्रशिक्षण: मतलब और आवश्यकता | Read this article in Hindi to learn about:- 1. बैंकिंग प्रशिक्षण का अर्थ (Meaning of Training in Banks) 2. बैंकिंग कर्मचारियों के प्रशिक्षण की आवश्यकता (Need for Training Employees of Bank) 3. वर्तमान स्थिति (Present Condition) 4. कमियां (Defects).

बैंकिंग प्रशिक्षण का अर्थ (Meaning of Training in Banks):

बैंकिंग एक सेवा-प्रधान उद्योग है जिसका उद्देश्य वस्तुओं का निर्माण व विक्रय न होकर सेवाएँ प्रदान करना है । बैंकिंग संगठन में मानवीय सम्बन्धों को प्रशासित करना पड़ता है । बैंकिंग व्यवसाय में सर्वोत्तम परिणाम, मानवीय संसाधनों एवं संचालन विधियों के उपयुक्त संयोग से ही उपलब्ध होते हैं ।

बैंकिंग सेवाओं की उपयुक्तता, प्रभावकारिता एवं लाभदायकता हेतु बैंक कर्मचारियों को बैंकिंग विधियों, प्रक्रियाओं तथा व्यवहारों से अवगत कराना न केवल आवश्यक होता है वरन् पुराने अनुभवी कर्मचारियों के लिए भी नई बदली हुई परिस्थितियों के अनुसार कार्य करने हेतु समुचित शिक्षण एवं प्रशिक्षण प्रदान करना अति-आवश्यक होता है ।

एक नए विकसोन्मुखी वातावरण की रचना हेतु हमारे बैंक वर्तमान में अपनी गतिविधियों एवं प्रतिक्रियाओं में समय की पुकार के अनुकूल क्रान्तिकारी परिवर्तन करने में सतत् प्रयत्नशील हैं । प्राथमिकता क्षेत्रों, कृषकों, लघु उद्योगों, स्वयं नियोजित व्यक्तियों आदि को विकास-परक ऋण प्रदान करना एवं बैंकिंग सेवाओं का एक नया ढाँचा तैयार करने हेतु, बैंक कर्मचारी एवं अधिकारियों के नियमित प्रशिक्षण की व्यवस्था अपरिहार्य है ।

ADVERTISEMENTS:

बैंकिंग लक्ष्यों का पूर्ति हेतु, बैंक कर्मचारियों को अपनी प्रतिभा व योग्यता का परिचय देकर अपनी कार्यकुशलता के स्तर को उच्चतम बनाए रखने के लिए समुचित प्रेरणा की आवश्यकता होती है ।

बैंकिंग प्रक्रियाओं से सम्बन्धित विभिन्न कानूनों में हुए आधुनिक संशोधनों एवं परिवर्तनों को भली-भाँति अवगत कराने हेतु भी प्रशिक्षण अत्यन्त ही महत्वपूर्ण है । बैंकिंग नियमन एवं नियन्त्रण अधिनियम, विनिमय साध्य विलेख पत्र अधिनियम, अचल सम्पत्ति हस्तान्तरण एवं बन्धक अधिनियम आदि की आधुनिकतम जानकारी से ही बैंकिंग सेवाओं का गुणात्मक स्तर ऊंचा उठता है ।

बैंकिंग प्रशिक्षण की आवश्यकता केवल लिपिक वर्ग तक ही सीमित नहीं है वरन् उच्चस्तरीय कार्यकर्ता व अधिकारीगणों को प्रशिक्षण में सम्मिलित किया जाता है ।

बैंकिंग कर्मचारियों के प्रशिक्षण की आवश्यकता (Need for Training Employees of Bank):

बैंकिंग कर्मचारियों के प्रशिक्षण की आवश्यकता की व्याख्या निम्न बिन्दुओं के आधार पर कर सकते हैं:

ADVERTISEMENTS:

(1) बैंकिंग सिद्धान्तों की जानकारी:

