फ्रांस की देवी-जोन ऑफ आर्क । Joan of Arc Kee Jeevanee | Biography of Joan of Arc in Hindi!
1. प्रस्तावना ।
2. जन्म परिचय ।
3. उपसंहार ।
1. प्रस्तावना:
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अपने राष्ट्र फ्रांस की मुक्ति के लिए अपने जीवन की आहुति देने वाली फ्रांस की देवी ”जोन ऑफ आर्क” का नाम विश्व की उन अदम्य साहसी, देशभक्त महिलाओं में बड़े आदर के साथ लिया जाता रहेगा, जिन्होंने अपने देश की आजादी के लिए कठोर, असहनीय यातनाएं सहते-सहते अपना सम्पूर्ण जीवन बलिदान कर दिया । अपने विचारों पर दृढ़ रहने वालीं जोन ऑफ आर्क को आज भी फ्रांस देवी की तरह ही पूजता है ।
2. जन्म परिचय:
फ्रांस की देवी जोन का जन्म फ्रांस के एक गांव डोमरेमी में सन् 1412 में एक साधारण कृषक परिवार में हुआ था । उनके पिता जैक्व मिन डी आर्क एक साधारण किसान थे । जोन के तीन भाई-जेक्वमिन, पियरे और जीन थे । जोन ने स्कूल से कोई विधिवत शिक्षा नहीं ली थी । जोन के पिता ने उन्हें एक साधारण लड़की मानकर कताई-बुनाई व घरेलू कार्य सीखने को कहा । जोन की रुचि विवाह में कभी नहीं रही थी ।
उन्हें तो बस ईश्वर की अलौकिक वाणी सुनाई पड़ती थी, जिसमें फ्रांस को अंग्रेजों से मुक्त कराने का सन्देश भरा हुआ होता था । उस समय फ्रांस पर अंग्रेजों का शासन कायम था । फ्रांस के राजा चार्ल्स की कन्या इंग्लैण्ड के राजा हेनरी पंचम से ब्याही गयी थी ।
चार्ल्स के स्थान पर हेनरी पंचम ने छल-कपट व शक्ति से फ्रांस पर आधिपत्य कर लिया था । फ्रांस की जनता उसके अत्याचारों से बेहद आक्रान्त थी । जनता के द्वारा किये गये विद्रोह को उसने हमेशा दबा दिया था ।
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उसकी मृत्यु के बाद जब हेनरी षष्ठ ने शासन को अपने हाथों में लिया, तो उसके नाबालिक होने के कारण ड्यूक वहां का शासन चलाते थे । जनता द्वारा किये गये विद्रोह को वहां भारी संख्या में तैनात अंग्रेज सैनिक बलपूर्वक दबा दिया करते थे ।
ईश्वरीय आदेश के अनुसार जोन ने फ्रांस की मुक्ति के लिए डाफिन चार्ल्स से भेंट की । इधर चार्ल्स के विद्रोह को अंग्रेजों ने 1428 के अक्टूबर महीने में दबा दिया । वह भयभीत होकर चिनान जा छिपा । अंग्रेजों ने फ्रांसवासियों को खाने-पीने तक का मोहताज कर दिया ।
पिता से विरोध लेकर जोन ने वैंकूवर जाकर चार्ल्स से पुन: भेंट की और ईश्वरीय आदेश से अवगत कराया । 16 वर्षीय जोन की बातों पर किसी ने भी विश्वास नहीं किया । जनवरी 1429 को जोन ने वैंकूवर आकर एक सैनिक अधिकारी की सहायता से चार्ल्स से मुलाकात करनी चाही । उन्होंने अपने 6 विश्वासपात्र साथियों के साथ पुरुष वेश में चार्ल्स से भेंट की ।
