“हमारी यात्रा जारी है” पर बराक ओबामा का भाषण । Speech of Barack Obama on “Our Journey Continues” in Hindi Language!
मेरे साथी देशवासियो ! आपने मुझ पर विश्वास करते हुए मुझे जो दायित्व सौंपा है, मैं उसके लिए आपका आभारी हूं । मुझे अपने पूर्वजों का बलिदान स्मरण है । अब तक 44 अमेरिकी नागरिक राष्ट्रपति पद की शपथ ले चुके हैं ।
अत्यधिक सम्पन्नता और सुख-शान्ति के दौरान बहुत-सी बातें कही गयी हैं । इसके बाबुजूद प्राय: घिरते बादलों और उठते तूफानों के मध्य अमेरिकी राष्ट्रपति शपथ लेते रहे हैं । अमेरिका विपत्ति के समय में भी आगे बढ़ता रहा है, उच्च पदों पर आसीन लोगों के मात्र कौशल और दूरदर्शिता के कारण नहीं, अपितु इसलिए भी कि हम अमेरिकावासी अपने पूर्वजों के आदर्शों के प्रति एकनिष्ठ और अपने संस्थापक दस्तावेजों के प्रति ईमानदार रहे हैं । अमेरिकियों की यह पीढ़ी भी इसी रास्ते पर चल रही है ।
यह सब जानते हैं कि हम विपत्ति के दौर से गुजर रहे हैं । हमारा राष्ट्र हिंसा और नफरत के एक बड़े तन्त्र के विरुद्ध युद्ध लड़ रहा है । कुछ लोगों के लोभ और दायित्वहीन व्यवहार के कारण हमारी अर्थव्यवस्था शिथिल हो गयी है । इसका एक अन्य कारण यह है कि हम मुश्किल विकल्पों को चुनने और राष्ट्र को नये दौर के लिए तैयार करने में सामूहिक रूप से नाकामयाब रहे हैं । लोग गृहहीन और बेरोजगार हो गये हैं ।
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व्यवसाय ठप्प पड़ गये हैं । हमारी स्वास्थ्य रक्षा बहुत महंगी हो गयी है । हमारे समस्त स्कूल अपने उद्देश्य में असफल हो रहे हैं । जिस प्रकार से हम अपनी ऊर्जा का प्रयोग कर रहे हैं, उससे हमारे विरोधी ताकतवर हो रहे हैं और हमारी धरती के लिए खतरा बढ़ता जा रहा है । आकड़ों पर नजर डालते हुए ये विपत्ति के संकेतक हैं । हमारे देश का भरोसा शिथिल पड़ता जा रहा है ।
चारों ओर यह आशंका व्यक्त की जा रही है कि अमेरिका का पतन होना निश्चित है, जिसके लिए अगली पीढ़ी को तैयार रहना चाहिए । मैं आज आप लोगों से कह रहा हूं कि हम जिन चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, वे वास्तविक है । कई चुनौतियां और भी मुश्किल हैं । उनका सामना आसानी से या कम वक्त में असम्भव है । लेकिन भरोसा रखिये अमेरिका उनका सामना सफलतापूर्वक करेगा ।
हम आज के दिन यहां इसलिए एकत्रित हुए हैं, क्योंकि हमने डर के विरुद्ध उम्मीद को चुना है, लड़ाई और क्लेश के विरुद्ध उद्देश्यपूर्ण एकता को चुना है । आज के दिन हम छोटी-मोटी शिकायतों और झूठे वादों प्रत्यारोपों और पुराने मताग्रहों के विनाश की घोषणा करते हैं । इन वस्तुओं ने बहुत लम्बे समय तक हमारी राजनीति का गला घोंटा है ।
हम युवा राष्ट्र हैं, लेकिन ‘बाइबिल’ के शब्दों में-वक्त आ गया है कि हम बचकाना बातें छोड़ दें । समय आ गया है कि हम अपने शाश्वत बल का फिर प्रदर्शन करें अपना गौरवपूर्ण इतिहास चुनें पीढ़ियों से चली आ रही इस अमूल्य भेंट इस आदर्श विचार को आगे बढ़ायें-भगवान् की दृष्टि में सब एक जैसे हैं सब आजाद हैं और सबको प्रसन्नता प्राप्त करने का मौका मिलना चाहिए ।