बैंकिंग उद्योग में आवश्यकतानुसार परिवर्तन होते रहते हैं और इन परिवर्तनों को लागू करने के लिए समय-समय पर नियम व उपनियमों में संशोधन होते रहते हैं । बैंकिंग व्यवसाय में नए आने वाले कर्मचारियों को व कार्यरत कर्मचारियों को प्रशिक्षण के माध्यम से विभिन्न सिद्धान्तों की जानकारी कराई जाती है जिसके अभाव में कर्मचारियों द्वारा अपने उत्तरदायित्वों का कुशल ढंग से पालन नहीं हो सकता हैं ।

(2) विशिष्ट ज्ञान की जानकारी:

बैंकिंग कर्मचारियों को कई प्रकार के विशिष्ट कार्य करने होते हैं जैसे – कृषि वित्त, निर्यात वित्त, उद्योग वित्त, साख-विस्तार की नीतियों आदि । इन कार्यों हेतु कर्मचारियों को बैंक की दैनिक सामान्य जानकारी के अलावा विशिष्ट ज्ञान की भी आवश्यकता होती है । यह विशिष्ट ज्ञान उन्हें समय-समय पर दिए जाने वाले प्रशिक्षण से प्राप्त होता है ।

ADVERTISEMENTS:

(3) बैंकिंग उद्योग का तीव्र विकास:

बैंकिंग उद्योग के तेजी से विकास होने के कारण कर्मचारियों की पदोन्नति के अवसरों में वृद्धि हुई है । जहाँ पहले बैंक क्लर्क को अधिकारी बनने में 25 वर्ष लगते थे अब मात्र 5 से 10 वर्ष की अवधि में वे अफसर बन जाते हैं । अतः अधिक उत्तरदायित्व वहन करने की क्षमता उन्हें प्रशिक्षण के माध्यम से प्राप्त होती है ।

(4) उत्तरदायित्वों का विकेन्द्रीकरण:

निरन्तर बढ़ते हुए शाखा जाल के कारण उत्तरदायित्वों का विकेन्द्रीकरण हुआ है । पहले की व्यवस्था में अग्रिम, नियोजन आदि महत्वपूर्ण निर्णयों को मुख्य कार्यालय में उच्च अधिकारियों द्वारा लिया जाता था लेकिन वर्तमान व्यवस्था में ये महत्वपूर्ण निर्णय क्षेत्रीय प्रबन्धकों को या शाखा प्रबन्धकों को लेने होते हैं । अतः इस प्रकार के महत्त्वपूर्ण निर्णयों के लिए शाखा व क्षेत्रीय प्रबन्धकों के प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है ।

बैंकिंग प्रशिक्षण की वर्तमान स्थिति (Present Condition of Training in Banks):

वर्तमान समय में भारत में विभिन्न संस्थाओं द्वारा बैंकिंग शिक्षण एवं प्रशिक्षण की व्यवस्था की जा रही है ।

उनमें से प्रमुख निम्नानुसार है:

(1) रिर्जव बैंक द्वारा संचालित प्रशिक्षण संस्थाएँ:

पिछले चार दशकों में रिर्जव बैंक ने बैंकिंग प्रशिक्षण महाविद्यालय एवं केन्द्र खोलकर अपने तथा अन्य बैंकों में संलग्न कार्यशील कर्मचारियों एवं अधिकारियों के प्रशिक्षण की व्यवस्था में सराहनीय योगदान दिया हैं । सन् 1954 में स्थापित रिजर्व बैंक का बैंक प्रशिक्षण महाविद्यालय, व्यापारिक बैंकों के वरिष्ठ अधिकारियों को प्रशिक्षण प्रदान कर रहा है ।

सन् 1960 में इसे एक स्वतन्त्र एवं पूर्णकाय संस्थान के रूप में परिणत कर दिया गया तथा सन् 1963 में रिर्जव बैंक ने अपने स्वयं के कनिष्ठ व मध्यम स्तरीय प्रशासक अधिकारियों के प्रशिक्षणार्थ, चेन्नई में एक पृथक स्टॉफ प्रशिक्षण महाविद्यालय भी आरम्भ किया । लिपिक वर्ग के प्रशिक्षण के लिए भी इस समय रिजर्व बैंक ने मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई, दिल्ली एवं नागपुर में क्षेत्रीय प्रशिक्षण केन्द्र चला रखे हैं ।

