जेसी ओवेन्स की जीवनी | Biography of Jesse Owens in Hindi!

1. प्रस्तावना ।

2. प्रारम्भिक जीवन एवं उपलब्धियां ।

3. उपसंहार ।

1.प्रस्तावना:

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जैसी हंस का नाम अमेरिका की उन सर्वश्रेष्ठ एथलिटों की पंक्ति में आता है, जिन्होंने निरन्तर अपने श्रेष्ठ प्रदर्शन से अमेरिकावासियों के हृदय में अपनी जगह बना ली है । इस महान खिलाड़ी ने सन् 1936 के बर्लिन ओलम्पिक में 100 मीटर, 200 मीटर, लम्बी कूद और 4 गुना 100 मीटर रिले रेस में 4 स्वर्ण पदक अकेले ही दिलवाने का पराक्रम दिखाया था ।

इस अश्वेत खिलाड़ी के इतने उत्कृष्ट प्रदर्शन ने ही हिटलर जैसे रंग-भेद नीति के पक्षघर को लज्जित कर दिया था ।

2. प्रारम्भिक जीवन एवं उपलब्धियां:

जेम्स क्लीवलैंड ओवंस का जन्म अमेरिका के डेनविले में 12 सितम्बर, 1912 को हुआ था । उनके पिता एक निर्धन कृषक थे और दादा गुलाम थे । बचपन बेहद तंगहाली में बीता था । 7 वर्ष की अवस्था से ही प्रतिदिन 100 पौण्ड की कपास ढोकर परिवार की आय में अपना सहयोग दिया करते थे ।

उनके पिता ने इतनी गरीबी के बाद भी उन्हें स्कूल पढ़ने हेतु भेजा था 1 तमाम कठिनाइयों के बाद ही उन्हें स्कूल की एथलेटिक टीम में जगह मिल पायी थी । निरन्तर अभ्यास व लगन से उन्होंने 1933 में 9.4 में 100 गज दौड़कर विश्व रिकॉर्ड की बराबरी कर ली ।

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उनकी इस उपलब्धि पर उन्हें ओहियो विश्वविद्यालय में प्रवेश मिल गया । उनकी वजह से पिता को वहीं पर नौकरी भी मिल गयी थी । 2 साल की अल्पावधि में उन्होंने 9 विश्व रिकॉर्ड तथा 4 ओलम्पिक स्वर्ण पदक जीते ।

25 मई, 1935 को 5 विश्व रिकॉर्ड तोड़े, जिसमें 100 गज, 220 गज दौड़ एवं बाधा दौड, लम्बी कूद 4 गुना मीटर की रिले रेस में लगातार विश्व रिकॉर्ड तोड़कर कीर्तिमान बनाया । उन्होंने 26 फुट 5 इच लम्बा कूदकर एक नया ओलम्पिक रिकॉर्ड बनाया था । वे 1955 में भारत भी आये थे ।

उन्होंने भारतीय खिलाडियों को मेहनत करने की नसीहत भी दी थी । खेल से संन्यास लेने के बाद वे बहुत से विवादों में फस गये थे । वे अकसर यही कहते थे: भागते समय तुम यह सोचो कि जिस जमीन पर तुम भाग रहे हो, वहां आग लगी है । यदि तुम रुक गये, तो तुम्हारे पांव जल जायेंगे ।

3. उपसंहार:

जीवन-भर विभिन्न प्रकार की दौड़ों में अपना विश्व रिकॉर्ड बनाने वाले वे दुनिया के एकमात्र एथलीट कहे जाते हैं । उनकी मृत्यु ओरिजिना अमेरिका में 1980 में हुई । बर्लिन में उनके नाम पर एक सड़क मार्ग का नाम रखा गया है । ऐसे विश्व चैम्पियन सम्मान की दृष्टि से देश की सीमाओं से बाहर भी प्रतिष्ठित होते रहते हैं ।

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