उसे छिपने की बजाय बहादुरी से अंग्रेजों का सामना करने की सलाह दी । चार्ल्स ने जोन की बातों पर विश्वास करने की बजाय धर्मगुरुओं और पादरियों से मुलाकात की । जोन ने उन्हें आर्लिन्स पर शीघ्र विजयश्री हासिल करने की भविष्यवाणी की । उन्होंने अपनी दैवीय शक्ति से कैथरीन चर्च में छिपी हुई तलवार को लाने के लिए कहा । लोग आश्चर्यचकित थे, तलवार उन्हें वहीं से प्राप्त हुई ।
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27 अप्रैल, 1429 को जोन ने सौ सैनिकों की सहायता से अचानक देववाणी सुनकर आक्रमण कर दिया । कुछ ही क्षणों में वह आर्लिन्स को जीतकर घायल होकर भी वापस चार्ल्स के पास विजय का समाचार सुनाने आ पहुंची थीं । 18 जून, 1429 को उन्होंने अंग्रेजों से सारा इलाका छीनकर चार्ल्स को फ्रांस की गद्दी पर बैठा दिया था ।
अब जोन ने पेरिस को अंग्रेजों की कैद से आजाद कराने का संकल्प लिया था । दुर्भाग्यवश कायर कमाण्डर युद्धभूमि से भाग निकले । जोन अंग्रेजों के हाथों में आ गयी थी । उन्होंने उन्हें जेल की अंधेरी कोठरी में कठोर यातनाए देनी प्रारम्भ कर दी थीं ।
अंग्रेजों ने कूटनीति का प्रयोग कर फ्रांस की जनता के मन में उनके प्रति असम्मानजनक भावना भड़कानी प्रारम्भ कर दी थी । जोन पर कई मुकदमे चलाये गये । एक दिन बन्दी जीवन से तंग आकर वह मीनार से कूद पड़ी । घायल होने पर अंग्रेजो द्वारा पकड़ ली गयीं ।
उन पर कड़े पहरे में पुन: एक बार यातनाओं दौर प्रारम्भ हो गया । उन पर 70 अभियोग लगाये गये । फ्रांस की जनता के बीच उनके ईश्वरीय आदेश सम्बन्धी बातों के विरुद्ध जोर-शोर से यह प्रसारित किया गया कि वह पागल और सनकी हैं ।
एक स्त्री होकर पुरुषों के कपड़े पहनती हैं । वह चर्च के पादरियों के आदेश की अवहेलना कर ईश्वर का आदेश मानती हैं । अत: उनके दण्ड का फैसला धार्मिक गुरुओं पर सौंपा जाता है । धार्मिक अधिकारियों ने उन्हें चर्च- का आदेश मानने व पुरुषों के वेश को त्यागने को कहा । जोन ने इसे अस्वीकार कर दिया था ।
30 मई 1431 को धर्मगुरुओं ने जोन को जिन्दा जलाकर मारने का आदेश सुनाया । आश्चर्य था कि फ्रांस की जनता ने उनका साथ नहीं दिया । जोन को एक खम्भे से बांध दिया गया । उनके चारों ओर आग लगा दी गयी ।
जोन को आग के बीच छोड़ देने वाले जल्लाद की रूह भी कांप कर रह गयी थी । जोन अन्तिम समय तक अपने ईश्वर को पुकारती रही । आग को समर्पित उनकी देह पंचतत्त्व में विलीन हो चुकी थी । 20 वर्षों बाद चार्ल्स सप्तम ने उन्हें सन्तों का सम्मान प्रदान किया ।
3. उपसंहार:
जोन का जीवन यही सन्देश देता है कि वे अपनी बातों पर दृढ़ रहने वाली, वीर, साहसी, देशभक्त नारी थीं । यह संसार का कठोर सत्य है कि जिस जोन ने फ्रांस के चार्ल्स को सिंहासन पर बैठाया था, उसी चार्ल्स ने एक पुरुष होकर भी फ्रांस को अंग्रेजों से मुक्ति दिलाने में किसी भी प्रकार का प्रयत्न नहीं किया । अपने त्याग, समर्पण के बदले में जोन को यातनाओं के सिवा और कुछ नसीब नहीं हुआ, तथापि वह अपना नाम विश्व इतिहास में अमर कर गयीं ।