वानकद्रे शांताराम । Biography of V. Shantaram in Hindi Language!

1. प्रस्तावना ।

2. जीवन वृत्त ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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भारतीय फिल्में विश्व में सर्वाधिक बनने वाली फिल्में हैं । ये फिल्में भारत की अनेक भाषाओं और बोलियों में बनती रही हैं, किन्तु हिन्दी तथा मराठी भाषा में फिल्म निर्माण की अद्वितीय कला में महारत रखने वाले वी॰ शान्ताराम एकमात्र फिल्मकार हैं ।

भारतीय फिल्मों ने भारतीय संस्कृति को हमेशा से प्रभावित किया है । मूक फिल्मों से लेकर वर्तमान फिल्म निर्माण की आधुनिक तकनीक तक पहुंचने वाली हमारी भारतीय फिल्मों ने स्वतन्त्रता पूर्व राष्ट्रीय जागति का मन्त्र फूंका, तो दूसरी तरफ सामाजिक पुनर्जागरण, शिक्षा के प्रचार, समाज सुधार में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी । वी॰ शान्ताराम की फिल्में इसी का सशक्त उदाहरण हैं ।

2. जीवन वृत्त:

वी॰ शान्ताराम का पूरा नाम वानकद्रे शान्ताराम था । उनका जन्म 18 नवम्बर, 1901 को महाराष्ट्र के कोल्लापुर में हुआ था । बाल्यावस्था से उनका रुझान अध्ययन की ओर न होकर अभिनय की ओर अधिक रहा था । घर से भागकर वे सुप्रसिद्ध गायक एवं अभिनेता कल गन्धर्व की नाटक मण्डली में सम्मिलित हो गये ।

13 वर्ष की अवस्था में उन्हें रंगमंच का परदा गिराने और उठाने का काम सौंपा गया, साथ ही कभी-कभार लड़की की वेशभूषा में सेविका की भूमिका निभाने का अवसर भी उन्हें मिल जाया करता था । 6 वर्षा तक इस प्रकार नाटक गण्डली में कार्य करते हुए वे ऊबकर वहां से भाग निकले ।

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उस समय बाबूराव पेंढारकर, भालजी मेंढर फिल्म कम्पनी में मैनेजर और अभिनेता का कार्य करते थे । 1920 में शान्ताराम ने इस कम्पनी को ज्वाइन कर लिया । वहां उन्हें स्टूडियो का सामान इधर-उधर रखने, कारपेंटर, एडीटर, एक्टर, कुली सभी की भूमिका अदा करनी पड़ी ।

जब 1923 में उन्हे मायाबाजार और सिंहगढ़ जैसी फिल्मों में छोटी-मोटी भूमिकाएं मिलने लगीं, तो उनका मनोबल बढा । 1925 में उन्हें साहूकारपर में नायक की भूगिका मिली । इसका निर्देशन बाबूराव पेंढारकर ने किया था ।

इस तरह अनुभव प्राप्त करते हुए उन्होंने अपनी फिल्म कम्पनी ‘प्रभात फिल्म’ स्थापित की, जिसके साथी कलाकार सीताराम कुलेकर्णी, वी॰ दामले, शेख फतेहलाल, केशवराव ढेवर थे । इस कम्पनी ने कुछ मूक फिल्मों के साथ बोलती फिल्में भी बनायीं, जिनमें उनकी प्रथम फिल्म ‘गोपाल कृष्णा’ थी । दूसरी ”रानी साहिबा’, तीसरी ”खूनी खंजर” मुक फिल्में थीं ।

इस कम्पनी द्वारा बनाई गयी पहली बोलती फिल्म थी: ”अयोध्या का राजा” जो 1932 गे बनी थी । इसके पूर्व भारत की बोलती फिल्म ”आलमआरा” बनी थी । ”अयोध्या का राजा” हिन्दी और मराठी दोनों ही भाषाओं में बनी थी, जिसकी नायिका दुर्गा खोटे तथा निर्देशक वी॰ शान्ताराम थे । यह फिल्म हिट रही ।