रिजर्व बैंक अपने विविध प्रशिक्षण कार्यक्रमों में व्यापारिक बैंकों तथा अन्य संस्थाओं के विशेषज्ञों की भी सेवाएँ प्राप्त करता है । रिजर्व बैंक का बैंकिंग प्रशिक्षण महाविद्यालय व्यापारिक बैंकिंग के सामान्य पाठ्यक्रम तथा अन्य विशेष पाठ्यक्रम संचालित करता है । इनके अलाव समय-समय पर केन्द्रीय बैंकिंग तथा विकासात्मक बैंकिंग विषयों पर विशिष्ट प्रशिक्षण कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते है ।

सन् 1969 में पुणे में पृथक कृषि बैंकिंग महाविद्यालय की स्थापना हो जाने से कृषि वित्त एवं सहकारिता विषय पर विशिष्ट प्रशिक्षण कार्यक्रम, मुम्बई के बजाय पुणे महाविद्यालय में आयोजित किए जाने लगे । पुणे स्थित महाविद्यालय में, व्यापारिक बैंकों के कृषि वित्त अधिकारियों एवं भूमि विकास बैंकों के अधिकारियों को भी प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है ।

हाल ही में स्थापित क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के अध्यक्ष एवं शाखा प्रबन्धक भी पुणे स्थित महाविद्यालय से प्रशिक्षण सुविधाएँ प्राप्त कर रहे है । इस महाविद्यालय के पाठ्यक्रम में गत् कुछ वर्षों से परियोजना नियोजन तथा मूल्यांकन कार्यक्रम भी सम्मिलित कर लिए गए हैं । कृषि वित्त सम्बन्धी विशिष्ट समस्याओं पर शोध कार्य भी प्रारम्भ कर दिया गया है ।

लिपिक वर्ग व गैर-लिपिक वर्ग के प्रशिक्षण की आवश्यकता हो देखते हुए संभागीय प्रशिक्षण केन्द्र मुम्बई, कलकत्ता, चेन्नई व नई दिल्ली में खोले गए । ये केन्द्र लिपिक वर्ग II के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करते है । इनमें सिक्का निरीक्षक, टेलर्स, रुपया परीक्षक आदि के लिए, विशेषतः रोकड़ विभाग से सम्बन्धित कर्मचारियों के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था मई जाती है । इन केन्द्रों द्वार चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को प्रशिक्षण देने की भी व्यवस्था है ।

रिजर्व बैंक अपने प्रशिक्षण कार्यक्रम को औचित्यपूर्ण बनाने की दृष्टि से विदेशों व देश में होने वाले अधिवेशनों, सेमीनार आदि में कर्मचारियों को प्रतिनियुक्ति पर भेजता है । पिछले वर्षों में रिर्जव बैंक द्वारा इंग्लैण्ड, पश्चिमी जर्मनी, जापान, मलेशिया, थाइलैण्ड, इण्डोनेशिया, जिम्बावे, हाँगकाँग, नेपाल व फिलीपीन्स आदि देशों में कर्मचारियों को प्रशिक्षण के उद्देश्य से प्रतिनियुक्ति पर भेजा गया है ।

(2) स्टेट बैंक तथा अन्य व्यापारिक बैंकों द्वारा प्रशिक्षण कार्य:

स्टेट बैंक द्वारा सन् 1961 में हैदराबाद में एक पूर्णकालिक स्टॉफ प्रशिक्षण महाविद्यालय प्रारम्भ किया गया जिसमें कर्मचारी व अधिकारी वर्ग के विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षणों की समुचित व्यवस्था है । हैदराबाद के अलावा, स्टेट बैंक विभिन्न क्षेत्रों में क्षेत्रीय प्रशिक्षण स्कूल भी चला रहा है । इसी प्रकार अन्य राष्ट्रीकृत एवं निजी बैंकों ने भी अपने-अपने पृथक-पृथक प्रशिक्षण संस्थान प्रारम्भ कर रखे है ।

