महान गणितज्ञ-श्रीनिवास रामानुजन की जीवनी । Biography of Srinivas Ramanujan in Hindi Language!

1. प्रस्तावना ।

2. जन्म परिचय ।

3. गणित और रामानुजन ।

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4. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

महान गणितज्ञ रामानुजन भारत के उन महान् गणितज्ञों में से एक थे, जिनकी अदभुत गणितीय अन्तर्प्रज्ञाशक्ति से सारा देश ही नहीं, विश्व भी चकित था । इस असाधारण प्रतिभाशाली, महान् एवं युवा गणितज्ञ की मेधा, प्रतिभा इतनी विलक्षण थी कि बाल्यावस्था से ही उन्होंने गणित के कई मौलिक सिद्धान्तों को न केवल जन्म दिया, अपितु उसका प्रतिपादन भी व्यावहारिक रूप से विविध रूपों में करके दिखला दिया ।

उनका जीवन चरित्र पराधीनता के अभिशाप से ग्रसित उस असाधारण प्रतिभा के असमय काल-कवलित हो जाने से है, जिसकी कराणगाथा यह बताती है कि रामानुजन की कहानी चुके हुए अवसर की जीवनगाथा  है ।

2. जन्म परिचय:

महान् गणितज्ञ श्री रामानुजन का जन्म 22 दिसम्बर, 1887 को तमिलनाडु के कुम्भकोणम शहर में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था । उनकी माता कोमलताम्मल धार्मिक संस्कारों वालीं एक रूढ़िवादी महिला थीं । उन धार्मिक संस्कारों की अमिट छाप रामानुजन पर इतनी अधिक थी कि उनका सम्पूर्ण जीवन इन्हीं संस्कारों की बलि चढ़ गया ।

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उनके पिता साड़ी की एक दुकान पर 20 रुपये प्रतिमाह वेतन पर मुनीमी किया करते थे । बचपन से ही वे अत्यन्त कुशाग्र बुद्धि के जिज्ञासु एकान्तप्रिय, खेलकूद में अरुचि रखने वाले बालक थे । गणित में उनकी अत्यन्त गहरी रुचि थी । गणित के सभी प्रश्नों का हल वे अत्यन्त कम समय में ही पूर्णरूप से सही हल कर लेते थे ।

गणित में उनके असाधारण ज्ञान को देखकर उनके अध्यापक तक उनसे डरा करते थे । वे सवाल करते ही थे कि इसके पहले रामानुजन उसका हल निकाल लिया करते थे । कठिन-से-कठिन सवालों के हल वे नये-नये सूत्रों व विभिन्न पद्धतियों से इतनी सरलता से हल कर लेते थे कि उनके गणित के अध्यापक उनसे कन्नी काटा करते थे ।

गणित विषय के सभी शिक्षक उनकी प्रतिभा का लोहा माना करते थे । 16 वर्ष की अवस्था में उन्होंने 5 हजार सूत्रों, प्रमेयों और सांध्यों को सिद्ध करते हुए देश ही नहीं, विदेशों के विद्वानों को भी हतप्रभ कर दिया    था । वे उन प्रतिभाशाली गणितज्ञों में से थे, जो स्टेप बाई रदेप गणित के सवालों को हल करते थे । गणित को छोड़कर उनकी रुचि किसी अन्य विषय में नहीं थी ।

गणित को छोड्‌कर अन्य सभी अनिवार्य विषयों में अनुत्तीर्ण होने की वजह से उनकी छात्रवृत्ति छीन ली गयी । रामानुजन अत्यन्त कोमल स्वभाव के थे । असफलता को वे सहन नहीं कर पाते थे । फेल होने पर वे घर से भाग जाते थे, ताकि उन्हें अपने माता-पिता का सामना न करना पड़े । उनके माता-पिता अपनी कमजोर आर्थिक स्थिति के बाद भी उन्हें पढाना चाहते थे ।

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पुस्तकों तथा कापियों के खर्चो के लिए उन्होंने ट्‌यूशन करना प्रारम्भ कर दिया । ट्‌यूशन पढ़ने के लिए जो विद्यार्थी आते थे, उन्हें रामानुजन अपनी तरह ही मेधावी समझकर पढ़ाते थे, जिससे विद्यार्थी समझ नहीं पाते थे । अब उन्हें ट्‌यूशन मिलनी भी बंद हो गयी । वे अपने साथी विद्यार्थियों से पुस्तकें मांगकर पढ़ा करते थे और स्वयं ही गणित के सवालों को हल करते थे ।

हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद रामानुजन ने कुम्भकोणम कॉलेज में प्रवेश लिया, जहां इंग्लिश, ग्रीक, रोमन, कायिकी, इतिहास तथा गणित विषयों को शी पढ़ना होता था । रामानुजन गणित में शत-प्रतिशत उांक पाकर निकल गये, किन्तु अन्य विषयों में अनुत्तीर्ण होने पर उनकी छात्रवृत्ति छीन ली गयी ।

1909 में उनका विवाह जानकी से हो गया । पुन: ट्‌यूशन का कार्य शुरू कर दिया । साथ में गणित पर शोधकार्य भी लिखना जारी रखा । उनका पहला शोधपत्र 1911 में जर्नल के तीसरे अंक में शीर्षक बर्नली संख्याओं के कुछ गुण पृष्ठों का आठ प्रमेयों सहित प्रकाशित हुआ ।

उनके शोधकार्य से प्रभावित होकर उन्हें 25 रुपये मासिक की छात्रवृत्ति व क्लर्क की नौकरी मद्रास में मिली । सन 1912 उनका परिचय  केम्ब्रिज विश्वविद्यालय के विख्यात गणितज्ञ हैनरी फैडरिक बेकर, ई॰ डबल होबरान, हेरल्ड होल्डी से हुआ ।

प्रोफेसर होल्ही ने रामानुजन की बहुमुखी प्रतिभा को पहचाना । उनकी अदभुत गणितीय प्रतिभा को देखकर तथा उनके शोध का मूल्यांकन करने के लिए इंग्लैण्ड बुलाने का निर्णय किया । रामानुजन धार्मिक तथा पारिवारिक बन्धनों के कारण इंग्लैण्ड जाने को तैयार नहीं थे । 14 अप्रैल, 1911 को रामानुजन इंग्लैण्ड पहुंचे । वहां उनका अपेक्षाकृत स्वागत नहीं हुआ; क्योंकि वे एक काले भारतीय थे ।

कुछ गणितज्ञ तो उनकी प्रतिभा से डरते व जलते थे, लेकिन प्रो हाल्डी ने जब रामानुजन की 120 प्रमेयों की पुस्तिका देखी, तो वे चकित रह गये । उन चमत्कारिक शोधपत्रों के आधार पर उन्हें बिना परीक्षा के बी॰ए॰ की उपाधि मिल गयी थी ।

इस बीच रामानुजन के  21 महान शोधपत्र प्रकाशित हुए । वे 2 वर्षो के लिए इंग्लैण्ड आये थे । इसी बीच द्वितीय विश्वयुद्ध छिड़ गया । रामानुजन विशुद्ध शाकाहारी थे । 20 घण्टे शोधकार्य, वहां के गद्‌दे; मौसम की मार, अथक परिश्रम वे करते थे । उन्हें नियमित रूप से शाकाहारी भोजन मिलना भी नसीब नहीं हो रहा था । वे चावल खाये बिना नहीं रह पाते थे ।

इधर विश्वयुद्ध के कारण जहाज से चावल मिलना भी दुर्लभ हो गया था! । धार्मिक संस्कारों के कारण वे ठण्डे पानी से एकदम सुबह 4 बजे स्नान किया करते थे । इन सब कारणों ने उनके शरीर को कमजोर बना दिया था । अमाशय, व्रण रक्त विषाद, फिर कैंसर का रोगी बना दिया । सन 1917 ट्रिनिटी फैलोशिप पाने से वंचित होने पर गहरी हताशा में पड गये । उन सेवा के लिए कोई नहीं था ।

उधर गांव में उनकी पत्नी उन्हें छोड़कर चली गयी । अरुचिकर भोजन, प्रतिकूल मौसम की मार और निराशा से रामानुजन एक बार तो अस्पताल से सैर पर बाहर निकले और ट्रेन के सामने कूदकर आत्महत्या का प्रयास कर ही रहे थे, इसी बीच सौभाग्यवश उन्हें ढूंढते हुए वहां तक जा पहुंचे हाल्डी ने उन्हें किसी तरह बचाया । वे उन्हें अस्पताल ले आये । शारीरिक अस्वस्थता के बीच भी वे शोधकार्य में लगे रहे ।