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जब हम अपने राष्ट्र की महानता की बात करते हैं, तो हम जानते हैं कि महानता उपहार में दी गयी वस्तु नहीं होती । महानता अर्जित करनी पड़ती है । हमारी यात्रा कभी आसान नहीं रही और न ही हमने कभी अपने मान-सम्मान से समझौता किया है । यह कमजोर दिल वालों कर्मठ की अपेक्षा ऐश्वर्य भोगी लोगों या सम्पन्नता एवं प्रसिद्धि में सुख तलाशने वालों का मार्ग कभी नहीं रहा है ।
इसके विपरीत यह जोखिम उठाने वाले लोगों कर्म में विश्वास करने वाले लोगों राष्ट्र का निर्माण करने वाले लोगों का मार्ग रहा है । वही लोग हमें सम्पन्नता और स्वतन्त्रता के लम्बे व कठिन मार्ग पर ले आये
हैं । उनमें कुछ प्रसिद्ध नाम हैं, लेकिन मेहनत करने वाले अधिकतर पुरुष और स्त्रियां गुमनाम हैं ।
हमारे लिए उन लोगों ने अपना कुछ सामान बांधा और एक नये जीवन की खोज में महासागर के पार चले आये । हमारे लिए उन्होंने अपना रक्त बहाया, पश्चिम को आबाद किया, कोड़े खाये और बंजर जमीन को जोतकर उपजाऊ बनाया । हमारे लिए वे कनार्ड और गेट्टीसबर्ग, नरमांडी और स्थानों पर लड़े और मृत्यु को प्राप्त हुए ।
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उन पुरुषों और स्त्रियों की बाजुओं में जब तक दम रहा उन्होंने संघर्ष किया बलिदान दिया कड़ी मेहनत की ताकि हम बेहतर जीवन जी सकें । उन्होंने अमेरिका को हमारी व्यक्तिगत महत्त्वाकांक्षाओं के जोड़ से भी बड़ा देखा; उनके लिए जन्म या दौलत या गुट का अन्तर कोई महत्त्व नहीं रखता था । आज भी हमारी यह यात्रा जारी है ।
हम विश्व के सम्पन्न व ताकतवर राष्ट्र बने हुए हैं । हमारे मजदूर जैसे पहले उत्पादक थे वैसे मन्दी के दिनों में भी बने हुए हैं । हमारे लोग कम आविष्कार-कुशल नहीं हैं । हमारे माल हमारी सेवाओं की मांग पिछले सप्ताह या पिछले माह या पिछले वर्ष की तरह ही बनी हुई है । हमारी क्षमता में कमी नहीं आयी है ।
लेकिन असम्भव बातें सोचना संकीर्ण हितों की रक्षा करने और अप्रिय निर्णयों को ठण्डे बस्ते में डाल देने का वक्त निश्चित रूप से बीत चुका है । हमें धूल झाड़कर खड़े हो जाना चाहिए और अमेरिका के पुननिर्माण के लिए एक बार फिर कार्य करना चाहिए ।
हम जहा भी नजर दौड़ाते हैं, कार्य करने की गुँजाइश दिखायी देती है । अर्थव्यवस्था की स्थिति साहसी और त्वरित कार्रवाई की माग कर रही है । हम इस दिशा में कार्रवाई करेंगे न केवल नये रोजगार के निर्माण के लिए अपितु विकास की एक नयी बुनियाद रखने के लिए भी ।
हम सड़कों पुलों इलेक्ट्रिक ग्रिडों और डिजिटल लाइनों का निर्माण करेंगे; क्योंकि ये वस्तुएं हमारी अर्थव्यवस्था की पोषक हैं और हमें आपस में जोड़े रखती हैं । हम विज्ञान को उसकी उचित जगह देंगे प्रौद्योगिकी के चमत्कारों का प्रयोग हेल्थ केयर की गुणवत्ता बढ़ाने में करेंगे और उसकी लागत कम करेंगे ।
हम अपनी कारों और फैक्ट्रियों को चलाने के लिए सूर्य हवा और मिट्टी का प्रयोग करेंगे । हम नये जमाने की मांग की पूर्ति के लिए अपने विद्यालयों महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में बदलाव लायेंगे । यह सब हम कर सकते हैं और यह सब हम करेंगे ।
कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो हमारे बड़ा बनने की आका क्षा की सीमा पूछते हैं, जो यह मशवरा देते हैं कि हमारी व्यवस्था आवश्यकता से ज्यादा बड़ी योजनाओं का भार सहन नहीं कर सकती लेकिन ऐसे लोगों की स्मरणशक्ति कमजोर है । वे भूल गये हैं कि इस देश ने पहले क्या किया है ।
