नागर्जुन की जीवनी | Biography of Nagarjun in Hindi!
1. प्रस्तावना ।
2. उनका जन्म परिचय ।
3. नागार्जुन की भारतीय रसायनशास्त्र को देन ।
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4. उपसंहार ।
1. प्रस्तावना:
विज्ञान के क्षेत्र में भौतिक जीव तथा रसायनशास्त्र का विशेष महत्त्व है । विज्ञान की समस्त चमत्कारिक उपलब्धियों एवं तत्त्वों में इन तीनों का स्वरूप अभिन्न रहा है । प्राचीन भारतीय वैज्ञानिकों ने अपनी चिकित्सा पद्धति में युगीन साधनों का प्रयोग कर उसे मानव के हित में प्रयुक्त किया था ।
चाहे वह शल्यक्रिया हो या कोई अन्य उपचार, किसी भी वस्तु को चिरकाल तक सुरक्षित, सुन्दर, प्राकृतिक तथा यथावत स्थिति में रखने के लिए विभिन्न रसायनों का प्रयोग भी किया जाता रहा है । हम आधुनिक विज्ञान में रसायन के इस बहुआयामी उपयोग की बात छोड्कर प्राचीन भारतीय विज्ञान की बात करें, तो ज्ञात होता है कि हमारा देश रसायन विज्ञान के क्षेत्र में अपनी महत्त्वपूर्ण, अद्वितीय उपलब्धियों का देश रहा है । हमारे यहां जो प्रमुख रसायनवेत्ता हुए हैं, उनमें नागार्जुन का नाम विशिष्ट है ।
2. जन्म परिचय:
नागार्जुन का जन्म ईसा की दूसरी शताब्दी में महाराष्ट्र के विदर्भ प्रदेश में एक ब्राह्मण कुल में हुआ था । तिब्बती साहित्य में चौरासी सिद्धों में से एक नागार्जुन को माना गया है, जिनमें प्रदर्शित चित्रों में नागार्जुन को गले में सर्प डाले चित्रित किया गया है । नागार्जुन ने रसायन शास्त्र पर आधारित जो पुस्तक लिखी, उसका नाम रस रत्नाकर या रसेन्द्र मंगल है, जो संस्कृत भाषा में लिखी गयी है । इसमें रसायन की कई विधियों का वर्णन किया गया है ।
3. नागार्जुन की भारतीय रसायनशास्त्र को देन:
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नागार्जुन प्राचीन भारत के महान् रसायनज्ञ रहे हैं । तिब्बती साहित्य के उनके विषय में यह कथा प्रचलित है कि उन्होंने रसायन की विद्या एक ब्राह्मण से अत्यन्त ही चमत्कारिक ढंग से प्राप्त की थी । कहा जाता है कि व्यालि नाम का एक धनी ब्राह्मण आदमी को अमरत्व प्रदान करने हेतु अमृत की खोज करने निकल पड़ा ।
उसने विभिन्न प्रयोगों द्वारा अमृत प्राप्त करना चाहा और अमृत न मिलने पर उसने प्रयोगों से भरी हुई अपनी लिखी पुस्तक को व्यर्थ समझकर फार्मूले सहित नदी में प्रवाहित कर दिया । नगर की एक वेश्या ने नदी स्नान करते समय उस पुस्तक को देखा जो पानी में डूबकर भी सूखी हुई थी ।
यह देखकर उसे बड़ा आश्चर्य हुआ । वह उसे कौतूहलवश अपने घर ले गयी । कहा जाता है कि वह वेश्या एक दिन अपनी पाठशाला में खाना बना रही थी । सौभाग्यवश व्यालि उस वेश्या का अतिथि था । अपनी पुस्तक को पुन: पाकर उसने अमृत बनाने की कोशिश प्रारम्भ कर दी ।
इधर वेश्या का खाना पक रहा था उधर व्यालि अपने अमृत रसायन प्राप्त करने सम्बन्धी प्रयोगों में लगा हुआ था । वेश्या ने गलती से चुटकी भर मसाला व्यालि के अमृत रसायन में डाल दिया । बस फिर क्या था, पूर्णरूपेण अमृत रस तैयार हो गया ।
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व्यालि उस अमृत रस को लेकर जंगल इसलिए भाग गया, ताकि उस अमृत रस का लाभ कोई अन्य न ले सके । वह दलदलीय भूमि की एक चट्टान पर जाकर रहने लगा । नागार्जुन को जड़ यह ज्ञात हुआ, तो उसने व्यालि का पता लगाकर अमृत रस का रहस्य मालूम कर लिया ।
कहते हैं कि उस रसायन के सेवन से चेहरे की झुर्रियां गायब हो जाती थीं तथा सफेद बाल काले हो जाते थे, बूढ़ा आदमी जवान हो जाया करता था । नागार्जुन ने भी एक यक्षिणी की 12 वर्षो तक साधना कर पारा बांधने की विधि प्राप्त की थी ।
उन्होंने पीले गन्धक को पलाश के गोंद के रस से शोधित कर गोबर के कण्डों की आग पर पकाकर चांदी को सोने में बदलने की विधि में प्रवीणता हासिल की थी । नागार्जुन ने पारे का ओषधि के रूप में विभिन्न स्थानों पर प्रयोग किया था । इसके लिए उन्होंने पारे की पिष्ट का भस्म तैयार करने के लिए गर्भयन्त्र का प्रयोग किया, जिसमें फुंकनी, गोबर की कण्डिका, धौंकनी, विभिन्न प्रकार की सण्डसियों को प्रयोग में लाया गया ।
रसायनशास्त्र के इतिहास में नागार्जुन पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने कब्जकी ब्लैक सलफाइड ऑफ मर्करी का पर्पीटकारस नाम की ओषधि के रूप में प्रयोग किया था । रस रत्नाकर के अध्ययन से नागार्जुन द्वारा प्रयुक्त किये गये विभिन्न प्रकार के रसायनों का परिचय मिलता है, जो तत्कालीन समय में असाधारण था ।
4. उपसंहार:
यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि नागार्जुन प्राचीन भारतीय समय के श्रेष्ठ रसायनवेत्ता रहे होंगे । उनके द्वारा प्रयुक्त किये गये कई रसायन तो आधुनिक विज्ञान में भी प्रयोग में लाये जाते हैं ।
सीमित साधनों एवं अल्प सुविधाओं के बीच नागार्जुन ने अपने अथक परिश्रम व बुद्धिबल से जो कुछ भी प्राप्त किया, विज्ञान के क्षेत्र में निश्चय ही वह एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि थी ।