चंद्रसेन विराट की जीवनी | Biography of Chandrasen Virat in Hindi!
1. प्रस्तावना ।
2. जीवन परिचय एवं रचनाकर्म ।
3. उपसंहार ।
1. प्रस्तावना:
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चन्द्रसेन विराट ने कवि दुष्यन्त कुमार के बाद हिन्दी गजलों को एक नया स्वरूप प्रदान किया, जिसे ”मुक्तिका की स्वतन्त्र संज्ञा” दी जा सकती है । अपनी ‘मुक्तिका के माध्यम से उन्होंने कथ्य और शैली के नये प्रयोगों को हिन्दी भाषा के सांचे में अच्छी तरह ढालने का कार्य किया । कवि का अपना परिवेश है ।
अपनी संवेदनाएं हैं । नवगीतों, गज़लों से मिली-जुली मुक्तिकाओं में आम आदमी के समकालीन जीवन को पैनी दृष्टि से देखा है । हिन्दी की नयी छवि के रूप में निजी छन्दों का कलात्मक प्रयोग कर एक नयी जमीन जोड़ी है, जिसमें व्यावहारिक जीवन का कटु यथार्थ है । आज की भौतिकतावादी, वैज्ञानिक, यान्त्रिक सभ्यता का सजीव चित्रण उनकी कविताओं में हैं ।
2. जीवन परिचय एवं रचनाकर्म:
हिन्दी गजल को नयी पहचान देने वाले चन्द्रसेन विराटजी का जन्म 3 दिसम्बर 1936 को इन्दौर मध्यप्रदेश में हुआ था । उन्होंने आजीविका की दृष्टि से अभियान्त्रिकी को अपनाया, तथापि काव्य-कर्म की ओर उनकी रुचि बाल्यावस्था से ही रही है ।
उनकी रचनाओं में गीतों के कुल बारह संग्रह और सात संग्रह प्रकाशित हैं, जिनमें: “मेहंदी रची हथेली”, ”स्वर के सोपान”, “ओ मेरे अनाम”, ”किरण के कसीदे”, ”मिट्टी मेरे देश की”, ”पीले चावल द्वार”, “दर्द कैसे चुप रहे”, “निवर्सना चांदनी”, ”पलकों में आकाश”, ”आस्था के अमलतास”, ”कचनार की टहनी”, “सन्नाटे की चीख”, ”धार के विपरीत”, “लड़ाई लम्बी है”, ”कुछ छाया कुछ धूप” प्रमुख हैं ।
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इसके अतिरिक्त उन्होंने गीत-ग्रन्थ का भी सम्पादन किया । वे सहृदय, संवेदनशील कवि हैं, किन्तु आधुनिक परिस्थितियों में आडम्बर से परे मानवता के सहज गीतकार हैं । उनकी कविताएं प्रेम और मानवीय रिश्ते से गहरे रूप में जुड़ी हैं ।
वे गीत, गजलों एवं मुक्तिकाओं के माध्यम से प्रणय, कार तथा राष्ट्रीय चेतना व इंसान की घुटन-भरी जिन्दगी का चित्रण करने में सफल रहे हैं । भारत की मिट्टी के प्रति वे आस्थावान हैं । हरे-भरे खुशहाल गांव को देखना चाहते हैं ।
गांव-गांव को गोकुल करके भारत स्वर्ग बनायेंगे,
जगह-जगह पर निर्माण के तीरथ नये उठायेंगे ।
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हर देहरी पर पीले चावल, दे मेहनत का आमन्त्रण,
नक्षत्रों की बांह पकड़कर, श्रम के गीत गुंजाता चल ।
कवि खुशहाल जिन्दगी के प्रति आशावान हैं, किन्तु चुनौती-भरे जीवन की समस्याओं से वह बेखबर नहीं हैं । वस्तुत: गजल लेखन में विराटजी के अपने तेवर है । उनके शब्द व अर्थ में कितनी कसावट है, देखिये:
इन्सान वही फिर भी ऊंचा है, कभी नीचा है ।
ये वक्त की हरकत है, साज़िश सितारों की ।
आदमी में फिर दुःशासन जी उठा,
द्रौपदी के वस्त्र फिर हरने लगा ।
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जीवन का मूल्य बोध प्रतिपल घटता जा रहा है । इसके एवज में मनुष्य धर्म और सम्प्रदाय में बंटकर घृणा को प्रश्रय दे रहा है ।
अंधी आंधी चली धर्म की, मनुज-मनुज को बांट दिया ।
सिर्फ घृणा को पनपाया है, और प्यार को छांट दिया ।
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मानवता की सच्ची पहचानैं करने वाली आंखें अब रहीं नहीं, कवि उद्वेलित होकर कहता है:
प्रतिभाएं यहां पर्याप्त हैं, लेकिन बिखरी हुई पड़ी हैं ।
छिपे कोयले में है, हीरे-लालो भरी कई गुदड़ी है ।
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देश का दुर्भाग्य हैं यह पीढ़ियों के हाथ में ।
छीनकर कलमें नशे की ढपलियां रख दी गयीं ।।
3. उपसंहार:
इस प्रकार चन्द्रसेन विराट ने शुद्ध हिन्दी गज़ल को जनमानस के सामने रखा । हिन्दी भाषा को गज़ल के रूप में सशक्त रूप प्रदान कर विराटजी ने सचमुच महान् कार्य किया ।