व्यावसायिक बैंकों द्वारा संचालित प्रशिक्षण संस्थाओं में क्रियाशील पाठ्यक्रमों में पर्याप्त विभिन्नताएँ पाई जाती है । परन्तु सभी संस्थाओं में मध्यम-स्तरीय अधिकारी वर्ग एवं लिपिक वर्ग के कर्मचारियों को ही प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है तथा प्रत्येक बैंक के वरिष्ठ अधिकारियों के प्रशिक्षण की व्यवस्था, भारतीय रिजर्व बैंक के मुम्बई स्थित बैंकर्स प्रशिक्षण महाविद्यालय में होती है ।

(3) राष्ट्रीय बैंक प्रबन्ध संस्थान:

बैंकिंग शिक्षा व प्रशिक्षण के क्षेत्र में यह एक शीर्ष स्तरीय संस्थान है जिसकी प्रबन्ध एवं संचालन व्यवस्था में भारत सरकार, भारतीय रिजर्व बैंक, व्यापारिक बैंक, वित्त निगमों तथा अन्य सहकारी बैंकों के प्रतिनिधि सदस्य भी सम्मिलित होते हैं । राष्ट्रीय बैंक प्रबन्ध संस्थान का कार्य-क्षेत्र अत्यन्त विस्तृत है ।

इसके कार्य निम्नानुसार हैं:

(i) बैंक सम्बन्धी स्नातकोत्तर शिक्षा का आयोजन एवं उच्चस्तरीय अधिकारी वर्ग के लिए बैंक प्रबन्ध सम्बन्धी प्रशिक्षण की व्यवस्था ।

(ii) बैंकिंग प्रक्रियाओं, सम्भावनाओं एवं समस्याओं पर शोध कार्य करना ।

(iii) व्यापारिक बैंकों के लिए परामर्श-दात्री सेवाएँ प्रदान करना ।

(iv) विभिन्न बैंकों द्वारा स्थापित प्रशिक्षण केन्द्रों के संचालन हेतु प्रशिक्षण सामग्री, प्रशिक्षण योजनाएँ व पाठ्यक्रम निर्माण में सहयोग एवं सहायता करना ।

राष्ट्रिय बैंक प्रबन्ध संस्थान में जिन विषयों पर प्रशिक्षण एवं शोध कार्य सम्पन्न किया जाता है वह इस प्रकार हैं:

(i) बैंक प्रबन्ध एवं नीति-निर्माण ।

(ii) प्रबन्ध-नियन्त्रण एवं कम्प्यूटर सेवाएँ ।

(iii) मानवीय संसाधनों का प्रबन्ध ।

(iv) वित्त तथा साख-प्रबन्ध ।

इसके अतिरिक्त शोध कार्य के निष्कर्षों एवं परिणामों का विवरण एवं सार संस्थान की शोध पत्रिका ‘प्रज्ञान’ में प्रकशित किए जाते है । बैंकिंग प्रशिक्षण के क्षेत्र में यह संस्थान अल्पकालीन पाठ्यक्रमों की व्यवस्था करता है तथा समय-समय पर विचार गोष्ठियाँ, सामयिक समस्याओं पर वार्तालाप आदि भी आयोजित करता है ।

(4) व्यावसायिक प्रबन्ध संस्थाओं द्वारा बैंकिंग प्रशिक्षण:

कोलकाता, अहमदाबाद एवं बैंगलुरू के व्यावसायिक प्रबन्ध संस्थानों तथा हैदराबाद स्थित ‘भारत का प्रशासकीय स्टॉफ महाविद्यालय’ द्वारा भी बैंकिंग प्रशिक्षण के क्षेत्र में विशिष्ट उच्चस्तरीय प्रबन्ध पाटणकर, प्रबन्धकीय प्रशिक्षण एवं विकास परियोजना निर्माण कार्यक्रम आयोजित करती हैं जिनमें भाग लेने वाले व्यक्ति प्रायः बैंकों के महाप्रबन्धक, उपमहाप्रबन्धक, सहायक महाप्रबन्धक, क्षेत्रीय प्रबन्धक वित्त एवं अग्रिम नियन्त्रक, प्रधान कार्यालयों के प्रशासक, जिला प्रबन्धक आदि अत्यन्त उच्चस्तरीय अधिकारीगण होते है ।

