गीतकार प्रदीप की जीवनी | Biography of Lyricist Pradeep in Hindi!
1. प्रस्तावना ।
2. जीवन परिचय एवं उपलब्धियां ।
3. उपसंहार ।
1. प्रस्तावना:
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प्रदीप एक ऐसे गीतकार रहे हैं, जिन्होंने हिन्दी फिल्मों के लिए साहित्यिक स्तर के गीत लिखे । उनके गीतों का स्वर कहानी एवं घटना स्तर पर केन्द्रित होते हुए भी अपने विस्तृत दृष्टि को सिनेमाई संस्कार से मानवीय संस्कार तक ले आता है । उनके गीतों में देशभक्ति और राष्ट्रीयता का स्वर कूट-कूटकर भरा है ।
वहीं उनमें दार्शनिकता के साथ-साथ प्रेम-विरह, मिलन के शृंगारिक भावों का भी उद्रेक मिलता है । उनके गीतों में मानवीय मूल्यों के प्रति आस्था का स्वर विद्यमान है, वहीं सामाजिक विसंगतियों एवं मूल्यों के विघटन पर उन्होंने अपनी सशक्त लेखनी चलायी है ।
2. जीवन परिचय एवं उपलब्धियां:
कवि प्रदीप मध्यप्रदेश के मालव प्रान्त में जन्मे अद्वितीय गीतकार कहे जा सकते हैं । फिल्मी जगत् में होते हुए भी उन्होंने जो साहित्यिक गीत लिखे, उनमें उनकी काव्य-प्रतिभा की अद्भुत छाप मिलती है । “कंगन”, “बन्धन”, ”पुनर्मिलन”, ”किस्मत” आदि फिल्मों के लिए उन्होंने जो गीत लिखे, उसके फलस्वरूप सभी फिल्मों ने रिकॉर्ड तोड़ सफलता अर्जित की ।
प्रकृति के माध्यम से श्रुंगारिक भावों को अभिव्यक्ति देते हुए वे मिलन की तीव्र प्रतीक्षा में ”हवा तुम धीरे बहो, आते होंगे मेरे चितचोर” जैसे गीत रचे, वहीं प्रियतम की नींद में खलल न पड़े, इसलिए कवि बादलों से कहता है: ”धीरे-धीरे आ रे बादल, धीरे-धीरे जा । मेरा बुलबुल सो रहा है । शोरगुल न मचा ।”
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मिलन के बाद की अनुभूति के कारण मतवाला मन गाता है:
नाचो नाचो प्यारे मन के मोर ।
गन मेरा तन-मन ।
मगन सारा जीवन है ।
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दार्शनिक गीतों की रचना करने में भी कवि पूर्ण सिद्धहस्त हैं:
बंदे नाव का लंगर छोड़, मरण रे तू ही मेरो श्याम समान तथा हमने किसी से सुनी कहानी, एक सफर जिन्दगानी है ।
जिसको पगले तू कहता, अपना प्रेम की दुनिया का झूठा है सपना ।
उनका फूलों से रिश्ता ही क्या है ?
जिनकी किस्मत ही कांटों के बीच पली रे ।
आज कहीं दूर कहीं, मेरी नाव चली रे ।
राष्ट्रीय भावना को व्यक्त करने में उनकी वाणी और प्रखर हो जाती है ।
वे लिखते हैं:
आज हिमालय की चोटी से फिर हमने ललकारा है ।
दूर हटो दूर हटो ऐ दुनियावालो !
ये हिन्दुस्तान हमारा है ।
वहीं नौजवानों को जागृत करते हुए वे लिखते हैं:
चल-चल रे नौजवान! चाहे आधी हो या तूफान चल-चल रे नौजवान !
आओ बच्चो ! तुम्हें दिखाये, झांकी हिन्दुस्तान की ।
इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की ।
वन्देमातरम् ! वन्देमातरम !
बच्चों को आगाह करते हुए उन्होंने लिखा है:
लाये हैं तूफान से किश्ती निकाल के ।
इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के ।
जागृति फिल्म में गांधीजी की हत्या पर उन्होंने गीत लिखा:
दे दी आजादी तूने खड़ग बिना ढाल ।
साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल ।
रघुपति राघव राजाराम ।
1960 के भारत-चीन युद्ध के बाद उन्होंने जो गैर फिल्मी गीत लिखा, उसके बोल थे:
ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आँख में भर लो पानी ।
जो शहीद हुए है उनकी जरा याद करो कुरबानी ।
सी. रामचन्द्र के संगीत निर्देशन में लताजी ने यह गीत आजादी के बाद राष्ट्रीय पर्व पर नेहरूजी के सम्मुख गाया था, तो नेहरूजी की आखों से भी आसू छलक आये थे । ”देख तेरे संसार की हालत क्या हो गयी भगवान्, कहकर कवि का हृदय भी रो पड़ता था; क्योंकि उनमें सच्ची मानवीय प्रेम की अनुभूति थी ।
3. उपसंहार:
”दादा साहेब फाल्के पुरस्कार” से सम्मानित प्रदीपजी ने फिल्मों के लिए लिखे साहित्यिक गीतों के माध्यम से एक श्रेष्ठ गीतकार होने का प्रमाण दिया है । वे भारत की भूमि से असीम प्रेम करते थे । राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत उनके गीतों के साथ-साथ ऐसे गीत भी हैं, जो संसार की दुर्दशा की कहानी कहते हैं । उन्होंने हमेशा यही कहा था कि हमारे देश को खतरा अपने ही लोगों से है । उनकी इस बात में सचमुच एक गहराई और सचाई नजर आती है । प्रदीपजी के गीत आज भी उतने ही प्रासंगिक लगते हैं ।