पण्डित चन्द्रबली पाण्डेय । Biography of Pandit Chandrabali Pandey in Hindi Language!

1. प्रस्तावना ।

2. जीवन परिचय एवं रचनाकर्म ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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पण्डित चन्द्रबली पाण्डेयजी ने अपना सम्पूर्ण जीवन ”हिन्दी” के प्रति एकनिष्ठ सेवाभाव रखते हुए व्यतीत कर दिया । उन्होंने हिन्दी भाषा के गौरव की प्रतिष्ठापना के लिए न केवल संघर्ष किया, वरन् लेखन, सम्पादन, प्रचार-प्रसार के माध्यम से हिन्दी की तन-मन से सेवा की । हिन्दी के विकास एवं संवर्द्धन में उनकी भूमिका अमूल्य है ।

2. जीवन परिचय एवं रचनाकर्म:

हिन्दी सेवी चन्द्रबली पाण्डेय का जन्म उत्तरप्रदेश के आजमगढ़ के सठि गांव में हुआ था । उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम०ए० किया । यहां अध्ययन करते हुए उन्होंने हिन्दी विभागाध्यक्ष आचार्य रामचन्द्र शुक्ल से प्रभावित होकर संस्कृत, अंग्रेजी के साथ-साथ अरबी, फारसी तथा उर्दू का ज्ञान भी प्राप्त किया ।

पाण्डेयजी का योगदान हिन्दी के लिए इसीलिए भी महत्त्वपूर्ण रहा; क्योंकि उन्होंने उस समय हिन्दी के गौरव, प्रतिष्ठापन के लिए आवाज बुलन्द की । जब हिन्दी का संघर्ष उर्दू और हिन्दुस्तानी का था, तब भाषा का प्रश्न राष्ट्रभाषा की अस्मिता का प्रश्न बन चुका था ।

भाषा-विवाद का यह प्रश्न हिन्दी और उर्दू समर्थकों के बीच जीवन-मरण के संघर्ष का पर्याय बन चुका था । उर्दू समर्थक हिन्दी को हिन्दुई बताकर उर्दू के घोर समर्थन में अड़े हुए थे । तब हिन्दी की भाषा-सम्बन्धी समस्त उलझनों एवं विवादों को सुलझाने का कार्य कर हिन्दी के विकास का मार्ग प्रशस्त किया-चन्द्रबली पाण्डेयजी ने ।

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पाण्डेजी ने इन समस्त विवादों को तर्कसम्मत ढंग से अपने लेखों और आलेखों में निरन्तर लिखा । उनके प्रमुख लेख हैं: ”उर्दू का रहस्य”, “उर्दू की जुबान”, “उर्दू की हकीकत क्या है”, “एकता”, ”कचहरी की भाषा और लिपि”, ”कालिदास”, ”कुरआन में हिन्दी”, ”केशवदास”, “तन्सवुफ्फ अथवा सूफी मत”, “तुलसी की जीवनभूमि”, ”नागरी का अभिशाप”, ”नागरी ही क्यों”, “प्रच्छालन या प्रवंचना”, ”बिहार में हिन्दुस्तानी”, “भाषा का प्रश्न”, ”मुगल बादशाहों की हिन्दी”, ”मौलाना अबुल कलाम की हिन्दुस्तानी”, “राष्ट्रभाषा पर विचार-विमर्श”, ”शासन में नागरी”, ”शूद्रक साहित्य संदीपनी”, ”हिन्दी के हितैषी क्या करें”, ”हिन्दी की हिमायत क्यों”, ”हिन्दी गद्या का निर्माण”, ”हिन्दुस्तानी से सावधान” इत्यादि ।

3. उपसंहार:

पाण्डेयजी के लेखों से ही यह स्पष्ट हो जाता है कि उन्हें अपनी राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रति कितना प्रेम था । वे किसी भी स्थिति में हिन्दी को अप्रतिष्ठित नहीं देख सकते थे । पाण्डेयजी के अमूल्य प्रदेय से बहुत कम लोग परिचित हैं, परन्तु उन्होंने जो भी कुछ किया, वह हिन्दी के लिए ही किया ।

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