महादानी राजा बाली की जीवनी | Biography of Mahadani King Bali!

1. प्रस्तावना ।

2. राजा बलि का दान माहात्म्य ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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भारत की भूमि धर्मभूमि रही है । यहां महान् दानी, वीर, तपस्वी, साधु-सन्तों ने जन्म लेकर इस भूमि को धन्य किया । महर्षि दधीचि, कणाद, कर्ण, हरिश्चन्द्र, रंतिदेव जैसे महादानियों ने सर्वस्व दान कर मानव-समाज के समक्ष त्याग और दान का अनूठा आदर्श रखा । ऐसे ही त्यागमय, अनूठे आदर्श के उदाहरण हैं: महादानी राजा बलि ।

2. राजा बलि का दान माहात्म्य:

असुरेश्वर बलि अत्यन्त धर्मात्मा, वीर, प्रतापी, उदार हृदय, दानी स्वभाव वाले राजा थे । वे प्रहलाद के पौत्र और विरोचन के पुत्र थे । पाताललोक के राजा बलि तथा उनकी पत्नी दोनों का भगवान् विष्णु के प्रति एकनिष्ठ भक्ति एवं अटूट समर्पण भाव था । राजा बलि के दानी होने की चर्चा समस्त लोकों में व्याप्त थी ।

उनका त्याग और तपस्या देखकर इन्द्र भी उनसे भयभीत रहता था । अपने पुण्य बल से वे इन्द्र का पद हासिल करना चाहते थे । अपने सिंहासन पर मंडराते संकट की आशंका से इन्द्र भगवान नारायण के पास पहुंचे । नारायण ने राजा बलि की परीक्षा लेकर इससे मुक्ति का अच्छा मार्ग सोचा था ।

उन्होंने वामन {बौने} का रूप धारण किया और ब्राह्मण के वेश में राजा बलि से दान मांगा । सहज रूप से राजा बलि ने वामन द्वारा इच्छानुसार माने गये दान को देने हेतु सहर्ष स्वीकृति दे दी । वामन ने कहा: ”मुझे तुम तीन पैर के माप में पृथ्वी दान दो ।” ऐसा कहकर वामन ने अपना एक पैर रखकर राजा बलि का स्मत भूमण्डल ले लिया ।

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दूसरे पैर से राजा बलि ने स्वर्ग नापकर मांग लिया । तीसरा पैर उन्होंने राजा बलि के सिर पर रख दिया । इस तरह छलपूर्वक राजा बलि से दान लेकर वामन अवतारी भगवान् नारायण ने अपने तीन पैरों को इतना विशद् और व्यापक रूप प्रदान किया कि तीन पैरों में समूचा पृथ्वीलोक, बलि का स्वर्गलोक तथा पाताललोक नापकर उसे पाताल नगरी के नीचे एक छोटे-से समुद्र में सीमित कर दिया ।

वहां पर भी बलि राजा अपने सहज स्वभावानुसार भगवान् विष्णु नारायण का ध्यान करते हुए अपना जीवन बिताने लगे । अन्त में भगवान् ने प्रहलाद की अनुनय-विनय तथा बलि के पुण्य कृत्यों से प्रसन्न होकर उन्हें रोग, जरा, मृत्युहीन सुतल में रहने तथा इन्द्रपद प्राप्ति का वरदान दिया ।

3. उपसंहार:

भारतीय हिन्दू संस्कृति में राजा बलि महादानी, तपस्वी और पुण्यात्मा असुरेश्वर के रूप में श्रद्धा और आदर के पात्र हैं । देवताओं ने भी उन्हें इस गुण के कारण सम्मानीय स्थान प्रदान किया है ।

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