जैनेन्द्र कुमार । Biography of Jainendra Kumar in Hindi Language!

1. प्रस्तावना ।

2. जीवन वृत्त एवं रचनाकर्म ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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प्रेमचन्द के साथ यदि किसी साहित्यकार का नाम लिया जाता है, तो वे हैं, जैनेन्द्र कुमार । जैनेन्द्र कुमार ने अनेक उपन्यास, कहानी एवं निबन्धों की रचना की है । शिल्प और वस्तु संगठन की दृष्टि से उन्होंने हिन्दी कथा-साहित्य को विशिष्ट दृष्टि प्रदान की ।

हिन्दी उपन्यास विधा को प्रेमचन्द के बाद उन्होंने नया मोड़ दिया । उनकी नयी और मनोवैज्ञानिक विचारधारा के कारण उनकी आलोचना भी हुई, किन्तु परवर्ती रचनाकारों ने उनको ”मानव मन व नये युग का मसीहा” कहा ।

2. जीवन वृत्त एवं रचनाकर्म:

जैनेन्द्र कुमार का जन्म अलीगढ़ के कोडियागंज नामक ग्राम में सन् 1905 में हुआ था । बचपन में पिता की मृत्यु हो जाने के कारण उनका बचपन अत्यधिक कष्ट में बीता । उनके मामाजी ने उनकी शिक्षा-दीक्षा का भार वहन किया । उन्होंने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा हस्तिनापुर के ऋषभ ब्रह्मचर्य आश्रम से पूर्ण की ।

स्वाध्यायी विद्यार्थी के रूप में उन्होंने सन् 1919 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की । तत्पश्चात् उन्होंने काशी विश्वविद्यालय में प्रवेश ले लिया । 1920 में कॉलेज त्यागकर वे असहयोग आन्दोलन में भाग लेने हेतु स्वतन्त्रता आंदोलन में कूद पड़े । सन् 1921 में श्री हेडगेवारजी के सम्पर्क में आकर उन्होंने सन् 1924 में प्रथम जेलयात्रा की ।

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सन् 1930-1932 में उन्होंने जेल यातनाएं सहीं । विनोबा भावे, लाला भगवानदास, श्रीमती सरोजनी नायडू के साथ उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम यूनिटी कोन्फ़्रेंस में भाग लिया । सन् 1919 में उनका विवाह हुआ । वे प्रेमचन्द से विशेष प्रभावित थे । उन्होंने सन् 1929 में ”फांसी” नामक कथा-संग्रह लिखा ।

उनकी रचनाओं में कहानी संग्रह- ”पाजेब”, “एक रात”, ”दो चिड़ियां”, “स्पर्धा” तथा उपन्यासों में ”कल्याणी”, ”सुनीता”, ”त्यागपत्र”, ”विवर्त”, ”अनाम स्वामी” प्रमुख हैं । अनुदित उपन्यास “यामा” है । निबन्धों में: ”मंथन”, “सोच-विचार”, ”बंगलादेश एक यक्ष प्रश्न” है । उन्होंने कुछ संस्मरण व जीवनियां भी लिखी है ।

1973 में उनको दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा डी॰लिट॰ की मानद उपाधि प्रदान की गयी । उनको साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिला है । उनकी रचनाओं में मानव मन की विभिन्न परिस्थितियों एवं दमित वासनाओं का चित्रण मनोवैज्ञानिक रूप से मिलता है ।

वे मानव मन के सूक्ष्म चितेरे हैं । उनकी भाषा में सहजता और रोचकता है । कहीं-कहीं पर नव-विन्यास और दार्शनिकता के कारण उनकी शैली गम्भीर, जटिल एवं उच्चस्तरीय हो गयी है । अपनी बेबाकी लेखन-कला के कारण वे हमेशा चर्चा में रहे ।

3. उपसंहार:

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जैनेन्द्र कुमार, प्रेमचन्द की परम्परा से आगे की परम्परा का निर्वाह करने वाले ऐसे रचनाकार रहे हैं, जिन्होंने मानव मन की परतों को खोला है । प्रेमचन्द ग्रामीण जीवन के चितेरे साहित्यकार हैं, जबकि जैनेन्द्र नगरीय जीवन के पात्रों का मनोविश्लेषण एवं मनोवैज्ञानिक गुत्थियों के सिद्धहस्त साहित्यकार हैं ।

हिन्दी जगत में मनोवैज्ञानिक पृष्ठभूमि पर कहानी और उपन्यास लिखने वाले पहले कथाकार रहे है विषय और शिल्प की नवीनता के लिए वे हमेशा स्मरण किये जाते रहेंगे ।

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