नूरजहां की जीवनी । Biography of Noorjahan in Hindi Language!
1. प्रस्तावना ।
2. नूरजहां का जीवन परिचय एवं प्रभाव ।
3. उपसंहार ।
1. प्रस्तावना:
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नूरजहां मुगलकाल की उन महिलाओं में श्रेष्ठ स्थान रखती है, जिन्होंने दरबारी राजनीति और सांस्कृतिक जीवन को प्रभावित किया । अपने प्रभावशाली व्यक्तित्व के द्वारा वह 15 वर्षों तक मुगलकालीन राजनीति को प्रभावित करती रही । नूरजहां अत्यन्त रूपवान और लावण्यमयी सुन्दरी थी ।
उसकी सुन्दरता के कारण ही उसे ”नूरमहल” और ”नूरजहां” की उपाधि से अलंकृत किया गया । वह असीमित, अनियन्त्रित महत्त्वाकांक्षी नारी थी । रूप, बल, बुद्धि के कारण उसने शासन के समस्त अधिकार एवं शक्तियां अपने हाथों में ले ली थीं । जहांगीर को तो उसने एक प्रकार से हाशिये पर रखा था ।
2. नूरजहां का जीवन परिचय एवं प्रभाव:
नूरजहां का वास्तविक नाम मेहरून्निसा था । उसके पिता मिर्जा गयासबेग तेहरान निवासी थे । नूरजहां का जन्म कान्धार के पास 1577 में हुआ था । उसके पिता अपनी बेगम सहित भारत आ गये थे । मेहरून्निसा का विवाह 17 वर्ष की अवस्था में इरानी प्रवासी युवक अली कुली बेग इस्तजलु के साथ सन् 1592 में हुआ ।
वह अकबर की शाही सेना में सैनिक पद पर कार्यरत था । एक बार आखेट के समय अली कुली बेग ने एक शेर को मारा था, तो शहजादे सलीम ने उसे ”शेर अफगन” की उपाधि दी । 1599 में सलीम के साथ मेवाड़ पर आक्रमण करने के लिए अकबर ने उसे भेजा था ।
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सलीम द्वारा अकबर के प्रति विद्रोह करने पर शेर अफगन ने उसका साथ छोड़कर अकबर का साथ दिया था । जहांगीर बनने के बाद उसने शेर अफगन को क्षमा बंगाल की जागीर देकर वहां का फौजदार नियुक्त कर दिया था । सलीम ने शेर अफगन के बंगाल विद्रोहियों से मिलने की खबर पाने के बाद उसका वध करवा डाला था । इस विषय पर कई विवाद हैं ।
अफगन की मृत्यु के बाद नूरजहां सलीम की मां सलीमा बेगम की सेविका के रूप में कार्य करने लगी । वहीं पर उसने हरम की स्त्रियों के लिए चोलियां, पोलकों, दुपट्टों, लहंगों तथा उनके वस्त्रों की नयी-नयी डिजाइनों का ईजाद किया । उसने शृंगार तेल और सुगन्धित पदार्थों से बने इत्र आदि का निर्माण किया था ।
गुलाब के इत्र की आविष्कृत्री नूरजहां मानी जाती है । दीर्घकाल तक उसके द्वारा प्रचलित फैशन उच्च व कुलीन वर्गों में छाये रहे । सन् 1611 में 36 वर्ष की अवस्था में नूरजहां का विवाह सलीम, अर्थात् जहांगीर से हुआ । विवाह के बाद उसके समस्त सम्बन्धियों और परिवार के सभी सदस्यों को सम्मान तथा पदोन्नतियां प्रदान की गयीं ।
नूरजहां पुरुषों के समान साहस भी रखती थी । वह हाथी पर बैठकर नदी पार कर सकती थी । घुड़सवारी, शस्त्र चलाना उसे प्रिय थे । वह शेर, चीते का आखेट करती थी । वह उदार, सहृदय और दानशील थी । साहित्य व ललित कलाओं के प्रति उसे विशेष अनुराग था ।
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वह फारसी भाषा और साहित्य की अच्छी ज्ञाता थी । फारसी में कविताएं भी करती थी । उसने अपनी परिष्कृत रुचि और सृजनशील मस्तिष्क के द्वारा कमरों की साज-सज्जा और शाही दावतों के नवीन ढंग प्रचलित किये ।
मुगल दरबार के वैभव व ऐश्वर्य में वृद्धि करने के साथ-साथ स्थापत्य कला में भी रुचि ली । अपने पिता गयासबेग एतमादुदौला का मकबरा बनवाया, जिसके पाषाण पर चिकन और बेलबूटे का काम करवाया । पच्चीकारी की कला पेट्राड्यूरा शैली के अनुसार विभिन्न रंगों के पत्थरों पर रत्नजड़ित मीनाकारी भी करवायी ।
उद्यानकला में रुचि रखने वाली नूरजहां ने अपने पिता और पति की कब्रगाह में हौज, फव्वारे और चबूतरे से सज्जित सुन्दर उद्यान लगवाये । स्त्री स्वभाव के अनुरूप नूरजहां ने अपने पिता तथा भाई आसफ खां को उच्च पदों पर नियुक्त किया और उन्हें ऊंची मनसबदारी प्रदान की ।
अपने परिवारजनों को अत्यधिक सुख-सुविधा देने के कारण महलों में उसने गुटबन्दी को प्रश्रय दिया । इतना ही नहीं, सन् 1612 में उसने आसफ खां की अर्जुमंदबानू बेगम का विवाह खुर्रम से कर दिया । वह अच्छी कूटनीतिज्ञ थी । इसलिए उसने जहांगीर से सब सत्ता और अधिकार अपने पास ले लिये थे ।
दरबार, प्रशासन और राजनीति में जहांगीर का दखल न के बराबर रह गया था । उसने बड़ी चालाकी से शेर अफगन से उत्पन्न अपनी पुत्री लाडली बेगम का विवाह जहांगीर के दूसरे पुत्र शहरयार से कर दिया और वह योग्य, प्रतिभाशाली और महत्त्वाकांक्षी खुर्रम को युवराज न बनवाकर शहरयार को जहांगीर का उत्तराधिकारी बनाना चाहती थी ।
जहांगीर की मृत्यु के बाद तो उसने शासन पर अपना एकाधिकार ही कर लिया था । सत्ता और अधिकार के मद में वह इतनी अंधी हो गयी थी कि उसने महावताखां जैसे अमीरों का अपमान करना प्रारम्भ कर दिया था ।
अपनी पक्षपातपूर्ण गुटबंदी से उसने नूरजहां गुट, जहांगीर गुट और सरदारों का अलग गुट बनने के लिए अवसर प्रदान किया था, जिसके कारण खुर्रम तथा महावतखां को उसके विरुद्ध विद्रोह करना पड़ा । 1645 में नूरजहां का इंतकाल हो गया ।
3. उपसंहार:
नूरजहां में स्त्री सुलभ दोष और दुर्बलताएं भी थीं । यह सब होते हुए भी नूरजहां का प्रभुत्व मुगलकाल में हानिकारक होते हुए भी बना रहा ।