रणजीत सिंह । Biography of Ranjit Singh in Hindi Language!
1. प्रस्तावना ।
2. जीवन चरित्र व उपलब्धियां ।
3. उपसंहार ।
1. प्रस्तावना:
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कुमार श्री रणजीत सिंहजी विभाजी दुनिया के उन महानतम क्रिकेट खिलाड़ियों में से एक थे, जो न केवल श्रेष्ठ खिलाड़ी रहे, वरन् भारत में अपने पैतृक गुजरात राज्य के शासक भी रहे । उनके खेल कौशल को देखकर प्रशंसकों ने उन्हें ‘रन-गैट-सिंह’ कहा, तो कुछ ने उन्हें रनों की बौछार करने वाला ”नाइट” की उपाधि देकर सम्मानित किया ।
वे मार्च 1907 के बाद से नवागढ़ के महाराजा के रूप में प्रगतिशील शासक व राजनेता रहे । अपनी राजधानी जामनगर को उन्होंने आधुनिक बनाया । प्रथम विश्व युद्ध के दौरान फ्रांस में ब्रिटिश सेना में कर्नल के पद पर स्टाफ ऑफिसर थे ।
1920 के जिनेवा सम्मेलन में ”लीग ऑफ नेशन्स” असेम्बली में भारतीय राज्यों का प्रतिनिधित्व किया । 1932 में ”इण्डियन चैम्बर ऑफ प्रिंसेज” के चांसलर बने । रणजी टेस्ट क्रिकेट खेलने वाले वे पहले भारतीय थे । उन्होंने “द जुबिली बुक ऑफ क्रिकेट” की रचना की ।
2. जीवन चरित्र एवं उपलब्धियां:
रणजी का जन्म 10 सितम्बर, 1872 को जामनगर के निकट सरोदर गांव में हुआ । राजकुमार कॉलेज में प्रवेश लेने के बाद 8 वर्ष की अवस्था से ही क्रिकेट में रुचि लेना शुरू कर दिया । 1888 में जब वे उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए इंग्लैण्ड गये, तो वहां वे ट्रिनिटी कॉलेज की टीम में 1892 को शामिल कर लिये गये । वर्ष-भर में ही वे इंग्लैण्ड की टेस्ट टीम में शामिल कर लिये गये ।
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उस समय के तत्कालीन अध्यक्ष लार्ड हैरिस उन्हें टीम में यह कहकर शामिल नहीं कर रहे थे कि वे एक भारतीय हैं, लेकिन इंग्लैण्ड की क्रिकेट प्रेमी जनता ने उन्हें ऐसा नहीं करने दिया । जब उन्हें आस्ट्रेलिया के विरुद्ध लार्डस की इंग्लैण्ड टीम में पहली बार शामिल नहीं किया गया तो दूसरी बार उन्हें इंग्लैण्ड की टीम में दूसरे टेस्ट हेतु शामिल किया गया ।
इस टेस्ट में उन्होंने 62 रन बनाये । कुल 231 रन में उनके इतने रनों का योगदान महत्त्वपूर्ण था । दूसरी पारी में 154 रन बनाकर नाबाद रहे । इस तरह उन्होंने 305 की रन संख्या जोड़कर अपने कौशल का प्रदर्शन किया । खेल समीक्षकों ने उनके प्रत्येक गेंद पर खेले जाने वाले शॉट पर तारीफों के पुल बांधे ।
रणजी सिंह इतने रन बनाने के बाद भी खुश नहीं थे; क्योंकि इसमें इंग्लैण्ड की टीम पराजित रही थी । सन् 1896 में उन्होंने 10 शतक के साथ कुल 2,780 रन बनाकर ‘सर डब्ल्यूजी ग्रेस’ का 25 वर्ष पुराना रिकॉर्ड तोड़ दिया । 1899 में 3,000 रन बनाने वाले वे विश्व के प्रथम बल्लेबाज बने । उन्होंने 61.18 की औसत से कुल 3,159 रन बनाये ।
बॉल को वे अपनी कलाई से ऐसा मोड़ते थे कि दर्शक ऐसा समझते थे कि वे प्रत्येक शॉट में चौका ही लगायेंगे । लोगों ने उनका खेल ही देखा, जीवन की उदासी नहीं देखी । वे आजीवन अविवाहित ही रहे । इतनी सम्पन्नता व लोकप्रियता के बाद भी घमण्ड उन्हें छू तक नहीं गया था । 1896 से 1900 तक वे विश्व के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज थे । प्रथम श्रेणी क्रिकेट में नाबाद रहकर 365 रन बनाने का रिकॉर्ड भी उनके नाम पर है ।
3. उपसंहार:
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रणजी सिंह जीवन-भर इंग्लैण्ड की ओर से खेलते रहे । यद्यपि उन्हें तहां के दर्शकों का भरपूर प्यार मिला, तथापि वे इंग्लैण्ड में जन्म लेते, तो यही प्यार और दुगुना हो जाता । वे अश्वेत थे । अत: इसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा । आज भारत में उनकी पुण्य स्मृति में राष्ट्रीय प्रतियोगिता “रणजी ट्रॉफी” प्राप्त करने के लिए साल-भर मैच खेले जाते हैं । ऐसे महान् व्यक्तित्व 2 अप्रैल, 1933 को सदा के लिए चिरनिद्रा में सो गये ।