डॉ॰ खुब्रह्यण्यम चन्द्रशेखर की जीवनी । Biography of Dr. Subhramanyan Chandrasekhar in Hindi Language!
1. प्रस्तावना ।
2. जीवन परिचय एवं उपलब्धियां ।
3 उपसंहार ।
1. प्रस्तावना:
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विश्व के अनेक वैज्ञानिकों ने खगोल जगत् के रहस्यों के बारे में अनेक शोधकार्य किये और सौरमण्डल के साथ-साथ आकाश में उदित होने वाले तारों के सम्बन्ध में भी टेप-नेक जानकारियां दीं, किन्तु तारों की उत्पति, उसके विकास और उसके समाप्त हो जाने के संबंध में जो वेज्ञानिक प्रमाण प्रस्तुत किये, उनमें भारतीय वैज्ञानिक डल, सुब्रह्मण्यम चन्द्रशेखर का नाम अग्रगण्य है ।
2. जीवन परिचय एवं उपलब्धियां:
डॉ॰ सुब्रह्मण्यम चन्द्रशेखर का जन्म 19 अक्तूबर, 1910 को पंजाब के लाहौर शहर में हुआ था । उनके पिता कर्नाटक संगीत में प्रवीण थे । मद्रास के प्रेसीडेंसी कॉलेज से उच्च शिक्षा ग्रहण करने के उपरान्त उन्होंने ब्रिटिश खगोल शास्त्रियों के विचारों का अध्ययन किया ।
उसके पश्चात् फर्मी डिराक के अणु सम्बन्धी सिद्धान्त का भी अध्ययन किया । अपने चाचा चन्द्रशेखर वेंकटरमन को नोबेल पुरस्कार पाते देख उन्होंने भी कुछ ऐसा शोध कार्य करने का सोचा । विश्वविद्यालयीन परीक्षा में रिकार्ड अंक प्राप्त कर उन्होंने मिलने वाली छात्रवृति से ट्रिनिटी कॉलेज इंग्लैण्ड में अनुसन्धान कार्य करने का निश्चय किया ।
उनके कई अनुसन्धान पत्र वहां की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में छपे । 1932 में उन्होंने मरणासन्न तारों के बारे में जानकारी देते हुए कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य प्रमाणित किये । 1933 में 23 वर्ष की अवस्था में पी॰एच॰डी॰ प्राप्त कर केम्बिज विश्वविद्यालय के फैलो निर्वाचित हुए ।
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1934 में श्वेत वामन तारों के निर्माण सम्बन्धी पूरी गणना कर दिखलायी । तारों की गणना के सम्बन्ध में एडिंगटन सोसाइटी द्वारा निमन्त्रण पत्र पाकर वे उत्साहित हुए । उन्होंने तारों के सम्पूर्ण जीवन प्रक्रिया तथा छोटे तारों की स्थिति पर प्रकाश डालते हुए यह बताया कि दान तारों और ब्लैकहोल के घने होने के कारण उसके गुरात्वाकर्षण से नहीं बच पाते ।
चन्द्रशेखर अपने सिद्धान्तों की उपेक्षा और उपहास से बहुत दुखी हुए । उन्होंने अपना अध्ययन जारी रखा और तारों के झुण्ड की गतिविधियों के अध्ययन के साथ-साथ झुण्ड की संरचना, तारों के आपसी प्रभाव आदि पर 1942 में एक शोधयस्थ लिखा, जिसका शीर्षक था ”स्टेलर गति शास्त्र का सिद्धान्त” ।
उन्होंने तारों की आन्तरिक उष्मा विकिरण और उसके बाद ब्रह्माण्ड के चुम्बकत्व से सम्बन्धित सिद्धान्त प्रतिपादित कर यह बताया कि आकाशगंगा सहित सभी गैलेक्सियां तगड़े चुम्बकीय प्रभाव से घिरी हैं और वही तारों के आकार को प्रभावित करती हैं ।
तारा हमेशा चमकदार नहीं रह सकता; क्योंकि उसके भीतर की नाभिकीय ऊर्जा धीरे-धीरे समाप्त हो जाती है, जिससे आन्तरिक संरचना में परिवर्तन होता है । उसके साथ ही उन्होंने तारों का वायुमण्डल, क्षोभ सिद्धान्त, चुम्बकीय तथा गैर चुम्बकीय क्षेत्र की संयोजी गतियों के सम्बन्ध में भी खोजपरक जानकारियां दीं ।
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उनकी कुछ प्रमुख किताबों में “रेडियेटिव ट्रांसफर, हाइड्रोडायनामिक्स, हाइड्रोमेगनेटिक रन्टेबिलिटी” हैं । उन्हें उनके शोधकार्य के लिए रॉयल सोसाइटी लंदन, अमेरिका आदि ने पुररकार देकर सम्मानित किया । भारत सरकार ने उन्हें 1968 में पदूमभूषण दिया । वहीं ये नोबेल पुरस्कार से भी अलकृत हुए ।
उनका विवाह 1936 में ललिता डोराई२चामी से हुआ । मातृभूमि भारत से प्रेम होते हुए भी वे अमेरिकन नागरिकता ग्रहण किये हुए थे दुर्बल शरीर, किन्तु आकर्षक व्यक्तित्व के धनी डॉ॰ चन्द्रशेखर संगीत प्रेमी थे । इस महान् वैज्ञानिक को अगस्त 1995 को दिल का दौरा पड़ा ।
3. उपसंहार:
बीसवीं सदी के महान् खगोलशास्त्री ही नहीं, भौतिकविज्ञानी एवं गणितज्ञ के रूप में अपनी पहचान रथापित करने वाले डॉ॰ सुब्रह्मण्यम चन्द्रशेखर को नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने का गौरव हासिल है । वे भारत के नोबेल पुरस्कार प्राप्त वैज्ञानिकों में अपनी अमिट छाप बनाये हुए हैं ।