वे भूल गये हैं कि जब आम उद्देश्य से जुड़ा एक स्वप्न और दिल में अदम्य साहस हो तो स्वतन्त्र पुरुष और स्त्रियां क्या नहीं कर सकते । सनकी लोग यह नहीं समझ पाते कि उनके पांवों के नीचे की धरती खिसक गयी है, कि जमाना बदल गया है, कि बासी राजनीतिक तर्क अब लागू नहीं होते ।
आज हम यह प्रश्न नहीं पूछते कि हमारी सरकार बहुत बड़ी है या बहुत छोटी है, अपितु यह पूछते हैं कि क्या सरकार कार्य कर रही है, क्या ठीक-ठाक आमदनी पर परिवारों को रोजगार दिलाने में सहायता कर रही है, क्या उसकी नीतियों से लोग अपनी देखभाल करने में सक्षम हैं, क्या रिटायरमेण्ट के पश्चात् लोग गरिमामय जीवन जी रहे हैं ।
यदि इन प्रश्नों पर जवाब ‘हां’ है, तो हम आगे बढ़ सकते हैं । यदि उनका जवाब ‘नहीं’ है, तो चलाये जा रहे कार्यक्रम बिना किसी अर्थ के हैं । ऐसे कार्यक्रमों को समाप्त कर दिया जाना चाहिए और जनता के धन की देखभाल करने वालों को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए ताकि वे बुद्धिमानी से व्यय करें अपनी बुरी आदतों को सुधारें और ईमानदारी से कार्य करें । तभी हम जनता और सरकार के मध्य विश्वास बना पायेंगे ।
हमारे सामने यह प्रश्न भी नहीं है कि बाजार की ताकत अच्छाई के लिए है या बुराई के लिए । दौलत उत्पन्न करने और स्वतन्त्रता को व्यापक बनाने में बाजार की ताकत का कोई जवाब नहीं है लेकिन मौजूदा संकट ने हमें स्मरण कराया है कि सतर्क न रहने पर बाजार नियन्त्रण से बाहर हो सकता है और यदि कोई राष्ट्र केवल सम्पन्न लोगों का पक्ष लेगा तो वह लम्बे समय तक उन्नति नहीं कर सकेगा ।
हमारी अर्थव्यवस्था की सफलता न केवल हमारे सकल घरेलू उत्पाद के आकार पर अपितु हमारी सम्पन्नता की पहुँच प्रत्येक इच्छुक व्यक्ति को मौका देने की हमारी क्षमता पर भी निर्भर करती है । यह मौका खैरात के कारण नहीं अपितु इसलिए दिया जाना चाहिए कि आम लोगों के कल्याण का यही मार्ग है ।
जहां तक हमारी सामान्य सुरक्षा की बात है तो हम अपनी रक्षा और अपने आदर्शों के मध्य चुनाव को सही नहीं मानते हैं । हमारे राष्ट्रपिताओं ने जिन मुसीबतों का सामना किया हम उनकी कल्पना तक नहीं कर सकते । इसीलिए उन्होंने कानून के शासन और व्यक्ति के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए एक चार्टर तैयार किया जो पीढ़ियों से चला आ रहा है ।
उन आदर्शों से विश्व अब भी आलोकित हो रहा है । हम अपने स्वार्थ के लिए उनकी बलि नहीं चढ़ा सकते । भव्य राजधानियों से लेकर मेरे पिता के गांव तक से देख रही जनता और सरकारें जानती हैं कि अमेरिका उस प्रत्येक राष्ट्र प्रत्येक पुरुष प्रत्येक महिला और प्रत्येक बच्चे का मित्र है, जो शान्ति और सम्मान के साथ जीवन व्यतीत करना चाहते हैं । लिहाजा हम एक बार फिर नेतृत्व के लिए तैयार हैं ।
उन आरम्भिक पीढ़ियों के विषय में स्मरण कीजिये, जो प्रक्षेपास्त्रों, टैंकों और सशक्त गठजोडों के विरुद्ध खड़े होकर फासीवाद और साम्यवाद का सामना कर रही थीं । वे जानते थे कि अकेले हमारी शक्ति हमारी रक्षा नहीं कर सकती और न ही यह हमें मनमाने ढंग से कार्य करने की अनुमति देती है ।
