कस्तूरबा गांधी की जीवनी | Kasturba Gandhi Kee Jeevanee | Biography of Kasturba Gandhi in Hindi!
1. प्रस्तावना ।
2. उनका आदर्श चरित्र ।
3. उपसंहार ।
1. प्रस्तावना:
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कस्तूरबा गांधी उन भारतीय नारियों में अपना स्थान रखती हैं, जो अपने पति के प्रति पूर्णत: समर्पित होकर उनके कार्यों में अपना ईमानदारी से सहयोग देती हैं । पति के सपनों को साकार करने में अपना तन-मन-धन सब कुछ समर्पित कर देती हैं ।
यदि कस्तूरबा ने मन-कर्म-वचन से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का पग-पग पर साथ न दिया होता, तो आज गांधीजी राष्ट्र और समाज के लिए इतना सब कुछ न कर पाते । यह कहा जाये कि सफल गांधीजी के पीछे उनकी पत्नी कस्तूरबाजी का हाथ था, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी ।
2. उनका आदर्श चरित्र:
कस्तूरबा गांधी का जन्म सन् 1867 को गुजरात में हुआ था । उनके पिता का नाम गोकुलदास मकनजी और माता का नाम वृजकुंवरी था । उनका परिवार विष्णु का उपासक, अर्थात् वैष्णव पंथी था । कस्तूरबाजी को धार्मिक संस्कार अपने परिवार से ही प्राप्त हुए थे ।
कस्तूरबाजी का विवाह मोहनदास करमचन्द से 15 वर्ष की अवस्था में हुआ था । वे उनसे अवस्था में 2 वर्ष बड़ी थीं । मोहनदास करमचन्द गांधीजी के जीवन में कस्तूरबा एक आदर्श पत्नी के रूप में अपनी भूमिका निभाती रहीं ।
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गांधीजी जब वकालत की शिक्षा प्राप्त करने लंदन गये, तो इसके पीछे प्रेरणा कस्तूरबाजी की ही थी । दक्षिण अफ्रीका में गांधीजी ने प्रवासी भारतीयों के स्वाभिमान हेतु वहां रहकर जो कार्य किये, उसमें कस्तूरबाजी का ही आत्मबल था ।
वहां रहते हुए गांधीजी ने कस्तुरबा को पाखाने की सफाई से लेकर नालियों तक की सफाई का कार्य करवाया । कस्तूरबाजी इन सब कामों की बिलकुल भी आदी नहीं थीं, फिर भी पति की आज्ञा का उन्होंने कभी विरोध नहीं किया ।
गांधीजी के अछूतोद्धार, कुष्ठ रोगियों की सेवा, देहातों की सफाई आदि समाज-सेवा सम्बन्धी जो भी कार्य हुए, सभी में कस्तूरबा का सहयोग रहा । आश्रमवासियों के लिए तो वे एक प्रेरणा का स्त्रोत थीं । गांधीजी के स्वदेशी आन्दोलन को सफल बनाने में कस्तूरबाजी की भूमिका महत्त्वपूर्ण थी । सत्याग्रह के दौरत गांव-गांव घूमकर उन्होंने असहाय ग्रामीणों की सेवा का कार्य किया था ।
सेवाग्राम कस्तूरबा के कारण एक तपोभूमि का रूप था । गांधीजी की जेलयात्रा के दौरान कस्तूरबाजी ने हर कठिनाई का धैर्यपूर्वक सामना किया । गांधीजी की अनुपस्थिति में बच्चों की देखभाल से लेकर शिक्षा-दीक्षा की जिम्मेदारी एक प्रकार से वह ही निबाह रहीं थीं ।
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जीवन-भर गांधीजी का साथ देने वाली उनकी इस संगिनी ने अपना सम्पूर्ण जीवन दूसरों के आंसू पोंछने व पति तथा घर-परिवार की देखभाल में ही बिताया । कभी अपने लिए शायद ही उन्होंने समय दिया हो । 9 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी को जब उनके कुछ सहयोगियों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया, तब कस्तूरबाजी ने गांधीजी की कमी को पूरा करने हेतु उसी शाम शिवाजी पार्क में जनसभा को सम्बोधित करने का निर्णय लिया, जिसके एवज में उन्हें भी आगा खां महल में नजरबन्द कर दिया गया ।
भीतर-ही-भीतर कस्तुरबाजी का स्वास्थ्य जवाब दे रहा था । उन्हें निमोनिया ने जकड़ लिया था । अभी इस बीगारी से उन्हें छुटकारा भी न मिला था कि 22 फरवरी 1944 को अचानक हुए हृदयाघात से गांधीजी को अकेला छोड़कर वे चल बसीं ।
गांधीजी को तो जैसे सदमा ही लग गया था । अपने आंसू छिपाने की कोशिश में वे बार-बार शाल से अपने मुंह को ढांपे हुए नजर आ रहे थे । एक राष्ट्रपिता अपने आपको उस दिन जितना असहाय व अकेला महसूस कर रहे होंगे, उतना ही शायद किसी दिन नहीं ।
3. उपसंहार:
कस्तूरबाजी एक महान् देशभक्त, पतिभक्त, समाजसेवा परायण महिला थीं । धार्मिक संस्कार उनमें कूट-कूटकर भरे थे । गांधीजी की महानता में कस्तूरबाजी की जितनी भूमिका थी, उतनी किसी ने कभी कोई कल्पना भी न की हो ।
यदि पत्नी का सकारात्मक साथ न हो, तो भला कोई पति कितनी आगे बढ़ सकेगा । एक सामान्य पाति से गांधीजी बनने के लिए पत्नी के रूप में एक कस्तूरबा का होना बहुत जरूरी है । कस्तूरबा को पूरा देश ”बा” कहकर अपना सम्मान प्रकट करता है ।