इन प्रशासकीय अधिकारियों के लिए व्यावसायिक प्रबन्ध संस्थाओं में बैंकिंग के विविध पहलुओं पर समय-समय पर विचार गोष्ठियों का आयोजन तथा सामयिक समस्याओं पर पारस्परिक वार्तालाप आदि किए जाते है ।

(5) भारतीय बैंक संस्थान:

सन् 1928 में स्थापित भारतीय बैंक संस्थान, मुम्बई अपने आप में एक अनूठी संस्था है । इसका प्रत्यक्ष सम्बन्ध भारतीय बैंक कर्मचारियों मई शिक्षा एवं परीक्षा लेने से है । इसके द्वारा वर्ष में दो बार परीक्षाएं आयोजित की जाती है । इसके अतिरिक्त यह संस्थान एक त्रैमासिक पत्रिक भी प्रकाशित करता है जिसमें बैंकिंग विषयों पर अत्यन्त उच्चस्तरीय लेखों का समावेश होता है ।

इसके द्वारा आयोजित परीक्षा के सर्टीफाइड ऐसोसिएट ऑफ इण्डियन इन्स्टीट्यूट ऑफ बैंकर (CAIIB) का जाता है । उसे उत्तीर्ण करने वाले कर्मचारियों को अग्रिम वेतन वृद्धि का लाभ दिया जाता है तथा पदोन्नति के अवसर प्रदान किए जाते हैं ।

बैंकिंग प्रशिक्षण की कमियां (Defects of Training in Banks):

बैंकों की वर्तमान शाखा विस्तार की गति को देखते हुए जिस अनुपात में बैंकिंग कर्मचारियों व अधिकारियों की संख्या में वृद्धि हो रही है, उस अनुपात में बैंकिंग प्रशिक्षण संस्थानों की वृद्धि नहीं हो पा रही है । जो कुछ भी प्रशिक्षण संस्थाएं स्थापित हुई हैं उनमें प्रशिक्षकों की संख्या पर्याप्त नहीं है, फलस्वरूप प्रशिक्षण का लाभ कम लोगों को मिल पा रहा है ।

इसके अतिरिक्त अनेक बार प्रशिक्षण कार्यक्रमों में चुने हुए प्रशिक्षणार्थी उपयुक्त संख्या में भाग लेने नहीं पहुँच पाते है तथा किसी न किसी बहाने से अनुपस्थित रह जाते हैं । यह समस्या तभी दूर हो सकती है जबकि प्रत्येक कर्मचारी एवं अधिकारी के लिए पाँच वर्षों में कम से कम एक बार प्रशिक्षण कार्य में भाग लेना अनिवार्य बना दिया जाए तथा भविष्य में पदीन्नति का सम्बन्ध प्रशिक्षण प्राप्ति से स्थापित कर दिया जाए ।

प्रशिक्षण संस्थाओं की कुछ गुणात्मक दुर्बलताएँ भी है, जैसे कि उपयुक्त पुस्तकालीय सुविधाओं का अभाव, प्रशिक्षण-सामग्री तथा आधुनिकतम परिवर्तनों की जानकारी देने वाली पत्रिकाओं का अभाव । यह कमी छोटी-छोटी कमजोर संस्थाओं को आपस में मिलकर पूरी की जानी चाहिये ।

प्रशिक्षण संस्थाओं में नियुक्त प्रशिक्षकों के भी नियमित प्रशिक्षण की व्यवस्था की जानी चाहिए ताकि सम्पूर्ण प्रशिक्षण व्यवस्था में एक प्रकार की नवीनता, स्फूर्ति व सजगता आ सके । प्रशिक्षण संस्थाओं का विवेकीकरण एवं शिक्षण कार्य के लिए उपयुक्त विशेषज्ञों की नियुक्ति भी आवश्यक है । व्यावसयिक प्रबन्ध संस्थानों एवं विश्वविद्यालयों के शिक्षा-शास्त्रियों का आपस में सहयोग भी प्राप्त किया जाना चाहिए ।

