डॉ नागेंद्र की जीवनी | Biography of Dr. Nagendra in Hindi!
1. प्रस्तावना ।
2. जीवन वृत एवं रचनाकर्म ।
3. उपसंहार ।
1. प्रस्तावना:
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डॉ॰ नगेन्द्र सर्वतोमुखी प्रतिभासम्पन्न साहित्यकार थे । वे श्रेष्ठ निबन्धकार, संस्मरणकार, यात्रा वृतान्त लेखक, आलोचक, सम्पादक थे । डॉ॰ नगेन्द्र रसवादी आलोचक माने जाते हैं । वे व्यावहारिक एवं सैद्धान्तिक समीक्षक के रूप में जाने जाते हैं । वे श्रेष्ठ अनुवादक भी रहे हैं ।
आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी ने कहा है: ”आचार्य नगेन्द्र एक व्यक्ति ही नहीं, संस्था थे ।” उन्होंने अनुसन्धान परिषद की स्थापना के साथ-साथ काव्यशास्त्र के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण ग्रन्धों और अंशों का अनुवाद भी कराया था, साथ ही इन्हें समृद्ध भी कराया था । उन्होंने व्यावहारिक समीक्षक के रूप में नये मानदण्ड स्थापित किये ।
2. जीवन वृत्त एवं रचनाकर्म:
डॉ॰ नगेन्द्र का जन्म सन् 1916 को अलीगढ़ के अमरौली में हुआ था । प्रारम्भ में उन्होंने अंग्रेजी और हिन्दी में एम॰ए॰ किया । तत्पश्चात् हिन्दी से डी॰लिट॰ की उपाधि प्राप्त की । वे आकाशवाणी में भी रहे । नगेन्द्रजी ने दिल्ली विश्वविद्यालय में भी कार्य किया । अपने श्रेष्ठ कृतित्व के लिए वे ”पद्मभूषण” तथा ”भारत भारती’ से भी सम्मानित हुए ।
उन्होंने रीतिकालीन कविता और ‘सुमित्रानन्दन पन्तं’ ‘मैथिलीशरण गुप्त’ की द्विवेदी युगीन कृति ”साकेत” आदि पर रचनात्मक, सैद्धान्तिक, व्यावहारिक समीक्षा लिखी । उन्होंने एक सम्पादक के रूप में भारतीय साहित्य, हिन्दी साहित्य का इतिहास तथा संस्कृत और अंग्रेजी साहित्य की प्रमुख कृतियां ”साहित्य शास्त्रीय” का अनुवाद कर उसकी टीका भी लिखी ।
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उन्होंने पद्या के क्षेत्र में मौलिक लेखन करते हुए अनुवाद कार्य भी किया । उन्होंने गोल्डस्मिथ द्वारा रचित ”दी ट्रेवलर” का अनुवाद “भ्रांत” शीर्षक से प्रस्तुत किया । यह कार्य मात्र सोलह-सत्रह वर्ष की अवस्था में किया । ”बनमाला” और “छन्दमयी” उनकी खण्डकाव्यात्मक रोमांटिक रचनाएं हैं । इन रचनाओं में पन्त, प्रसाद की छायावादी दृष्टि दिखाई पड़ती है ।
उन्होंने विचार और अनुभूति, विचार और विश्लेषण, अनुसन्धान और आलोचना, आलोचक की आस्था, आस्था के चरण, नयी समीक्षा, नये सन्दर्भ इत्यादि निबन्ध अपनी भारतीय शैली के उनुक्त चिन्तन के अनुसार लिखे हैं । उनकी शैली में निजीपन है, प्रौढ़ता है । उनके निबन्ध व्यक्तिपरक एवं विषयपरक दोनों ही हैं । उन्होंने चेतना के बिम्ब तन्त्रलोक से मन्त्रलोक तथा अप्रवासी की यात्राएं पर संस्मरण भी लिखे हैं ।
3. उपसंहार:
वे सर्वश्रेष्ठ आलोचक हैं । उन्होंने समीक्षा के नये प्रतिमान स्थापित किये । उनकी छायावादी, प्रगतिवादी, प्रयोगवादी तथा नयी कविता की प्रवृत्तियों की ओर निरन्तर बढ़ती चली गयी । उनका समीक्षक चिन्तन स्वस्थ एवं पूर्वाग्रह से रहित है ।
डॉ॰ नगेन्द्र ने रीतिकालीन की भूमिका में रस, अलंकार, रीति, वक्रोक्ति और ध्वनि सम्प्रदाय के मतों की पुनर्स्थापना भी की है । उन्होंने ”भारतीय सौन्दर्य शास्त्र” की भूमिका लिखी । अरस्तु के काव्यशास्त्र का स्वयं अनुवाद कर भूमिका प्रस्तुत की । निष्कर्ष यह है कि उनका अवदान हिन्दी साहित्य जगत में विशिष्ट रहेगा ।