वे यह भी जानते थे कि यदि हम बुद्धिमानी से अपनी शक्ति का प्रयोग करें तो उसमें वृद्धि होगी । हमारी सुरक्षा हमारे उद्देश्य के औचित्य हमारी मिसाल के प्रभाव और हमारी विनम्रता तथा संयम में निहित है । हम इस विरासत के रखवाले हैं । इन सिद्धान्तों से मार्ग निर्देशित होकर हम एक बार फिर उन नये संकटों का सामना कर सकते हैं, जिनके लिए और ज्यादा कोशिश राष्ट्रों के मध्य और ज्यादा सहयोग तथा सहमति की आवश्यकता है ।
हम जिम्मेदारीपूर्वक इराक को उसकी जनता के लिए छोड़ने की शुरुआत करेंगे और अफगानिस्तान में शान्ति स्थापित करेंगे । हम पुराने मित्रों और पूर्व दुश्मनों के साथ परमाणु खतरे को कम करने के लिए अधिक कोशिश करेंगे ।
हमारा प्रयास ग्लोबल वार्मिंग के खतरे को भी कम करने का रहेगा । न तो हम अपने जीने के ढंग के विषय में किसी से क्षमा मांगेंगे और न ही उसकी रक्षा में आगा-पीछा करेंगे । जो लोग आतंक फैलाकर और मासूमों की जान लेकर अपने लक्ष्य को प्राप्त करना चाहते हैं, उन्हें यह समझ लेना चाहिए कि हमारे इरादे दृढ़ हैं, हमें डिगाया नहीं जा सकता । हमें आतंकवादी हरा नहीं कर सकते हम उन्हें हरा देंगे ।
हम जानते हैं कि समरसता वाली हमारी विरासत हमारी शक्ति है, कमजोरी नहीं । हम ईसाइयों और मुसलमानों यहूदियों हिन्दुओं और नास्तिकों के राष्ट्र हैं । इस पृथ्वी पर प्रत्येक कोने से आयी भाषा और संस्कृति से हमारा विकास हुआ है ।
चूंकि हम गृहयुद्ध एवं अलगाव को झेल चुके हैं तथा अंधेरे अध्याय से और ज्यादा दृढ़ और ज्यादा एकजुट होकर उभरे हैं, इसलिए हमें पक्का भरोसा है कि एक दिन पुरानी नफरत समाप्त हो जायेगी कौमों के मध्य की विभाजक रेखा मिट जायेगी और जैसे-जैसे दुनिया सिकुड़ती जायेगी हमारी साझी मानवता व्यापक होती जायेगी । अमेरिका शान्ति का नया युग लाने में अपनी भूमिका निभायेगा ।
जहां तक मुस्लिम जगत् की बात है, हम परस्पर हित और परस्पर सम्मान पर आधारित सहयोग का हाथ बढ़ाना चाहते हैं । विश्व में टकराव के बीज बोने वाले या अपने समाज की बुराइयों के लिए पश्चिम को दोषी ठहराने वाले नेताओं को समझ लेना चाहिए कि सबसे उपयोगी बात निर्माण है, न कि ध्वंस ।
उनकी जनता इसी के आधार पर उनके बारे में फैसला करेगी । जो लोग भ्रष्टाचार, छल-कपट और असन्तुष्टों के दमन के जरिये सत्ता से चिपके रहते हैं, वे इतिहास के गलत मार्ग पर चल रहे हैं । लेकिन यदि ऐसे लोग अपनी जनता के कल्याण के लिए कार्य करना चाहते हैं, तो हम सहयोग का हाथ बढ़ाने के लिए तैयार हैं ।
निर्धन राष्ट्रों की जनता से हमारा वादा है कि हम आपके साथ मिलकर कार्य करना चाहते हैं, ताकि आपके खेत सोना उगलें नदियों-तालाबों में स्वच्छ जल बहे, कुपोषित पोषित हों और भूखे दिमाग को खुराक
मिले ।
अपने जैसे सम्पन्न राष्ट्रों से मेरा यही कहना है कि हम अपनी सीमाओं से बाहर पीड़ा-तकलीफ के प्रति उदासीन नहीं रह सकते और न ही हम जनकल्याण को ध्यान में रखे बिना दुनिया के संसाधनों को व्यय कर सकते हैं । दुनिया बदल गयी है, हमें भी उसके साथ बदलना होगा ।
आज हम अपने उन वीर अमेरिकियों को कृतज्ञता से स्मरण करते हैं, जो दूर रेगिस्तानों और पहाड़ों में इस समय तैनात हैं । हम उनका आदर करते हैं, मात्र इसलिए नहीं कि वे हमारी स्वतन्त्रता के रक्षक हैं, अपितु इसलिए भी कि उनमें सेवा की भावना है किसी वस्तु में अपने से भी महान् अर्थ ढूंढने की इच्छा है । हमारे भीतर भी इसी प्रकार की भावना होनी चाहिए ।
