महावीर प्रसाद द्विवेदी । Biography of Mahavir Prasad Dwivedi in Hindi Language!

1. प्रस्तावना ।

2. जीवन  वृत्त   एवं रचनाकर्म ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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खड़ी बोली हिन्दी को परिष्कृत परिमार्जित कर उसे स्थिरता प्रदान करने वालों में श्री महावीर प्रसाद द्विवेदीजी का नाम अग्रगण्य है । वे एक कवि, आलोचक, निबन्धकार, अनुवादक आचार्य एवं सम्पादक भी थे । सन् 1903 से लेकर 1920 तक उन्होंने ”सरस्वती” पत्रिका के सम्पादक के रूप में कार्य करते हुए हिन्दी साहित्य जगत को श्रेष्ठ साहित्यकार प्रदान किया ।

2. जीवन वृत्त एवं रचनाकर्म:

उनका जन्म सन् 1864 को रायबरेली जिले के दौलतराम नामके ग्राम में हुआ था । गांव की पाठशाला में प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करने के पश्चात् वे अंग्रेजी पढ़ने के लिए रायबरेली के स्कूल में भर्ती हो गये । अपने पिता के साथ वह बम्बई चले आये । बम्बई में उन्होंने संस्कृत, गुजराती, मराठी, अंग्रेजी का अच्छा ज्ञान प्राप्त किया था ।

मिडिल कक्षा तक उन्होंने वैकल्पिक विषय के रूप में फारसी पड़ी तथा बंगला का भी अच्छा ज्ञान प्राप्त किया था । उन्होंने अपनी आजीविका के रूप में रेलवे की नौकरी भी की थी । बाद में उन्होंने उच्चाधिकारियों से वाद-विवाद हो जाने के पश्चात् त्यागपत्र दे दिया ।

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नौकरी करते हुए भी उन्होंने साहित्य की साधना पूरी की । इस पद पर रहते हुए उन्होंने मालिक के विश्वासपात्र बनने, समय के पाबन्द होने, ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ बने रहने के उच्चादर्शों पर बल दिया । साहित्य-साधना करते हुए उन्होंने अश्लील साहित्य से दूर रहने का संकल्प व्रत लिंया था ।

अपनी नौकरी से त्यागपत्र देने के पश्चात करस्वती पत्रिका के अवैतनिक सम्पादक बनकर गद्या एवं पद्या, भाषा के परिमार्जन की दिशा में कार्य किया । उनके प्रोत्साहन एवं मार्गदर्शन के फलस्वरूप कवियों की नयी पीढ़ी का निर्माण हुआ । आपके द्वारा लिखे गये अन्यों की संख्या मौलिक एवं अनुदित मिलाकर 80 के लगभग है ।

मौलिक काव्य की ओर उनकी प्रवृत्ति विशेष नहीं रही । अनुदित काव्य कृतियां अधिक श्रेष्ठ हैं । उन्होंने काव्य मंजूषा, सुमन, कान्यकुब्ज, अबला विलाप, गंगालहरी,  ऋतुतरंगिनी, सम्भवसार {अनुदित} रचनाओं के साथ-साथ कुछ कविताएं भी लिखी हैं । उनके लेखों का संग्रह “रसज्ञरंजन” साहित्य सीकर के नाम से प्रसिद्ध है ।

सरस्वती में उनके सम्पादकीय एवं तीव्र आलोचनात्मक लेख भी मिलते हैं । उनकी शैली गवेणात्मक, हास्य-व्यंग्यात्मक तथा समालोचनात्मक है । पहली शैली में उन्होंने भाषा में संयम एवं शिष्ट रूप का ध्यान रखा है । दूसरी शैली चलती हुई भाषा में होती है, जिसमें स्थान-स्थान पर हास्य का पुट मिलता है ।

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समालोचनाल्क शैली में वे सामान्य भाषा का प्रयोग करते हैं । उनके नाम से साहित्य का सन् 1900 से 1920 तक का समय द्विवेदी युग के नाम से अभिहित किया जाता है । द्विवेदी युगीन काव्य प्रवृत्तियों में राष्ट्रीयता की भावना, सामान्य मानवता, नीति और यथार्थ, हास्य-व्यंग्य काव्य, वर्ण्य विषयों का विस्तार सभी काव्य-रूपों का प्रयोग, भाषा-परिवर्तन एवं छन्द वैविध मिलता है ।

उधर गद्या की लगभग सभी विधाओं में द्विवेदी युग के साहित्यकारों ने अपनी महत्त्वपूर्ण प्रतिभा से समृद्ध किया है । इस युग के प्रमुख कवि नाथूराम शर्मा, श्रीधर पाठक, उपाध्याय प्रसाद हरिऔध, राय देवीप्रसाद पूर्ण, गयाप्रसाद स्नेही, मैथिलीशरण गुप्त, रामनरेश त्रिपाठी, सैय्य्द अली मीर, सत्यनारायण कविरत्न हैं ।

3. उपसंहार:

द्विवेदीजी ने खड़ी बोली हिन्दी को परिमार्जित कर व्याकरणिक रूप प्रदान किया । द्विवेदीयुगीन काव्य को इतिवृत्तात्मक एवं नीरसता के आरोपों के घेरे में रखा गया है, तथापि राष्ट्रीय, सामाजिक, सांस्कृतिक पुनरुत्थान, उच्चादर्शो के संस्कारों के कारण हिन्दी साहित्य के द्विवेदी युग का अवमूल्यन नहीं किया जा सकता है । यह अपने गद्या रूप में भी श्रेष्ठ है ।

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