चंदवर्दाई की जीवनी | Biography of Chandwardai in Hindi!

1. प्रस्तावना ।

2. जीवन व कृतित्व ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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हिन्दी साहित्य में वीर काव्यों की परम्परा अत्यन्त दीर्घ एवं विस्तृत है तथा इस धारा का प्रवाह अक्षुण्ण है । इस परम्परा में कवि चन्दवरदाई का अत्यन्त गौरवपूर्ण स्थान है । उनके द्वारा रचित ”पृथ्वीराज रासो” महाकाव्य वीरकाव्यों का मार्गदर्शक एवं, प्रेरणास्त्रोत है । राजाओं के शौर्य-पराक्रम का वर्णन जितने प्रभावशाली व आकर्षक ढंग से कवि चन्दवरदाई ने किया है, वैसा किसी अन्य ने नहीं किया है ।

2. जीवन एवं कृतित्व:

महाकवि चन्दवरदाई के जीवनकाल के सम्बन्ध में कोई प्रामाणिक जानकारी नहीं मिलती है, तथापि कई इतिहासकार इनका जन्म संवत् 1206 में हुआ था, ऐसा मानते हैं । राजा पृथ्वीराज चौहान भी इसी दिन पैदा हुए थे । पृथ्वीराज और चन्दवरदाई की बचपन से ही एक् दूसरे से प्रगाढ़ मित्रता थी ।

महाकवि चन्दवरदाई जाति के ब्रह्मभाट थे । उनका जन्मस्थान लाहौर माना जाता है । महाकवि चन्दवरदाई और पृथ्वीराज साथ-साथ पढ़े-बड़े । युद्धकला कौशल का अभ्यास भी उन्होंने साथ-साथ ही किया था । यही कारण है कि पृथ्वीराज चौहान ने शासक बनते ही चन्दवरदाई को अपना सलाहकार, मन्त्री नियुक्त किया ।

ऐसा भी कहा जाता है कि दोनों की मृत्यु भी एक ही दिन, एक ही समय में, एक् ही स्थान पर हुई । तराईन के युद्ध में हार जाने के बाद जब मुहम्मद गोरी पृथ्वीराज को बन्दी बनाकर गजनी ले गया, तब ”पृथ्वीराज रासो” की रचना कर अपने परिवार को सौंपकर वे उन्हें छुड़ाने चले गये ।

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गजनी पहुंचकर उन्होंने बादशाह गोरी के पास पृथ्वीराज के शब्दबाण चलाने की कला की इतनी अधिक प्रशंसा की कि मुहम्मद गोरी इस कला को देखने अपने आसन पर विराजमान हो गया । अन्धे पृथ्वीराज ने चन्दवरदाई  की कविता चार फुट चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण ता पर विराजै मुहम्मद गोरी सुलतान, यह सुनते ही पृथ्वीराज ने शब्द-भेदी बाण चलाकर गोरी को मार डाला ।

हालांकि इतिहास में पृथ्वीराज व गोरी की मृत्यु रणक्षेत्र में बताई गयी है । मुहम्मद गोरी के मरते ही दरबारी दोनों को पकड़ना ही चाहते थे कि दोनों ने कटार भोंककर अपनी इहलीला समाप्त कर ली । महाकवि चन्दवरदाई कृत ”पृथ्वीराज रासो” वीरगाथाकाल की सर्वोकृष्ट रचना है । यह एक विशालकाय महाकाव्य है ।

इसमें कविवर चन्दवरदाई की अनुपम कवित्व शक्ति एवं अद्‌भुत प्रतिभा का चमत्कार दृष्टिगोचर होता है । इसमें इतिहास, राजनीति, धर्म, ज्योतिष, साहित्य एवं काव्य शास्त्र, पुराण, दर्शन, व्याकरण, छन्द तन्त्र-मन्त्र, सिद्धि, युद्ध-कौशल का प्रभावोत्पादक वर्णन है । रस योजना की दृष्टि से इसमें शृंगार व वीर रस प्रमुख हैं ।

युद्ध वर्णन के साथ-साथ आखेट तथा प्रकृति वर्णन भी अनुपम है । इसकी भाषा संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश की साहित्यिक भाषा है । महाकाव्य रासों में 72 छन्दों का वर्णन किया गया है, जिसमें पद्धरि त्रोटक, भुजंगी, कुण्डलिया, भुजंग प्रपात है । अलंकारों में स्मरण प्रताप, रूपकातिशयोक्ति उपमा का प्रयोग है ।

3. उपसंहार:

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यह सत्य है कि महाकवि चन्दवरदाई एक राष्ट्रभक्त कवि थे । पृथ्वीराज रासो के माध्यम से उन्होंने अपने काव्य सौष्ठव, कल्पनाशीलता का परिचय दिया है, वहीं हिन्दी भाषा के गौरव को भी प्रतिष्ठापित किया

है ।

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