सरकार क्या कर सकती है और उसे क्या करना चाहिए यह अमेरिकी जनमानस की आस्था और सकल्प पर निर्भर करता है । लेवी टूटने पर किसी अनजान व्यक्ति के प्राणों को बचाना दया है, अपने काम के घण्टों में कटौती पर किसी मित्र को बेरोजगार होने से बचाना मजदूरों की नि स्वार्थता है ।
इन्हीं मूल्यों की बदौलत हम संकट की घड़ी से निकलने में सफल होते हैं । जिस प्रकार आग बुझाने के लिए दमकलकर्मी हर प्रकार का खतरा उठाते हैं, उसी प्रकार माता-पिता अपने बच्चे के पालन-पोषण के लिए सब कुछ करते हैं । वही बच्चा अन्तत: हमारी किस्मत तय करता है ।
हमारी चुनौतियां भले ही नयी हों उनसे निपटने के हमारे तरीके भले ही नवीन हों, लेकिन हमारी सफलता पुराने मूल्यों, यानि ईमानदारी, कठोर श्रम, साहस, निष्पक्षता, धीरज, जिज्ञासा, निष्ठा और देशभक्ति पर ही निर्भर करती है । ये सही मूल्य हैं । हमारी उन्नति इन्हीं से हुई है ।
इसलिए इन मूल्यों पर फिर से चलना आज समय की मांग है । हमें जिम्मेदारी के एक नये युग का निर्माण करना चाहिए । प्रत्येक अमेरिकी को यह अनुभव करना चाहिए कि उसकी अपने प्रति, राष्ट्र के प्रति और दुनिया के प्रति कुछ दायित्वों हैं । हमें इन दायित्वों को अनिच्छापूर्वक नहीं, आपितु प्रसन्नता से पूरा करना चाहिए ।
हमें कठिन-से-कठिन काम करने से पीछे नहीं हटना चाहिए । इससे हमारा व्यक्तित्व हमारा चरित्र परिभाषित होगा । यह नागरिकता का मूल्य और तकाजा है । यह हमारे भरोसे का स्रोत है । भगवान् ने अनिश्चित नियति को आकार देने का दायित्व हमारे ऊपर डाला हुआ है ।
हमारी आजादी और हमारा पथ बताता है कि प्रत्येक नस्ल और प्रत्येक आस्था के स्त्री-पुरुष तथा बच्चे क्यों नहीं इस शानदार समारोह में सम्मिलित हो सकते हैं और क्यों एक व्यक्ति जिसके पिता 60 वर्ष पहले एक स्थानीय रेस्तरां में काम तक नहीं कर सकते थे आज सबसे पवित्र शपथ लेने के लिए आपके सामने खड़ा है ।
इसलिए आज हमें यह स्मरण करना चाहिए कि हम कौन हैं और अब तक हम कितनी दूरी तय कर चुके हैं । अमेरिका के जन्म के वर्ष भीषण ठण्ड वाले महीनों में देशभक्तों का एक छोटा दल एक हिम नदी के किनारे कैम्प फायर के चारों तरफ बैठा था ।
वे राजधानी छोड़कर यहा आये थे । शत्रु आगे बढ़ रहा था । बर्फ पर रक्त के धब्बे थे । जिस समय हमारी क्रान्ति का परिणाम सच्छिध लग रहा था हमारे राष्ट्रपिता ने आदेश दिया कि लोगों को ये शब्द पढ़कर सुनाये जायें: ‘भावी दुनिया को बताया जाना चाहिए कि कड़ाके की ठण्ड में जब उम्मीद और सद्गुणों के अतिरिक्त किसी वस्तु के बचे रहने की उम्मीद नहीं की जा सकती थी शहर और देश एक साझा संकट का सामना करने के लिए सामने आये ।’
हमें अपने साझे संकट को देखते हुए संकट के इस जाड़े में उन कालातीत शब्दों का स्मरण करना चाहिए । हमें उम्मीद और सद्गुणों के साथ एक बार फिर ठिठुरती लहरों और तूफानों का सामना करना चाहिए ताकि हमारे बच्चों के बच्चे कहें कि परीक्षा की घड़ी में भी हमारी यात्रा जारी रही कि हम पीछे नहीं मुड़े और न ही लड़खड़ाये । क्षितिज पर स्थिर दृष्टि और भगवान् की कृपा के साथ हमने स्वतन्त्रता की महान् भेंट को संजोकर रखा और भावी पीढ़ियों को सुरक्षित सौंपा ।