अमृता प्रीतम की जीवनी | Amrita Pritam Kee Jeevanee | Biography of Amrita Pritam in Hindi!
1. प्रस्तावना ।
2. रचना कौशल ।
3. उपसंहार ।
1. प्रस्तावना:
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पंजाबी कविता एवं साहित्य को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अलग पहचान देने वाली प्रसिद्ध लेखिका अमृता प्रीतम का जन्म 31 अगस्त, 1919 को पंजाब के गुजरांवाला में हुआ था । वह बहुमुखी प्रतिभा की धनी साहित्यकार थीं, जिन्होंने साहित्य की लगभग सभी विधाओं पर अपनी लेखनी चलायी है । अमृताजी ने दर्जनों भर उपन्यास, कहानियां लिखी हैं, जिन पर उन्हें कई पुरस्कार भी मिले हैं ।
2. रचना कौशल:
अमृता प्रीतम ने अपनी रचनाओं में सामाजिक जीवन दर्शन का बेबाक, यथार्थ एवं रोमांचपूर्ण वर्णन किया है । जिस भी विषय पर उनकी लेखनी चलती है; उन विषयों पर उनके लेखन की गहराई एवं गम्भीरता नजर आती है । उन्होंने सामाजिक मान्यताओं पर न केवल यथार्थता से लिखा है, अपितु उसे तोड़ने का साहस भी किया है ।
भारत विभाजन की त्रासदी का दर्द भोगते लोगों का मनोवैज्ञानिक चित्रण हो या भारतीय नारियों की बदलती हुई छवि, उसकी सोच को सजीव अभिव्यक्ति दी है । उनकी रचनाओं में सारा मानव-समाज व उसका दर्द बोलता है ।
पंजाबी परिवेश को दर्शाती उनकी रचनाओं का स्वर वहां की संस्कृति को विशिष्ट स्वर देता है । उनके काव्य संग्रहों में से 1955 में ‘सुनहरे’ को 1956 का ‘साहित्य अकादमी’ पुरस्कार व उनकी कृति ‘कागज ते केनवास’ (पंजाबी) को 1981 का ‘भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार’ मिला ।
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अमृताजी के 3 से अधिक कथा संग्रह, 8 के लगभग निबन्ध व यात्रा संस्मरण हैं । उनकी आत्मकथा ”रसीदी टिकट” छपते ही सर्वाधिक लोकप्रिय हुई । 1969 में पद्मश्री से विभूषित अमृता प्रीतम ने फ्रांस, बुल्गारिया, रूस व अन्य पूर्वी देशों की यात्राएं की हैं ।
उन्होंने पंजाबी में ‘नागमणि’ पत्रिका का सम्पादन भी किया । भारत विभाजन की पृष्ठभूमि पर आधारित उपन्यास ”पिंजर” के अतिरिक्त पांच बरस लम्बी सड़क, अदालत, कोरे कागज, उन्चास दिन, सागर और सीपियां, दिल्ली की गलियां, तेरहवां सूरज, एक थी सारा आदि शामिल हैं ।
”एलोन इन द मल्टीटयूड” कविता संग्रह, सन टायीम आयी टैल दिस टैल टू द, जो अंग्रेजी में भी अनुदित हैं । अमृता प्रीतम ने समस्त सामाजिक मान्यताओं को खारिज करते हुए 42 वर्ष की अवस्था में 86 वर्ष के अपने साथी मित्र इमरोज के साथ अविवाहित रहकर जीवन व्यतीत किया । वे उनके बच्चों की मां बनीं । इमरोज ने अमृता प्रीतम के किताबों के जीवन-भर चित्रांकन किये हैं ।
3. उपसंहार:
अमृता प्रीतम पंजाबी और हिन्दी की एक श्रेष्ठ लेखिका थीं । उन्हें अपनी साहित्य साधना के लिए अनेक पुरस्कारों एवं उपाधियों से सम्मानित भी किया गया । देश-विदेश से सम्मानित अमृताजी को बल्गारिया का ‘वापत्सारोव एवार्ड’, 1979 का किरितामैतोपियस एवार्ड सन् 1980 में प्रदान किया गया । उनके कविता संग्रह के लिए 1997 के ओशो मिसफिर पुरस्कार के लिए भी उन्हें चुना गया । यह पुरस्कार सामाजिक मान्यताओं के प्रति विद्रोही तेवर अपनाने वालों को प्रदान किया जाता है ।
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दिल्ली विश्वविद्यालय ने उन्हें डी॰लिट की मानद उपाधि 1973 में प्रदान की । 11 जुलाई 2000 को इन्हें पंजाबी भाषा के लिए शताब्दी सम्मान स्वरूप प्रशस्ति पत्र एवं 11 लाख रुपये प्रदान किये गये । अमृता प्रीतम 1986 में संसद सदस्य भी रही हैं । 31 अक्टूबर, 2005 को 86 वर्ष की अवस्था में वह साहित्य संसार को सूना कर गयीं ।