उपरोक्त विवेचन के आधार पर हम कह सकते है कि भारत में बैंकिंग प्रशिक्षण सुविधाएँ अपर्याप्त है व उनमें निम्न कमियाँ देखने को मिलती हैं:

(1) प्रशिक्षण सुविधाओं हेतु बैंकों की सुनिश्चित नीति का अभाव ।

(2) प्रशिक्षकों के चयन की पर्याप्त अनुकूल नीति तथा अनुभवी प्रशिक्षकों का अभाव ।

(3) कर्मचारियों के सामयिक प्रशिक्षण की व्यवस्था का अभाव जिससे कर्मचारियों को नवीन परिवर्तनों की जानकारी नहीं हो पाती है ।

(4) वर्तमान में कार्यरत विभिन्न महाविद्यालयों व प्रशिक्षण केन्द्रों में समन्वय का अभाव है ।

(5) प्रशिक्षण संस्थानों पर परम्पणात तरीकों से प्रशिक्षण का कार्य किया जाना व विकसित पुस्तकालयों आदि का अभाव ।

अतः बैंक कर्मचारियों की प्रशिक्षण सुविधाओं पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये ।

बैंकिंग आयोग ने प्रशिक्षण सुविधा के विस्तार के लिए निम्न सुझाव दिये हैं:

(i) कर्मचारियों के चयन के पश्चात् उन्हें सेवा में रखने से पूर्व बैंकिंग संस्था के इतिहास, उद्देश्य, संगठनीय संरचना की पूर्ण जानकारी दी जानी चाहिए ।

(ii) प्रशिक्षण के माध्यम से विकसित प्रतिभा एवं गुणों म सदुपयोग करने के लिए कर्मचारियों की नियुक्ति उपयुक्त पदों पर की जानी चाहिए ।

(iii) विभिन्न प्रशिक्षण संस्थानों, महाविद्यालयों में जो पाठ्यक्रम बनाये जावें उनमें एकरूपता होनी चाहिए ।

(iv) पाठ्यक्रमो के निर्माण में शिक्षाविदों एवं व्यावहारिक बैंकरों को सम्मिलित किया जाना चाहिए ।

निष्कर्षतः यदि बैंकिंग प्रशिक्षण को हमें कारगर बनाना है तो प्रशिक्षण हेतु उपयुक्त नीति का निर्माण किया जाना चाहिए ।

बैंकिंग शिक्षा (Banking Education):

बैंकिंग शिक्षा प्रदान करने का कार्य विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों एवं इस क्षेत्र में कार्यरत विशिष्ट संस्थाओं द्वारा किया जाता है । कला एवं वाणिज्य के स्नातक स्तर के छात्रों को बैंकिंग के सैद्धान्तिक पक्ष के अध्ययन कराया अवसर प्राप्त होते हैं ।

कला स्नातक की कक्षाओं में अर्थशास्त्र को ऐच्छिक विषय लेने पर मुद्रा एवं बैंकिंग का अनिवार्य विषय के रूप में अध्ययन कराया जाता है जबकि वाणिज्य की स्नातक कक्षाओं में सभी छात्रों को अनिवार्य रूप से मुद्रा एवं बैंकिंग विषयों का अध्ययन कराया जाता है ।

इसके अतिरिक्त वाणिज्य संकाय के स्नातक स्तर पर विनिमय साध्य प्रलेख अधिनियम, भारतीय प्रसंविदा अधिनियम, साझेदारी एवं कम्पनी कानून आदि के अध्ययन के साथ-साथ ‘सहकारिता व ग्रामीण’ बैंकिंग विधि-विधान का अध्ययन भी ऐच्छिक विषय के रूप में कराया जाता है ।

