नरेश मेहता । Biography of Naresh Mehta in Hindi Language!
1. प्रस्तावना ।
2. जीवन परिचय तथा रचनाकर्म ।
3. उपसंहार ।
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1. प्रस्सावना:
आधुनिक हिन्दी साहित्य जगत् में नरेश मेहताजी कवि, कथाकार, गीतकार, नाटककार, चिन्तक, विचारक आदि रूपों में अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं । वे नयी कविता के प्रयोगधर्मी अन्वेषक हैं । सांस्कृतिक गौरव, परम्पराओं एवं मिथकीय सन्दर्भों के बीच सम्बन्धों को दर्शाती उनकी रचनाएं अपनी सृजनधर्मिता के वैशिष्ट से ओतप्रोत हैं । वे मानवीय उत्कर्ष के कवि हैं ।
2. जीवन परिचय एवं रचनाकर्म:
कवि नरेश मेहता का जन्म 15 फरवरी 1922 को शाजापुर (म॰प्र॰) में हुआ था । उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उज्जैन से उत्तीर्ण की । उच्च शिक्षा काशी विश्वविद्यालय से पूर्ण की । सन् 1940 में जब वे उज्जैन आये, तो भारतीय राजनीति एवं साहित्य सृजन में सदा समन्वय कायम रखा । जब वे काशी आये, तो उन्होंने अपने गुरु के रूप में केशवप्रसाद मिश्रजी को अपने मार्गदर्शक के रूप में पाया ।
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लेखन के साथ-साथ जीविका का माध्यम बना, ऑल इण्डिया रेडियो में नौकरी करना । यहां नौकरी का बन्धन उन्हें अधिक दिनों तक बांधे नहीं रह सका । वे स्वतन्त्र लेखन की आशा में इलाहाबाद आ गये । कुछ समय पश्चात् उज्जैन के ‘प्रेमचन्द सृजन पीठ’ के निदेशक बनकर वहीं चले गये और वहीं बस गये ।
उनकी प्रकाशित कृतियां: ”बन पाखी सुनो”, ”बोलने दो चीड़ को”, ”मेरा समर्पित एकान्त”, “उत्सवा तुम मेरा मौन हो”, ”अरण्या”, “देखना एक दिन” इत्यादि कविता संग्रह हैं । खण्डकाव्यों में: ”संशय की एक रात”, ”महाप्रस्थान”, ”शबरी”, “प्रार्थनापुरुष”, तथा उपन्यासों में “डूबते मरूदूल”, ”नदी यशस्वी है”, ”धूमकेतु एक श्रुति”, ”प्रथम फाल्गुन”, “यह पथ बन्धु था”, ”उत्तर कथा” ।
कहानी संग्रह: ”एक समर्पित महिला”, “तथापि”, “जलसाघर” । नाटक: ”सुबह के घण्टे”, ”खण्डित यात्राएं” । एकांकी: ”सनोबर के फूल”, ”पिछली रात की बर्फ” । संस्मरण: “काव्य का वैष्णव व्यक्तित्व”, “मुक्तिबोध एक अवधूत”, “शब्दपुरुष अज्ञेय”, “साधु न चले जमात” आदि हैं ।
उन्होंने ”कृति” तथा ”चौथा संसार” नामक पत्रिका का सम्पादन किया । उनकी समरत रचनाओं में आधुनिकता एवं परम्परावादिता की पुनर्व्याख्या मिलती है । वे मनुष्य को उच्चतम आकांक्षाओं के सूर्य के रूप में प्राणवान, ऊर्जावान ही नहीं, शक्ति के प्रेरक मानते है ।
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उनके खण्डकाव्य “एक संशय की रात” में उन्होंने भगवान् श्रीराम के उस अन्तर्द्वन्द्व को दर्शाया है; जब वे युद्धस्थल की ओर प्रयाण करते हुए विचार कर रहे हैं कि यह युद्ध किसके लिए लड़ा जा रहा है । महज सीता के लिए ! नहीं, जनता के लिए लड़ा जा रहा है । इस पौराणिक मिथक को वे एक नये सन्दर्भों में देखते हैं । यही उनकी प्रयोगधर्मी, सृजनधर्मी सोच है ।
3. उपसंहार:
साहित्य में कुछ नया रचने वाले रचनाकारों में से एक थे: नरेश मेहताजी । वे मूलत: कवि थे । कवि होने के नाते उनकी रचनाओं में राग-विराग की वैयक्तिक, सामाजिक अनुभूतियां है । जीवन की प्रत्येक परिस्थितियों में मानवीय जीवन-बोध को तलाशती रहती हैं उनकी रचनाएं । ऐसे महान् लेखक 22 नवम्बर सन् 2000 को हमारे बीच नहीं रहे ।