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इसके बाद उन्होंने आदमी, पड़ोसी, दुनिया न माने, सन्त ज्ञानेश्वर, अमृत मन्थन, स्वराज तोरण णी बनायी । इन तीनों फिल्मों में जहां राष्ट्रीय एकता का भाव था, वहीं सामाजिक जागति का भी पुट था । पड़ोसी फिल्म को ”वेनिस” फिल्म महोत्सव में शामिल होने का अवसर मिला ।

स्वतन्त्र और मौलिक सोच रखने वाले बी॰ शान्ताराम ने 1943 में प्रभात कंपनी से अलग होकर बम्बई में वाडिया स्टूडियो खरीदा और अपने माता-पिता की पुण्यस्मृति में ”राजकमल” फिल्म मन्दिर की स्थापना  की । इसके बैनर तले बनने वाली पहली फिल्म ‘शकुन्तला’ थी । वाद में दादा कोटनीस की अमर कहानी, मतवाला शायर, तीन बत्ती चार शायर, दहेज, परछाई, सुबह का तारा आदि फिल्मों बनायीं ।

उन्होंने हिन्दी, मराठी तथा काला गे भी कई फिल्में बनायीं, जिनकी विषयवस्तु दहेजप्रथा, अनगेल-बेमेल विवाह थी । शास्त्रीय रागों पर आधारित झनक-झनक पायल बाजे, नवरंग, सेहरा, पिंजरा, गीत गाया पत्थरों ने, जल बिन मछली नृत्य बिन मछली, बूद जो बन गयी मोती आदि फिल्में बनायीं, लेकिन सर्वाधिक ख्याति उन्हें गिली-दो आंखें बारह हाथ से ।

यह फिल्म कैदियों को खुले वातावरण में रखकर उन पर पारोसा और प्रेम जताकर भावनात्मक सुधार लाने वाली एक अद्वितीय बेमिसाल फिल्म थी । इस फिल्म में उन्होंने स्वयं नायक की भूमिका निभाई थी । इस फिल्म के दौरान उनकी आखें घायल हो गयी थीं । कई कठिनाइयां आयी लेकिन उन्होंने देश, काल और परिरिथति के अनुसार इस  फिल्म को जिस विषयवस्तु को लेकर बनाया था, उसे पूरा किया । उन्हें इस हेतु अन्तर्राष्ट्रीय बर्लिन फिल्म समारोह में ”गोल्ड बेयर पुररकार” तथा राष्ट्रपति पदक गिला ।

झनक-इानक पायल बाजे को उन्होंने 70 एम॰एम॰ स्टीरियोफोनिक साउण्ड में तैयार किया । अपने सिनेमाई जीवन में उन्होंने कुल 82 फिल्मों का निर्माण तथा 55 फिल्मों का निर्देशन किया । उन्होंने तीन विवाह किये थे । उनकी दो पत्नियां-जयश्री और संध्या कुशल अभिनेत्रियां थीं । उनसे दो पुत्र और पांच पुत्रियां उत्पन्न हुई । उनका पुत्र किरण शान्ताराम भी निर्माता और निर्देशक है ।

3. उपसंहार:

वी॰ शान्ताराम ने भारतीय फिल्मों को नि:सन्देह एक नयी दिशा और दशा दी । विशेषत: नृत्य और संगीत को लेकर अनेक नवीन प्रयोग किये । नवीन विषय और नयी प्रस्तुति के साथ उन्होंने गोपीकृष्ण जैसे नर्तक को केन्द्रीय भूमिका में रखा । सामाजिक विषयों पर बनी उनकी फिल्में आज भी प्रासंगिक हैं । नयी पीढ़ी के फिल्मकारों को उन्होंने नयी सोच दी ।

राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर उन्हें 1986 में सर्वोत्तम सम्मान: ”दादा साहेब फाल्के” पुरस्कार से नवाजा गया । 28 अक्तूबर, 1990 को उनकी मृत्यु पर फिल्म जगत् ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा ”उनकी मृत्यु पर एक युग समाप्त हो गया ।” उनके सम्मान तथा स्मृति में “बी॰ शान्ताराम पुरस्कार” की योजना की गयी है ।

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