रामानुजन को रॉयल सोसाइटी ने फैलोशिप हेतु निर्वाचित कर दिया । वे इतनी दुर्बल अवस्था में थे कि सम्मान समारोह तक भी न जा सके । बाद में उन्हें ट्रिनिटी फैलोशिप भी प्रदान की गयी । उन्हें 50 पौण्ड वार्षिक  की छात्रवृत्ति मिला करती थी । उन्होंने इसे अपने माता-पिता के भरण-पोषण ते लिए तथा शेष निर्धन छात्रों की छात्रवृत्ति के लिए स्वीकार किया ।

बीमारी की इस अवस्था में 1920 तक रामानुजन ने 650 सूत्रों व प्रमेयों का विभिन्न पद्धतियों से उदाहरणसहित हल किया हुआ पुलिन्दा सर जान एण्ड्रूज को सौंपा । महान गणितज्ञ रामानुजन इतने प्रतिभाशाली थे कि वे अपनी  अन्तर्प्रज्ञा से प्रमेयों तक क्रमबद्ध तरीकों से पहुंचने की बजाय मारूति छलांग लगाकर सीधे सर्वशुद्ध हल तक पहुंच जाया करते थे । उनकी यह दैवीय प्रतिभा अंग्रेज गणितज्ञों के सामने जादुई व अविश्वसनीय थी ।

ऐसे महान गणितज्ञ का कारुणिक तथा असामयिक निधन मात्र 39 वर्ष में हो गया । रामानुजन की करुण कहानी चूके हुए अवसरों की ऐसी कहानी है, जो यह बताती है कि प्रतिभाशाली विद्वानों को अपने देश में नहीं, विदेश में भी पहचाना जाता है । हमारे देश की प्रतिभा को उचित समय पर उचित सम्मान व आदर नहीं मिल पाया । काश ! हमारा देश गुलाम न होता ?

3. गणित और रामानुजन:

भारत प्राचीनकाल से गणित के क्षेत्र में अग्रणी देश रहा है । यहां दशमलव प्रणाली तथा शून्य का आविष्कार हुआ । आर्यभट्ट तथा भास्कराचार्य जैसे गणितज्ञ के बाद 19वीं सदी में रामानुजन एक ऐसे गणितज्ञ थे, जिन्होंने 650 से अधिक प्रमेयों, साध्यों का न केवल प्रवर्तन किया, अपितु उसे विभिन पद्धतियों से हल करके भी अपनी प्रतिभा का परिचय दिया ।

अपनी अन्तर्दृष्टि से जो प्रमेय और सूत्र उन्होंने लिखे, वे सही ही होते थे । यह आश्चर्य की बात है कि रामानुजन के कुछ सूत्रों और प्रमेयों को कोई हल नहीं कर पाया, जिस पर अभी श्री शोध जारी है । उनका कथन था कि गणित की दो संख्याएं श्त्य तथा अनन्त का दर्शन के क्षेत्र में भी बहुत ऊंचा स्थान है ।

वे शून्य को निर्गुण ब्रह्म मानते थे और अनन्त को उन सम्भावनाओं का पूर्ण समूह बताते थे, जिनसे ब्रह्माण्ड बना है । शून्य परम वास्तविक सत्ता है, जिससे ब्रह्माण्ड की रचना हुई है । शून्य या अनन्त गुण की कोई संख्या नहीं है । कोई भी समीकरण तभी तक निरर्थक होता है, जब तक वह दैवीय सत्य की अनुभूति नहीं करता । ऐसा वे मानते थे ।

4. उपसंहार:

रामानुजन सचमुच ही अदभुत, विलक्षण, असाधारण गणितज्ञ थे । 19वीं सदी के इस महान गणितज्ञ ने विश्व को अपने प्रमेय तथा सूत्रों की देन से चकित कर दिया । यदि उन्हें अधिक अवसर मिलते, वे बीमार नहीं होते  और धार्मिक रूढ़ियों में नहीं जकड़े होते, तो वे अपनी विलक्षण प्रतिभा से गणित जगत् को और बहुत कुछ नया दे जाते । तथापि गणित जगत इस युवा गणितज्ञ को हमेशा उनकी अन्तर्प्रज्ञायुक्त विलक्षण प्रतिभा के कारण कभी विस्मृत नहीं कर पायेगा ।

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