स्नातकोत्तर स्तर पर भारत के कुछ विश्वद्यिालयों में बैंकिंग सम्बन्धी पर्याप्त उच्चस्तरीय अध्ययन की व्यवस्था है । स्नातकेत्तर स्तर पर बैंकिंग शिक्षा के अन्तर्गत मौद्रिक अर्थशास्त्र, अन्तर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र, कृषि एवं औद्योगिक वित्त, भारतीय बैंकिंग, बैंकिंग विधि एवं व्यवहार, बैंकिंग लेखे आदि का अध्ययन सम्मिलित रूप से किया जाता है । कुछ विश्वद्यिालय स्नातकोत्तर स्तर के ‘बैंकिंग डिप्लोमा’ पाठ्यक्रमों का भी संचालन करते है ।

विश्वविद्यालयों द्वारा बैंकिंग की उपाधि, डिप्लोमा अथवा अन्य प्रकार के अध्ययनों की एक खास कमी यह है कि इनमें बैंकिंग एवं मौद्रिक अर्थशास्त्र के सिद्धान्तों की तो विस्तृत जानकारी दे दी जाती है परन्तु व्यावहारिक ज्ञान प्रदान करने की कोई व्यवस्था नहीं होती है ।

बैंकिंग में अपनाई जा रही नवीन नीतियों एवं परिवर्तनों के सन्दर्भ में बैंकिंग शिक्षा की प्रकृति, क्षेत्र एवं विस्तार के एक नवीन दिशा प्रदान की जानी चाहिए । बैंकिंग शिक्षा के विकस तथा विस्तार के सम्बन्ध में बैंकिंग संस्थाओं को विश्वविद्यालयों का सहयोग, परमर्श एवं मार्ग दर्शन प्रदान करना चाहिए । विश्वविद्यालयों में बैंकिंग शिक्षा एवं शोधपीठों की स्थापना इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है ।

6. नियोजक-नियोजित सम्बन्धों का सौहार्द्रपूर्ण बनाना (Improving Employer-Employee Relations):

गत् वर्षों में भारतीय बैंकों के अधिकारियों तथा कर्मचारियों के सम्बन्ध में खटास आ गयी है जिससे बैंक में अनुशासनहीनता एवं अकुशलता का रोग फैल गया है । यह विरोध प्रायः वेतन, भत्ते, कम की शर्त तथा पदोन्नति को लेकर होता है । वेतन, भत्ते तथा काम की शर्त आदि तो अब बैंक अदालतों द्वारा निश्चित किये जाते है जिनका पालन बैंक, तथा कर्मचारियों द्वारा सना अनिवार्य होता है परन्तु पदोन्नति एवं तबादलों के करण अनेक बार विवाद उत्पन्न होते रहते हैं ।

पदोन्नति (Promotions) एवं स्थानान्तरण (Transfer) तथा अन्य सम्भावित विवादों का निपटारा करने के लिए बैंक अंशधारियों तथा बैंक कर्मचारियों के प्रतिनिधियों की सम्मिलित परिषदें (Joint Councils) बनायी जानी चाहिए । जो अधिकारियों तथा कर्मचारियों के लिए आचार संहिता (Code of Conduct) निर्मित कर सकें । और विभिन्न समस्याओं के सम्बन्ध में नियम बना सकें । इस आचार संहिता तथा नियमों का परिपालन करना दोनों वर्गों के लिए अनिवार्य होना चाहिए, ताकि विवाद अथवा संघर्ष उत्पन्न होने का अवसर ही न मिले ।

सम्भावित विवादों के लिए भी इन संयुक्त अथवा सम्मिलित परिषदों को व्यापक अधिकार दिये जाने चाहिए और इनके निर्णय दोनों पक्षों द्वारा मान्य होने चाहिए । इन परिषदों में दोनों दलों द्वारा मान्य कोई निष्पक्ष व्यक्ति भी नियुक्त किया जाना चाहिये ।

बैंकिंग नीति (Banking Policy):

भारत सरकार बैंकों के विस्तार, विकास, साख आदि के विषय में समय-समय पर घोषणाएं करती रही है किन्तु समूची बैंकिंग नीति के बारे में अभी तक कोई दस्तावेज प्रकाशित नहीं किया गया है जो बैंक अधिकारियों के लिए मार्गदर्शक का काम कर सके । इस प्रकार का दस्तावेज या घोषणा-पत्र सरकार द्वारा प्रकाशित किया जाना चाहिए ।

Home››Banking››Training››